Tag: इस्लाम

  • इसराइल से दुश्मनी और तुर्की से प्रेम?

    इसराइल से दुश्मनी और तुर्की से प्रेम?

    जवाब:- देश की विदेश नीति या पूरा देश ही धार्मिक भावनाओं पर चले ऐसा मुसलमानों का तो नहीं बल्कि देश को धार्मिक राष्ट्र बनाने की मांग करने वालो और इसका दावे करने वालो का कहना ज़रूर है और खुले तौर पर इस देश में कई दल, संघ, संगठन इसके लिए प्रयासरत हैं जिनका कहना है कि हम भारत को एक धार्मिक राष्ट्र बना कर रहेंगे। अतः आपको यह सवाल उन से या ख़ुद अपने आप से करना चाहिए।

    एक और ग़लतफहमी जो आप फैला रहे है वह यह कि इस आंदोलन में तुर्की के राष्ट्रपति का समर्थन हो रहा है। जबकि इन प्रदर्शनो में सिर्फ़ फ्रांस के इस घटिया विधान का विरोध हो रहा है और कई सारे देश प्रमुखों ने भी फ्रांस का इस मामले में विरोध किया है तो यहाँ उनका समर्थन नहीं बल्कि उनके इन कथनों मात्र का समर्थन हो जाता है जिसमे कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो भी हैं। लेकिन आप को सिर्फ़ एर्दोगन नज़र आ रहे हैं और एक बार फिर आप इस बात को भी ऐसा दिखाने का प्रयास कर रहे हैं जैसे मुस्लिम एर्दोगन के किसी भारत विरोधी बयान का समर्थन कर रहे हों। जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है।

  • मुस्लिमों में कोई साइंसदां (Scientist) नहीं?

    मुस्लिमों में कोई साइंसदां (Scientist) नहीं?

    जवाब:-  मज़हब-ए-इस्लाम में इतने ज़्यादा साइंसदान (Scientists) गुज़र चुके हैं कि उन सभी का बयान (उल्लेख करना) भी मुश्किल है। लेकिन कुछ “मासूम” लोग जिनको कुछ पता तो होता नहीं और वह व्हाट्सएप के हर फेक मैसेज को सही समझ बैठते हैं और वे पूछने लगते हैं कि मुस्लिमों में आज तक कोई साइंसदां (Scientist) क्यों नहीं हुआ? ज़ाहिर है इन मासूम लोगों को इतिहास का ज्ञान तो होता नहीं, पर यह ख़ुद के देश में हुए महान साइंसदां डॉ.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को ही भूल जाते हैं और ना ही इनको हालात-ए- हाज़रा (current affairs) का ही कुछ पता होता है कि इनको मालूम हो कि कोरोना महामारी की पहली और सबसे उपयोगी वैक्सीन फ़ाइज़र (Pfizer) जिसे बायोएनटेक और फ़ाइज़र कंपनी ने जारी किया है। इस उपयोगी वैक्सीन को ईजाद करने वाले बायोएनटेक (BioNTech) के संस्थापक ही मुस्लिम दंपत्ति डॉ. उगुर साहीन और डॉ. ओज़्लेम तुरेसी (Dr. Ugur sahin & Dr. Ozlem tureci) हैं।

    इसके अलावा, इलाहाबाद के वैज्ञानिक फ़राज़ ज़ैदी ने ‌अमेरिका में कोरोना का वैक्सीन तयार कीया था।👇https://www.amarujala.com/uttar-pradesh/allahabad/city-scientist-faraj-engaged-in-developing-corona-vaccine-in-america

    CIPLA कंपनी (जिसके मालिक एक मुस्लिम, YUSUF HAMIED है) भारत की पहली कंपनी थी जिसने COVID-19 से लड़ने के लिए दवाओं का निर्माण किया।👇https://www.nationalheraldindia.com/india/coronavirus-pandemic-cipla-can-be-indias-first-company-to-manufacture-drugs-to-fight-covid-19

