सवाल:-"मुसलमानों की क्या विचारधारा (आइडियोलॉजी) है कभी तुमने इस पर ग़ौर किया है"?

अभी कुछ दिन पहले मैं छुट्टी पर अपने घर गया हुआ था, शाम को मैं और पिताजी “ज़ी न्यूज़” पर सुधीर चौधरी वाला “DNA” देख रहे थे जिसमें बुरहान वानी और महिलाओं इस्लामिक आतंकवाद का मुद्दा चल रहा था।

अचानक पिताजी ने मुझसे पूछा “मुसलमानों की क्या आइडियोलॉजी है कभी तुमने इस पर ग़ौर किया है”

मैं थोड़ा संशय में पड़ गया आज पिताजी ने ये कौन-सा अजीब प्रश्न कर दिया, मैं कुछ जवाब देता उससे पहले ही पिताजी ने मुझसे कहा तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ।

 

“एक गाँव में एक संपन्न परिवार रहता था, उनके पास खेती बाड़ी और पशुओं की कोई कमी नहीं थी, परिवार में दो बेटे थे जो शादीशुदा और संपन्न थे लेकिन एक बेटा बेईमान था वह हमेशा किसी न किसी बात पर अपने माता पिता और भाई से झगड़ा करता रहता था, उसकी रोज़ की कलह कलेश को देखकर माता पिता ने सारी संपत्ति दो भागों में बाँट दी, वह क्लेशी लड़का अपनी सारी सम्पत्ति लेकर दूसरे गाँव में बस गया।

 

लेकिन उस बेईमान लड़के के भी एक लड़का और लड़की थी जो विभाजन के समय ये कहकर की “वह दादा और दादी को छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे वह दादा दादी को बहुत प्रेम करते हैं, वह हमेशा दादा दादी के साथ ही रहेंगें”

और वह दोनों दादा दादी के साथ रुक गये।

 

बूढे दादा दादी उन्हें बहुत प्यार करते थे, अब दादा दादी ने उन बच्चों का अच्छे स्कूल में दाख़िला कराया, उन्हें अच्छी-अच्छी व्यवस्था देने लगे। शुरुआती दिनों में उन बच्चों ने दादा दादी से कहा की वे कभी उन माता पिता के पास नहीं जाएँगे, दादा दादी ने बच्चों को समझाया की तुम हर महीने अपने माता पिता से मिल सकते हो। 

अब बच्चे हर महीने अपने माता पिता के पास जाते थे और दादा दादी के ख़र्चे से मौज उड़ाते थे। इस तरह उनका समय बीतता गया।

 

कुछ वर्षों बाद जब बच्चे बड़े हो गये, अब दादा दादी ने अपना हिस्सा बेचकर लड़के के लिए एक अच्छा व्यवसाय खुलवाया और लड़की के लिए एक अच्छा परिवार देखकर शादी कर दी, जिसमें दादा दादी ने अपनी सम्पत्ति का चौथाई हिस्सा दहेज़ में दे दिया।

 

अब लड़के ने अपने व्यवसाय में घाटा दिखा कर उस व्यवसाय को बचाने के बहाने दादा दादी से और रुपया ऐंठा, फिर लड़की ने भी अपने पति के लिए व्यवसाय खुलवाने के लिए दादा दादी से एक अच्छी रक़म उधार ली, इस तरह ये माज़रा चलता रहा और दादा दादी हमेशा इस भ्रम में रहे की उनके नाती नातिन उन्हें बहुत प्यार करते हैं।

 

लेकिन दादा दादी का दूसरा लड़का जो ये मंशा समझ रहा था ने उन बुजुर्गो को समझाने की बहुत कोशिश की जिसके चलते परिवार में बहुत झगड़ा हुआ, फिर उन लड़के लड़की ने सारे गाँव में ये हल्ला मचा दिया की दादा दादी और उसके चाचा जी उन पर बहुत अत्याचार कर रहे हैं, फिर उन बच्चों ने गाँव में शोर कर दिया की इन दादा दादी के कहने पर वे अपने माता पिता के साथ नहीं गये और आज ये सभी हम पर अत्याचार कर रहें हैं, फिर उन बच्चों ने “पटवारी” को कुछ लालच देकर अपने पक्ष में खड़ा कर लिया और गाँव में घोषणा कर दी की वे दादा दादी की सम्पत्ति के जायज़ हक़दार हैं और वे अपना हिस्सा लेकर दादा दादी से अलग होना चाहते हैं।

