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  • मक्का में गैर मुस्लिमों के प्रवेश पर प्रतिबंध क्यों?

    मक्का में गैर मुस्लिमों के प्रवेश पर प्रतिबंध क्यों?

    जवाब:-  सर्वप्रथम तो कोई भी मुस्लिम मंदिरों में प्रवेश के प्रतिबन्ध पर विरोध का प्रदर्शन नहीं कर रहा है। बल्कि विरोध तो अबोध बालक की निर्मम पिटाई का हो रहा है।

    औऱ इस अमानवीय घटना का तो ख़ुद हिन्दू भाई ही विरोध कर रहे हैं। क्योंकि बेशक इस बात की शिक्षा कोई धर्म नहीं देता। बल्कि इस तरह की हरक़त कर कुछ लोग अपने ही धर्म को शर्मसार करते हैं।

    दरअसल इसके असली ज़िम्मेदार भी यह लोग ख़ुद नहीं होते बल्कि इनके पीछे वे असामाजिक और नफ़रत फैलाने वाले भड़काऊ लोग होते हैं जो निरंतर इनके दिमागों में ज़हर घोलते रहते हैं और ऐसा काम करने के लिए उन्हें निरन्तर प्रेरित करते हैं।

    और यही नहीं, जब इसके फलस्वरूप लोग कुछ ग़लत कर बैठते हैं तो यही नफ़रत और हिंसा का पाठ पढ़ाने वाले लोग उसके बाद भी (यह सोच करके कहीं सभी के विरोध पर) इन्हें आत्मग्लानि ना हो जाये इसलिए ब्रेनवॉश जारी रखते हैं और कुतर्को से उनकी पीठ थपथपाते रहते हैं और उन्हें बताते रहते हैं कि तुमने कुछ ग़लत नहीं किया बल्कि बहुत अच्छा किया है।

    बिल्कुल ऐसे ही यह ब्रेनवॉश नफरती गैंग, यहाँ पानी पीने गए बच्चे की पिटाई को डिफेंड कर सही साबित करने में लगे हैं। पहले कहे गए कई झूठ कि वह बच्चा यह करने आया था या वह करने आया था जब किसी झूठ से बात नहीं बनी तो एक और कुतर्क, मक्का में प्रवेश का देने लगे।

    जैसा की सबको पता है कि मंदिर का पर्याय मस्जिद होती हैं। जबकि मक्का तो एक तीर्थ और विशेष स्थान है जिसका पर्याय दुर्गम तीर्थ स्थान और विशेष स्थान हो सकते हैं और ऐसे तो कई हिन्दू स्थान, गर्भगृह, कपाट आदि हैं जहाँ मुस्लिम तो दूर की बात आम हिंदुओं का प्रवेश भी वर्जित होता है।

    ऐसे स्थान विशेष ही होते हैं और आम शहर रास्तों में तो होते नहीं कि जहाँ कोई ग़लती से प्रवेश कर जाए या पानी पीने के लिये ही पहुँचे।

    जबकि ऐसा मंदिर, मस्जिदों में हो सकता है और इस्लाम की किसी मस्जिद में हिंदुओं को पानी पीने के लिए नहीं रोका जाता बल्कि इस्लाम में तो प्यासों को पानी पिलाना बड़ा पुण्य का काम है। साथ ही जैसा कई हिन्दू भाइयों, पंडितों ने हमे बताया कि हिन्दू धर्म और मंदिरों में भी ऐसा ही है।

    अतः इस्लाम के मुताबिक और हिन्दू धर्म के हमारे ज्ञान के मुताबिक तो यह ठीक नहीं फिर भी अगर कोई मंदिर या मस्जिद कमेटी भी गैर धर्म वालो को पानी पीने के लिए प्रवेश पर प्रतिबंध लगाना चाहे तो इसका प्रबंधन अवश्य कर ले कि अनजाने या गलती से प्रवेश की गुंजाइश ना रहे।

    जैसे कहीं लिख दिया गया प्रवेश वर्जित है और बेचारा अनपढ़ अनजाने में अंदर चला गया तो फिर उसे इस बुरी तरह पीटा जाए की वह अधमरा-सा हो जाए या मर ही जाए।

    क्योंकि यह तो किसी भी स्थिति में सही नहीं होगा और जो भी ऐसा करेगा वह अपने धर्म और उसकी शिक्षा का ही ग़लत प्रदर्शन कर उसे शर्मसार करेगा और नफ़रत फैला कर लोगों को लड़ाने वाले लोग तो चाहते भी ही यही हैं। अतः हमें सोचना चाहिए कि वाकई में हमे ख़तरा किन लोगों से है? दूसरे धर्म वालो से या हमारे धर्म के लोगों का ही ब्रेनवॉश करने वालों से?