    मुस्लिम के नेतृत्व वाली नोएडा लैब न्यूलाइफ ने रु500 में एंटीबॉडी आधारित कोविड -19 परीक्षण किट विकसित की। तत्काल परिणाम (10-15 मिनट) और किट की उत्पादन क्षमता 1 लाख प्रतिदिन है👇 https://youtu.be/xdAgaDEmujc

    खैर हम यहाँ सामान्य जानकारी के लिए कुछ महान मुस्लिम साइंसदान के बारे में बता रहे हैं।👇

    • 1. इब्ने सीना (Avicenna):-

    इब्ने सीना का पूरा नाम अली अल हुसैन बिन अब्दुल्लाह बिन अल-हसन बिन अली बिन सीना है। इन्हें आधुनिक दवाई (Modern Medicine) का पिता / जनक कहा जाता है। मेडिकल और बॉयोलॉजी का शायद ही कोई छात्र रहा होगा जो इब्ने सीना (Avicenna) के बारे में नहीं जानता हो। इन्होंने 450 किताबें लिखी जिन में से कइयों को आज भी पढ़ाया जाता है। इनकी लिखी क़िताब The Canon of medicine (अल कानून फित-तिब्ब) 18 वी शताब्दी तक पूरे यूरोप में मेडिकल साइंस की मानक पुस्तक के रूप में स्थापित रही।

    1980 में इनकी हजारवीं वर्षगांठ के समारोह पर सोवियत यूनियन (रूस) में इनकी याद में स्टाम्प भी जारी किए थे और स्मारक स्थापित किया था।

    इन्हीं के नाम से यूनेस्को (UNESCO) द्वारा इब्ने सीना पुरस्कार (The Avicenna Prize) का आयोजन होता है और यह साइंस की फ़ील्ड में उच्च कार्य करने वालों को दिया जाता है जो हर 2 वर्ष में होता है।

    मेडिसीन ही नहीं बल्कि इब्ने सीना ने इसके अलावा एस्ट्रोनॉमी, अल्केमी, जियोग्राफी, जियोलॉजी, लॉजिक, साइकोलॉजी, फ़िज़िक्स और मैथेमेटिक्स में भी महत्वपूर्ण शोध किये जिन्हें आज भी पढ़ा जाता है।

    • 2. इब्न ज़करिया अल राज़ी:-

    वेस्टर्न वर्ल्ड में राज़ी’स (Razes) के नाम से जाने वाले इस महान फिजिशियन ने ही सबसे पहले 10 वी शताब्दी में सर्जरी में श्वसन द्वारा एनेस्थेसिया का प्रयोग किया था। यह नेत्र विज्ञान के प्रथम अन्वेषक (Pioneer in Ophthalmology) भी माने जाते हैं और बच्चों की दवा करने की विद्या (Pediatrics) के विषय में विश्व की पहली किताब भी इन्होंने ही लिखी थी ।

    • 3. मूसा अल ख़्वारज़मी:-

    इस मशहूर और महान गणितज्ञ द्वारा बीज गणित (Algebra), reduction and balancing equation भी इन्हीं की देन है जिस का प्रयोग कई गणना में होता है रसायन शास्त्र के कई सिद्धांत इसी से समझे जाते हैं। अलजेब्रा ने ही आगे जाकर बाइट (Byte) की नींव रखी जिस पर आज के कम्प्यूटर और कैलकुलेटर काम करते हैं।
     

    •  4. अल तूसी:-

    इनका पूरा नाम अल अल्लामा अबू जाफर मुहम्मद बिन मुहम्मद बिन हसन अल तूसी है। ये सातवीं सदी हिजरी के शुरू में यानी 13 सदी ईस्वी को तूस में पैदा हुए। इन्होंने त्रिकोणमिति को खगोलशास्त्र से अलग किया। इन्होंने इस प्रचलित सिद्धांत का विरोध किया कि पृथ्वी स्थिर है और कहा कि पृथ्वी घूमती है। ग्रहों की चाल, आकाश गंगा, खगोल विज्ञान के लिए इन्होंने आधुनिक तालिकायें बनाई।

