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  • आदम और इब्लीस (इस्लामिक सीरीज़ पोस्ट 7)

    आदम और इब्लीस (इस्लामिक सीरीज़ पोस्ट 7)

    जैसा हमने पिछली पोस्ट में देखा कि इब्लीस (शैतान) ने घमण्ड किया और अल्लाह के हुक्म की ना फरमानी कर सज़ा का मुस्तहिक़ बना।

     

    वह आदम के प्रति अपने घमण्ड और हसद में ऐसा अड़ा रहा कि अल्लाह तआला से अपनी ना फरमानी की माफ़ी माँगने की बजाय उसने क़यामत तक के लिए सज़ा से मौहलत माँगी ताकि बनी आदम को अल्लाह की ना फरमानी करवा कर सज़ा का भागीदार बनवा सके ।

     

    जैसा कि बयान है क़ुरआन में :-

     

     उसने (इब्लीस) कहा: मुझे उस दिन तक के लिए अवसर दे दो, जब लोग फिर जीवित किये जायेंगे।         

    (क़ुरआन 7:14)

     

    इस पर अल्लाह तआला ने उसे क़यामत तक के किए मौहलत अता फ़रमाई।

     

    जिस पर इब्लीस ने अपना प्रण और मंसूबा और उजागर किया जिसका जिक्र इन आयतों में है

     

    मैं भी तेरी (अल्लाह की) सीधी राह पर इनकी (इंसानों की) घात में लगा रहूँगा।

    फिर उनके पास उनके आगे और पीछे तथा दायें और बायें से आऊँगा, और तू उनमें से अधिकतर को (अपना) कृतज्ञ नहीं पायेगा।

    (क़ुरआन 7:16-17)

     

    अर्थात हर तरीके से इनको भटकाउंगा।

     

    इस पर अल्लाह ने अगली आयात *(7:18)* में स्पष्ट कर दिया कि जो तेरी पैरवी करेगा और तेरी ही तरह ना फरमानी करेगा उन सब का बदला जहन्नुम होगा।

  • सबसे पहले मनुष्य (इस्लामिक सीरीज़ पोस्ट 6)

    सबसे पहले मनुष्य (इस्लामिक सीरीज़ पोस्ट 6)

    जैसा कि हमने पिछली पोस्ट में जाना कि इंसान से पहले फरिश्तों और जिन्नों की रचना हो चुकी थी ।

    फिर इंसान की रचना हुई, जिस पर फरिश्तों ने अपने ईश्वर से जिज्ञासा वश सवाल पूछा और इस घटना / क़िस्से को अल्लाह ने हमें क़ुरआन में इन आयत में बताया

    *और याद करो जब तुम्हारे रब ने फरिश्तों से कहा कि “मैं धरती में (मनुष्य को) खलीफ़ा बनाने वाला हूँ।” उन्होंने कहा, “क्या उसमें उसको रखेगा, जो उसमें बिगाड़ पैदा करे और रक्त पात करे और हम तेरा गुणगान करते और तुझे पवित्र कहते हैं?” उसने कहा, “मैं जानता हूँ जो तुम नहीं जानते।”*
    *(क़ुरआन 2:30)*

    जैसा हमने पहले जाना कि फरिश्तों को जो हुक्म मिलता है वही वे करते हैं। जबकि मनुष्य को स्वतंत्र-इच्छा (Free will)या स्वतंत्र-चयन (Free choice) मौजूद है और अपने इच्छा अनुसार फ़ैसला करने की छूट है। इसलिए उन्होंने पूछा कि यह मनुष्य तो धरती पर बिगाड़ पैदा करेगा, रक्त पात करेगा। तो इन्हें क्यों ख़लीफा (नायब/प्रतिनिधि) नियुक्त किया जा रहा है ?

    यहाँ उनके मन में यह भी निहित था कि वह हर वक़्त ईश्वर के आदेश का पालन करते हैं, (उनका निर्माण नूर से हुआ आदि बातों की वज़ह से वह मनुष्य से) श्रेष्ठ हैं और उन्हे ख़लीफा (नायब/प्रतिनिधि) नियुक्ति होने की चेष्टा हुई, लेकिन उन्होंने यह कहा नहीं सिर्फ़ मन में रखा।

    लेकिन अल्लाह तो सभी बातों का जानने वाला है..