  • ISIS के झण्डे पर कलमा लिखा होता है मुस्लिम इसका विरोध क्यों नही करते ?

    ISIS के झण्डे पर कलमा लिखा होता है मुस्लिम इसका विरोध क्यों नही करते ?

    जवाब:-  पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ जी के हर वीडियो की तरह यह विडियो भी झूठ के द्वारा डर और हिंसा भड़का कर समाज में ध्रुवीकरण कर राजनीतिक फायदा उठाने के चतुर प्रयास का उदाहरण है।

    आइए सिर्फ़ सुने नहीं बल्कि ध्यान देकर शब्दों के पीछे के षड्यंत्र और कुतर्कों को समझें और इनकी हक़ीक़त सामने लाएँ।

    सबसे पहले कुलश्रेष्ठ जी ISIS के झंडे पर “पहला कलमा” लिखा है से शुरू करते हैं और बड़ी ही चालाकी से कुछ सेकंड के अंदर ही ISIS के आतंकी शब्द की जगह सीधे “मुसलमान कलमा लिखा झंडा लेकर आतंक कर रहे है” कहने लग जाते हैं और अगले सेकंड में ही उन मुसलमान (जो कि वास्तव में मुस्लिम नहीं है सिर्फ़ हुलिया बना रखा है) को हिंदुस्तान का मुसलमान बना डालते हैं। कमाल है कुछ फ़र्क़ ही नहीं रहा।

    खैर आगे वे कहते हैं चूंकि इस्लामिक नारे का इस्तेमाल हो रहा है और मुसलमान इसका विरोध नहीं कर रहे हैं इसलिए हिंदुस्तान के मुसलमान मक्कार और मुनाफिक है।

    सर्वप्रथम यहाँ पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ जी ख़ुद को ही अपने ही शब्दों में मक्कार साबित कर रहे हैं क्योंकि यह वह अच्छे से जानते हैं कि ख़ुद हमारे देश में जय श्री राम का नारा लगाने को मजबूर करते हुए लोगों की भीड़ कई निर्दोषो को बाँधकर मौत के घाट उतार देती है उन वीडियो में कई सारे धार्मिक झंडे भी नज़र आते हैं कई सारे लोग धार्मिक नारे लगा रहे होते हैं और ऐसे एक नहीं बल्कि कई सारे मॉब लिंचिंग और दंगों के केस इस देश में हो रहे है तो क्या श्री पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ को शर्म नहीं आ रही?? ख़ुद के आस पास और धर्म से जुड़े मामलों की बात छोड़कर हजारों किलोमीटर दूर किसी घटना का ज़िक्र करके अपने ही देश वालों को आतंकी घोषित कर रहे हैं।

    तो ऐसा करते ही वह ख़ुद अपने ही शब्दों के अनुसार मक्कार निर्लज्ज और झूठे साबित नहीं हो जाते?

    अब आते हैं उनके इस आरोप पर की मुसलमान पैगम्बर ऐ इंसानियत हज़रत मोहम्मद सलल्लाहो अलैहि व सल्लम के अपमान पर जिस स्तर का विरोध करते हैं वैसे ही ISIS आदि के लिए क्यों नहीं करते?

    पुष्पेंद्र जी तो यह बात भली भांति जानते हैं कि दोनों ही बातों में एक मूल फ़र्क़ है जिसे जानते ही इस प्रोपेगंडे की पोल खुल जाती है लेकिन वह बड़ी चालाकी से इसे लोगों के सामने छुपा जाते हैं। जिसे हमें जानना चाहिए।

    वह यह है कि हज़रत मोहम्मद सलल्लाहो अलैहि व सल्लम के अपमान के मामले में मुस्लिमों ने ही शांति पूर्वक यह अपील की कि आप ऐसा कर हमारी धार्मिक भावना आहत ना करें लेकिन इस अपील पर ना ही वे रुके ना किसी देश / सरकार ने इसे रोकने का प्रयास किया अतः विरोध प्रदर्शन हुए।

    जबकि ISIS के मामले में तो देश / दुनिया की बड़ी-बड़ी मिलिट्री आर्मी उन्हें ख़त्म करने में लगी हुई हैं। उन्हें ख़त्म करने में दुनिया के तमाम संसाधन और ताकत लगा रखी है। अगर इसी तरह का या इससे 100 गुना छोटा प्रयास भी अगर दुनिया ने हज़रत मोहम्मद (स.अ.व.) के अपमान को रोकने में लगाया होता तो मुस्लिमो को किसी तरह का विरोध प्रदर्शन नहीं करना पड़ता।

    बल्कि इसमें तो बड़े आश्चर्य की बात है कि अमेरिका, रूस जैसे देश इतने सारे मिलिट्री संसाधन लगाने के बावजूद ISIS का खात्मा क्यों नहीं हो पा रहा??

