Tag: तीन तलाक

  • नफ़रत फ़ैलाने वाली एक पोस्ट का जवाब दीजिए ? (#1 )

    नफ़रत फ़ैलाने वाली एक पोस्ट का जवाब दीजिए ? (#1 )

    जवाब :-ब्रेन वाशिंग के ज़रिए कैसे आपके दिलों में अपने मुस्लिम मित्रों के लिये नफ़रत भरकर आप से राजनीतिक लाभ उठाया जाता है यह पोस्ट उसका शानदार उदाहरण है।

     

    आइए दिमाग़ खुला रखकर इस पोस्ट पर ध्यान दें और इसकी चतुराई देखें।

     

    पोस्ट शुरू होती है यहाँ से:-

     

    *मेरे भी मुस्लिम मित्र हैं*

    *मेरे भी क्लास में मुस्लिम पढ़े हैं*

    *मेरे भी आफिस में मुस्लिम काम करते हैं*

    *मैं जहाँ से सामान लेता हूँ वहाँ से मुस्लिम भी सामान लेते हैं*

    *मैं जहाँ रहता हूँ वहाँ भी मुस्लिम रहते है*

     

    इन सभी बातों में आश्चर्य की क्या बात है? यह तो बहुत ही सामान्य-सी बात है तब फिर यहाँ से शुरू करने की क्या ज़रूरत पड़ी?

     

    एक सामान्य-सी बात से शुरू करके जो सभी पर लागू होती है यानी विषय समायोजन (Theme setting), द्वारा आपका इस पोस्ट से जुड़ाव बनाया जा रहा है ताकि आप इससे जुड़ने लगें और आपके ध्यान में आपके मित्र और दूसरे जान-पहचान के मुस्लिम आ जाएँ जिनके ख़िलाफ आपको भड़काया जाना है।

     

    अब आगे बढ़ें:-

    वे कहते है, हम जुमे की नमाज पढ़ेंगे, सड़को पर मैंने भी कहा कोई बात नहीं, संविधान ने सबको धार्मिक आजादी का हक़ दिया है।

     

    अब जुड़ाव जोड़ने के बाद, अपना षड्यंत्र चालू किया गया है। बड़ी ही चालाकी से आपका ध्यान चयनात्मक दृष्टिकोण (Selective approach) से सिर्फ़ मुस्लिमों पर लगा कर कैसे नफ़रत भरी जा रही है वह देखिये।

     

    अरे भाई नमाज़ अदा की जाती है मस्जिद में, जैसे पूजा आरती होती है मंदिरों में। लेकिन मंगलवार, शनिवार आदि विशेष अवसरों पर जब लोग अधिक हो जाते हैं तो मन्दिर फुल हो जाने पर लोगों का जमावड़ा सड़कों तक हो जाता है और इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होती । आप यहाँ जुमे का तो ज़िक्र कर रहे हैं लेकिन इन सब को छुपा रहे हैं और इस बात को कुछ अलग ही दिखाने का निर्लज्ज कुप्रयास कर रहे हैं।

     

    आगे पढ़ते हैं:-

    वे कहते है हम मांस खायेंगे, अब वह बकरे का हो या किसी और का

    मैंने कहा कोई बात नहीं, संविधान ने सबको हक़ दिया है कुछ भी खाने पीने का।

     

    अब मांसाहार के ज़रिए आपके मन में मुस्लिमों के लिये नफ़रत का प्रयास के लिए एक बार फिर *चयनात्मक दृष्टिकोण (Selective approach)* का प्रयोग जारी रखा गया है । भारत में 72% जनसंख्या मांसाहारी है। जबकि मुस्लिम मात्र 15% हैं। अतः यह कुप्रयास और इसका इरादा उजागर है ।

     

    और आगे पढ़ें:-

    अब मैंने कहा, “कॉमन सिविल कोड” आना चाहिए। तो वह बोला नहीं, ये इस्लाम के ख़िलाफ है।

     