    अतः अगली आयत में बताया :

    *उसने (अल्लाह ने) आदम को सारे नाम सिखाए, फिर उन्हें फ़रिश्तों के सामने पेश किया और कहा, “अगर तुम सच्चे हो तो मुझे इनके नाम बताओ।”*
    (क़ुरआन 2:31)

    नाम से यहाँ मतलब सभी चीज़ों का ज्ञान एवं उनकी विशेषताएँ, उपयोग, गुण, सारी जानकारी इत्यादि है। मतलब इन सभी बातों का इल्म अल्लाह ने आदम (अलै.) के दिल में उतार दिया।

    और फिर उन्हें फरिश्तों के सामने पेश कर उनसे इन्हीं चीज़ों के नाम (विशेषता, गुण, उपयोगी इत्यादि) पूछे , की यदि तुम अपने ख़्याल में सच्चे हो कि तुम श्रेष्ठ हो और ख़िलाफ़त के हक़दार हो तो इनके नाम बताओ?

    *वे (फरिश्ते) बोले, “पाक और महिमा वान है तू! तूने जो कुछ हमें बताया उसके सिवा हमें कोई ज्ञान नहीं। निस्संदेह तू सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है।”*
    (क़ुरआन 2:32)

    चूंकि फ़रिश्तों को इस का इल्म नहीं था, अतः उन्हें अपनी लाचारी और गलती का एहसास हुआ जिसका उन्होंने एतराफ़ (Acknowledgment) किया।

    फिर अगली आयात में :

    *उसने (अल्लाह ने) कहा, “ऐ आदम! उन्हें उन चीज़ों के नाम बताओ।” फिर जब उसने (यानि आदम ने) उन्हें उनके नाम बता दिए तो (अल्लाह ने) कहा, “क्या मैंने तुमसे कहा न था कि मैं आकाशों और धरती की छिपी बातों को जानता हूँ और मैं जानता हूँ जो कुछ तुम ज़ाहिर करते हो और जो कुछ छिपाते हो।”*
    (क़ुरआन 2:33)

    जब आदम (अलै.) ने सभी नाम बता दिए तो फ़रिश्तों को अपनी कमतरी और आदम (अलै.) की श्रेष्ठता का एहसास हुआ। साथ ही इस बात की याददिहानी भी हुई कि अल्लाह वह बात भी जानता है जो हम दिलों में छुपाते हैं और ज़ाहिर नहीं करते ।

    यकीनन महान है वह ईश्वर जो सब ज़ाहिर और छुपी बातों को जानता है और उन ख्यालों को भी जो हमारे मन में छुपे होते हैं ।

    फिर अगली आयात में फ़रमाया :

    *और जब हमने फ़रिश्तों से कहा: आदम को सज्दा करो, तो इब्लीस के सिवा सबने सज्दा किया, उसने इनकार तथा अभिमान किया और काफ़िरों में से हो गया।*
    (क़ुरआन 2:34)

    अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को सारी सृष्टि का नमूना और रूहानी व जिस्मानी दुनिया का मजमूआ बनाया और फ़रिश्तों के लिये कमाल हासिल करने का साधन किया तो उन्हें हुक्म फ़रमाया कि हज़रत आदम को सज्दा करें क्योंकि इसमें शुक्र गुज़ारी (कृतज्ञता) और हज़रत आदम के बड़प्पन के एतराफ़ (Acknowledgement) और अपने कथन की माफ़ी की शान पाई जाती है।

    अतः हुक्म की तामील में सभी फरिश्तों ने सजदा किया सिवाए इब्लीस (शैतान) के।

    इब्लीस (जो कि एक जिन्न है) ने सज्दा न किया और घमंड के तौर पर यह सोचता रहा कि वह हज़रत आदम से उच्चतर है और उसके लिये सज्दे का हुक्म (मआज़ अल्लाह) हिक़मत (समझदारी) के ख़िलाफ़ है। इस झूठे अक़ीदे से वह काफ़िर हो गया।

    घमंड बहुत बुरी चीज़ है। इससे कभी घमंडी की नौबत कुफ़्र तक पहुँचती है। अल्लाह तआला घमंड और कुफ्र से हम सब की हिफाज़त फरमाए।
    आमीन।