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  • सबसे पहले मनुष्य (इस्लामिक सीरीज़ पोस्ट 6)

    सबसे पहले मनुष्य (इस्लामिक सीरीज़ पोस्ट 6)

    जैसा कि हमने पिछली पोस्ट में जाना कि इंसान से पहले फरिश्तों और जिन्नों की रचना हो चुकी थी ।

    फिर इंसान की रचना हुई, जिस पर फरिश्तों ने अपने ईश्वर से जिज्ञासा वश सवाल पूछा और इस घटना / क़िस्से को अल्लाह ने हमें क़ुरआन में इन आयत में बताया

    *और याद करो जब तुम्हारे रब ने फरिश्तों से कहा कि “मैं धरती में (मनुष्य को) खलीफ़ा बनाने वाला हूँ।” उन्होंने कहा, “क्या उसमें उसको रखेगा, जो उसमें बिगाड़ पैदा करे और रक्त पात करे और हम तेरा गुणगान करते और तुझे पवित्र कहते हैं?” उसने कहा, “मैं जानता हूँ जो तुम नहीं जानते।”*
    *(क़ुरआन 2:30)*

    जैसा हमने पहले जाना कि फरिश्तों को जो हुक्म मिलता है वही वे करते हैं। जबकि मनुष्य को स्वतंत्र-इच्छा (Free will)या स्वतंत्र-चयन (Free choice) मौजूद है और अपने इच्छा अनुसार फ़ैसला करने की छूट है। इसलिए उन्होंने पूछा कि यह मनुष्य तो धरती पर बिगाड़ पैदा करेगा, रक्त पात करेगा। तो इन्हें क्यों ख़लीफा (नायब/प्रतिनिधि) नियुक्त किया जा रहा है ?

    यहाँ उनके मन में यह भी निहित था कि वह हर वक़्त ईश्वर के आदेश का पालन करते हैं, (उनका निर्माण नूर से हुआ आदि बातों की वज़ह से वह मनुष्य से) श्रेष्ठ हैं और उन्हे ख़लीफा (नायब/प्रतिनिधि) नियुक्ति होने की चेष्टा हुई, लेकिन उन्होंने यह कहा नहीं सिर्फ़ मन में रखा।

    लेकिन अल्लाह तो सभी बातों का जानने वाला है..

    अतः अगली आयत में बताया :

    *उसने (अल्लाह ने) आदम को सारे नाम सिखाए, फिर उन्हें फ़रिश्तों के सामने पेश किया और कहा, “अगर तुम सच्चे हो तो मुझे इनके नाम बताओ।”*
    (क़ुरआन 2:31)

    नाम से यहाँ मतलब सभी चीज़ों का ज्ञान एवं उनकी विशेषताएँ, उपयोग, गुण, सारी जानकारी इत्यादि है। मतलब इन सभी बातों का इल्म अल्लाह ने आदम (अलै.) के दिल में उतार दिया।

    और फिर उन्हें फरिश्तों के सामने पेश कर उनसे इन्हीं चीज़ों के नाम (विशेषता, गुण, उपयोगी इत्यादि) पूछे , की यदि तुम अपने ख़्याल में सच्चे हो कि तुम श्रेष्ठ हो और ख़िलाफ़त के हक़दार हो तो इनके नाम बताओ?

    *वे (फरिश्ते) बोले, “पाक और महिमा वान है तू! तूने जो कुछ हमें बताया उसके सिवा हमें कोई ज्ञान नहीं। निस्संदेह तू सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है।”*
    (क़ुरआन 2:32)

    चूंकि फ़रिश्तों को इस का इल्म नहीं था, अतः उन्हें अपनी लाचारी और गलती का एहसास हुआ जिसका उन्होंने एतराफ़ (Acknowledgment) किया।

    फिर अगली आयात में :

    *उसने (अल्लाह ने) कहा, “ऐ आदम! उन्हें उन चीज़ों के नाम बताओ।” फिर जब उसने (यानि आदम ने) उन्हें उनके नाम बता दिए तो (अल्लाह ने) कहा, “क्या मैंने तुमसे कहा न था कि मैं आकाशों और धरती की छिपी बातों को जानता हूँ और मैं जानता हूँ जो कुछ तुम ज़ाहिर करते हो और जो कुछ छिपाते हो।”*
    (क़ुरआन 2:33)

