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  • मुसलमान असुरों के वंशज हैं ?

    मुसलमान असुरों के वंशज हैं ?

    जवाब:- सबसे पहले तो आप ज़रा ये बताये की यह सब बातें आपने अपने कौन से धर्म ग्रन्थ से ली हैं? कौन से वेद, पुराण, रामायण में यह लिखा है? ज़रा इसका संदर्भ (रेफरेंस) तो बताएँ?

    यहाँ कही बातों का कोई आधार ही नहीं है किसी हिन्दू धर्म ग्रन्थ में ऐसा कोई उल्लेख ही नहीं है।

    वैसे तो ना इस्लाम में कोई वंशवाद / नस्ल / जातिवाद है। ना ही मक्का मदीना में कोई शिवलिंग है। बल्कि दुनियाभर में हर नस्ल हर रंग के मुस्लिम हैं जिनके पूर्वज भी भिन्न हैं।

    लेकिन इस कहानी को फिर भी सच मानने वालों को बुद्धि का प्रयोग कर ख़ुद ही थोड़ा विचार करना चाहिए।

    ❗ यह इतना तर्कहीन और मूर्खतापूर्ण इसलिए भी है कि हिन्दू धर्म का अल्प ज्ञान रखने वाला भी यह बात जानता है कि श्री राम त्रेता युग में हुए थे और इस पोस्ट के अनुसार यह घटना त्रेता युग की हुई जबकि देवताओं, ऋषि मुनियों का असुरों से युद्ध तो कई युगों बाद तक चलता रहा।

    जैसे हिन्दू धर्म ग्रँथों के अनुसार ख़ुद श्री कृष्ण ने बकासुर, अघासुर, केशी असुर आदि से युद्ध किया और उनका नाश किया। सभी जानते हैं श्री कृष्ण द्वापर युग में हुए।

    अतः श्री राम और श्री कृष्ण में त्रेता युग और द्वापर युग के बीच हिन्दू मान्यताओ के अनुसार हज़ारों लाखों वर्षों का अंतर है। तो यदि इस बात में कुछ सच्चाई होती तो क्यों इन हज़ारों वर्षों तक असुरों से युद्ध करते रहने की बजाय किसी ने रेगिस्तान में जाकर शिव लिंग पर गंगा जल क्यों नहीं चढ़ा दिया जिससे कोई असुर बचता ही नहीं? इसका मतलब तो यह हुआ वे व्यर्थ ही लड़ते रहे? उन देवताओं यहाँ तक कि श्री कृष्ण को भी इस बात की जानकारी नहीं थी? जो बात इस व्हाट्सएप ज्ञाता को 21वी सदी में आकर मालूम हो गई?

    अतः ग्रथों की जांच नहीं कर सकते तो कम से कम अपनी बुद्धि और सामान्य ज्ञान का ही थोड़ा प्रयोग करें।

    वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इसी व्हाट्सएप फ़र्ज़ी ज्ञान को सही समझ कर बीजेपी के उत्तर प्रदेश के मंत्री रघुराज सिंह ने इसे अपने बुर्क़ा बेन की मांग में दिये भाषण में उल्लेख कर अपनी फजीहत करवा ली थी और चौतरफा हँसी के पात्र बन गए थे। विश्वभर की मीडिया के सामने फजीहत (BJP Minister’s Bizarre tale / बीजेपी के मंत्री ने सुनाई विचित्र कहानी) करा बैठे रघुराज जी की इस कहानी से मुसीबत में फंसता देख बीजेपी ने तुरन्त इस बयान से अपना पल्ला झाड़ा और उन्हें नोटिस थमाते हुए उक्त कहानी को उनकी निजी सोच बताया था।

    यानी झूठ की बुनियाद पर नफ़रत फैलाने वाले इतना गिर चुके हैं कि दूसरे धर्मो को तो छोड़िये अब वे ख़ुद के धर्म के बारे में ही झूठ गढ़ने लगे हैं और अपमानजनक कृत्य कर रहे हैं। अतः इस पर तो सबसे पहले ख़ुद समझ रखने वाले हिंदू भाइयों को चिंता कर इस पर संज्ञान लेकर इसे रोकना चाहिए।

  • मुस्लिम हर देश मे लड़ क्यों रहे हैं?