    यह देखिये चयनात्मक दृष्टिकोण (Selective approach) का प्रयोग। देश में सिर्फ़ मुस्लिमों के लिए ही पर्सनल लॉ बोर्ड नहीं है। सिख हथियार रखते है, आदिवासी धनुष और शराब रखते है, जैन / नागा-साधू बिना वस्त्र के रहते है। कुछ के यहाँ जीवित समाधि लेने की प्रथा है ये सब अपने धर्म के व्यक्तिगत कानून (Personal law) के कारण ऐसा कर सकते है। जबकि दूसरे धर्म के लोगों के लिए इस पर सजा का प्रावधान है। इसी तरह शादी, जन्म-मृत्यु पर जो भी रीति-रिवाज हैं वह संविधान द्वारा दिए गए पर्सनल लॉ के कारण ही है। लेकिन यह सब छुपा कर सिर्फ़ मुस्लिमों का चित्रण, अपना प्रोपेगेंडा करने के लिए किया जा रहा है।

     

    और आगे पढ़ें:-

    *मैंने कहा, “जनसंख्या रोकथाम के लिए कानून बनना चाहिए।” तो वह बोला, ये इस्लाम ले ख़िलाफ है।*

     

    जनसंख्या रोकथाम कानून कौन से धर्म के ख़िलाफ नहीं है ज़रा यह बताने का कष्ट करे? कौन-सा धर्म कहता है कि जनसंख्या रोकथाम करो? यह तो सिर्फ़ एक विचार है जो सिर्फ़ प्रचार प्रसार ले चूका है। चीन भी जनसंख्या नियंत्रण कानून रद्द करने का फ़ैसला ले चूका है। लेकिन इसके लिए आप सिर्फ़ इस्लाम के ख़िलाफ का प्रोपेगेंडा क्यों कर रहे हैं ? बात जब धर्म की करें तो विभिन्न धर्मों के आधार पर ही करें। एक गैर धार्मिक मुद्दे में विशेष तौर से सिर्फ़ इस्लाम धर्म को बीच में लाने की क्या मंशा है?

     

     

    *मैंने कहा, “तलाक़ सिर्फ़ कोर्ट में हो।” तो वह बोला, ये क़ुरआन का अपमान है।*

     

    भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार हिन्दू समाज में कुल 11 लाख तलाक़ हुए और 23 लाख महिलाये बिना तलाक़ के ही अलग रह रही है। इसका मतलब कोर्ट से ज़्यादा तलाक़ तो समाज में होते है। (वास्तविक आंकड़े सरकारी आंकड़ों से ज़्यादा है)

     

    मैंने कहा, “बहुपत्नी प्रथा बंद हो।” तो वह बोला, ये इस्लाम के ख़िलाफ है।

     

    कमाल की बात है आप को इस्लाम और मुस्लिमों के अंदुरूनी मामले की इतनी चिंता क्यो है? शादी के बिना कई स्त्रियों से कोई सम्बन्ध बनाये तो आपको चिंता नहीं। कानून इस बात की इजाज़त दे कि शादी के बाद भी किसी और से अपनी मर्ज़ी से विवाहेत्तर सम्बन्ध बनाये तो आपको कोई आपत्ति नहीं। लिव-इन में रहे आपको कोई आपत्ति नहीं। बिना तलाक दिए बीवी छोड़ दे आपको दिक्कत नहीं।

     

    लेकिन अगर मुस्लिम बहु विवाह करे तो दिक्कत है? एक बात और ग़ौर करें कि अभी तक इस मैसेज में आपको भावनात्मक जोड़ने के बाद आपके मतलब की एक बात भी नहीं की जा रही जैसे, गिरती अर्थव्यवस्था, महंगाई, बेरोजगारी, पेट्रोल-डीज़ल के दाम। बस सारी बातें मुस्लिमों और उनके अंदरूनी मामले पर ही। कमाल के समाज सुधारक / हितैषी है ये आपके? समाज सुधारक है या ध्यान भटकाऊ? यह आपको सोचना है।

     

     

    अब इस मैसेज में आगे बढ़ें और देखें *पाखंड (Hypocrisy)* का प्रयोग:-

     

    *मैंने बोला, “बांग्लादेशियों को वापस भेजना चाहिए।” वह बोला, वे हमारे मुस्लिम भाई है। मैंने कहा, “रोहिंग्या को वापस भेजो।” वह बोला, वे हमारे भाई है।*

     