    ISIS मुस्लिम है भी या जैसे बुर्का, टोपी पहनकर गैर-मुस्लिम ग़लत काम करते है उस तरह से कोई अन्य है ताकि मुस्लिमो के खिलाफ नफ़रत का प्रोपेगेंडा चलाया जा सके जो अंतरराष्ट्रीय स्तर का प्रयास है?

    क्योंकि बहुत-सी बातें है जो इस और इशारा करती हैं कि ISIS मुस्लिम संगठन नहीं है। बल्कि मोसाद और CIA के द्वारा खड़ा किया गया लगता है??

    • 1. जैसे ISIS के हमले प्रमुख रूप से मुस्लिम राष्ट्रों पर ही हो रहे हैं जिनमे शिया सुन्नी दोनों मुस्लिम तरह के राष्ट्र शामिल हैं।
    • 2. ISIS के नाम से प्रचारित की गई वीडियो का झूठा (fake) साबित होना जैसा कि अमेरिका के द्वारा 2 लाख $ डॉलर की लागत से फ़िल्माया जाना साबित हुआ।
    • 3. ख़ुद अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प का यह दावा करना कि ISIS को खड़ा करने के पीछे पूर्व राष्ट्रपति ओबामा का हाथ है।

    ऐसे और भी कई तथ्य हैं जो ISIS को मुस्लिम नहीं बल्कि भाड़े के क़ातिल का गुट कह सकते है। इसके बावजूद विश्व भर में मुस्लिमो ने ISIS और इस तरह के सभी आतंकी संस्थाओं का पुरज़ोर विरोध किया है जो श्री पुष्पेंद्र को नहीं दिखता।👇

    विश्व का सबसे बड़ा मदरसा (दारुल उलूम देवबंद) ने फतवा जारी किया👇

    1) https://m.timesofindia.com/india/deoband-first-a-fatwa-against-terror/articleshow/3089161.cms

    2)https://www.hindustantimes.com/delhi/coming-fatwa-against-terrorism/story-EZRGI5IPyMv2e5b8bZ1EUP.htm

    3)https://www.thehindu.com/news/national/darul-uloom-deoband-condemns-alqaeda-move/article6384559.ece

    4)https://www.indiatvnews.com/news/india/madrasasjoin-hands-to-create-awareness-against-isis-55989.html

    • मुस्लिम कार्यकर्ता ने की पेरिस आतंकी हमले की निंदा👇

    • शहर भर के मुस्लिम संगठनों ने घोषणा की कि मुस्लिम कब्रिस्तानों में मारे गए आतंकवादी के लिए कोई जगह नहीं है👇

    https://edition.cnn.com/2009/WORLD/asiapcf/04/17/mumbai.bodies/

    हाँ यह अवश्य है कि पुष्पेंद्र कभी राम और भगवा के नाम पर हो रहे ग़लत कामो के खिलाफ बोलते नहीं दिखे। तो उन्ही के शब्दों में वे क्या हैं यह अब दोहराने की ज़रूरत नहीं।

    उनका नजरिया बिल्कुल यही है।👇

     

    हर धर्म से जुड़े उग्रवादी संगठन अपने नामो में उस धर्म के प्रतीक और चिन्हों का प्रयोग करते हैं जैसे फलाँ सेना ,फलाँ दल आदि तो क्या पुष्पेंद्र हथियार लेकर उन्हें ख़त्म करने चले जाते है?? नहीं ना यह काम तो सेना और सुरक्षा बल का होता है। तो क्या वे यह चाहते हैं कि हिंदुस्तान का मुसलमान हथियार लेकर ISIS आदि का खात्मा करने चले जाएँ? इस तरह की बचकाना बाते और मूर्खतापूर्वक तर्क गंभीर चेहरा बना कर कहने से लोग भड़क जाएंगे और मूर्ख बन जाएंगे ऐसा अब श्रीमान को सोचना छोड़ देना चाहिए।

    क्या नमाज़ डर का प्रतीक है इससे पलायन होता है?