    मुस्लिम हर देश मे लड़ क्यों रहे हैं?

    जवाब:– इसका उत्तर बिल्कुल इसी मैसेज में ही मिल जाएगा।

    उनकी इस लिस्ट में कि मुस्लिम हर देश में लड़ रहे हैं वे भारत के बारे में कहते हैं कि भारत में हिंदुओं से लड़ रहे हैं?

    कहाँ लड़ रहे हैं भाई? अब ज़रा बताएँ की यह बात किस बुनियाद पर कही गई? जिस तरह यह झूठ गढ़ लिया गया है वैसे ही पूरी दुनिया के बारे में गढ़ कर वह बात साबित करने की कोशिश की जा रही है जो वास्तव में है ही नहीं।

    (यहाँ illusory correlation और confirmation bias techniques का इस्तेमाल किया जा रहा है जिसे *ब्रेन वाशिंग प्रक्रिया* को जानने वाले आसानी से समझ सकते हैं।)

    भारत में ना मुसलमान-हिंदुओं से लड़ रहे हैं ना ही हिन्दू-मुसलमानो से लड़ रहे हैं। बल्कि दोनों एक दूसरे का साथ देकर महामारी से ज़रूर लड़ रहे हैं।

    हाँ! लेकिन यह बात ज़रूर है कि कुछ लोग 24 घण्टे हिन्दू-मुस्लिमो को लड़ा कर धर्म की राजनीति पर रोटी सेक कर सत्ता में बने रहने का अथक प्रयास ज़रूर कर रहे हैं और यह लोग कौन हैं यह बताने की ज़रूरत नहीं।

    अब आपको क्या लगता है? अल्पसंख्यको के धर्म को बुनियाद बना कर सत्ता हासिल करने का यह बड़ा ही आसान-सा जो गोल्डन फार्मूला है वह विदेशियों को नहीं पता होगा यह सिर्फ़ हमारे देश के नेताओ को पता है?

    बिल्कुल नहीँ। बल्कि यह तो राजनीति की किताबों में लिखा है। अब चूंकि मुस्लिम सिर्फ़ एक देश के वासी तो हैं नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हर नस्ल के हैं औऱ दुनिया के हर देश में हैं। तो स्वभाविक-सी बात है कि कई देशों में प्रमुख अल्पसंख्यको का धर्म इस्लाम ही है। अब या तो इसे इस्लाम की विशेषता कहें या कुछ औऱ।

    इसीलिए यह जो अल्पसंख्यको के धर्म की बुनियाद पर राजनीति की जाती है उसमें अक्सर मुस्लिम ही केन्द्र में होते हैं।

    तभी तो बताएँ इजराइल में बहुमत ना मिलने पर और सरकार ना बना पाने पर 1 साल का एक्सटेंशन और जनता का भावनात्मक सपोर्ट नेतन्याहू को फिलिस्तीन पर हमला करने के सिवा और कैसे हासिल हो सकता था?

    भला जिन देशों में औरतों के नग्न घूमने पर किसी को आपत्ति नहीं और इसे औरत की मर्ज़ी बताया जाता है उस देश में औरत की मर्ज़ी से चेहरा ढंकने पर हंगामा कर इसे रूढ़िवादिता बता कर राजनीति करने का मौका कैसे मिल पाता?

