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  • ISIS के झण्डे पर कलमा लिखा होता है मुस्लिम इसका विरोध क्यों नही करते ?

    ISIS के झण्डे पर कलमा लिखा होता है मुस्लिम इसका विरोध क्यों नही करते ?

    जवाब:-  पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ जी के हर वीडियो की तरह यह विडियो भी झूठ के द्वारा डर और हिंसा भड़का कर समाज में ध्रुवीकरण कर राजनीतिक फायदा उठाने के चतुर प्रयास का उदाहरण है।

    आइए सिर्फ़ सुने नहीं बल्कि ध्यान देकर शब्दों के पीछे के षड्यंत्र और कुतर्कों को समझें और इनकी हक़ीक़त सामने लाएँ।

    सबसे पहले कुलश्रेष्ठ जी ISIS के झंडे पर “पहला कलमा” लिखा है से शुरू करते हैं और बड़ी ही चालाकी से कुछ सेकंड के अंदर ही ISIS के आतंकी शब्द की जगह सीधे “मुसलमान कलमा लिखा झंडा लेकर आतंक कर रहे है” कहने लग जाते हैं और अगले सेकंड में ही उन मुसलमान (जो कि वास्तव में मुस्लिम नहीं है सिर्फ़ हुलिया बना रखा है) को हिंदुस्तान का मुसलमान बना डालते हैं। कमाल है कुछ फ़र्क़ ही नहीं रहा।

    खैर आगे वे कहते हैं चूंकि इस्लामिक नारे का इस्तेमाल हो रहा है और मुसलमान इसका विरोध नहीं कर रहे हैं इसलिए हिंदुस्तान के मुसलमान मक्कार और मुनाफिक है।

    सर्वप्रथम यहाँ पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ जी ख़ुद को ही अपने ही शब्दों में मक्कार साबित कर रहे हैं क्योंकि यह वह अच्छे से जानते हैं कि ख़ुद हमारे देश में जय श्री राम का नारा लगाने को मजबूर करते हुए लोगों की भीड़ कई निर्दोषो को बाँधकर मौत के घाट उतार देती है उन वीडियो में कई सारे धार्मिक झंडे भी नज़र आते हैं कई सारे लोग धार्मिक नारे लगा रहे होते हैं और ऐसे एक नहीं बल्कि कई सारे मॉब लिंचिंग और दंगों के केस इस देश में हो रहे है तो क्या श्री पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ को शर्म नहीं आ रही?? ख़ुद के आस पास और धर्म से जुड़े मामलों की बात छोड़कर हजारों किलोमीटर दूर किसी घटना का ज़िक्र करके अपने ही देश वालों को आतंकी घोषित कर रहे हैं।

    तो ऐसा करते ही वह ख़ुद अपने ही शब्दों के अनुसार मक्कार निर्लज्ज और झूठे साबित नहीं हो जाते?

    अब आते हैं उनके इस आरोप पर की मुसलमान पैगम्बर ऐ इंसानियत हज़रत मोहम्मद सलल्लाहो अलैहि व सल्लम के अपमान पर जिस स्तर का विरोध करते हैं वैसे ही ISIS आदि के लिए क्यों नहीं करते?

    पुष्पेंद्र जी तो यह बात भली भांति जानते हैं कि दोनों ही बातों में एक मूल फ़र्क़ है जिसे जानते ही इस प्रोपेगंडे की पोल खुल जाती है लेकिन वह बड़ी चालाकी से इसे लोगों के सामने छुपा जाते हैं। जिसे हमें जानना चाहिए।

    वह यह है कि हज़रत मोहम्मद सलल्लाहो अलैहि व सल्लम के अपमान के मामले में मुस्लिमों ने ही शांति पूर्वक यह अपील की कि आप ऐसा कर हमारी धार्मिक भावना आहत ना करें लेकिन इस अपील पर ना ही वे रुके ना किसी देश / सरकार ने इसे रोकने का प्रयास किया अतः विरोध प्रदर्शन हुए।

    जबकि ISIS के मामले में तो देश / दुनिया की बड़ी-बड़ी मिलिट्री आर्मी उन्हें ख़त्म करने में लगी हुई हैं। उन्हें ख़त्म करने में दुनिया के तमाम संसाधन और ताकत लगा रखी है। अगर इसी तरह का या इससे 100 गुना छोटा प्रयास भी अगर दुनिया ने हज़रत मोहम्मद (स.अ.व.) के अपमान को रोकने में लगाया होता तो मुस्लिमो को किसी तरह का विरोध प्रदर्शन नहीं करना पड़ता।

    बल्कि इसमें तो बड़े आश्चर्य की बात है कि अमेरिका, रूस जैसे देश इतने सारे मिलिट्री संसाधन लगाने के बावजूद ISIS का खात्मा क्यों नहीं हो पा रहा??

    ISIS मुस्लिम है भी या जैसे बुर्का, टोपी पहनकर गैर-मुस्लिम ग़लत काम करते है उस तरह से कोई अन्य है ताकि मुस्लिमो के खिलाफ नफ़रत का प्रोपेगेंडा चलाया जा सके जो अंतरराष्ट्रीय स्तर का प्रयास है?

    क्योंकि बहुत-सी बातें है जो इस और इशारा करती हैं कि ISIS मुस्लिम संगठन नहीं है। बल्कि मोसाद और CIA के द्वारा खड़ा किया गया लगता है??