    जिसने भी जीवन में किसी को नमाज़ पड़ते देखा है वह जानता है कि पुष्पेंद्र जी यहाँ कितना बड़ा झूठ रच रहे हैं। नमाज़ कोई उग्र और हिंसक प्रदर्शन नहीं है। अगर पलायन की बात करें तो यातनाओं से दुखी होकर देशभर में जिन जगहों से मुस्लिमो को पलायन करना पड़ा है उसकी लिस्ट इतनी लंबी है कि उल्लेख ही नहीं किया जा सकता। कुछ एक की बात करे तो यू.पी. के श्यामली, तापराना, सम्भल राजस्थान के डाँटल आदि के बारे में पुष्पेंद्र जी का क्या कहना है?? जहाँ से सैकड़ो की संख्या में मुसलमानों ने प्रताड़ना की वज़ह से पलायन किया है।

    फिर भी यहाँ हम बहुसंख्यक को दोष नहीं देंगे। बल्कि इस तरह के सारे पलायनो के ज़िम्मेदार ये ज़हर फैलाने वाले लोग ही हैं जिनकी मंशा वोट की ध्रुवीकरण करने की है। नहीं तो सदियों से साथ रह रहे लोगों को आज क्या हो गया जो डर और असुरक्षा की वज़ह से पलायन करना पड़ रहा है?

    इसी संदर्भ के दौरान पुष्पेंद्र जी की यह बात बड़ी हास्यास्पद है कि वे पूरे देशभर की जगहों की गिनती कराते हुए कहने लगते हैं कि सभी को मालूम है यहाँ ये हो रहा है वहाँ वह हो रहा है।

    अगर सबको मालूम है कि ऐसा हो रहा है, तो फिर आपकी चहेती सरकार कुछ कर क्यों नहीं रही? *क्या अब आप यह मानने पर मजबूर नहीं है कि या तो आपकी प्रिय सरकार अक्षम है, या आप झूठ बोल रहे हैं? या न आप झूठ कह रहे है ना सरकार अक्षम है बल्कि वह तो ख़ुद यह होने दे रही है ताकि आप ऐसे ज़हर फैलाते रहे और उन्हें लाभ मिलता रहे??*

    और अंत में ~सेना के खिलाफ सोशल मीडिया पर कमेंट~

    पुलवामा हमले पर बहुत ही गंभीर सवाल उठे थे जिन पर से ध्यान हटाने के लिए हर बार की तरह पुष्पेंद्र जी के पास एक ही तरीक़ा है वह है मुस्लिम और इस्लाम।

    ज़रा वे यह बताने का कष्ट करेंगे कि जब कफील खान देश की एकता पर भाषण देते हैं तो उसे देश विरोधी बता कर महीनों जेल में रखा जा सकता है NSA जैसे एक्ट लगा दिये जा सकते हैं। तब पुष्पेंद्र जी और उनकी चहेती सरकार उस कॉमेंट जिस का वे ज़िक्र कर रहे हैं पर तो बड़ी से बड़ी कार्यवाही कर सकती थी और ऐसे सभी लोगों पर तो UAPA, POTA लगाया जा सकता था? मगर ऐसा नहीं किया गया तो क्या वे सब IT सेल वाले थे जो मुसलमानों की फ़र्ज़ी id बना कर कमेंट कर गए?? ताकि ध्यान मुख्य मुद्दे से ध्यान हटा कर साम्प्रदायिकीकरण किया जा सके?

    असल बात तो यह है कि किसे नहीं मालूम के पुलवामा से सबसे ज़्यादा लाभ किसे हुआ..?? इंटेलिजेंस की सूचना देने के बाद भी इतना बड़ा हमला क्यों रोका नहीं जा सका.?? सैनिकों को एयरलिफ्ट करने की मांग की जगह बसों से ही क्यों भेजा गया..??

    अब चाहे पुष्पेंद्र जी मुसलमानों को दोष देते रहें, सोशल मीडिया की फ़र्ज़ी कमेंट की बात करते रहे चाहे जो करें आज नहीं तो कल वे ज़्यादा दिन तक अपना प्रोपेगेंडा नहीं चला पाएंगे जनता अब इतनी भी मूर्ख नहीं रही। उन्हें इन सवालों के जवाब देना पड़ेंगे। हर चीज़ में मुस्लिम एंगल लाकर ध्यान बटा कर राज करते रहना अब ज़्यादा दिन चलने वाला नहीं। झूठ और डर की यह दूकान जल्द बन्द होगी।

     

  • क्या सड़कों पर नमाज़ लोगों को डराने के लिए पढ़ी जाती है?

    क्या सड़कों पर नमाज़ लोगों को डराने के लिए पढ़ी जाती है?

    जवाब:-  झूठे हवाले देने में माहिर और अपने आप को इस्लाम का महा ज्ञाता बताने वाले इन महाशय से ज़रा ये पुछिये की क्या वे इस बात का कोई झूठा ही सही मगर कोई हवाला दे सकते हैं कि ऐसा कहाँ लिखा है कि नमाज़ गैर मुस्लिम को डराने के लिए पढ़ी जाती है?