    म्यानमार हो या श्री लंका हर जगह यही है कि अल्पसंख्यको को केंद्र बनाओ बहुसंख्यको को भड़काओ और राजनीति करो।

    लेकिन इसके उलट अगर हम उन देशों की बात करें जहाँ मुस्लिम अधिक हैं और दूसरे धर्म के लोग वहाँ कम है तो आप यह पैटर्न कम ही देखेंगे। UAE, क़तर, ओमान, कुवैत, अरब, बहरीन में इस तरह की कोई बात नहीं देखी जाती वहाँ क्या दूसरे धर्मों के लोगों से बहुसंख्यक मुस्लिम लड़ रहे हैं?जबकि इन सभी देशों में मुस्लिम 70% से अधिक हैं?

    यदि आप खाड़ी देशों के अलावा देखना चाहते हैं तो एशिया में आप मलेशिया, इंडोनेशिया, ब्रुनेई देख लें। वहाँ भी यही स्थिति है।

    यह भी पर्याप्त नहीं तो फिर तुर्की, जॉर्डन, लेबनान, मोरक्को, मिस्र(इजिप्ट) देख लें। इनके अलावा भी देखना है तो अल्बानिया, सेनेगल, मालदीव, उत्तरी सायप्रस आदि और भी कई देश हैं जहाँ मुस्लिम बहुसंख्यक है और दूसरे धर्मों के लोग सदियों से सुरक्षित औऱ सम्पन्नता से रह रहे हैं और वहाँ इस तरह से कभी नहीं सुना जाता कि रोहिंग्या की तरह पूरी की पूरी किसी दूसरे धर्म की आबादी को निष्कासित कर दिया गया हो।

    लेकिन इस तरह की राजनीति और बातें हम उन देशों में ज़रूर सुनते हैं जहाँ मुस्लिम अल्पसंख्यक हों उसके बाद भी इसका दोष भी उल्टा उन्हीं पर लगा दिया जाता है।

    हालाँकि इसके दुष्परिणाम बाद में वह देश व ख़ुद भुगतते है जैसे आज इस मार्ग पर आगे चला म्यानमार बर्बाद हो कर भुगत रहा है और ख़ुद हमारा देश इस अल्पसंख्यको केंद्र बना कर की गई धर्म और नफ़रत की राजनीति में अंधा होकर इस महामारी में बहुत कुछ भुगत चुका है।

    इसलिए समय है कि बेवजह के ब्रेन वाश करने वाले इन मैसेज को भेजने वाले और धर्म की राजनीति करने वाले ऐसे लोगों को अब ठीक से पहचान लिया जाए। क्योंकि जहाँ कहीं भी कोई लड़ रहा है उनके पीछे इन लोगों की मानसिकता और तंत्र ही काम कर रहा है जिस से देश और देशवासियों सभी का नुक़सान होता है।
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    सीरिया में मुस्लिम आपस में लड़ रहे हैं? इस बारे में पहले जवाब दिया जा चुका है जिसे हमारी website पर इस लिंक के ज़रिए पढ़ा जा सकता है। 👇
    https://islamconnect.in/2021/05/27/3775/

     

  • नफ़रत फ़ैलाने वाली एक पोस्ट का जवाब दीजिए ? (#1 )

    नफ़रत फ़ैलाने वाली एक पोस्ट का जवाब दीजिए ? (#1 )

    जवाब :-ब्रेन वाशिंग के ज़रिए कैसे आपके दिलों में अपने मुस्लिम मित्रों के लिये नफ़रत भरकर आप से राजनीतिक लाभ उठाया जाता है यह पोस्ट उसका शानदार उदाहरण है।

     

    आइए दिमाग़ खुला रखकर इस पोस्ट पर ध्यान दें और इसकी चतुराई देखें।

     

    पोस्ट शुरू होती है यहाँ से:-

     

    *मेरे भी मुस्लिम मित्र हैं*

    *मेरे भी क्लास में मुस्लिम पढ़े हैं*

    *मेरे भी आफिस में मुस्लिम काम करते हैं*

    *मैं जहाँ से सामान लेता हूँ वहाँ से मुस्लिम भी सामान लेते हैं*

    *मैं जहाँ रहता हूँ वहाँ भी मुस्लिम रहते है*

     

    इन सभी बातों में आश्चर्य की क्या बात है? यह तो बहुत ही सामान्य-सी बात है तब फिर यहाँ से शुरू करने की क्या ज़रूरत पड़ी?