    जब आदम (अलै.) ने सभी नाम बता दिए तो फ़रिश्तों को अपनी कमतरी और आदम (अलै.) की श्रेष्ठता का एहसास हुआ। साथ ही इस बात की याददिहानी भी हुई कि अल्लाह वह बात भी जानता है जो हम दिलों में छुपाते हैं और ज़ाहिर नहीं करते ।

    यकीनन महान है वह ईश्वर जो सब ज़ाहिर और छुपी बातों को जानता है और उन ख्यालों को भी जो हमारे मन में छुपे होते हैं ।

    फिर अगली आयात में फ़रमाया :

    *और जब हमने फ़रिश्तों से कहा: आदम को सज्दा करो, तो इब्लीस के सिवा सबने सज्दा किया, उसने इनकार तथा अभिमान किया और काफ़िरों में से हो गया।*
    (क़ुरआन 2:34)

    अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को सारी सृष्टि का नमूना और रूहानी व जिस्मानी दुनिया का मजमूआ बनाया और फ़रिश्तों के लिये कमाल हासिल करने का साधन किया तो उन्हें हुक्म फ़रमाया कि हज़रत आदम को सज्दा करें क्योंकि इसमें शुक्र गुज़ारी (कृतज्ञता) और हज़रत आदम के बड़प्पन के एतराफ़ (Acknowledgement) और अपने कथन की माफ़ी की शान पाई जाती है।

    अतः हुक्म की तामील में सभी फरिश्तों ने सजदा किया सिवाए इब्लीस (शैतान) के।

    इब्लीस (जो कि एक जिन्न है) ने सज्दा न किया और घमंड के तौर पर यह सोचता रहा कि वह हज़रत आदम से उच्चतर है और उसके लिये सज्दे का हुक्म (मआज़ अल्लाह) हिक़मत (समझदारी) के ख़िलाफ़ है। इस झूठे अक़ीदे से वह काफ़िर हो गया।

    घमंड बहुत बुरी चीज़ है। इससे कभी घमंडी की नौबत कुफ़्र तक पहुँचती है। अल्लाह तआला घमंड और कुफ्र से हम सब की हिफाज़त फरमाए।
    आमीन।

  • सभी आदम की संतान हैं तो सभी की भाषाएँ अलग कैसे ?

    सभी आदम की संतान हैं तो सभी की भाषाएँ अलग कैसे ?

    जवाब:- अल्लाह तआला क़ुरआन में फरमाते हैं:

    और अल्लाह की निशानियाँ में से आसमान और ज़मीन का पैदा करना है और तुम्हारी भाषाओं और रंगों का अलग अलग होना है। बेशक इसमें पूरी दुनियाँ वालों के लिए बहुत-सी निशानियाँ है।

    (सूरह रूम : 22)

    इस आयत से स्पष्ट है कि दुनियाँ में सैकड़ों हजारों भाषाओं का होना तो अल्लाह तआला के कुदरत की जबरदस्त दलील है। जिस तरह से अल्लाह ने एक ही जोड़े आदम और हव्वा (अलैहिस्सलाम) से दुनियाँ की तमाम नस्ल और रंग के इंसानों को वजूद में लाया और फिर वे अलग-अलग इलाकों और जगहों में बसते चले गए। उसी तरह अल्लाह ने आदम और हव्वा अलैहिस्सलाम की भाषा के ज़रिए दुनियाँ की तमाम भाषाओं को उत्पन्न किया और फिर जब अल्लाह तआला ने अलग-अलग कौमो में नबी भेजे और उनको आसमानी किताबें दी तो वह किताबें भी अलग-अलग भाषाओं में भेजी जिन्हें उस कौम के लोग बोलते थे।

     

    जैसे मूसा अलैहिस्सलाम जिस इलाके में भेजे गए वहाँ के लोगों की ज़बान इब्रानी थी। इसलिए अल्लाह की किताब तौरात भी इब्रानी भाषा में भेजी गई। अरब के लोगों की ज़बान अरबी थी इस लिए क़ुरआन अरबी में उतारा गया।

