सवाल:- इस्लाम में गैर-मुस्लिमों के साथ बर्ताव? के नाम से एक विडियो वायरल की जा रही है जिसमें कई मुस्लिम वक्ता कहते दिख रहे हैं कि गैर-मुस्लिमों के साथ ग़लत व्यवहार करना चाहिए।

जवाब:-  इस विडियो में इस्तेमाल की गई 2 विडियो कटिंग की पूरी विडियो आप ख़ुद देखें और इसकी सत्यता की जाँच स्वयं करें 👇

https://youtu.be/8t28RtIEayA (0:38 से 3:25 तक)

https://youtu.be/M0PF2NCLcW4 (0:10 से 3:00 तक)

जिस तरह से क़ुरआन की आयातः को काट-छाँट कर ग़लत तरीके से पेश किया जाता रहा है, ठीक वैसा ही अब कई विडियो को काट-छाँट कर कुछ का कुछ बता कर पेश किया जाने लगा है। जैसे इस विडियो में पता नहीं कहाँ-कहाँ की विडियो को इस्तेमाल करते हुए किया गया और उपर्युक्त विडियो को पूरा देखने पर आपको इस चालबाज़ी का स्वयं अनुभव हो गया होगा।

दरअसल इस्लाम में इंसान के जीवन के हर पहलू के बारे में मार्गदर्शन मौजूद है चाहे वह कोई भी पहलू क्यों ना हो। ऐसे ही अत्याचार और अन्याय के बारे में भी है। इस्लाम ना केवल अत्याचार करने से रोकता है बल्कि इंसान को अत्याचार के खिलाफ लड़ने और ख़त्म करने का भी हुक्म देता है ना कि अत्याचार और अन्याय सहने का।

ऐसे ही अगर कोई मुस्लिमों पर ज़ुल्म करे, उन्हें यातनाएँ दें उनकी जान और महिलाओं की इज़्ज़त का हनन करे, उन्हें उनके घरों से निकाल दे, सिर्फ़ मुस्लिम होने की वज़ह से उनका बॉयकॉट कर अत्याचार करे। तो निश्चय ही क़ुरआन ऐसे गैर-मुस्लिमों से अत्याचार के खिलाफ लड़ने और अत्याचार ख़त्म करने का हुक्म देता है, जिसका ज़िक्र इन आयातः में है।

जिन्हें संदर्भ से हटा कर आम हालात में प्रस्तुत करने का कुप्रयास किया जाता है।

जबकि स्पष्ट रूप से इस्लाम आम हालात में उपर्युक्त बताए अत्याचारी गैर मुस्लिमों के अलावा आम गैर-मुस्लिमों (काफ़िरों) से अच्छा व्यवहार और परोपकार करने का हुक्म देता है और इसके अनेक उदाहरण मौजूद हैं:-👇

  • ★ [60:8] अल्लाह तुम्हें इससे नहीं रोकता है कि तुम उन लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करो और उनके साथ न्याय करो, जिन्होंने तुमसे धर्म के मामले में युद्ध नहीं किया और ना तुम्हें तुम्हारे अपने घर से निकाला निस्संदेह अल्लाह न्याय करने वालों को पसंद करता है।
  • ★ [60:9] अल्लाह तो तुम्हें केवल उन लोगों से मित्रता करने से रोकता है जिन्होंने धर्म के मामले में तुमसे युद्ध किया और तुम्हें तुम्हारे अपने घरों से निकाला और तुम्हारे निकाले जाने के सम्बन्ध में सहायता की. जो लोग उनसे मित्रता करें वही ज़ालिम हैं।
  • ★ [04:36] और अल्लाह की इबादत करो और किसी चीज़ को उसका शरीक न बनाओ और माँ-बाप के साथ अच्छा सलूक करो और रिश्तेदारों के साथ और यतीमों और मुहताजों और रिश्तेदार पड़ोसी और अजनबी पड़ोसी और साथ उठने बैठने वाले और मुसाफ़िर के साथ और जिनके तुम मालिक हो (यानी नौकरों के साथ), बेशक अल्लाह पसंद नहीं करता इतराने वाले, बड़ाई जताने वाले को।
  • ★ ‘वह मोमिन नहीं जो ख़ुद पेट भर खाकर सोए और उसकी बगल में उसका पड़ोसी भूखा रहे।’
    (अल फिरदौस लिद्देल्मी 5/20 मुस्तदरक हाकिम 4/167)
    {पड़ोसी चाहे किसी भी धर्म का हो, आप मोहम्मद (स.अ.व.) के अनुसार आस-पास, आगे-पीछे के 40-घरों तक को पड़ोसी की श्रेणी में रखा गया है}
  • ★ अगर कोई मुसलमान ऐसा नहीं करता है… और गैर मुस्लिम पर ज़ुल्म / ज़्यादती करता है…तो फिर वह मुसलमान नहीं हो सकता और क़ुरआन उस मुस्लिम के बारे में सज़ा का हुक़्म देता है..!
  • ★ अल्लाह के रसूल (स.अ.व.) ने 3-बार अल्लाह की क़सम खाते हुए फ़रमाया के “अल्लाह की क़सम वह शख़्स मुसलमान नहीं जिसका पड़ोसी उसकी बुराई से महफूज़ नहीं।”
    (बुखारी 6016)
  • ★ अल्लाह के रसूल (स.अ.व.) ने फ़रमाया “जो कोई अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखता है वह अपने पड़ोसी को तकलीफ ना पहुँचाए”।
    (बुखारी 6018)
  • ★ [5:32] …..”जिसने कोई जान क़त्ल की, बग़ैर जान के बदले या ज़मीन में फसाद किया तो गोया उसने सब लोगों का क़त्ल किया और जिसने एक जान को बचा लिया तो गोया उसने सब लोगों को बचा लिया”…..।

अतः ज्ञात हुआ कि दिखाई गई विडियो इस्लाम के प्रति नफ़रत फैलाने का एक छल मात्र है और इस्लाम आम गैर-मुस्लिमों (काफ़िरों) से सदव्यवहार और परोपकार करने की शिक्षा देता है।

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