    • 1. जैसे ISIS के हमले प्रमुख रूप से मुस्लिम राष्ट्रों पर ही हो रहे हैं जिनमे शिया सुन्नी दोनों मुस्लिम तरह के राष्ट्र शामिल हैं।
    • 2. ISIS के नाम से प्रचारित की गई वीडियो का झूठा (fake) साबित होना जैसा कि अमेरिका के द्वारा 2 लाख $ डॉलर की लागत से फ़िल्माया जाना साबित हुआ।
    • 3. ख़ुद अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प का यह दावा करना कि ISIS को खड़ा करने के पीछे पूर्व राष्ट्रपति ओबामा का हाथ है।

    ऐसे और भी कई तथ्य हैं जो ISIS को मुस्लिम नहीं बल्कि भाड़े के क़ातिल का गुट कह सकते है। इसके बावजूद विश्व भर में मुस्लिमो ने ISIS और इस तरह के सभी आतंकी संस्थाओं का पुरज़ोर विरोध किया है जो श्री पुष्पेंद्र को नहीं दिखता।👇

    विश्व का सबसे बड़ा मदरसा (दारुल उलूम देवबंद) ने फतवा जारी किया👇

    1) https://m.timesofindia.com/india/deoband-first-a-fatwa-against-terror/articleshow/3089161.cms

    2)https://www.hindustantimes.com/delhi/coming-fatwa-against-terrorism/story-EZRGI5IPyMv2e5b8bZ1EUP.htm

    3)https://www.thehindu.com/news/national/darul-uloom-deoband-condemns-alqaeda-move/article6384559.ece

    4)https://www.indiatvnews.com/news/india/madrasasjoin-hands-to-create-awareness-against-isis-55989.html

    • मुस्लिम कार्यकर्ता ने की पेरिस आतंकी हमले की निंदा👇

    • शहर भर के मुस्लिम संगठनों ने घोषणा की कि मुस्लिम कब्रिस्तानों में मारे गए आतंकवादी के लिए कोई जगह नहीं है👇

    https://edition.cnn.com/2009/WORLD/asiapcf/04/17/mumbai.bodies/

    हाँ यह अवश्य है कि पुष्पेंद्र कभी राम और भगवा के नाम पर हो रहे ग़लत कामो के खिलाफ बोलते नहीं दिखे। तो उन्ही के शब्दों में वे क्या हैं यह अब दोहराने की ज़रूरत नहीं।

    उनका नजरिया बिल्कुल यही है।👇

     

    हर धर्म से जुड़े उग्रवादी संगठन अपने नामो में उस धर्म के प्रतीक और चिन्हों का प्रयोग करते हैं जैसे फलाँ सेना ,फलाँ दल आदि तो क्या पुष्पेंद्र हथियार लेकर उन्हें ख़त्म करने चले जाते है?? नहीं ना यह काम तो सेना और सुरक्षा बल का होता है। तो क्या वे यह चाहते हैं कि हिंदुस्तान का मुसलमान हथियार लेकर ISIS आदि का खात्मा करने चले जाएँ? इस तरह की बचकाना बाते और मूर्खतापूर्वक तर्क गंभीर चेहरा बना कर कहने से लोग भड़क जाएंगे और मूर्ख बन जाएंगे ऐसा अब श्रीमान को सोचना छोड़ देना चाहिए।

    क्या नमाज़ डर का प्रतीक है इससे पलायन होता है?

    जिसने भी जीवन में किसी को नमाज़ पड़ते देखा है वह जानता है कि पुष्पेंद्र जी यहाँ कितना बड़ा झूठ रच रहे हैं। नमाज़ कोई उग्र और हिंसक प्रदर्शन नहीं है। अगर पलायन की बात करें तो यातनाओं से दुखी होकर देशभर में जिन जगहों से मुस्लिमो को पलायन करना पड़ा है उसकी लिस्ट इतनी लंबी है कि उल्लेख ही नहीं किया जा सकता। कुछ एक की बात करे तो यू.पी. के श्यामली, तापराना, सम्भल राजस्थान के डाँटल आदि के बारे में पुष्पेंद्र जी का क्या कहना है?? जहाँ से सैकड़ो की संख्या में मुसलमानों ने प्रताड़ना की वज़ह से पलायन किया है।

    फिर भी यहाँ हम बहुसंख्यक को दोष नहीं देंगे। बल्कि इस तरह के सारे पलायनो के ज़िम्मेदार ये ज़हर फैलाने वाले लोग ही हैं जिनकी मंशा वोट की ध्रुवीकरण करने की है। नहीं तो सदियों से साथ रह रहे लोगों को आज क्या हो गया जो डर और असुरक्षा की वज़ह से पलायन करना पड़ रहा है?