    आस पड़ोस के जितने देश है उनमें अगर कहीं हिंदुओं पर कोई प्रताड़ना की ख़बर भी मिल जाये तो ये लोग उनके लिए खूब आवाज़ उठाते हैं। उन्हें अपना भाई बताकर उन्हें भारत में लाकर भारत की नागरिकता देने के किये ही CAA कानून लाया गया है । अच्छी बात है करना भी चाहिए।

     

    लेकिन ठीक इसी तरह अगर कोई मुस्लिम, किसी देश में हो रहे मुस्लिमों पर अत्याचार और उनके घोषित निष्कासन और प्रताड़ना पर ज़रा-सी चिंता भी अगर ज़ाहिर कर दे तो एकदम से दृष्टिकोण बदल जाता है उसे देशद्रोही और पता नहीं क्या-क्या कह कर देश का दुश्मन ही साबित कर दिया जाता है। अतः यह पाखंड क्यों ? *यह दोहरा मापदंड क्यों?*

     

    और आगे पढ़ें –

    *मैंने बोला, “राम मंदिर बनना चाहिए।” वह बोला, कहीं भी बना लो पर अयोध्या में नहीं..वहाँ बाबरी मस्जिद बनेगी।*

     

    सुप्रीम कोर्ट में सदियों से बोला जा रहा प्रोपेगेंडा, झूठ साबित हुआ। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इस बात के कोई सबूत नहीं कि मंदिर गिरा कर मस्जिद बनाई गई हो। उसके बाद भी फ़ैसला राम मंदिर पक्ष में आया। इतना संवेदनशील मामला होने पर भी देश भर के मुस्लिमों ने उसे आत्मसात किया और आज वहाँ मंदिर बन रहा है।

     

    इस बात पर मुस्लिमों की सराहना करने और सद्भावना बनाने की बजाय यह लोग नई लिस्ट निकाल कर अगली कई सदियों तक देश को हिन्दू-मुस्लिमों मामले में उलझाए रखना चाहते हैं।

     

    *मैंने कहा, “मदरसे बंद हो, सबको समान शिक्षा मिले।” वह बोला, ये इस्लाम का अपमान है।*

     

    आप पहले तो यह बताएँ की आप यह क्यों कह रहे हैं कि मदरसे बन्द हो ?🤔 आप की मंशा शिक्षा देने की है या मदरसे बन्द करने की? सबको शिक्षा देने के लिए मदरसे बन्द करने की क्या ज़रूरत ? क्या तर्क है या मूर्खता। सबको शिक्षा दें शिक्षा का स्तर ऊंचा करें, मदरसे तो ख़ुद स्वचलित होते हैं। उनको बीच में लाकर अपनी ज़िम्मेदारी से क्यों भाग रहे हैं?

     

    इतना *ब्रेन-वाश* करने बाद अब आप आगे देखेंगे मैसेज का असली एजेंडा –

     

    *मैंने बोला, “मोदी ने ये अच्छा किया।” वह बोला, गुजरात में मुसलमानों के साथ ग़लत हुआ।*

     

    तो कुल मिलाकर बात यह है कि मोदी समर्थन। जो अब खुल के सामने आ जाता है। लेकिन पढ़ने वाला ये समझ नहीं पाता ।

     

    और आगे देखें –

    *मैंने बोला, “बंगाल में हिंदू के साथ ग़लत हो रहा है।” वह बोला, दीदी ने बहुत विकास किया है।*

     

    अब एजेंडा खुल के सामने आ गया बंगाल चुनाव और मोदी समर्थन-

     

    अब इसमें भी 2 मुख्य बिंदुओं पर ग़ौर करें-

     

    १. जितनी भी विरोधी पार्टी है उन्हें मुस्लिम समर्थक बता दिया जाता है।

     

    _”बंगाल के मुसलमान मानव विकास सूचकांक में किसी भी अल्पसंख्यक की तुलना में सबसे खराब हालत में है!”_अरे भाई इन सब पार्टियों ने कौन से मुस्लिमों का भला कर दिया? जो वे ममता की तारीफ करेंगे।

     

    २. जिस तरह मोदी जी 3 बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने वैसे ममता बैनर्जी भी बंगाल की मुख्यमंत्री बनी।

     