     

    एक सामान्य-सी बात से शुरू करके जो सभी पर लागू होती है यानी विषय समायोजन (Theme setting), द्वारा आपका इस पोस्ट से जुड़ाव बनाया जा रहा है ताकि आप इससे जुड़ने लगें और आपके ध्यान में आपके मित्र और दूसरे जान-पहचान के मुस्लिम आ जाएँ जिनके ख़िलाफ आपको भड़काया जाना है।

     

    अब आगे बढ़ें:-

    वे कहते है, हम जुमे की नमाज पढ़ेंगे, सड़को पर मैंने भी कहा कोई बात नहीं, संविधान ने सबको धार्मिक आजादी का हक़ दिया है।

     

    अब जुड़ाव जोड़ने के बाद, अपना षड्यंत्र चालू किया गया है। बड़ी ही चालाकी से आपका ध्यान चयनात्मक दृष्टिकोण (Selective approach) से सिर्फ़ मुस्लिमों पर लगा कर कैसे नफ़रत भरी जा रही है वह देखिये।

     

    अरे भाई नमाज़ अदा की जाती है मस्जिद में, जैसे पूजा आरती होती है मंदिरों में। लेकिन मंगलवार, शनिवार आदि विशेष अवसरों पर जब लोग अधिक हो जाते हैं तो मन्दिर फुल हो जाने पर लोगों का जमावड़ा सड़कों तक हो जाता है और इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होती । आप यहाँ जुमे का तो ज़िक्र कर रहे हैं लेकिन इन सब को छुपा रहे हैं और इस बात को कुछ अलग ही दिखाने का निर्लज्ज कुप्रयास कर रहे हैं।

     

    आगे पढ़ते हैं:-

    वे कहते है हम मांस खायेंगे, अब वह बकरे का हो या किसी और का

    मैंने कहा कोई बात नहीं, संविधान ने सबको हक़ दिया है कुछ भी खाने पीने का।

     

    अब मांसाहार के ज़रिए आपके मन में मुस्लिमों के लिये नफ़रत का प्रयास के लिए एक बार फिर *चयनात्मक दृष्टिकोण (Selective approach)* का प्रयोग जारी रखा गया है । भारत में 72% जनसंख्या मांसाहारी है। जबकि मुस्लिम मात्र 15% हैं। अतः यह कुप्रयास और इसका इरादा उजागर है ।

     

    और आगे पढ़ें:-

    अब मैंने कहा, “कॉमन सिविल कोड” आना चाहिए। तो वह बोला नहीं, ये इस्लाम के ख़िलाफ है।

     

    यह देखिये चयनात्मक दृष्टिकोण (Selective approach) का प्रयोग। देश में सिर्फ़ मुस्लिमों के लिए ही पर्सनल लॉ बोर्ड नहीं है। सिख हथियार रखते है, आदिवासी धनुष और शराब रखते है, जैन / नागा-साधू बिना वस्त्र के रहते है। कुछ के यहाँ जीवित समाधि लेने की प्रथा है ये सब अपने धर्म के व्यक्तिगत कानून (Personal law) के कारण ऐसा कर सकते है। जबकि दूसरे धर्म के लोगों के लिए इस पर सजा का प्रावधान है। इसी तरह शादी, जन्म-मृत्यु पर जो भी रीति-रिवाज हैं वह संविधान द्वारा दिए गए पर्सनल लॉ के कारण ही है। लेकिन यह सब छुपा कर सिर्फ़ मुस्लिमों का चित्रण, अपना प्रोपेगेंडा करने के लिए किया जा रहा है।