    इसी संदर्भ के दौरान पुष्पेंद्र जी की यह बात बड़ी हास्यास्पद है कि वे पूरे देशभर की जगहों की गिनती कराते हुए कहने लगते हैं कि सभी को मालूम है यहाँ ये हो रहा है वहाँ वह हो रहा है।

    अगर सबको मालूम है कि ऐसा हो रहा है, तो फिर आपकी चहेती सरकार कुछ कर क्यों नहीं रही? *क्या अब आप यह मानने पर मजबूर नहीं है कि या तो आपकी प्रिय सरकार अक्षम है, या आप झूठ बोल रहे हैं? या न आप झूठ कह रहे है ना सरकार अक्षम है बल्कि वह तो ख़ुद यह होने दे रही है ताकि आप ऐसे ज़हर फैलाते रहे और उन्हें लाभ मिलता रहे??*

    और अंत में ~सेना के खिलाफ सोशल मीडिया पर कमेंट~

    पुलवामा हमले पर बहुत ही गंभीर सवाल उठे थे जिन पर से ध्यान हटाने के लिए हर बार की तरह पुष्पेंद्र जी के पास एक ही तरीक़ा है वह है मुस्लिम और इस्लाम।

    ज़रा वे यह बताने का कष्ट करेंगे कि जब कफील खान देश की एकता पर भाषण देते हैं तो उसे देश विरोधी बता कर महीनों जेल में रखा जा सकता है NSA जैसे एक्ट लगा दिये जा सकते हैं। तब पुष्पेंद्र जी और उनकी चहेती सरकार उस कॉमेंट जिस का वे ज़िक्र कर रहे हैं पर तो बड़ी से बड़ी कार्यवाही कर सकती थी और ऐसे सभी लोगों पर तो UAPA, POTA लगाया जा सकता था? मगर ऐसा नहीं किया गया तो क्या वे सब IT सेल वाले थे जो मुसलमानों की फ़र्ज़ी id बना कर कमेंट कर गए?? ताकि ध्यान मुख्य मुद्दे से ध्यान हटा कर साम्प्रदायिकीकरण किया जा सके?

    असल बात तो यह है कि किसे नहीं मालूम के पुलवामा से सबसे ज़्यादा लाभ किसे हुआ..?? इंटेलिजेंस की सूचना देने के बाद भी इतना बड़ा हमला क्यों रोका नहीं जा सका.?? सैनिकों को एयरलिफ्ट करने की मांग की जगह बसों से ही क्यों भेजा गया..??

    अब चाहे पुष्पेंद्र जी मुसलमानों को दोष देते रहें, सोशल मीडिया की फ़र्ज़ी कमेंट की बात करते रहे चाहे जो करें आज नहीं तो कल वे ज़्यादा दिन तक अपना प्रोपेगेंडा नहीं चला पाएंगे जनता अब इतनी भी मूर्ख नहीं रही। उन्हें इन सवालों के जवाब देना पड़ेंगे। हर चीज़ में मुस्लिम एंगल लाकर ध्यान बटा कर राज करते रहना अब ज़्यादा दिन चलने वाला नहीं। झूठ और डर की यह दूकान जल्द बन्द होगी।

     

  • क्या सड़कों पर नमाज़ लोगों को डराने के लिए पढ़ी जाती है?

    क्या सड़कों पर नमाज़ लोगों को डराने के लिए पढ़ी जाती है?

    जवाब:-  झूठे हवाले देने में माहिर और अपने आप को इस्लाम का महा ज्ञाता बताने वाले इन महाशय से ज़रा ये पुछिये की क्या वे इस बात का कोई झूठा ही सही मगर कोई हवाला दे सकते हैं कि ऐसा कहाँ लिखा है कि नमाज़ गैर मुस्लिम को डराने के लिए पढ़ी जाती है?

    यह दरअसल पुष्पेंद्र के उस एजेंडे का ही हिस्सा है कि मुस्लिमों के हर कृत्य को ऐसा दिखाओ की मानो वह ऐसा गैर मुस्लिमों को तकलीफ़ देने के लिए या डराने के लिए ही कर रहे हैं। जबकि ऐसा कुछ नहीं है।

    मुस्लिम नमाज़ अल्लाह की रज़ा और ख़ुशनूदी के लिए पढ़ते हैं। नमाज़ पढ़ते हुए कई ग़ैर मुस्लिमों ने अपने मुस्लिम दोस्तो को देखा होगा। नमाज़ बिल्कुल शांति से अदा की जाती है, ना इसमें कोई मूर्ति स्थापित की जाती है, न कोई रंग-रोगन या कोई आग वगैरह लगाई जाती है ना ही ऐसा कुछ और किया जाता है। पूरी नमाज़ में कोई एक भी ऐसा कृत्य नहीं होता जिस से डरना तो दूर किसी दूसरे व्यक्ति को एतराज़ भी हो।

    जिनको शांति से अदा की जा रही नमाज़ ऐसे लग रही है जैसे वह दूसरे धर्म के लोगों को डराने के लिए किया जा रहा है तो फिर वे चौराहों पर होली के दौरान होली दहन, सड़को पर मूर्ति स्थापना, विसर्जन यात्रा, शस्त्र-पूजन और फिर अन्य यात्रा के बारे में क्या कहेंगे?

    अतः यह बेवजह का प्रोपेगेंडा दरअसल धार्मिक नफ़रत और हिंसा भड़काने के मिशन पर लगे यह महाशय कर रहे हैं ।

    दूसरी बात यह कि यह बिल्कुल सत्य है कि किसी को कोई तकलीफ देना इस्लाम में बिल्कुल मना है और आम हालात में कोई भी मस्जिद में जगह होने पर बेवजह सड़क पर नमाज़ नहीं पढ़ता है। ऐसा सिर्फ़ ख़ास अवसरों पर ही भीड़ अधिक हो जाने पर होता है, ठीक वैसे ही जैसे विशेष अवसरों पर मंदिरों के बाहर, या गुरुद्वारों के बाहर हो जाता है।

