Tag: पत्थर का शैतान

  • जब पत्थर का भगवान नहीं हो सकता तो पत्थर का शैतान कैसे हो सकता है?

    जब पत्थर का भगवान नहीं हो सकता तो पत्थर का शैतान कैसे हो सकता है?

    जवाब:- यह सवाल हज़ के दौरान कि जाने वाली रस्म पर किया जाता है जिसमे सवाल करने वाले शायद यह समझते है कि जिस तरह भारत में हिन्दू धर्म में मूर्तियाँ बनाई जाती है वैसे ही हज़ के मुकाम पर शैतान (Devil) कि कोई मूर्ति बनाई हुई है जो एक पूर्ण गलतफहमी है।

    दरअसल वहाँ शैतान की मूर्ति जैसी कोई चीज़ नहीं है बल्कि वहाँ जो पिलर बने हैं वह तो सिर्फ़ लोकेशन बताने के लिए हैं। यानी कि वह जगह बताने के लिए जहाँ कंकर मारने की रस्म अदा की जानी होती है। जो लोग मूर्ति पूजा करते हैं वह मूर्तियों को ही भगवान या उसका रूप समझते हैं। मगर कंकरी मारने वाले, उन पिलरों को ना शैतान समझते हैं और ना उसको शैतान का रूप / मूर्ति समझते हैं और ना ही कोई ऐसी धारणा है कि इसके अंदर शैतान क़ैद है या मौजूद है।

    अतः यह समझ लेना चाहिए कि इस्लाम में किसी की भी मूर्ति / तस्वीर बनाने की सख्त मनाही है। इस्लाम में तो ईश दूत हज़रत मोहम्मद सलल्लाहो अलैहि व सल्लम की कोई तस्वीर या मूर्ति है और ना ही हज़रत इब्राहीम (अब्राहम) अलैहिस्सलाम की कोई मूर्ति है, जिनके जीवन की एक अहम घटना की याद में कंकरी मारने की रस्म अदा की जाती है और ना ही शैतान की कोई मूर्ति है।

     

    हज़ में शैतान को कंकरिया मारने की रस्म क्यों अदा की जाती है?

    यह रस्म हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) के जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना की याद में अदा की जाती है। जो कि मानव जाति के इतिहास में एक ऐसी महान दुर्लभ घटना है, जिसमे ईश दूत ने मानव जाति के लिए एक ऐसा उदाहरण पेश किया जो कि बहुत प्रेरणादायक है।

    हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) ने ख़्वाब में अपने बेटे को कुर्बान करते हुए देखा और इसे हुक्म-ए-इलाही समझ कर वह उन्हें कुर्बान करने के लिए जाने लगे। उनके इस फैसले में सिर्फ़ वह अकेले नहीं थे बल्कि अन्य सहयोगी उनके बेटे जिन्हें कुर्बान किया जाना था और उनकी बीवी भी थी।

    जब बाप और बेटे इस आदेश का पालन करने के लिए जाने लगे तो शैतान बिल्कुल नहीं चाहता था कि वे दोनों इस इम्तिहान में कामयाब हो इसलिये वह उन्हें भटकाने आ गया और बहकाने लगा कि तुम क्यों अपने बेटे को कुर्बान करने जा रहे हो? और ऐसे ही दूसरे मुकाम पर फिर उनके बेटे और उनको बहकाने आया ऐसा कुल तीन मकामों / जगहों पर हुआ। इस पर बाप बेटे दोनों अपने फैसले में अडिग रहे और शैतान और उसके विचारों को धुतकारते हुए कंकरिया मारी और अल्लाह का हुक्म अदा करने के लिए आगे बढ़ते रहे और इम्तिहान में कामयाब हुए।

    अल्लाह तआला को यह अदा इतनी पसंद आई कि कंकरिया मारने को हज़ का एक हिस्सा (रुक्न) बना दिया ताकि क़यामत तक इसकी याद ताजा होती रहे। जिन जगहों पर यह वाकया हुआ वहाँ निशानदेही कर दी गई। उस जगह लोग कंकर मारकर इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) के उस अमल को दोहराते हैं, इससे सीख लेते हैं और अल्लाह की बड़ाई बयान करते हैं। ताकि जिस तरह इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) सत्य मार्ग से नहीं भटके हम भी कभी सत्य मार्ग छोड़कर असत्य मार्ग नहीं अपनाएंगे। अल्लाह के हुक्म पर अमल करेगें और शैतान के बहकावे में आकर उसे पूरा करने से नहीं रुकेंगे।