 

अब गाँव के कुछ लालची उनके पक्ष में खड़े हो गये और इस तरह उन बच्चों ने दादा दादी को कंगाल कर दिया और उन बूढे दादा दादी को सारे गाँव की नज़रों में अत्याचारी, बेईमान, धोखेबाज़ की पदवी दिला दी और फिर वह बच्चे अपने माँ बाप के साथ मिल गये।

 

अब दिनों बाद कहानी में ट्विस्ट आया जब दादा दादी को पता चला की “ये सारा खेल पूर्व नियोजित (प्री प्लान) था, जिसे उनके ही उस क्लेशी लड़के ने रचा था और जान बूझकर अपने बच्चों को वहाँ छोड़कर गया जिससे वह उनकी सारी सम्पत्ति को हड़प सके”

 

अब मेरे पिताजी ने मुझसे कहा की “अब मुसलमानों की स्थिति देखो, उन्होंने भारत जैसे सम्पन्न परिवार को जान बूझकर धर्म के आधार पर विभाजित करवाया और अपना हिस्सा लिया।

 

अब उन्होंने अपने प्लान के अनुसार कुछ मुसलमानों को भारत में ही रहने की हिदायत दी, अब उन मुसलमानों ने भी भारत के हिन्दुओँ को भरोसा दिया की वह भारत से बहुत प्यार करते हैं (ठीक वैसे ही जैसे वह बच्चे उन बूढ़े दादा दादी से करते थे) और वह अपने मरते दम तक भारत में ही रहेंगें”। 

 

फिर कुछ सालों बाद उन मुसलमानों ने पाकिस्तान के अपने रिश्तेदारों (माता पिता) से मिलना शुरू कर दिया, लेकिन मासूम भारत के हिन्दू यही समझते रहे की वह मुसलमान उन्हें बहुत प्यार करते हैं, इसलिये वह मुस्लिम भारत छोड़कर नहीं गये।

इस वात्सल्य में हिन्दुओँ ने अपनी जमींन पर उनके लिए मस्जिदें बनवायीं और उन्हें सिर आँखों पर रखा। फिर उन मुसलमानों ने अपना रँग दिखाना शुरू किया और बेईमानी पर उतर आये और उन्होंने भारत के कई हिस्सों पर अपनी आबादी के आधार पर कब्ज़ा जमा लिया, जिसमें उस “पटवारी” जैसे वामपंथियों ने भारत में ये घोषणा कर दी की हिन्दू बहुत दमनकारी और अत्याचारी हैं, इन हिन्दुओँ ने मासूम मुसलमानों पर अत्याचार किया है और उनका हिस्सा नहीं दे रहे।

 

फिर पिताजी ने कहा की “तुम्हें क्या लगता है, की उन दादा दादी (हिन्दुओँ) को आज बेवकूफ़ बनाया जा रहा है, वास्तव में उन दादा दादी (हिन्दुओँ) का बेवकूफ बनने का इतिहास बहुत पुराना है, पहले मुसलमानों ने हिन्दुओँ को तलवार के बल पर इस्लाम कबूल कराया और जब इससे बात ना बनी तो उन्होंने हिन्दुओँ को बेवकूफ़ बनाने का एक और तरीका ईजाद कर लिया, वह था “सूफ़ी संत” जिसमें हिन्दुओँ को ढोंगी प्रेम के नाम पर इस्लाम और अल्लाह की महत्ता दिखाने लगे, उनके हर सूफ़ी गाने में सिर्फ़ इस्लाम के प्रतीकों जैसे “अल्लाह, ख़ुदा, मौला, रसूल, सजदा जैसे शब्द ही आते थे जिसको उन मासूम दादा दादी जैसे हिन्दुओँ ने पुरजोर से अपनाया।