     

    और आगे पढ़ें:-

    *मैंने कहा, “जनसंख्या रोकथाम के लिए कानून बनना चाहिए।” तो वह बोला, ये इस्लाम ले ख़िलाफ है।*

     

    जनसंख्या रोकथाम कानून कौन से धर्म के ख़िलाफ नहीं है ज़रा यह बताने का कष्ट करे? कौन-सा धर्म कहता है कि जनसंख्या रोकथाम करो? यह तो सिर्फ़ एक विचार है जो सिर्फ़ प्रचार प्रसार ले चूका है। चीन भी जनसंख्या नियंत्रण कानून रद्द करने का फ़ैसला ले चूका है। लेकिन इसके लिए आप सिर्फ़ इस्लाम के ख़िलाफ का प्रोपेगेंडा क्यों कर रहे हैं ? बात जब धर्म की करें तो विभिन्न धर्मों के आधार पर ही करें। एक गैर धार्मिक मुद्दे में विशेष तौर से सिर्फ़ इस्लाम धर्म को बीच में लाने की क्या मंशा है?

     

     

    *मैंने कहा, “तलाक़ सिर्फ़ कोर्ट में हो।” तो वह बोला, ये क़ुरआन का अपमान है।*

     

    भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार हिन्दू समाज में कुल 11 लाख तलाक़ हुए और 23 लाख महिलाये बिना तलाक़ के ही अलग रह रही है। इसका मतलब कोर्ट से ज़्यादा तलाक़ तो समाज में होते है। (वास्तविक आंकड़े सरकारी आंकड़ों से ज़्यादा है)

     

    मैंने कहा, “बहुपत्नी प्रथा बंद हो।” तो वह बोला, ये इस्लाम के ख़िलाफ है।

     

    कमाल की बात है आप को इस्लाम और मुस्लिमों के अंदुरूनी मामले की इतनी चिंता क्यो है? शादी के बिना कई स्त्रियों से कोई सम्बन्ध बनाये तो आपको चिंता नहीं। कानून इस बात की इजाज़त दे कि शादी के बाद भी किसी और से अपनी मर्ज़ी से विवाहेत्तर सम्बन्ध बनाये तो आपको कोई आपत्ति नहीं। लिव-इन में रहे आपको कोई आपत्ति नहीं। बिना तलाक दिए बीवी छोड़ दे आपको दिक्कत नहीं।

     

    लेकिन अगर मुस्लिम बहु विवाह करे तो दिक्कत है? एक बात और ग़ौर करें कि अभी तक इस मैसेज में आपको भावनात्मक जोड़ने के बाद आपके मतलब की एक बात भी नहीं की जा रही जैसे, गिरती अर्थव्यवस्था, महंगाई, बेरोजगारी, पेट्रोल-डीज़ल के दाम। बस सारी बातें मुस्लिमों और उनके अंदरूनी मामले पर ही। कमाल के समाज सुधारक / हितैषी है ये आपके? समाज सुधारक है या ध्यान भटकाऊ? यह आपको सोचना है।

     

     

    अब इस मैसेज में आगे बढ़ें और देखें *पाखंड (Hypocrisy)* का प्रयोग:-

     

    *मैंने बोला, “बांग्लादेशियों को वापस भेजना चाहिए।” वह बोला, वे हमारे मुस्लिम भाई है। मैंने कहा, “रोहिंग्या को वापस भेजो।” वह बोला, वे हमारे भाई है।*

     

    आस पड़ोस के जितने देश है उनमें अगर कहीं हिंदुओं पर कोई प्रताड़ना की ख़बर भी मिल जाये तो ये लोग उनके लिए खूब आवाज़ उठाते हैं। उन्हें अपना भाई बताकर उन्हें भारत में लाकर भारत की नागरिकता देने के किये ही CAA कानून लाया गया है । अच्छी बात है करना भी चाहिए।