    • 5. जाबिर बिन हियान:-

    मुस्लिम रसायन शास्त्री इन्हें पश्चिमी देश में गेबर के नाम से जाना जाता है। इन्हें रसायन विज्ञान का संस्थापक माना जाता है। जाबिर बिन हियान पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पदार्थ को तीन भागों वनस्पति, पशु और खनिज में विभाजित किया। रासायनिक यौगिकों जैसे कार्बोनेट, आर्गैनिक, सल्फाइड की खोज की।

    • 6. अल जज़री:-

    अल जजरी अपने समय के महान वैज्ञानिक थे। इस महान वैज्ञानिक ने अपने समय में इंजीनियरिंग के क्षेत्र में इंक्रलाब बरपा कर दिया था। इनका सबसे बड़ा कारनामा ऑटो मोबाइल इंजन की गति का मूल स्पष्ट करना था और आज उन्हीं के सिद्धांत पर रेल के इंजन और अन्य मोबाइल का आविष्कार संभव हो सका।

    • 7. इब्न अल हैशम:-

    इब्न अल हैशम का पूरा नाम अबू अली अल हसन बिन अल हैशम है। ये इराक के ऐतिहासिक शहर बसरा में 965 ई में पैदा हुए। इन्हें भौतिक विज्ञान, गणित, इंजीनियरिंग और खगोल विज्ञान में महारत हासिल थी।

    इब्न अल हैशम ने प्रकाश के प्रतिबिम्ब और लचक की प्रकिया और किरण के निरीक्षण से कहा कि ज़मीन की अंतरिक्ष की ऊंचाई एक सौ किलोमीटर है। इब्न अल हैशम ने ही यूनानी दृष्टि सिद्धांत को अस्वीकार करके दुनिया को आधुनिक दृष्टि दृष्टिकोण से परिचित कराया।

    दरअसल ऊपर के हर साइंसदां की इतनी ख़िदमात (सेवाएं/खोज/शोध) हैं की इनमें से हर एक के बारे में किताबें लिखी जा सकती हैं। लेख में सभी शामिल करना सम्भव ही नहीं है और ऐसे ही एक नहीं हज़ारों मुस्लिम साइंसदान गुज़र चुके हैं उन में से कुछ के नाम और दिए जा रहे हैं। जिन्हें रुचि हो वे हर एक का नाम गूगल पर सर्च कर ख़ुद उनके बारे में जानकारी हासिल कर ले।