    पिछ्ले बिंदु में आपने अपने ही शब्दो में लिखा जिसके अनुसार आप यह कह रहे हैं कि मोदी ने अच्छा किया तो किसी को यह नहीं कहना चाहिए कि गुजरात में मुस्लिमों के साथ ग़लत हुआ। लेकिन अगर कोई यह कहे कि ममता ने बंगाल में अच्छा किया तो आप यह ज़रूर कहेंगे कि बंगाल में हिंदुओं के साथ ग़लत हुआ। वाह भाई कमाल की *हिपोक्रेसी (hypocrisy)* है, ख़ुद अपने शब्दों में एक ही मैसेज में सारी सीमाएँ पार कर रहे हो ।

     

    इसके बाद अंत में फिर एक-दो इधर-उधर की बात करके असली एजेंडे को उजागर किये बिना आपको मुस्लिमों की नफ़रत में लगा कर मैसेज का समापन किया जाता है।

     

    *मैंने बोला, “सारे आतंकवादियों को गोली मार देनी चाहिए। “वह बोला, सुधरने का एक मौका दो।*

    यह एकदम मनगढ़ंत बात कही गई है।

     

    मैंने बोला, “कश्मीरी पंडितों को उनका घर मिलना चाहिए।”

    यह बात आप उस काल्पनिक मुस्लिम से क्यों कह रहे हैं ? यह बात तो आपको सरकार से कहनी चाहिए । अब तो पुरा अधिकार उनका है और यह उनका वादा भी था। तो अब क्या हुआ? क्या वे उन्हें वापस भेजना नहीं चाहते या वे अब वापस जाना ही नहीं चाहते??

     

    *भाई. . .सारे मुसलमान एक ही होते है। जहाँ कम है, वहाँ सॉफ्ट है। जहाँ ज़्यादा है, वहाँ रोज़ हिन्दू मर रहे है।*

     

    *जहाँ कम है, वहाँ उन्हें आपसे रोजगार मिलता है..इसलिए आपके दोस्त है। जहाँ कम है, वहाँ तुम्हारे भाई है।*

    *पर जहाँ ज़्यादा है…..वहाँ आप सोच भी नहीं सकते।*

     

    क्यों नहीं सोच सकते ? सोचो भाई UAE, कतर, ओमान, बहरीन, सऊदी, खाड़ी के 22 देश, उसके बाद मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया और भी कई देश जहाँ मुस्लिमों की संख्या हिंदुओं से कहीं ज़्यादा है ! और रोजगार भी हिंदुओं को मुस्लिमों से ही मिल रहा है क्या वहाँ हिंदू शांति और सुरक्षा से नहीं रह रहे? अगर यह प्रोपेगेंडा सच होता तो हर साल कई गैर मुस्लिम वहाँ क्यों बस रहे है? सत्य तो यह है कि यह बिलकुल झूठ है। एक नहीं अनेक देश हैं जहाँ मुस्लिम बहुसंख्यक हैं और हिन्दू वहाँ शांति से रह रहे हैं।

     

    इसके उलट यह ज़रूर है कि ऐसी भी जगह हैं जहाँ मुस्लिम कम है वहाँ उनके साथ बहुत अत्याचार हो रहा है जैसे रोहिंग्या का ज़िक्र तो इस मैसेज में ही हो चुका लेकिन इसके लिए धर्म नहीं बल्कि नफ़रत फैलाने वाले ही ज़िम्मेदार होते हैं ।

     

    दरअसल यह नफ़रत फैलाने वाले सभी एक जैसे ही होते हैं जहाँ ज़्यादा हो जाते हैं उस जगह रक्तपात और गृह- युद्ध की नौबत ला देते हैं और जहाँ कम होते हैं वहाँ ऐसे ही झूठे मैसेज लिख लोगों को भड़काने का प्रयास करते रहते हैं ।

     

    अब सोचना आपको है। अंधकार में न रहें। *ब्रेन-वाश* से बचें!

  • हलाला क्या है और क्यों होता है?

    हलाला क्या है और क्यों होता है?