    इसके अलावा अगर मजबूरी में कही मस्जिद आसपास नहीं हो और कहीं और नमाज़ पढ़ना भी पढ़े तो ऐसी जगह पढ़े जहाँ किसी को तकलीफ़ ना हो। लेकिन अगर कोई बेवजह ही एतराज़ (objection) ले रहा हो तो उसका कोई मतलब नहीं। ऐसे ही झूठे हवाले देने में माहिर श्रीमान कह रहे हैं कि फ़रमाया “कि कहीं भी अगर किसी को डॉट (.) बराबर भी ऑब्जेक्शन हो तो मैं नमाज़ कबूल करूँगा ही नहीं? “तो यह महाशय बताएँ की इसका संदर्भ (रेफरेंस) कहाँ है? कहाँ ऐसा लिखा है? ऐसे तो पुष्पेंद्र जैसे लोगों को तो मस्जिद या घरों में नमाज़ पढ़ रहे लोगों से भी एतराज़ (Objection) होगा तो क्या इसका मतलब यह हुआ कि कही नमाज़ पढ़े ही नहीं?

    और अंत में पुष्पेंद्र जी ख़ुद इस बात से वाकिफ़ तो होंगे ही की इस देश में मुस्लिमों के वक़्फ़ बोर्ड की कितनी ज़मीन है और उस पर किसका कितना कब्ज़ा किया हुआ है और उनकी प्रिय पार्टी से जुड़े व्यक्ति जिसको वक्फ बोर्ड का चेयरमैन बना दिया गया था उसके ऊपर वक्फ बोर्ड की कितनी ज़मीनो को हड़पने और बेचने का केस चल रहा है?

    अगर वक़्फ़ की यह ज़मीन सही मायनों में मुस्लिमों को प्राप्त हो जाये तो सभी मस्जिदों की इतनी गुंज़ाइश (Capacity) हो जाएगी कि विशेष अवसरों पर भी अधिक भीड़ होने पर भी किसी को बाहर नमाज़ पढ़ने की ज़रूरत नहीं होगी।

  • पुष्पेंद्र के मस्जिद, हज और नमाज़ के बारे में सवाल का जवाब दें?

    पुष्पेंद्र के मस्जिद, हज और नमाज़ के बारे में सवाल का जवाब दें?

    जवाब:-

    पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ के हर वीडियो की तरह यह वीडियो भी ब्रेनवॉशिंग का बेहतरीन नमूना है, जिसमे झूठ और जज़्बातों (emotions) का घालमेल कर लोगों को मुस्लिमो से नफ़रत करने और इस्लाम का दुष्प्रचार करने की कोशिश की गई है। किसी समझदार व्यक्ति को यह बताने की ज़रूरत ही नहीं कि इसके पीछे कारण राजनीतिक लाभ है और इससे ही इनकी आजीविका जुड़ी हुई है।

    लेकिन ईश्वर की कृपा से ऐसी तमाम कोशिशों से इस्लाम को तो कुछ नुक़सान नहीं होता बल्कि फ़ायदा ही होता है। क्योंकि इस तरह के झूठ से लोगों की इस्लाम को जानने की जिज्ञासा ही बढ़ती है और कई लोगों ने इसके बाद इस्लाम का अध्ययन कर इस्लाम कबूल किया और ऐसा आज से नहीं बल्कि पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के समय से ही होता आ रहा है और आज भी विश्व में सबसे तेजी से क़बूल किया जाने वाला धर्म इस्लाम ही है।

    अब आइए इस वीडियो में उठाए गए सवालों और कहे गए झूठ की तरफ़ बढ़ते हैं।

    सबसे पहले यह समझें कि इस प्रोपेगंडे से पुष्पेंद्र यहाँ कौन-सा मकसद साधना चाहते हैं?

    थोड़ा ग़ौर करने पर ही आपको समझ में आ जायेगा कि यहाँ उनका मकसद लोगों की नज़र में मस्जिदों की अहमियत कम करके और उन्हें तोड़े जाने को एक सामान्य कार्य सिद्ध करना है ताकि वह लोगों को मस्जिद हटाकर मंदिर बनवाने की राजनीति में ही अगली कुछ सदियों तक फँसा रखे।

    • सवाल 1:- वे कहते हैं “इस्लाम में मस्ज़िद का कोई धार्मिक महत्व नहीं है क्योंकि इसमें अल्लाह की मूर्ति नहीं है। जिस तरह होटल में खाना खाया जाता है। उसी तरह मस्ज़िद में नमाज़ पड़ी जाती है। जैसे होटल को तोड़ कर दूसरी जगह बनाया जा सकता है, उसी तरह मस्ज़िद को तोड़ कर दूसरी जगह बनाया जा सकता है। इसकी दलील है, लोगों का सड़को पर नमाज़ पड़ना।

    जवाब:-

    1. सामान्य बुद्धि (Common sense) से:-

    इस्लाम में मूर्ति पूजा नहीं है, अल्लाह का ना कोई अक्स (आकार) है ना कोई मूर्ति। यह बात तो बिल्कुल ही बुनियादी (Basic) बात है और इसे सभी जानते हैं।

    अब अगर कोई यूँ कहे कि मस्जिद में अल्लाह की कोई मूर्ति नहीं होती इसलिये इस्लाम में मस्जिद की कोई अहमियत नहीं है। तो उसे तो बड़ा ही कम-अक्ल कहा जाएगा।