    दुनियाँ में आज 7 हज़ार से भी ज़्यादा भाषाएँ हैं उनमें से हर एक की अपनी अलग खूबसूरती और खुसूसियत है। अगर आप हिन्दी को देखें तो हिन्दी का अपना अंदाज़, लबो लेहजा, शायरी और मुहावरे हैं। उर्दू हिन्दी के मुकाबले में अपनी अलग पहचान और खूबसूरती रखती है। साथ ही इन भाषाओं के और भी कई फायदे हैं जैसे हर सभ्यता और उसका दौर इन भाषाओं के ज़रिए पता चलता है। किसी भी देश जगह की संस्कृति, तौर तरीके आदि को जानने में उस जगह की भाषा का ज्ञान सबसे ज़्यादा मदद करता है।

    अगर दुनियाँ में सिर्फ़ एक भाषा होती तब अलग-अलग भाषाओं को सीखने और उनसे तमाम फायदे हासिल करने से इंसानियत महरूम (वंचित) हो जाती। अतः इन भाषाओं का वजूद में आना और इंसान को उसका इल्म कराना अल्लाह की निशानियों में से है।

     

    🔹 आज आधुनिक भाषा विज्ञान (Modern Linguistics) भी विभिन्न भाषाओं की उत्पत्ति का इसी और इशारा करता है।

     

    कुछ लोगों को यह उलझन (Confusion) हो जाती है कि दुनियाँ की भाषाएँ जब इतनी अलग-अलग हैं तो फिर वे 1 जोड़े आदम और हव्वा (अलैहिस्सलाम) की भाषाओं से कैसे सम्बंधित हो सकती हैं।

     

    जबकि आज की आधुनिक भाषा विज्ञान (Modern Linguistics) का अध्ययन करने पर पता चलता है कि आज दुनियाँ में 7,117 जीवित भाषा (Living Language) हैं जो आज बोली और जानी जाती हैं, इसके अलावा कई मृत और विलुप्त भाषाएँ भी हैं। यह सभी भाषाएँ किसी ना किसी एक मूल भाषा से निकली हैं जिन्हें Proto Language (आद्य भाषा) के नाम से जाना जाता है।

    कई प्रोटो लैंग्वेज आज डेड या विलुप्त भी हो गई हैं। यानी उन में से निकली भाषाएँ तो आज जीवित हैं लेकिन वे ख़ुद जीवित नहीं है।

    ऐसी ही एक प्रोटो लैंग्वेज जिसका नाम Anatolian या Proto-Indo-European (प्रोटो-इंडो-यूरोपियन) है आज दुनियाँ की 50% भाषाओँ की जनक है यानी आज दुनियाँ में बोले जानी वाली लगभग 3,550 भाषाएँ एक ही भाषा से उत्पन्न हुई है जिसको हम Anatolian नाम से जानते हैं।

    यानी भले ही कई भाषाएँ अतीत में किसी एक भाषा से निकली हों लेकिन आज समय के साथ उनमें इतना बदलाव हो चुका है कि वे देखने में बिल्कुल अलग-अलग लगे औऱ उनमें कोई समानता ना दिखाई देती हो।

    अतः स्पष्ट है कि आज मॉडर्न भाषा विज्ञान यह मानता है कि दुनियाँ की तमाम भाषाएँ कुछ एक भाषाओं से निकली हैं। साथ ही यह बात भी स्वाभाविक एवं प्रबल है कि यह प्रोटो भाषाएँ भी कहीं जा कर मिलती हो और किसी एक प्रमुख प्रोटो भाषा से निकली हों या उन भाषाओँ से जिनका इस्तेमाल आदम और हव्वा अलैहिस्सलाम करते थे।

     

    अतः उपर्युक्त सवाल तो ग़ौर करने पर एक और निशानी में बदल जाता है।

    और यक़ीन करने वालों के लिए ज़मीन में बहुत-सी निशानियाँ हैं

    तथा स्वयं तुम्हारे भीतर (भी)। फिर क्यों तुम देखते नहीं?

    (क़ुरआन 51: 20-21)