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  • मुसलमान असुरों के वंशज हैं ?

    मुसलमान असुरों के वंशज हैं ?

    जवाब:- सबसे पहले तो आप ज़रा ये बताये की यह सब बातें आपने अपने कौन से धर्म ग्रन्थ से ली हैं? कौन से वेद, पुराण, रामायण में यह लिखा है? ज़रा इसका संदर्भ (रेफरेंस) तो बताएँ?

    यहाँ कही बातों का कोई आधार ही नहीं है किसी हिन्दू धर्म ग्रन्थ में ऐसा कोई उल्लेख ही नहीं है।

    वैसे तो ना इस्लाम में कोई वंशवाद / नस्ल / जातिवाद है। ना ही मक्का मदीना में कोई शिवलिंग है। बल्कि दुनियाभर में हर नस्ल हर रंग के मुस्लिम हैं जिनके पूर्वज भी भिन्न हैं।

    लेकिन इस कहानी को फिर भी सच मानने वालों को बुद्धि का प्रयोग कर ख़ुद ही थोड़ा विचार करना चाहिए।

    ❗ यह इतना तर्कहीन और मूर्खतापूर्ण इसलिए भी है कि हिन्दू धर्म का अल्प ज्ञान रखने वाला भी यह बात जानता है कि श्री राम त्रेता युग में हुए थे और इस पोस्ट के अनुसार यह घटना त्रेता युग की हुई जबकि देवताओं, ऋषि मुनियों का असुरों से युद्ध तो कई युगों बाद तक चलता रहा।

    जैसे हिन्दू धर्म ग्रँथों के अनुसार ख़ुद श्री कृष्ण ने बकासुर, अघासुर, केशी असुर आदि से युद्ध किया और उनका नाश किया। सभी जानते हैं श्री कृष्ण द्वापर युग में हुए।

    अतः श्री राम और श्री कृष्ण में त्रेता युग और द्वापर युग के बीच हिन्दू मान्यताओ के अनुसार हज़ारों लाखों वर्षों का अंतर है। तो यदि इस बात में कुछ सच्चाई होती तो क्यों इन हज़ारों वर्षों तक असुरों से युद्ध करते रहने की बजाय किसी ने रेगिस्तान में जाकर शिव लिंग पर गंगा जल क्यों नहीं चढ़ा दिया जिससे कोई असुर बचता ही नहीं? इसका मतलब तो यह हुआ वे व्यर्थ ही लड़ते रहे? उन देवताओं यहाँ तक कि श्री कृष्ण को भी इस बात की जानकारी नहीं थी? जो बात इस व्हाट्सएप ज्ञाता को 21वी सदी में आकर मालूम हो गई?

    अतः ग्रथों की जांच नहीं कर सकते तो कम से कम अपनी बुद्धि और सामान्य ज्ञान का ही थोड़ा प्रयोग करें।

    वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इसी व्हाट्सएप फ़र्ज़ी ज्ञान को सही समझ कर बीजेपी के उत्तर प्रदेश के मंत्री रघुराज सिंह ने इसे अपने बुर्क़ा बेन की मांग में दिये भाषण में उल्लेख कर अपनी फजीहत करवा ली थी और चौतरफा हँसी के पात्र बन गए थे। विश्वभर की मीडिया के सामने फजीहत (BJP Minister’s Bizarre tale / बीजेपी के मंत्री ने सुनाई विचित्र कहानी) करा बैठे रघुराज जी की इस कहानी से मुसीबत में फंसता देख बीजेपी ने तुरन्त इस बयान से अपना पल्ला झाड़ा और उन्हें नोटिस थमाते हुए उक्त कहानी को उनकी निजी सोच बताया था।

    यानी झूठ की बुनियाद पर नफ़रत फैलाने वाले इतना गिर चुके हैं कि दूसरे धर्मो को तो छोड़िये अब वे ख़ुद के धर्म के बारे में ही झूठ गढ़ने लगे हैं और अपमानजनक कृत्य कर रहे हैं। अतः इस पर तो सबसे पहले ख़ुद समझ रखने वाले हिंदू भाइयों को चिंता कर इस पर संज्ञान लेकर इसे रोकना चाहिए।

  • औरतों को परदा क्यों? मर्दो को क्यों नहीं?

    औरतों को परदा क्यों? मर्दो को क्यों नहीं?

    जवाब:-इस्लाम की विशेषता यह है कि यह ना केवल महिला सुरक्षा-मुक्त, व्यभिचार-मुक्त, अश्लीलता-मुक्त, बलात्कार-मुक्त समाज बनाने की बात करता है बल्कि वह कैसे बनेगा उसकी पूरी दिशा निर्देश (Guideline) देता है।

     

    इसी गाइडलाइन के अंतर्गत जहाँ एक तरफ़ सख्त कानूनी सज़ा का प्रावधान हैं तो इसकी रोकथाम के लिए दूसरी तरफ़ विवरण आता है हिजाब का। जिसके अंतर्गत ना केवल पहनावा आता है बल्कि व्यवहार और आचरण की पूरी व्याख्या मौजूद है।

     