    और यही काम यहाँ पुष्पेंद्र जी कर रहे हैं। या तो उन्हें इतना भी नहीं पता की इस्लाम में मूर्ति का तसव्वुर ही नहीं है, या वह सामने बैठी जनता को महामूर्ख समझते हैं। यहाँ वे गम्भीर शक्ल बना कर यही बात कह रहे हैं कि “इस्लाम में मस्जिद की अहमियत नहीं है ऐसा इसलिए “क्योंकि वहाँ अल्लाह की मूर्ति नहीं है।”

    भाई, भले ही आप गम्भीर शक्ल बना लें और बड़ी-गम्भीर, बुद्धि-वाली बात कहने की एक्टिंग कर ले, लेकिन फिर भी मूर्खतापूर्ण कही गई बात तो मूर्खतापूर्ण ही रहेगी और ऐसा ही यहाँ हुआ है।

    आपको क़ुरआन या धर्म ग्रन्थों की जानकारी होना ज़रूरी नहीं है बल्कि सिर्फ़ सामान्य बुद्धि (Common sense) का ही उपयोग कर लेने से पता चलता है कि यह व्यक्ति यहाँ जो कह रहा है वह निश्चित ही झूठ होगा क्योंकि जो यह दलील दे रहा है उसका तो कोई औचित्य ही नहीं है।

    2. तार्किकता (Logic) से:-

    पुष्पेंद्र अपनी बात यानी कि “इस्लाम में मस्जिद की कोई अहमियत नहीं है” को साबित करने के लिए दूसरी दलील यह देते है कि मुस्लिमों का सड़को पर नमाज़ पढ़ना । अब ज़रा ग़ौर करे, जब कई धार्मिक अवसरों पर मंदिरों में भीड़ अधिक हो जाती है तो लोग सड़कों तक आ जाते हैं और पूजा आदि में भाग लेते हैं। तो पुष्पेंद्र के इस तर्क (लॉजिक) से तब क्या वे यह कहेंगे कि मंदिरों की हिन्दू धर्म में कोई अहमियत नहीं है?

    अतः उनकी यह दलील ना केवल बेबुनियाद है बल्कि बड़ी ही तर्कहीन (Illogical) भी है और कोई बिना धर्म का ज्ञान रख कर ही अगर लॉजिक का ही इस्तेमाल करे तो समझ लेगा की यह व्यक्ति कैसे वेवजह लोगों का ब्रेन वाश कर रहा है।

    3. इस्लामिक दलीलों से जवाब:-

    वैसे तो पूरी दुनिया ही अल्लाह की है और इस्लाम एक वास्तविक व व्यवहारिक (प्रेक्टिकल) मज़हब है, इसलिये मुस्लिम अगर मस्जिद ना पहुँच पाए तो कहीं भी स्वच्छ जगह पर वह नमाज़ अदा कर सकता है लेकिन इससे मस्जिद की अहमियत कोई कम नहीं हो जाती।

    और उससे बड़ा अत्याचारी कौन होगा, जो अल्लाह की मस्जिदों में उसके नाम का वर्णन करने से रोके और उन्हें उजाड़ने का प्रयत्न करे? उन्हीं के लिए योग्य है कि उसमें डरते हुए प्रवेश करें, उन्हीं के लिए संसार में अपमान है और उन्हीं के लिए आख़िरत (परलोक) में घोर यातना है।
    (क़ुरआन 2:114)

    और ये कि मस्जिदें अल्लाह के लिए हैं। अतः, मत पुकारो अल्लाह के साथ किसी को।
    (क़ुरआन 72:18)

    इसके अलावा क़ुरआन की कई आयतों और कई हदीसों से साबित होता है कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का ज़रूरी हिस्सा है। इतना ही नहीं कई हदीसो से यह भी स्पष्ट है कि बिना किसी मजबूरी के अगर कोई शख़्स अपने घर में फ़र्ज़ नमाज पढ़ता है और मस्जिद नहीं जाता तो उसकी नमाज़ होती ही नहीं है।

    हुज़ूर-ए-पाक सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब मक्के से मदीना के लिए जा रहे थे तो उन्होंने रास्ते में सबसे पहले मस्जिद-ए-क़ुबा की स्थापना की थी। इस्लाम की ये पहली मस्जिद मानी जाती है। इसके बाद आपने मदीने में मस्जिद-ए-नबवी की स्थापना की।

    इस्लाम में मस्जिदों का बहुत अहम मर्तबा (विशेष स्थान) है। अतः यह कहना बिल्कुल ही बेबुनियाद और अज्ञानता है कि इस्लाम में मस्जिद की कोई अहमियत नहीं है।

  • जन्नत में हूरों पर सवाल।

    जन्नत में हूरों पर सवाल।

    जवाब :- यह बात तो सभी जानते हैं कि स्वर्ग, अप्सरा आदि बातों का उल्लेख लगभग सभी ग्रंथो में है। इन उल्लेखों के पीछे कोई न कोई संदर्भ या उद्देश्य होता है।

     

    लेकिन जैसे कहा जाता है :

     

    Just as beauty is in the eye of beholder.

    (खूबसूरती देखने वाले कि आंखों में होती है)

     Similarly obscenity is in the thought of pervert.