    यह दरअसल पुष्पेंद्र के उस एजेंडे का ही हिस्सा है कि मुस्लिमों के हर कृत्य को ऐसा दिखाओ की मानो वह ऐसा गैर मुस्लिमों को तकलीफ़ देने के लिए या डराने के लिए ही कर रहे हैं। जबकि ऐसा कुछ नहीं है।

    मुस्लिम नमाज़ अल्लाह की रज़ा और ख़ुशनूदी के लिए पढ़ते हैं। नमाज़ पढ़ते हुए कई ग़ैर मुस्लिमों ने अपने मुस्लिम दोस्तो को देखा होगा। नमाज़ बिल्कुल शांति से अदा की जाती है, ना इसमें कोई मूर्ति स्थापित की जाती है, न कोई रंग-रोगन या कोई आग वगैरह लगाई जाती है ना ही ऐसा कुछ और किया जाता है। पूरी नमाज़ में कोई एक भी ऐसा कृत्य नहीं होता जिस से डरना तो दूर किसी दूसरे व्यक्ति को एतराज़ भी हो।

    जिनको शांति से अदा की जा रही नमाज़ ऐसे लग रही है जैसे वह दूसरे धर्म के लोगों को डराने के लिए किया जा रहा है तो फिर वे चौराहों पर होली के दौरान होली दहन, सड़को पर मूर्ति स्थापना, विसर्जन यात्रा, शस्त्र-पूजन और फिर अन्य यात्रा के बारे में क्या कहेंगे?

    अतः यह बेवजह का प्रोपेगेंडा दरअसल धार्मिक नफ़रत और हिंसा भड़काने के मिशन पर लगे यह महाशय कर रहे हैं ।

    दूसरी बात यह कि यह बिल्कुल सत्य है कि किसी को कोई तकलीफ देना इस्लाम में बिल्कुल मना है और आम हालात में कोई भी मस्जिद में जगह होने पर बेवजह सड़क पर नमाज़ नहीं पढ़ता है। ऐसा सिर्फ़ ख़ास अवसरों पर ही भीड़ अधिक हो जाने पर होता है, ठीक वैसे ही जैसे विशेष अवसरों पर मंदिरों के बाहर, या गुरुद्वारों के बाहर हो जाता है।

    इसके अलावा अगर मजबूरी में कही मस्जिद आसपास नहीं हो और कहीं और नमाज़ पढ़ना भी पढ़े तो ऐसी जगह पढ़े जहाँ किसी को तकलीफ़ ना हो। लेकिन अगर कोई बेवजह ही एतराज़ (objection) ले रहा हो तो उसका कोई मतलब नहीं। ऐसे ही झूठे हवाले देने में माहिर श्रीमान कह रहे हैं कि फ़रमाया “कि कहीं भी अगर किसी को डॉट (.) बराबर भी ऑब्जेक्शन हो तो मैं नमाज़ कबूल करूँगा ही नहीं? “तो यह महाशय बताएँ की इसका संदर्भ (रेफरेंस) कहाँ है? कहाँ ऐसा लिखा है? ऐसे तो पुष्पेंद्र जैसे लोगों को तो मस्जिद या घरों में नमाज़ पढ़ रहे लोगों से भी एतराज़ (Objection) होगा तो क्या इसका मतलब यह हुआ कि कही नमाज़ पढ़े ही नहीं?

    और अंत में पुष्पेंद्र जी ख़ुद इस बात से वाकिफ़ तो होंगे ही की इस देश में मुस्लिमों के वक़्फ़ बोर्ड की कितनी ज़मीन है और उस पर किसका कितना कब्ज़ा किया हुआ है और उनकी प्रिय पार्टी से जुड़े व्यक्ति जिसको वक्फ बोर्ड का चेयरमैन बना दिया गया था उसके ऊपर वक्फ बोर्ड की कितनी ज़मीनो को हड़पने और बेचने का केस चल रहा है?

    अगर वक़्फ़ की यह ज़मीन सही मायनों में मुस्लिमों को प्राप्त हो जाये तो सभी मस्जिदों की इतनी गुंज़ाइश (Capacity) हो जाएगी कि विशेष अवसरों पर भी अधिक भीड़ होने पर भी किसी को बाहर नमाज़ पढ़ने की ज़रूरत नहीं होगी।

  • पुष्पेंद्र के मस्जिद, हज और नमाज़ के बारे में सवाल का जवाब दें?