    *जवाब:-* इस्लाम में हर मसले को बड़ी तफसील से बयान किया गया है। जिस तरह शादी और निकाह करने के इस्लामी कायदे कानून है इसी तरह अगर किसी वज़ह से मियाँ-बीवी में निबाह ना हो सके और वह शादी के बंधन से निकलना चाहे तो तलाक के लिए भी कुछ नियम और तरीके हैं।

    बुनियादी तौर पर इस्लाम में निकाह / शादी एक पवित्र रिश्ता है। इसीलिए हदीस में आया है कि अल्लाह तआला के नज़दीक हलाल चीजों में सबसे ज़्यादा नापसंदीदा चीज तलाक है।

    फिर भी कभी मियाँ-बीवी में बिगाड़ और रिश्ता टूटने की नौबत आये तो इस बारे में क़ुरआन लोगों को उन दोनों के बीच सुलह की कोशिश का हुक्म देता है :-

    *और यदि तुम्हें दोनों के बीच वियोग (जुदाई) का डर हो, तो एक मध्यस्थ उस (पति) के घराने से तथा एक मध्यस्थ उस (पत्नी) के घराने से नियुक्त करो, यदि वे दोनों संधि कराना चाहेंगे, तो अल्लाह उन दोनों के बीच संधि (समझौता) करा देगा। वास्तव में, अल्लाह अति ज्ञानी सर्वसूचित है।*

    (क़ुरआन 4:35)

     

    तलाक के इस पूरे प्रोसेस (प्रक्रिया) को संक्षिप्त में इन 6 पॉइंट में समझते हैं:-

    1️⃣ अगर कोशिश करने पर भी सुलह ना हो सके और फिर भी तलाक चाहें तो उसका सही तरीक़ा यह है कि वह शख़्स अपनी बीवी को एक बार तलाक दे दे।

    2️⃣ अब इसके बाद 3 माह (3 Menstrual Cycle) इद्दत का वक़्त है इस दौरान भी अगर पति पत्नी में बात बनती है उनका मन बदलता है तो वह फिर रूजू (साथ रहना) कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें सिर्फ़ गवाहों को इत्तेला (सूचित) करना होगा कि हमारा निबाह हो गया है।

    3️⃣ लेकिन 3 माह गुज़र जाने पर भी उनका तलाक का इरादा क़ायम रहा तो अब तलाक हो गई और वह दोनों एक दूसरे के निकाह से निकल गए।

    4️⃣ इस के बाद भी अगर भविष्य में वे फ़िर से एक साथ रहना चाहे तो रह सकते हैं। पर इसके लिए उन्हें दोबारा से निकाह करना होगा और इसमें कोई रोक नहीं।

    5️⃣ मान लीजिये अगर दोबारा निकाह हुआ और फिर से उनके बीच तलाक की नौबत होती है तो फिर वही प्रक्रिया है, पहले सुलह कि कोशिश फिर ऊपर बताई प्रक्रिया 1-4 अनुसार।

    6️⃣ ऐसा ही दूसरी बार भी हो सकता है यह दूसरा तलाक होगा। अब अगर उसके बाद फिर निकाह हो गया लेकिन फिर तीसरी बार यही नौबत आ गई तो अब तीसरी बार के बाद यह प्रक्रिया और नहीं दोहराई जा सकती।

     

    ऐसा इसलिए है क्योंकि शादी, सुलह की कोशिशें और तलाक कोई मज़ाक और खेल नहीं है जो जीवन भर दोहराया जाता रहे। इसलिये इसकी हद क़ायम करना ज़रूरी है ताकि इसकी अहमियत बनी रहे। लिहाज़ा अगर 3 बार यह तलाक की प्रक्रिया हो गई तो अब उस आदमी के लिए वह औरत हराम (वर्जित) हो गई अब वह उससे निकाह नहीं कर सकता।

    तलाक की यह हद (3 बार) इसलिए भी मुक़र्रर की गई ताकि औरत को ऐसे ज़ालिम से छुटकारा मिल सके जो उसे बार-बार निकाह में लेकर तलाक दे रहा हो और उसे क़ैद में रख उसकी ज़िंदगी बर्बाद कर रहा हो। जैसा इस्लाम आने से पहले किया जाता था क्योंकि तब तलाक की कोई हद मुक़र्रर नहीं थी।

     