    (वैसी ही अश्लीलता, अश्लील व्यक्ति की सोच में होती है)

     

    अतः कुछ अश्लील मानसिकता के लोग होते हैं जिन्हें हर चीज़ में अश्लीलता ही दिखती है और ऐसे व्यक्ति की पहचान इसी से होती है कि उसकी दृष्टि सम्पूर्ण विषय को छोड़ सिर्फ़ उसी बात पर पड़ती है जिसका प्रयोग वह अपनी विकृत मानसिकता और दूषित विचारों का पोषण करने में कर सके। वह ऐसी ही सामग्री ढूँढता है फिर उनमें भी कुछ और जोड़-तोड़, काट छांट आदि कर कुछ सामग्री तैयार करता है और उसे प्रसार प्रचार कर लोगों में ज़हर/घृणा फैलाने का काम करने लगता है। लेकिन इस पूरे क्रम में वास्तव में वह सिर्फ़ अपने ख़ुद के अश्लील व्यक्तित्व, कुंठित सोच और भड़काऊ एजेंडा का प्रदर्शन कर रहा होता है। जो यहाँ यह व्यक्ति कर रहा है।

     

    अतः हम इसके जवाब में इसकी ही तरह यह वर्णन तो नहीं करेंगे के किस धर्म में क्या लिखा है और ऐसा उल्लेख कहाँ-कहाँ है। क्योंकि हम शुरू में कही बात समझते हैं।

     

    बहरहाल यहाँ इस्लाम में जन्नत और हूरों के विषय पर ज़रूर प्रकाश डालेंगे की इस्लाम में कितने पाक़ीज़ा (पवित्र) और तार्किक (लॉजिकल) तरीके से उल्लेख किया गया है क्योंकि इस पर काफ़ी दुर्भावना फैलाई जा रही है।

     

    सर्वप्रथम तो यह कि अल्लाह ने दुनिया में नेक ज़िंदगी गुज़ारने वाले मुसलमानों से हूरों का नहीं बल्कि जन्नत का वादा किया है।

     

    *”सदा रहने के स्वर्ग जिसमें प्रवेश करेंगे, जिनमें नहरें बहती होंगी, उनके लिए उसमें जो चाहेंगे (मिलेगा)। इसी प्रकार, अल्लाह आज्ञाकारियों को प्रति फल (बदला) देता है।”*

    (क़ुरआन 16:31)*

      

    जन्नत में हर नेअमत मौजूद है जैसे रहने की, खाने की, पहनने की और भी दूसरी नेअमतें, वैसे ही हूरें सिर्फ़ जन्नत की नेअमतों में से एक हिस्सा है और जन्नत हमारे इस जीवन जैसी सिर्फ़ 50-60 साल के लिये नहीं हैं बल्कि हमेशा (कभी ना ख़त्म होने) हमेशा रहने वाली है इसीलिए वहाँ की हर नेअमत बहुतायत में है।

     

    और क्यों ना हो? स्वाभाविक-सी बात है यह दुनिया तो सिर्फ़ एक परीक्षा का स्थान है और यहाँ जब बंदा अपने रब के आदेश पर किसी बुराई को करने से रुकता है तो अल्लाह के पास इनाम के तौर पर उस से कई गुना बेहतर बदला है ।

     

    उदाहरण के तौर पर जैसे एक आदमी रिश्वत, चोरी, धोखाधड़ी से अगर रुकता है और धन हानि उठाता है इस वज़ह से उसे छोटे मकान में ज़िंदगी गुज़ारना पड़ती है, तो उसका रब उसे बेहतरीन बदला जन्नत में देगा ऐसा महल और रहने का ठिकाना देकर जैसा इस दुनिया में सबसे अमीर आदमी भी नहीं बनवा सकता और अगर ऐसा महान बदला ना हो तो फिर इंसान दुनिया ही में उन चीजों को पाने के लिए किसी काम से क्यों रुकेगा ?

    ऐसा ही बेहतरीन बदला हर चीज़ के बारे में है!

     

    वैसे ही जीवन में अल्लाह का आदेश मान व्यक्ति अपनी नज़रों की हिफाज़त करता हैं, किसी गैर औरत से दूर रहता है, बेहयाई से बचता है व्यभिचार आदि से रुकता है अतः उसके बदले के लिये महिलाओं से बेहतरीन हूरों का ज़िक्र है।

     

    जन्नत की असली नेअमतों के बारे में कोई नहीं जानता -जन्नत में इन चीज़ों का उल्लेख सिर्फ़ परिचय और अंदाज़ा करा देने के लिए है:-

     

    *हज़रत अबू हुरैरा रज़ि. हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम का इरशाद बयान करते हैं कि अल्लाह तआला ने फ़रमाया: मैने अपने नेक बंदों के लिये वे नेअमतें तय्यार कर रखी हैं जिन को ना किसी आँख ने देखा है, ना किसी कान ने सुना है ओर ना किसी इंसान के दिल में उन का खयाल गुज़रा है, क़ुरआन में इस का मिसदाक यह आयत है, किसी इन्सान को नहीं मालूम के उनके नेक कामों के बदले में जो उनकी आंखों की ठंडक छुपा कर रखी गई है।”*

    बुख़ारी (3072) ; मुस्लिम (2824)

     

    मतलब जन्नत के बारे में हमारा आभास करना या उसकी नेअमतों को समझना अभी हमारे लिए मुमकिन ही नहीं अच्छे बाग़, महल, खाने पीने की चीज़ें, हूरें इनका ज़िक्र सिर्फ़ इसलिए किया क्योंकि इंसान सादृश्य (Resemblance) समझना चाहता है ये कुछ चीज़ें हैं जिनकी चाह में इंसान इस धरती पर प्रयत्न रत रहता है इसलिए उसकी समझ के लिए यह बातें बता दी गई ताकि वह समझ ले की जो मेरे रब के पास बदला है वह इन चीजों से ही कही बेहतर है। तो और दूसरी चीज़ें जो जन्नत में मेरे लिए हैं वह कितनी बेहतर होंगी जिनका वह अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता।