    LIST OF KNOWN MUSLIM SCIENTISTS

    ❇️ ASTRONOMERS AND ASTROLOGERS
    ▪️Sind ibn Ali (-864)
    ▪️Ali Qushji (1403-1474)
    ▪️Ahmad Khani (1650-1707)
    ▪️Ibrahim al-Fazari (-777)
    ▪️Muhammad al-Fazari (-796 or 806)
    ▪️Al-Khwarizmi, Mathematician (780-850 CE)
    ▪️Abu Ma’shar al-Balkhi (Albumasar) (787-886 CE)
    ▪️Al-Farghani (800/805-870)
    ▪️Banū Mūsā(Ben Mousa) (9th century)
    ▪️Dīnawarī (815-896)
    ▪️ Al-Majriti (d. 1008 or 1007 CE)
    ▪️Al-Battani (858-929 CE) (Albatenius)
    ▪️Al-Farabi (872-950 CE) (Abunaser)
    ▪️Abd Al-Rahman Al Sufi (903-986)
    ▪️Abu Sa’id Gorgani (9th century)
    ▪️Kushyar ibn Labban (971-1029)
    ▪️Abū Ja’far al-Khāzin (900-971)
    ▪️Al-Mahani (8th century)
    ▪️Al-Marwazi (9th century)
    ▪️Al-Nayrizi (865-922)
    ▪️ Al-Saghani (-990)
    ▪️ Al-Farghani (9th century)
    ▪️Abu Nasr Mansur (970-1036)
    ▪️Abū Sahl al-Qūhī (10th century) (Kuhi)
    ▪️Abu-Mahmud al-Khujandi (940-1000)
    ▪️Abū al-Wafā’ al-Būzjānī (940-998)
    ▪️Ibn Yunus (950-1009)
    ▪️Ibn al-Haytham (965-1040) (Alhacen)
    ▪️Bīrūnī (973-1048)
    ▪️Avicenna (980-1037) (Ibn Sīnā)
    ▪️Abū Ishāq Ibrāhīm al-Zarqālī(1029-1087) (Arzachel)
    ▪️Omar Khayyám (1048-1131)
    ▪️Al-Khazini (fl. 1115-1130)
    ▪️Ibn Bajjah (1095-1138) (Avempace)
    ▪️Ibn Tufail (1105-1185) (Abubacer)
    ▪️Nur Ed-Din Al Betrugi (-1204) (Alpetragius)
    ▪️Averroes (1126-1198)
    ▪️Al-Jazari (1136-1206)
    ▪️Sharaf al-Dīn al-Tūsī (1135-1213)
    ▪️Anvari (1126-1189)
    ▪️Mo’ayyeduddin Urdi (-1266)
    ▪️Nasir al-Din Tusi (1201-1274)
    ▪️Qutb al-Din al-Shirazi (1236-1311)
    ▪️Shams al-Dīn al-Samarqandī (1250-1310)
    ▪️Ibn al-Shatir (1304-1375)
    ▪️Shams al-Dīn Abū Abd Allāh al-Khalīlī (1320-80)
    ▪️Jamshīd al-Kāshī (1380-1429)
    ▪️Ulugh Beg (1394-1449)
    ▪️Taqi al-Din Muhammad ibn Ma’ruf (1526-1585)
    ▪️Ahmad Nahavandi (8th and 9th centuries)
    ▪️Haly Abenragel (10th and 11th century)
    ▪️Abolfadl Harawi (10th century)
    ▪️Mu’ayyad al-Din al-‘Urdi (1200-1266

    ❇️ BIOLOGISTS, NEUROSCIENTISTS, AND PSYCHOLOGISTS
    ▪️Aziz Sancar, Turkish biochemist, the first Muslim biologist awarded the Nobel Prize ▪️Ahmad-Reza Dehpour (1948- ),
    ▪️Iranian pharmacologist
    ▪️Ibn Sirin (654-728), author of work on dreams and dream interpretation[1] ▪️Al-Kindi (Alkindus), pioneer of psychotherapy and music therapy
    ▪️Ali ibn Sahl Rabban al-Tabari, pioneer of psychiatry, clinical psychiatry and clinical psychology
    ▪️Ahmed ibn Sahl al-Balkhi, pioneer of mental health, medical psychology, cognitive psychology, cognitive therapy, psychophysiology and psychosomatic medicine
    ▪️Al-Farabi (Alpharabius), pioneer of social psychology and consciousness studies
    ▪️Abu al-Qasim al-Zahrawi (Abulcasis), pioneer of neurosurgery
    ▪️Ibn al-Haytham (Alhazen), founder of experimental psychology, psychophysics, phenomenology and visual perception
    ▪️Al-Biruni, pioneer of reaction time
    ▪️Avicenna (Ibn Sīnā), pioneer of neuropsychiatry thought experiment, self-awareness and self-consciousness
    ▪️Ibn Zuhr (Avenzoar), pioneer of neurology and neuropharmacology.
    ▪️Syed Ziaur Rahman, pioneer of Environment…

  • इस्लाम और ब्लड डोनेशन।

    इस्लाम और ब्लड डोनेशन।

    जवाब:- इस्लाम में ब्लड डोनेशन जाइज़ है। बल्कि इसके ज़रिये अगर किसी की जान बचती है यह बहुत अज्र और सवाब (पुण्य) का काम भी है।

    जैसा फ़रमाया क़ुरआन में :-
    “..जिसने जीवित रखा एक प्राणी को, तो वास्तव में, उसने जीवित रखा सभी मनुष्यों को…”
    (क़ुरआन 5:32)