    पुष्पेंद्र के मस्जिद, हज और नमाज़ के बारे में सवाल का जवाब दें?

    जवाब:-

    पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ के हर वीडियो की तरह यह वीडियो भी ब्रेनवॉशिंग का बेहतरीन नमूना है, जिसमे झूठ और जज़्बातों (emotions) का घालमेल कर लोगों को मुस्लिमो से नफ़रत करने और इस्लाम का दुष्प्रचार करने की कोशिश की गई है। किसी समझदार व्यक्ति को यह बताने की ज़रूरत ही नहीं कि इसके पीछे कारण राजनीतिक लाभ है और इससे ही इनकी आजीविका जुड़ी हुई है।

    लेकिन ईश्वर की कृपा से ऐसी तमाम कोशिशों से इस्लाम को तो कुछ नुक़सान नहीं होता बल्कि फ़ायदा ही होता है। क्योंकि इस तरह के झूठ से लोगों की इस्लाम को जानने की जिज्ञासा ही बढ़ती है और कई लोगों ने इसके बाद इस्लाम का अध्ययन कर इस्लाम कबूल किया और ऐसा आज से नहीं बल्कि पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के समय से ही होता आ रहा है और आज भी विश्व में सबसे तेजी से क़बूल किया जाने वाला धर्म इस्लाम ही है।

    अब आइए इस वीडियो में उठाए गए सवालों और कहे गए झूठ की तरफ़ बढ़ते हैं।

    सबसे पहले यह समझें कि इस प्रोपेगंडे से पुष्पेंद्र यहाँ कौन-सा मकसद साधना चाहते हैं?

    थोड़ा ग़ौर करने पर ही आपको समझ में आ जायेगा कि यहाँ उनका मकसद लोगों की नज़र में मस्जिदों की अहमियत कम करके और उन्हें तोड़े जाने को एक सामान्य कार्य सिद्ध करना है ताकि वह लोगों को मस्जिद हटाकर मंदिर बनवाने की राजनीति में ही अगली कुछ सदियों तक फँसा रखे।

    • सवाल 1:- वे कहते हैं “इस्लाम में मस्ज़िद का कोई धार्मिक महत्व नहीं है क्योंकि इसमें अल्लाह की मूर्ति नहीं है। जिस तरह होटल में खाना खाया जाता है। उसी तरह मस्ज़िद में नमाज़ पड़ी जाती है। जैसे होटल को तोड़ कर दूसरी जगह बनाया जा सकता है, उसी तरह मस्ज़िद को तोड़ कर दूसरी जगह बनाया जा सकता है। इसकी दलील है, लोगों का सड़को पर नमाज़ पड़ना।

    जवाब:-

    1. सामान्य बुद्धि (Common sense) से:-

    इस्लाम में मूर्ति पूजा नहीं है, अल्लाह का ना कोई अक्स (आकार) है ना कोई मूर्ति। यह बात तो बिल्कुल ही बुनियादी (Basic) बात है और इसे सभी जानते हैं।

    अब अगर कोई यूँ कहे कि मस्जिद में अल्लाह की कोई मूर्ति नहीं होती इसलिये इस्लाम में मस्जिद की कोई अहमियत नहीं है। तो उसे तो बड़ा ही कम-अक्ल कहा जाएगा।

    और यही काम यहाँ पुष्पेंद्र जी कर रहे हैं। या तो उन्हें इतना भी नहीं पता की इस्लाम में मूर्ति का तसव्वुर ही नहीं है, या वह सामने बैठी जनता को महामूर्ख समझते हैं। यहाँ वे गम्भीर शक्ल बना कर यही बात कह रहे हैं कि “इस्लाम में मस्जिद की अहमियत नहीं है ऐसा इसलिए “क्योंकि वहाँ अल्लाह की मूर्ति नहीं है।”

    भाई, भले ही आप गम्भीर शक्ल बना लें और बड़ी-गम्भीर, बुद्धि-वाली बात कहने की एक्टिंग कर ले, लेकिन फिर भी मूर्खतापूर्ण कही गई बात तो मूर्खतापूर्ण ही रहेगी और ऐसा ही यहाँ हुआ है।

    आपको क़ुरआन या धर्म ग्रन्थों की जानकारी होना ज़रूरी नहीं है बल्कि सिर्फ़ सामान्य बुद्धि (Common sense) का ही उपयोग कर लेने से पता चलता है कि यह व्यक्ति यहाँ जो कह रहा है वह निश्चित ही झूठ होगा क्योंकि जो यह दलील दे रहा है उसका तो कोई औचित्य ही नहीं है।

    2. तार्किकता (Logic) से:-

    पुष्पेंद्र अपनी बात यानी कि “इस्लाम में मस्जिद की कोई अहमियत नहीं है” को साबित करने के लिए दूसरी दलील यह देते है कि मुस्लिमों का सड़को पर नमाज़ पढ़ना । अब ज़रा ग़ौर करे, जब कई धार्मिक अवसरों पर मंदिरों में भीड़ अधिक हो जाती है तो लोग सड़कों तक आ जाते हैं और पूजा आदि में भाग लेते हैं। तो पुष्पेंद्र के इस तर्क (लॉजिक) से तब क्या वे यह कहेंगे कि मंदिरों की हिन्दू धर्म में कोई अहमियत नहीं है?