     

    और अंत में

     

    हदीस में आता है कि एक सहाबी के जन्नत के सवाल पर मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम ने फरमाया:-

    अगर अल्लाह ने तुझे जन्नत में पहुँचा दिया तो जन्नत में तुझे वह मिलेगा जो तेरा दिल चाहेगा ओर तेरी आंखे पसंद करेंगी।”*

    (तिरमिज़ी 2543, सहिहुत तरगीब 3/522)

     

    अतः स्पष्ट है कि अल्लाह ने इंसान को बनाया और वह जानता है कि इंसान की अभिलाषाएँ क्या है। साथ ही हर इंसान अलग होता है और उसकी इच्छाएँ भी। अल्लाह सब बेहतर जनता है और उसके पास सब के लिए बेहतरीन बदला है और जैसा हदीस में ज़िक्र है ही कि जन्नत में वह हर चीज़ होगी जिसकी जन्नत प्राप्त करने वाला इच्छा करेगा। इन सब के बाद भी यदि किसी को ऐसा लगता है कि जन्नत में हूरों का विवरण नहीं होना चाहिए या एक ही बीवी होना चाहिए या उसे जन्नत में अकेला ही होना चाहिए तो इसमें कोई समस्या की बात नहीं अगर वह अपनी बात में सच्चा है और इसी की आशा रखता है तो उसे जन्नत में वही प्राप्त होगा !

    यदि वह अच्छे कर्म और ईश्वर आदेश पालन कर जन्नत प्राप्त कर सके तो।।

     

    अन्यथा बेवजह हूरों की और दूसरों की चिंता करना छोड़ दे और समझ से काम ले।

     

  • पुष्पेंद्र की विडिओ का जवाब।

    पुष्पेंद्र की विडिओ का जवाब।

    *जवाब:-* पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ की हर विडियो की तरह यह विडियो  https://youtu.be/P18rVzeRNKg भी ब्रेनवाशिंग (Brain washing) का एक नायाब नमूना है।

     

    जिसमे बड़ी चालाकी से देखने वाले को अपने एजेंडे अनुसार व्यवहार करने के लिए प्रेरित किया जाता है जिसमे सारे झूठे तथ्यों को, जज़बाती बातों में लपेट कर परोसा जाता है और सामने वाले को परोक्ष रूप से (Indirectly) अपने मतलब के लिए इस्तेमाल करने के लिए उकसाया जाता है ।

     

    आप सभी ने इस विडियो को तो देखा। अब ज़रा एक बार फिर दिमाग खोल इस मैसेज को पढ़ने के बाद एक  बार फिर इस विडियो का विश्लेषण ज़रूर कीजिएगा ताकि आपको इनकी हर विडियो की रणनीति (Strategy) और एजेंडा समझ आये।

     

    इस विडियो का गुप्त एजेंडा (Hidden agenda):- अहम मुद्दों से ध्यान हटा कर लोगों को सीएए (CAA) के समर्थन में सड़कों पर उतारना।

     

    स्ट्रेटजी:- झूठ, डर, आदि से जज़बाती शोषण कर भड़काना।

     

    सबसे पहले उन झूठ को पकड़ते हैं जो यह श्री मान ने अपने हिडन एजेंडा के लिए इस विडियो में प्रयोग किये।

     

    *झूठ नम्बर 1*

    यह कहते हैं कि

    “1. मुसलमान को सरकारी नौकरी नहीं चाहिए?!!”

     

    ज़रा सोचिए ये किस आधार पर कहा जा सकता है?

    महाशय, कृपया यह बताने का कष्ट करेंगे कि उनकी इस तसव्वुर / कल्पना (Assumption) का आधार क्या है ??

     

    यह निराधार झूठ तो और उजागर होता है तब, जब मुस्लिम बच्चों में शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है और हाल ही में बड़ी मात्रा में मुस्लिम बच्चे IAS IPS में चयनित हुए।

     

    हाँ यह बात ज़रूर है कि अब इस में भी पुष्पेंद्र या इस जैसे कुछ दूसरे एजेंट नफरत का एंगल निकालने की ज़रूर कोशिश करेंगे।

     

    झूठ नंबर 2

    आगे विडियो में यह कहते हैं

    ” _मुस्लिम इंजीनियर डॉक्टर सीधे ISIS में भर्ती होने चले जाते हैं_।”

     

    एक बार फिर मनगढ़ंत झूठा आरोप? ज़रा बताइये 20 करोड़ मुसलमानों के इस देश में कितने डॉक्टर, इंजीनियर ISIS में भर्ती होने चले गए ??

     

    मेरा आप सभी से सवाल है कि आप में से जो डॉक्टर, इंजीनियर है आप की बैच में ज़रूर कोई मुस्लिम रहा होगा, या अगर आप डॉक्टर इंजीनियर नहीं भी हैं तब भी आपके नेटवर्क में कोई ना कोई मुस्लिम बच्चे तो होंगे ही। तो ज़रा आप बताएँगे की आपका कोई सहपाठी (बैचमेट) या परिचित मुस्लिम डॉक्टर, इंजीनियर आपको ISIS में जाते दिखा या ख़बर मिली ???

     

    झूठ नम्बर 3

     

    लव जिहाद

     

    पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ जी तो अपने आप को इस्लाम धर्म का बहुत बड़ा ज्ञाता बताते हैं। तो वह इतनी बड़ी बात बिना संदर्भ (रेफरेंस) के कैसे कह रहे हैं?