    यानी कि इस्लाम में किसी की जान बचाना की इतनी अहमियत और अज्र है जैसे उसने तमाम मनुष्यों की जान बचाई हो।

    इस्लाम सभी मामलों में स्पष्ट मार्गदर्शन करता है ऐसे ही ब्लड डोनेशन के बारे में भी यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यह इतनी मात्रा या स्थिति में नहीं हो कि ख़ुद रक्त दान करने वाली की जान ही मुसीबत में पड़ जाए।

    जैसे फ़रमाया क़ुरआन में –

    “..अपने ही हाथों से अपने-आपको तबाही में न डालो..”
    (क़ुरआन 2:195)

    “..और आत्म हत्या न करो, वास्तव में, अल्लाह तुम्हारे लिए अति दयावान् है।..”
    (क़ुरआन 4:29)

    साथ ही खून, अल्लाह की दी हुए नेअमत है इसे दान करने की तो इजाज़त है लेकिन बेचने की नहीं ।

    लिहाज़ा मालूम हुआ कि इस्लाम में किसी की जान बचाने या अहम ज़रुरत के लिए ब्लड डोनेट करना जिससे ब्लड देने वाले कि भी जान पर ख़तरा ना हो बिल्कुल जाइज़ है, बल्कि बहुत अज्र और सवाब का काम भी है।

    यही कारण है कि विश्वभर में हर जगह मुस्लिम ब्लड डोनेट करते हैं फिर चाहे वह सीधे तौर पर जान पहचान वाले के लिए हो या ब्लड बैंक में किसी अनजान के लिए जिस के ज़रिए किसी (मुस्लिम, गैर मुस्लिम) का भी लाभ हो।

    अतः अगर कोई यह कह रहा है कि मुस्लिम ब्लड डोनेट नहीं करते या इस्लाम में ब्लड डोनेट करना मना है तो या तो उसे ग़लत जानकारी है या वह जानबूझकर झूठ फैला रहा है।

  • तलाक़ के बारे में सवाल ?

    तलाक़ के बारे में सवाल ?

    बिल्कुल नहीं। तलाक हो जाने पर बच्चों की सम्पूर्ण ज़िम्मेदारी उनके पिता की है। उनकी हर आर्थिक और दूसरी ज़रूरतों को पूरा करना पूर्ण रूप से उनके बाप के ज़िम्मे है।

    इस्लाम में इस तरह की कोई चीज़ नहीं है। यह पूर्ण रूप से निराधार और झूठ है। लोग यह सवाल हलाला के नाम से फैलाये जा रहे झूठ और गलतफहमी में पढ़कर करते हैं। जिसके बारे में लेख हलाला” पर पहले भी शेयर किया जा चुका है। उस का अध्ययन करें।

    https://islamconnect.in/2021/04/23/3234/

  • नफ़रत फ़ैलाने वाली एक पोस्ट का जवाब दीजिए ? (#1 )

    नफ़रत फ़ैलाने वाली एक पोस्ट का जवाब दीजिए ? (#1 )

    जवाब :-ब्रेन वाशिंग के ज़रिए कैसे आपके दिलों में अपने मुस्लिम मित्रों के लिये नफ़रत भरकर आप से राजनीतिक लाभ उठाया जाता है यह पोस्ट उसका शानदार उदाहरण है।

     

    आइए दिमाग़ खुला रखकर इस पोस्ट पर ध्यान दें और इसकी चतुराई देखें।

     

    पोस्ट शुरू होती है यहाँ से:-

     

    *मेरे भी मुस्लिम मित्र हैं*

    *मेरे भी क्लास में मुस्लिम पढ़े हैं*

    *मेरे भी आफिस में मुस्लिम काम करते हैं*

    *मैं जहाँ से सामान लेता हूँ वहाँ से मुस्लिम भी सामान लेते हैं*

    *मैं जहाँ रहता हूँ वहाँ भी मुस्लिम रहते है*

     

    इन सभी बातों में आश्चर्य की क्या बात है? यह तो बहुत ही सामान्य-सी बात है तब फिर यहाँ से शुरू करने की क्या ज़रूरत पड़ी?