    अतः उनकी यह दलील ना केवल बेबुनियाद है बल्कि बड़ी ही तर्कहीन (Illogical) भी है और कोई बिना धर्म का ज्ञान रख कर ही अगर लॉजिक का ही इस्तेमाल करे तो समझ लेगा की यह व्यक्ति कैसे वेवजह लोगों का ब्रेन वाश कर रहा है।

    3. इस्लामिक दलीलों से जवाब:-

    वैसे तो पूरी दुनिया ही अल्लाह की है और इस्लाम एक वास्तविक व व्यवहारिक (प्रेक्टिकल) मज़हब है, इसलिये मुस्लिम अगर मस्जिद ना पहुँच पाए तो कहीं भी स्वच्छ जगह पर वह नमाज़ अदा कर सकता है लेकिन इससे मस्जिद की अहमियत कोई कम नहीं हो जाती।

    और उससे बड़ा अत्याचारी कौन होगा, जो अल्लाह की मस्जिदों में उसके नाम का वर्णन करने से रोके और उन्हें उजाड़ने का प्रयत्न करे? उन्हीं के लिए योग्य है कि उसमें डरते हुए प्रवेश करें, उन्हीं के लिए संसार में अपमान है और उन्हीं के लिए आख़िरत (परलोक) में घोर यातना है।
    (क़ुरआन 2:114)

    और ये कि मस्जिदें अल्लाह के लिए हैं। अतः, मत पुकारो अल्लाह के साथ किसी को।
    (क़ुरआन 72:18)

    इसके अलावा क़ुरआन की कई आयतों और कई हदीसों से साबित होता है कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का ज़रूरी हिस्सा है। इतना ही नहीं कई हदीसो से यह भी स्पष्ट है कि बिना किसी मजबूरी के अगर कोई शख़्स अपने घर में फ़र्ज़ नमाज पढ़ता है और मस्जिद नहीं जाता तो उसकी नमाज़ होती ही नहीं है।

    हुज़ूर-ए-पाक सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब मक्के से मदीना के लिए जा रहे थे तो उन्होंने रास्ते में सबसे पहले मस्जिद-ए-क़ुबा की स्थापना की थी। इस्लाम की ये पहली मस्जिद मानी जाती है। इसके बाद आपने मदीने में मस्जिद-ए-नबवी की स्थापना की।

    इस्लाम में मस्जिदों का बहुत अहम मर्तबा (विशेष स्थान) है। अतः यह कहना बिल्कुल ही बेबुनियाद और अज्ञानता है कि इस्लाम में मस्जिद की कोई अहमियत नहीं है।

  • हज के बारे में झूठ का जवाब।

    जवाब:- एक पोस्ट “हज में ऊँटनी प्रेम कथा” के नाम पर हज के समय ऊँटनी के साथ सहवास का निराधार आरोप लगाया जा रहा है।

    इस तरह की पोस्ट पर वैसे तो कुछ भी लिखने कि कोई ज़रूरत नहीं होती है। क्योंकि एक समझदार इंसान इसको पढ़ कर ख़ुद ही समझ लेगा कि ये झूठ है। जिसका हक़ीक़त से कोई वास्ता नहीं है।

    इतना बुद्धिहीन फेक मैसेज होने के बावजूद गलतफहमी निवारण ग्रुप इसका जवाब उन लोगों के लिए लिख रहा है, जिनका दिमाग़ इस तरह कि कई नफरती फेक मैसेज के आधार पर इतना कुंद हो चूका है कि वे सच और झूठ में अंतर ही नहीं कर पाते है।

    दूसरा मकसद इस जवाब का इस और ध्यान दिलाना है कि इस्लाम में पाकीज़गी, शील, शिष्टता एवं लज्जा के कितने उच्च पैमाने हैं। जिसमें किसी तरह की निर्लज्जता की कोई जगह नहीं है। इन उच्च आदर्शों को छुपाने के लिए इस्लाम से नफ़रत रखने वाले इस पर घिनौने मनगढ़ंत आक्षेप करते हैं ताकि लोगों का इस तरह ध्यान ना जाए और वे इस्लाम से आकर्षित होने की बजाए दूर रहें।