 

फिर पिताजी ने मुझसे कहा की “भारत एक मात्र हिन्दू राष्ट्र है, लेकिन दुःख की बात है यहाँ हिन्दुओँ को आज भी मुसलमानों की मानसिकता समझ नहीं आयी, तुम्हें क्या लगता है अगर कश्मीर इन्हें दे दिया जाए तो समस्या ख़त्म हो जायेगी! बिल्कुल नहीं ख़त्म होगी, आज ये कश्मीर की माँग कर रहे हैं आने वाले कल को ये हैदराबाद माँगेगे फिर केरल फिर असम फिर पश्चिम बंगाल और इस तरह ये धीरे-धीरे पूरे भारत पर कब्ज़ा करना चाहेँगे।”

 

क्या तुम जानते हो मुसलमान हमेशा अपने पूर्व नियोजित अनुसार काम करते हैं, जब उन्हें किसी देश पर कब्ज़ा करना होता है तो वह हमेशा अपने आप को दो ग्रुप में बाँट लेते हैं जिसमें एक कट्टर होता है जो आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देता है और दूसरा तुमसे झूठे प्रेम का ढोंग दिखाता है जो तुम्हें हमेशा ये विश्वास दिलाता है कि आतंकवादी इस्लामी नहीं होते, उन्हें धर्म के आधार पर नहीं देखना चाहिए और तुम मासूम हिन्दू उनकी बात मान लेते हो, ये रक़म ख़र्च करके हिन्दुओँ के कुछ ग़द्दारों जैसे वामपंथी और पत्रकारों को अपनी तरफ़ मिला लेते हैं फिर वह ग़द्दार देश में हर तरह ये माहौल बना देते हैं कि मुसलमानों पर अत्याचार हो रहा है और धीरे-धीरे तुम सभी हिन्दू अपनी सम्पत्ति जैसे कश्मीर, बंगाल, असम, केरल, यूपी, बिहार, जैसे कई राज्यों से उन दादा दादी की तरह बे दखल कर दिए जाते हो, लेकिन वह दूसरा शांति और प्रेम का ढोंग दिखाने वाला समुदाय तुम्हें कभी महसूस ही नहीं होने देता की तुम्हारे घर से बे दख़ल किया जा रहा है और तुम आँख बन्द करके मान भी लेते हो। 

 

और सुनो जब वह तुम्हारे राज्य या देश पर कब्ज़ा कर लेते हैं तो फिर वह दोनों (आतंकवादी कट्टर और शांति का ढोंग करने वाले) उस राज्य या देश को आपस में बराबर बाँट लेते हैं ठीक उस क्लेशी बाप और उनके बच्चों की तरह”……

 

अब पिताजी ने अपनी बात पर विराम दिया और मैं आज अपने पिताजी की बात सुनकर स्तब्ध रह गया, कितनी बड़ी बात उन्होंने कितने आसान शब्दों में समझा दी।

 

झूठ की बुनियाद पर नफरत की मुहिम चलाने वाले 24 घण्टे तरह-तरह से तरीके बदल-बदल कर नफ़रत और झूठ फैलाने में लगे रहते हैं ।

 

जैसे यहाँ एक कहानी की शक्ल में लोगों के दिमाग में ज़हर भरा जा रहा है। सबसे पहले तो यह बात भली भांति समझ लें कि झूठ, झूठ ही रहता है चाहे वह सीधी तरह कह दिया जाए या कहानी के रूप में बोला जाए। 

 

अब देखिए इस प्रोपेगंडे उर्फ़ कहानी की शुरुआत ही यहाँ से होती है कि “एक परिवार के दो बेटे थे जिसमें से “एक बेईमान था” जिस से अभिप्राय मुसलमान है। अतः अगर कोई ध्यान दे तो उसे इस घटिया मैसेज की मंशा का यहीं आभास हो जाये और उसे आगे पड़ने की ज़रूरत ही ना पड़े ।