     

    लेकिन ठीक इसी तरह अगर कोई मुस्लिम, किसी देश में हो रहे मुस्लिमों पर अत्याचार और उनके घोषित निष्कासन और प्रताड़ना पर ज़रा-सी चिंता भी अगर ज़ाहिर कर दे तो एकदम से दृष्टिकोण बदल जाता है उसे देशद्रोही और पता नहीं क्या-क्या कह कर देश का दुश्मन ही साबित कर दिया जाता है। अतः यह पाखंड क्यों ? *यह दोहरा मापदंड क्यों?*

     

    और आगे पढ़ें –

    *मैंने बोला, “राम मंदिर बनना चाहिए।” वह बोला, कहीं भी बना लो पर अयोध्या में नहीं..वहाँ बाबरी मस्जिद बनेगी।*

     

    सुप्रीम कोर्ट में सदियों से बोला जा रहा प्रोपेगेंडा, झूठ साबित हुआ। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इस बात के कोई सबूत नहीं कि मंदिर गिरा कर मस्जिद बनाई गई हो। उसके बाद भी फ़ैसला राम मंदिर पक्ष में आया। इतना संवेदनशील मामला होने पर भी देश भर के मुस्लिमों ने उसे आत्मसात किया और आज वहाँ मंदिर बन रहा है।

     

    इस बात पर मुस्लिमों की सराहना करने और सद्भावना बनाने की बजाय यह लोग नई लिस्ट निकाल कर अगली कई सदियों तक देश को हिन्दू-मुस्लिमों मामले में उलझाए रखना चाहते हैं।

     

    *मैंने कहा, “मदरसे बंद हो, सबको समान शिक्षा मिले।” वह बोला, ये इस्लाम का अपमान है।*

     

    आप पहले तो यह बताएँ की आप यह क्यों कह रहे हैं कि मदरसे बन्द हो ?🤔 आप की मंशा शिक्षा देने की है या मदरसे बन्द करने की? सबको शिक्षा देने के लिए मदरसे बन्द करने की क्या ज़रूरत ? क्या तर्क है या मूर्खता। सबको शिक्षा दें शिक्षा का स्तर ऊंचा करें, मदरसे तो ख़ुद स्वचलित होते हैं। उनको बीच में लाकर अपनी ज़िम्मेदारी से क्यों भाग रहे हैं?

     

    इतना *ब्रेन-वाश* करने बाद अब आप आगे देखेंगे मैसेज का असली एजेंडा –

     

    *मैंने बोला, “मोदी ने ये अच्छा किया।” वह बोला, गुजरात में मुसलमानों के साथ ग़लत हुआ।*

     

    तो कुल मिलाकर बात यह है कि मोदी समर्थन। जो अब खुल के सामने आ जाता है। लेकिन पढ़ने वाला ये समझ नहीं पाता ।

     

    और आगे देखें –

    *मैंने बोला, “बंगाल में हिंदू के साथ ग़लत हो रहा है।” वह बोला, दीदी ने बहुत विकास किया है।*

     

    अब एजेंडा खुल के सामने आ गया बंगाल चुनाव और मोदी समर्थन-

     

    अब इसमें भी 2 मुख्य बिंदुओं पर ग़ौर करें-

     

    १. जितनी भी विरोधी पार्टी है उन्हें मुस्लिम समर्थक बता दिया जाता है।

     

    _”बंगाल के मुसलमान मानव विकास सूचकांक में किसी भी अल्पसंख्यक की तुलना में सबसे खराब हालत में है!”_अरे भाई इन सब पार्टियों ने कौन से मुस्लिमों का भला कर दिया? जो वे ममता की तारीफ करेंगे।

     

    २. जिस तरह मोदी जी 3 बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने वैसे ममता बैनर्जी भी बंगाल की मुख्यमंत्री बनी।

     