    आइए संक्षिप्त में देखते हैं :-

    इस्लाम में पवित्र समाज और चरित्र के निर्माण के लिए औरतों और मर्दो दोनों के लिये हिजाब का हुक्म है। यहाँ तक कि बदनज़री और अपनी आंखों तक कि हिफाज़त करने का आदेश दिया गया है ताकि किसी भी तरह की बेपर्दगी और बेहयाई के दर्शक तक ना बनें।

    फ़रमाया क़ुरआन में –

    आप ईमान वालों से कह दीजिए कि वह अपनी निगाहों को नीचा रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाजत करें। यह उनके लिए ज़्यादा पाक़ीज़ा बात है। बेशक अल्लाह तआला को पूरी ख़बर है उन कामों की जो वह करते हैं।
    (सूरह नूर: 30)

    और फ़रमाया

    और तुम ज़िना (नाजायज सम्बन्ध, व्यभिचार) के करीब भी न जाओ। वह बेहयाई का काम और बुरा तरीक़ा है।
    (सुरह बनी इसराईल: 32)

    यानी की नाजायज़ सम्बन्द्ध बनाने तो बहुत दूर, ऐसे किसी भी कृत्य जो आपको इस ओर लेकर जाए उससे दूरी तक बनाने का हुक्म दिया गया है। (..करीब भी ना जाओ)

    इस्लाम में यह बातें सिर्फ़ आदेशों तक ही सीमित नहीं रखी गई बल्कि इन को अमल में लाने के पूरे प्रावधान हैं। जैसे जहाँ पर्दे के हुक्म हैं वही इन आदेशों को ना मानने वालों और व्यभिचार करने वालों को सख्त सज़ा, जिसमें कोड़े लगाने से लेकर मृत्युदण्ड तक देने का भी प्रावधान है।
    देखें (सुरः नूर आयत 2)

    सामान्य बुद्धि की बात है कि जिस धर्म में औरत-आदमी के बीच ही अनैतिक सम्बन्धों की सख्त मनाही हो और उस पर सख्त सज़ा का प्रावधान हो वहाँ अप्राकृतिक यौन सम्बन्द्ध (समलैंगिकता, पशु सम्बंध, आदि अन्य किसी भी प्रकार के) कितना बड़ा अपराध होगा ? लेकिन फिर भी यह लोग अपना यह घटिया निराधार आरोप सिद्ध करने के लिए कुछ भी झूठे और मनगढ़ंत हवाले लिख देते हैं जिनकी सत्यता कुछ नहीं होती है।

    जबकि यदि आप ख़ुद इस्लाम का अध्ययन करेंगे तो आप पाएंगे कि इस्लाम में हर तरह के अप्राकृतिक यौन सम्बन्ध के हराम (मना / वर्जित) होने के अनेक हवाले मौजूद है साथ ही यह और भी बड़ी श्रेणी का अपराध है। जैसे:-

    *और लूत को भी हम ही ने फ़हमे सलीम और नबूवत अता की और हम ही ने उस बस्ती से जहाँ के लोग बदकारियाँ करते थे नजात दी इसमें शक नहीं कि वह लोग बड़े बदकार आदमी थे।*
    (क़ुरआन 21 :74)

    (कौम-ए-लूत के लोग अप्राकृतिक यौन सम्बन्ध बनाते थे और उन्होंने ही इसकी शुरुआत की इसलिए इस कृत्य को कौम-ए-लूत के कृत्य के नाम से जाना जाता है।)

    इब्ने अब्बास से रिवायत है कि फ़रमाया सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम ने… लानत है उन लोगों पर जो जानवरों के साथ यौन सम्बन्ध बनाये, लानत है उन लोगों पर जो कौम-ए-लूत का कृत्य करें…
    (सहीह अल जामी 5891)

    और अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास से रिवायत हदीस सुन्न अबु दाऊद नम्बर 38 : 4447 में इस कृत्य (अप्राकृतिक यौन सम्बन्धों) की सज़ा को मृत्युदण्ड बताया गया है।

    इस तरह हमने जाना कि एक घटिया कृत्य जो इस्लाम में पूर्ण रूप से वर्जित है उसे ही इस्लाम के अहम अरकान हज से जोड़ कर इस्लाम जैसे पाकीज़ा (पवित्र) धर्म की ग़लत छवि बनाने का कुप्रयास किया गया।
    ताकि लोग सत्य से दूर रहे हैं और नफ़रत में ही जीते रहें।