 

70 सालों से इस देश के मुसलमान इस देश के लिए जान माल लुटाते आये हैं सुरक्षा से लेकर चिकित्सा, खेल से लेकर कला हर जगह उनका योगदान है। बात सिर्फ पाकिस्तान के विरुद्ध करे तो रक्षा के उपकरणों की ईजाद हो, युद्ध का मैदान हो या खेल का मैदान भारत की जीत में मुसलमानों का योगदान हर जगह रहा है।

 

फिर भी यह झूठे, देश तोड़ने और नफरत फैलाने वाले लोग रणनीति के तहत मुसलमानों का इस घटिया तरीके से चित्रण करते हैं, उन्हें पाकिस्तान परस्त और देश का दुश्मन बताने का कुप्रयास करते हैं । शर्म आना चाहिए इन्हें।

 

देश के प्रगति और अखंडता के असली दुश्मन तो यह है जो ख़ुद देश को गृह युद्ध की तरफ धकेल रहे हैं और ऐसा यह पहल भी कर चुके हैं ।

 

अब आइए इन के कहानी के माध्यम से ब्रेन वाश करने के उद्देश्य से उठाये कुछ बिंदुओं पर

  • 1. मुस्लिमो ने देश के टुकड़े किये?
    यदि आप इतिहास का अध्ययन करे तो आप इस तथ्य से अवगत होंगे जो यहाँ छुपा दिया जाता है दरअसल दो राष्ट्र की बुनियाद हिंदू राष्ट्रवादी सोच के लोगों ने रखी थी

यह बात बिल्कुल प्रमाणित है कि मुस्लिम लीग की दो देश की बात उठाए जाने से बहुत पहले अठारहवीं सदी में ही हिन्दू राष्ट्रवादियों ने इस सिद्धांत की बुनियाद डाल दी थी। जो कि उन्नीसवीं सदी के आते-आते बहुत मुखर होती गई उनके मशहूर और उभरते हुए नेताओं के ईसाईयों और ख़ास तौर से मुसलमानों को लेकर दिए जा रहे ज़हरीले भाषण भी बढ़ते गए।

भाई परमानंद, राजनारायण बसु (1826-1899), उनके साथी नव गोपाल मित्र, लाला लाजपत राय, डॉ. बी एस मुंजे,
वी डी सावरकर, एम एस गोलवलकर आदि हिंदूवादी लोग लगातार एक हिन्दू राष्ट्र की कल्पना कर रहें थे। एक ऐसे हिन्दू राष्ट्र की कल्पना जिसमें ईसाई और मुस्लिम समुदाय के लोग हिंदुओं की दया पर पले। गोलवलकर ने तो जर्मनी के नाज़ियों और इटली के फासिस्टों द्वारा यहूदियों के सफ़ाये की तर्ज़ पर भारत के मुसलमानों और ईसाईयों को चेतावनी दी कि-

“अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो वे राष्ट्र की तमाम सहिंताओ और परम्पराओं से बंधे, राष्ट्र की दया पर टिके, जिनको कोई विशेष सुरक्षा का अधिकार नहीं होगा, विशेष अधिकारों या अधिकारों की बात तो दूर रही। इन विदेशी तत्वों के सामने सिर्फ़ दो ही रास्ते हैं, या तो वह राष्ट्रीय नस्ल में मिल जाए और उसकी तहज़ीब को अपनाए या उसकी दया पर ज़िंदा रहें जब तक कि राष्ट्रीय नस्ल उन्हें इजाज़त दे और जब राष्ट्रीय नस्ल की मर्ज़ी हो तब वे देश को छोड़ दें।…. विदेशी नस्लों को चाहिए कि वे हिन्दू तहज़ीब और ज़बान को अपना ले… हिन्दू राष्ट्र के अलावा दूसरा कोई विचार अपने दिमाग़ में न लायें और अपना अलग अस्तित्व भूलते हुए हिन्दू नस्ल में मिल जाये या देश में हिन्दू राष्ट्र के साथ दोयम दर्जे के आधार पर रहे, अपने लिए कुछ न मांगे, अपने लिए कोई ख़ास अधिकार न मांगे यहां तक कि नागरिक अधिकारों की भी चाहत न रखें।”
(एम एस गोलवलकर, वी ऑर अवर नेशन हुड डिफाइंड)