    पिछ्ले बिंदु में आपने अपने ही शब्दो में लिखा जिसके अनुसार आप यह कह रहे हैं कि मोदी ने अच्छा किया तो किसी को यह नहीं कहना चाहिए कि गुजरात में मुस्लिमों के साथ ग़लत हुआ। लेकिन अगर कोई यह कहे कि ममता ने बंगाल में अच्छा किया तो आप यह ज़रूर कहेंगे कि बंगाल में हिंदुओं के साथ ग़लत हुआ। वाह भाई कमाल की *हिपोक्रेसी (hypocrisy)* है, ख़ुद अपने शब्दों में एक ही मैसेज में सारी सीमाएँ पार कर रहे हो ।

     

    इसके बाद अंत में फिर एक-दो इधर-उधर की बात करके असली एजेंडे को उजागर किये बिना आपको मुस्लिमों की नफ़रत में लगा कर मैसेज का समापन किया जाता है।

     

    *मैंने बोला, “सारे आतंकवादियों को गोली मार देनी चाहिए। “वह बोला, सुधरने का एक मौका दो।*

    यह एकदम मनगढ़ंत बात कही गई है।

     

    मैंने बोला, “कश्मीरी पंडितों को उनका घर मिलना चाहिए।”

    यह बात आप उस काल्पनिक मुस्लिम से क्यों कह रहे हैं ? यह बात तो आपको सरकार से कहनी चाहिए । अब तो पुरा अधिकार उनका है और यह उनका वादा भी था। तो अब क्या हुआ? क्या वे उन्हें वापस भेजना नहीं चाहते या वे अब वापस जाना ही नहीं चाहते??

     

    *भाई. . .सारे मुसलमान एक ही होते है। जहाँ कम है, वहाँ सॉफ्ट है। जहाँ ज़्यादा है, वहाँ रोज़ हिन्दू मर रहे है।*

     

    *जहाँ कम है, वहाँ उन्हें आपसे रोजगार मिलता है..इसलिए आपके दोस्त है। जहाँ कम है, वहाँ तुम्हारे भाई है।*

    *पर जहाँ ज़्यादा है…..वहाँ आप सोच भी नहीं सकते।*

     

    क्यों नहीं सोच सकते ? सोचो भाई UAE, कतर, ओमान, बहरीन, सऊदी, खाड़ी के 22 देश, उसके बाद मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया और भी कई देश जहाँ मुस्लिमों की संख्या हिंदुओं से कहीं ज़्यादा है ! और रोजगार भी हिंदुओं को मुस्लिमों से ही मिल रहा है क्या वहाँ हिंदू शांति और सुरक्षा से नहीं रह रहे? अगर यह प्रोपेगेंडा सच होता तो हर साल कई गैर मुस्लिम वहाँ क्यों बस रहे है? सत्य तो यह है कि यह बिलकुल झूठ है। एक नहीं अनेक देश हैं जहाँ मुस्लिम बहुसंख्यक हैं और हिन्दू वहाँ शांति से रह रहे हैं।

     

    इसके उलट यह ज़रूर है कि ऐसी भी जगह हैं जहाँ मुस्लिम कम है वहाँ उनके साथ बहुत अत्याचार हो रहा है जैसे रोहिंग्या का ज़िक्र तो इस मैसेज में ही हो चुका लेकिन इसके लिए धर्म नहीं बल्कि नफ़रत फैलाने वाले ही ज़िम्मेदार होते हैं ।

     

    दरअसल यह नफ़रत फैलाने वाले सभी एक जैसे ही होते हैं जहाँ ज़्यादा हो जाते हैं उस जगह रक्तपात और गृह- युद्ध की नौबत ला देते हैं और जहाँ कम होते हैं वहाँ ऐसे ही झूठे मैसेज लिख लोगों को भड़काने का प्रयास करते रहते हैं ।

     

    अब सोचना आपको है। अंधकार में न रहें। *ब्रेन-वाश* से बचें!