    यह एक भ्रम पूर्ण एवं असत्य है कि इस्लाम हिजाब हेतु सिर्फ़ महिलाओं को ही आदेश देता है। जबकि क़ुरआन में पुरूषों को भी हिजाब का आदेश और पूर्ण दिशा निर्देश है।

    इस संदर्भ में क़ुरआन में जब बात कही गई, तो हम पाते है कि पहले पुरुषों को निर्देश दिया गया है और फिर औरतों को।

    अल्लाह तआला ने क़ुरआन में फरमाया:-

    (ऐ रसूल) ईमानदारों से कह दो कि अपनी नज़रों को नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें यही उनके वास्ते ज़्यादा सफ़ाई की बात है ये लोग जो कुछ करते हैं ख़ुदा उससे यक़ीनन ख़ूब वाक़िफ है।

    (क़ुरआन: 24:30)

     

    अतः इस्लामी शिक्षा में प्रत्येक मुसलमान को यह निर्देश दिया गया है कि जब वह किसी स्त्री को देखे और सम्भवतः उसके मन में कोई बुरा विचार आ जाए अतः उसे चाहिए कि वह तुरंत अपनी नज़रे नीची कर ले।

    इसके बाद फिर अगली आयत में क़ुरआन में महिलाओं को दिए निर्देश का ज़िक्र किया है।

    अक्सर काले वस्त्र को हिजाब समझा जाता है या काले बुर्के को महिलाओं पर अनिवार्य समझा जाता है। जबकि हिजाब यही नहीं हैं, हिजाब में वस्त्रों के अंतर्गत किस तरह के वस्त्र पहनना चाहिए उसकी गाइडलाइन दी गयी है और जो कपड़े उन गाइडलाइन पर पूरे उतरते हैं उन्हें हिजाब कहा जाता है। फिर चाहे वे कैसे भी हों।

    स्पष्ट हो कि यह गाइडलाइन भी सिर्फ़ महिलाओं के लिए ही नहीं बल्कि पुरषों के लिए भी समान रूप से है।

    प्रमुख रूप से कपड़े के 6 मापदंड है जिन्हें हिजाब की कसौटी कहा जाता है। अगर कोई वस्र इन 6 कसौटियों पर पूरा उतरता है तो उसे हिजाब कहा जायेगा ।

     

    वह 6 कसौटी हैं :-

    1. शरीर का उतना भाग पूरा ढकना जितना कि हुक्म है।
    2. कपड़े इतने तंग (Tight) ना हो कि उनसे अंग प्रदर्शन हो।
    3. वस्त्र पारदर्शी ना हों।
    4. वस्त्र इतने चटक या भड़काऊ ना हो जो विपरित लिंग को उत्तेजित करे।
    5. पुरुष और स्त्रियों के लिबास भिन्न प्रकार के हों।
    6. वस्त्र ऐसे ना हो जिसमें दूसरे धर्मो के चिन्ह वगैरह बने हो या दूसरे धर्मो की विशेष पहचान जुड़ी हो।

    विचार करने योग्य बात है कि पुरुषों और स्त्रियों दोनों के लिए यह 6 कसौटी एक जैसी ही है और दोनों को समान रूप से अनुपालन (Compliance) करना होता है।

     

    सिर्फ़ पहली शर्त की व्याख्या में भिन्नता यह है कि जहाँ पुरुषों का सतर (शरीर का वह अनिवार्य हिस्सा जिसे ढकना आवश्यक होता है) वह नाभी से लेकर घुटनों तक है।

     

    जबकि महिलाओं का सतर अधिकांश पूर्ण काया है।

    अतः यह स्पष्ट हुआ कि इस्लाम में हिजाब सिर्फ़ महिलाओं के लिये ही नहीं बल्कि महिला-पुरुष दोनों के लिए है और आदर्श समाज बनाना दोनों की ज़िम्मेदारी है।

    अब यह सवाल ज़रुर उठ सकता है कि इस्लाम में हिजाब दोनों के लिए तो है परन्तु पुरुषों और महिलाओं का सतर अलग-अलग क्यों है?

    तो स्वभाविक-सी बात है कि पुरूष और महिलाओं की शारीरिक बनावट भिन्न है, दोनों के अंग भिन्न-भिन्न है, दोनों के शरीर की आकर्षण क्षमता अलग है।

    और दोनों की मनोविज्ञान (Psychology) और एक दूसरे के शरीर के प्रति आकर्षण-कारक (Attraction factor) अलग-अलग हैं।

    इसीलिए दोनों का सतर अलग होना भी तार्किक (लॉजिकल) और न्यायपूर्ण है।

     

    इसके प्रमाण स्वरूप एक नहीं बल्कि सैकड़ों शोध, सर्वे और तथ्य, देश और दुनियाँ दोनों स्तर पर मौजूद हैं। ज़रा-सा सर्च करने पर आपको यह जानकारी मिल जाएगी। यह बात तो वैज्ञानिक रूप से भी सिद्ध हो चुकी है ।

     

    यदि आप इन शोध और तथ्यों को ढूँढने में असमर्थ हैं तो हमें सूचित करें आप को उपलब्ध करा दिए जाएंगे।