हिन्दू महासभा के बाल कृष्ण शिवराम मुंजे ने भी ऐसी ही घोषणा की थी।

डॉ. बी एस मुंजे ने हिन्दू महासभा के फलने फूलने और उसके बाद आर आर एस के बनने में मदद की थी, सन 1923 में अवध हिन्दू महासभा के तीसरे सालाना जलसे में उन्होंने ऐलान किया-

“जैसे इंग्लैंड अंग्रेज़ो का, फ्रांस फ्रांसीसी का और जर्मनी जर्मन नागरिकों का है, वैसे ही भारत हिंदुओं का है। अगर हिन्दू संगठित हो जाए, तो वह मुसलमानों को वश में कर सकते हैं।”
(उध्दृत जेएस धनकी, ‘लाला लाजपतराय ऐंड इंडियन नेशनलिज़्म’)

सावरकर ने हमेशा से ईसाई और मुस्लिम समुदाय को विदेशी मानते हुए सन 1937 में अहमदाबाद में हिंदु महासभा के 19 वें सालाना जलसे में अपने भाषण में कहा-

“आज यह कतई नहीं माना जा सकता कि हिंदुस्तान एकता में पिरोया हुआ राष्ट्र है, जबकि हिंदुस्तान में ख़ास तौर से दो राष्ट्र है- हिन्दू और मुसलमान।”
(समग्र सावरकर वांग्मय: हिन्दू राष्ट्र दर्शन, खंड 6)

बाबा साहब अंबेडकर इस तरह के भाषणों से होने वाले एक बड़े नुक्सान के खतरे को समझ रहे थे, उन्होंने इस संदर्भ में परिस्थितियों को देखते हुए साफ लिख दिया था-

“ऐसे में देश का टूटना अब ज़्यादा दूर की बात नहीं रह गया। सावरकर मुसलमान क़ौम को हिन्दू राष्ट्र के साथ बराबरी से रहने नहीं देंगे। वह देश में हिंदुओं का ही दबदबा चाहते है और चाहते हैं कि मुसलमान उनके अधीन रहे। हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दुश्मनी का बीज बोने के बाद सावरकर अब क्या चाहेंगे कि हिन्दू मुसलमान एक ही संविधान के तले एक अखंड देश में होकर जिए, इसे समझना मुश्किल है।”
(बी आर अंबेडकर, पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन)

इसी तरह के भाषणों, बिगड़ते माहौल और क्रिया प्रक्रिया स्वरूप अंत में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान का प्रस्ताव सन् 1940 में पारित किया था, वह भी तब जब अक्सर नेताओं के भाषण से उन्हें लगा कि अब भारत में रहना आसान नहीं होगा।

दरअसल आज जनता को समझना होगा कि आज जो लोग देश के बँटवारे का आरोप लगाते हैं उनका ख़ुद का बँटवारे में कितना बड़ा हाथ था और आज भी जो नफरत फैलाने वाले लोग कर रहे हैं उनका एजेंडा समझना होगा।

  • 2. भारत हिन्दू राष्ट्र है और हिंदुओं ने मुसलमानों को अपनी ज़मीन पर रखा उनके लिए मस्जिद बनाई आदि-

भारत हिन्दू राष्ट्र नहीं बल्कि एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। जो मुस्लिम भारत मे रहे वे अपने तमाम संसाधनों, सम्पत्तियों और अपनी ज़मीन के साथ रहे ना ही किसी और के आश्रय पर। हिंदुओं ने उन्हें अपनी ज़मीन पर नहीं रखा बल्कि ये ख़ुद उनकी ज़मीन है और इसी तरह बाकियो की भी। सिखों की, ईसाईयों की, आदिवासियों की सभी की और उन सभी ने अपनी ज़मीनों को मिलाकर भारत देश का निर्माण किया है।