    अब यह तलाक हो जाने के बाद औरत किसी और व्यक्ति से शादी करें और अपना जीवन बसर करें। इस्लाम में तलाक औरत के लिए ज़िंदगी का खात्मा (End of Life) नहीं है कि तलाक शुदा औरत अब समाज से कटकर अकेली और दुःख भरी ज़िंदगी गुज़ारने को मजबूर हो। बल्कि इस्लाम तो यह हुक्म देता है कि “तलाकशुदा औरत के निकाह में जल्दी करो” ताकि वह एक सामान्य जीवन जी सके।

    अगर कभी जीवन में फिर उस औरत के दूसरे पति का देहाँत हो जाता है या उस पति से स्वभाविक रुप से तलाक हो जाता है। तब वह अपने पहले पति से फिर निकाह कर सकती है क्योंकि अब वह अब अपने पहले शौहर के लिए हराम नहीं रही।

     

    इस पूरी तफसील से यह बात समझ में आ गई होगी कि हलाला कोई कानून और प्रक्रिया (Procedure) नहीं है बल्कि यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया (Natural Process) है।

    जिस की सम्भवतः कभी नौबत ही ना आए क्योंकि यह ज़रूरी नहीं कि औरत के दूसरे पति का देहाँत हो जाएगा या उस से भी तलाक होगा। चूंकि वह अब अपने पहले शौहर के लिए हलाल (शादी जाइज़) हो गई इसलिए इस प्रोसेस को हलाला कह दिया जाता है।

    इस कि मिसाल यह है कि अगर किसी को ठंड के मौसम में बताया जाए कि फलाँ काम बारिश का मौसम आने पर करना है। अब स्वाभाविक है कि ठंड का मौसम गुजरेगा, फिर गर्मी का मौसम आएगा फिर 8 माह गुज़रने पर बारिश में यह काम करने का वक़्त आएगा। अब वह व्यक्ति यह करें कि ठंड में ही शॉवर चालू कर के कहने लगे कि बारिश आ गई और उक्त काम कर ले। तो ना तो वह काम होगा साथ ही ऐसे व्यक्ति को नासमझ ही कहा जायेगा।

    यही बात हलाला के मामले में है यह कोई  प्रक्रिया (Procedure) नहीं जिसे योजनाबद्ध (प्लान) कर के किया जा सके।

     

    जैसे अगर कोई आदमी तीन तलाक के बाद अपनी बीवी का जानबूझकर किसी दूसरे आदमी से निकाह करवाता है ताकि बाद में वह उसको तलाक दे-दे और वह फिर से निकाह कर ले तो ऐसे लोगों पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सख्त लानत (भर्त्सना) की है। हजरत उमर ने एक बार मीमबर से यह ऐलान किया कि अगर मेरे पास कोई हलाला करने वाला लाया गया तो मैं उसे कोड़े लगाऊंगा। क्योंकि यह हराम काम है और एक तरह का ज़िना (व्यभिचार) है। इसकी इस्लाम में हरगिज़ कोई गुंजाइश नहीं हो सकती।

     

    मीडिया ने तीन तलाक और हलाले का इस तरह दुष्प्रचार किया है कि उसको देख कर लगता है जैसे हर मुसलमान आदमी अपनी बीवी को तीन तलाक देता है और उसका हलाला करवाता है। हालांकि इसे इस्लाम की खूबी कहिए कि मुसलमानों में तलाक की दर सबसे कम है। अगर तलाक की कहीं ज़रूरत पड़ती भी है तो उसका भी बहुत बेहतर तरीक़ा इस्लाम में है और औरत के हक़ की हिफाज़त कर, तलाक के ज़रिये ज़ुल्म से निजात का रास्ता देता है। जबकि कई धर्मों में तो तलाक का कोई प्रावधान ही नहीं है एक बार शादी हो गई तो जीवन भर पति की दासी बनी रहे फिर चाहे पति कुछ भी करें।

     

    हलाला जैसा इस्लाम में ना कोई कानून है ना कोई प्रावधान। जानबूझकर हलाला करने जैसी गंदी चीज का मुसलमानों से कोई ताल्लुक नहीं है। फिर भी इस्लाम का दुष्प्रचार करने के लिए इस तरह की बातें की जाती हैं।