     

    ज़रा बताइये की लव जिहाद जैसी चीज इस्लाम के किस ग्रंथ में लिखी है? है कोई रेफरेंस?

     

    *दुनिया जानती है जिस धर्म में पराई स्त्री को देखना तक हराम है,व्यभिचार की सज़ा, सज़ा-ए-मौत है। उस धर्म पर आप यह आरोप लगा रहे हैं?*

     

    बताइए यह तो झूठ की इंतिहा है!

     

    खैर ये पैटर्न आप को हर जगह दिखेगा जिहाद शब्द को किसी भी चीज़ से जोड़ कर हर बार एक नया मसाला तैयार।

     

    कोई अचंभा नहीं अगर कल तक मुस्लिम को सरकारी नौकरी नहीं चाहिए ऐसा कहने वाले पुष्पेंद्र जी आज झूठे साबित होने पर IAS, IPS परीक्षा के नतीजे को ही अब शिक्षा जिहाद का नाम दे दें।

     

    यह तो थे कुछ झूठ!

     

    अब देखिए डर का प्रयोग।

     

    डर नंबर 1

    मुसलमानों की आबादी बहुत तेजी से बढ़ रही है

     

    यह झूठ तो कई बार उजागर हो चुका है आज़ादी के बाद से ही नफरत फैलाने वालों का यह एक प्रोपेगेंडा रहा है ।

     

    इस मैसेज के अंत में न्यूज़ रिपोर्ट की लिंक भेजी जा रही है आप ख़ुद इस झूठे डर की हकीकत जान लें।

     

    https://youtu.be/YfVBsbkAGco

    डर नंबर 2

    _”आज नहीं तो कल लड़ना ही होगा।”_

     

    खुले दिमाग से सोचिए ये आदमी खुले आम ना केवल देश में गृह युद्ध की बात कर रहा है, बल्कि उसके लिए लोगों को उकसा रहा है। बल्कि यहाँ तक कह रहा है कि बच्चों को पढ़ने लिखने की बजाय लड़ना सिखाने पर ध्यान देना चाहिए ।

     

    इसके अलावा भी कई डर इस्तेमाल किये जैसे सभी मुसलमानों का एक हो जाना आदि बातें।

     

    झुठ, डर के बाद अब नोटिस कीजिए जज़बाती / भावनात्मक खेल यानी की इमोशनल हथकंडा।

     

    इतनी ब्रेनवाशिंग कर लेने के बाद श्री पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ जी इस नतीजे पर पहुँचते हैं, या लोगों को इस नतीजे पर पहुँचाते हैं कि:- “इसका हल यही है कि समाज को आगे आना होगा ।”

     

    और कमाल की बात यह है आगे क्यों आना होगा ? आगे इसलिए नहीं आना होगा कि एक साथ मिल कर देश को आगे ले जाएँ। मॉब लिंचिंग, रेप जैसे जघन्य अपराधों को रोका जाए।

     

    नहीं इस के बजाए *”उनका कहना”* है कि आगे आकर यह करना होगा की मुसलमानों के खिलाफ खड़े होना है। यहाँ आकर इनका जो एजेंडा है वह एकदम से उजागर होता है। वह यह कि सब बातों का निष्कर्ष यह है कि आप आइए CAA NRC के समर्थन में मैदान में उतरिये बाकी मुद्दे कुछ है ही नहीं बस आप मुस्लिमो को अपना दुश्मन समझे और सिर्फ इस तरफ ध्यान दें। जो कि बिल्कुल उजागर हो जाता है और यहीं इनका भांडा फूट जाता है।

     

    इसके अलावा विडियो में बार-बार यह कहना कि क्या बीजेपी ने ही ठेका लिया है? क्या कानून का ही ठेका है? आदि बातें जो इनकी मंशा को साफ तरीके से उजागर कर देती है कि यह किस के हक़ में या किस के समर्थन में यह पूरा प्रोपेगेंडा कर रहे हैं ।

     

    लेकिन तब तक पढ़ने सुनने वाला इनकी रणनीति में ऐसा उलझ चुका होता है कि वह इनकी बातों में आ जाता है।

     

    फिर भी इस विडियो की एक बात से हम सहमत हैं कि वह यह कि “बिल्कुल आज देश भेड़चाल में चल रहा है और इस भेड़चाल को राजनीतिक पार्टियाँ, पुष्पेंद्र जी जैसे लोगों द्वारा ही ब्रेन वाश कर चला रही हैं। “

     

    नहीं तो सामान्य स्थिति में तो एक आम व्यक्ति ऐसे आदमी को सुनने जो कि खुले तौर पर गृह युद्ध उकसा रहा है सिर्फ नफ़रत फैला कर आपको प्रेरित कर रहा है कि आप अपने बच्चों को हिंसात्मक बनाये और करियर की जगह लड़ने के बारे में उन्हें आगे करें। इसके बजाय वह उसकी मानसिकता पर क्रोधित हो रहा होता या उस के खिलाफ शिकायत कर रहा होता ।

     

    परन्तु हम जज़बाती लोग उसकी बातों में आकर ऐसा करना तो दूर इसके उलट उसकी बातों में ब्रेन वाश होकर उसके मोहरे बन उसी की बातों का प्रचार कर रहे हैं।

     

    एक बार सोचियेगा ज़रूर।