बेवजह इसे कुछ और दिखाने का प्रयास ना करें। हाँ यह ज़रूर है कि अब कुछ लोग इस देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने की मांग कर रहे हैं।

उनके बारे में हम यही कहेंगे कि इस मांग को मुस्लिमो से नफरत के चश्मे को उतार के देखे और बाबा साहब और काशीराम जी और दूसरे लोगों ने जिन्होंने इसका विरोध किया है उन्हें इसका विरोध क्यों किया है उसे एक बार ज़रूर पढ लें।

  • 3. इस्लाम तलवार से और सूफी संतों के गाने के ज़रिये फैला-

जब यह बात पुरी तरह झूठ साबित हो गई कि इस्लाम तलवार से नहीं फैला, यहाँ तक कि स्वामी विवेकानंद जी ने ख़ुद इस सोच को ही पागलपन बता दिया उन्ही के शब्दों में:-

“भारत में मुस्लिम विजय ने उत्पीड़ित, ग़रीब मनुष्यों को आज़ादी का जायका दिया था। इसीलिए इस देश की आबादी का पांचवां हिस्सा मुसलमान हो गया। यह सब तलवार के ज़ोर से नहीं हुआ। तलवार और विध्वंस के जरिये हिंदुओं का इस्लाम में धर्मांतरण हुआ, यह सोचना पागलपन के सिवाए और कुछ नहीं है_।”
(संदर्भ : Selected Works of Swami Vivekananda, Vol.3,12th edition,1979.p.294)

तो नफरत फैलाने वालों ने एक नया हास्यास्पद तथ्य देना शुरू कर दिया कि इस्लाम सूफी संतों के गानों से फैला जिसमे अल्लाह, सजदा आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता था।

हमे यह बताये की अगर गाने सुनने से धर्म परिवर्तन हो जाता तो आज भारत में एक भी मुसलमान ना बचता क्योंकि यहाँ वे सभी सदियों से हिन्दू भजन ना सिर्फ सुन रहे हैं बल्कि पिछले कुछ दशकों से सुनने के साथ साथ टी व्ही (TV) पर देख भी रहे हैं।
अतः ज़रा बुद्धि का प्रयोग करें और इस तरह के बुद्धिहीन तथ्य देना बंद करें।

  • 4.  मुसलमानों का पूर्व नियोजित (Pre planned) काम करना-

इस पूरे झूठ की पोल खुल जाने पर मुसलमानों का तो नहीं बल्कि इन नफरत फैलाने वालों का प्री प्लान काम ज़्यादा उजागर होता है। जो है अंग्रेजों की तर्ज पर तोड़ो और राज करो (डिवाइड एंड रूल) । फिर जो बच जाए उन पर विभाजन (Division) का आरोप थोप दो। नफरत फैलाते रहो। ख़ुद करो आरोप दूसरों पर। ख़ुद देश को तोड़ने वाले और गृह युद्ध के काम करो और बताओ स्वंय को देश भक्त। आप ख़ुद देख लें, मुस्लिमो से नफरत का मुद्दा हटा दें तो इनके पास बने रहने (survive) के लिए बचता ही क्या है ?? इसे ही तो कहते हैं षड्यंत्र।

अंत मे यहीं कहना चाहेंगे कि आज के नौजवान इतने बेवकूफ़ नहीं रह गए हैं कि उन्हें पिताजी कुछ भी मनगढ़ंत झूठी कहानी सुनाएंगे जिसे सुनकर नौजवान स्तब्ध रह जाएंगे।

बल्कि आज का नौजवान इतना समझदार है कि झूठ का शिकार होने की बजाय उल्टा अपने पिताजी को ही कहेगा कि आप आई टी सेल (IT cell) के फेक मैसेज के शिकार हुए हो, षड्यंत्र में आकर बेवजह ब्रेन वाश हो रहे हो और सत्य बता कर उन्हें ख़ुद स्तब्ध कर देगा ना कि ख़ुद स्तब्ध होकर मूर्ख बनेगा।

 

 

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