     

    एक सामान्य-सी बात से शुरू करके जो सभी पर लागू होती है यानी विषय समायोजन (Theme setting), द्वारा आपका इस पोस्ट से जुड़ाव बनाया जा रहा है ताकि आप इससे जुड़ने लगें और आपके ध्यान में आपके मित्र और दूसरे जान-पहचान के मुस्लिम आ जाएँ जिनके ख़िलाफ आपको भड़काया जाना है।

     

    अब आगे बढ़ें:-

    वे कहते है, हम जुमे की नमाज पढ़ेंगे, सड़को पर मैंने भी कहा कोई बात नहीं, संविधान ने सबको धार्मिक आजादी का हक़ दिया है।

     

    अब जुड़ाव जोड़ने के बाद, अपना षड्यंत्र चालू किया गया है। बड़ी ही चालाकी से आपका ध्यान चयनात्मक दृष्टिकोण (Selective approach) से सिर्फ़ मुस्लिमों पर लगा कर कैसे नफ़रत भरी जा रही है वह देखिये।

     

    अरे भाई नमाज़ अदा की जाती है मस्जिद में, जैसे पूजा आरती होती है मंदिरों में। लेकिन मंगलवार, शनिवार आदि विशेष अवसरों पर जब लोग अधिक हो जाते हैं तो मन्दिर फुल हो जाने पर लोगों का जमावड़ा सड़कों तक हो जाता है और इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होती । आप यहाँ जुमे का तो ज़िक्र कर रहे हैं लेकिन इन सब को छुपा रहे हैं और इस बात को कुछ अलग ही दिखाने का निर्लज्ज कुप्रयास कर रहे हैं।

     

    आगे पढ़ते हैं:-

    वे कहते है हम मांस खायेंगे, अब वह बकरे का हो या किसी और का

    मैंने कहा कोई बात नहीं, संविधान ने सबको हक़ दिया है कुछ भी खाने पीने का।

     

    अब मांसाहार के ज़रिए आपके मन में मुस्लिमों के लिये नफ़रत का प्रयास के लिए एक बार फिर *चयनात्मक दृष्टिकोण (Selective approach)* का प्रयोग जारी रखा गया है । भारत में 72% जनसंख्या मांसाहारी है। जबकि मुस्लिम मात्र 15% हैं। अतः यह कुप्रयास और इसका इरादा उजागर है ।

     

    और आगे पढ़ें:-

    अब मैंने कहा, “कॉमन सिविल कोड” आना चाहिए। तो वह बोला नहीं, ये इस्लाम के ख़िलाफ है।

     

    यह देखिये चयनात्मक दृष्टिकोण (Selective approach) का प्रयोग। देश में सिर्फ़ मुस्लिमों के लिए ही पर्सनल लॉ बोर्ड नहीं है। सिख हथियार रखते है, आदिवासी धनुष और शराब रखते है, जैन / नागा-साधू बिना वस्त्र के रहते है। कुछ के यहाँ जीवित समाधि लेने की प्रथा है ये सब अपने धर्म के व्यक्तिगत कानून (Personal law) के कारण ऐसा कर सकते है। जबकि दूसरे धर्म के लोगों के लिए इस पर सजा का प्रावधान है। इसी तरह शादी, जन्म-मृत्यु पर जो भी रीति-रिवाज हैं वह संविधान द्वारा दिए गए पर्सनल लॉ के कारण ही है। लेकिन यह सब छुपा कर सिर्फ़ मुस्लिमों का चित्रण, अपना प्रोपेगेंडा करने के लिए किया जा रहा है।

     

    और आगे पढ़ें:-

    *मैंने कहा, “जनसंख्या रोकथाम के लिए कानून बनना चाहिए।” तो वह बोला, ये इस्लाम ले ख़िलाफ है।*

     

    जनसंख्या रोकथाम कानून कौन से धर्म के ख़िलाफ नहीं है ज़रा यह बताने का कष्ट करे? कौन-सा धर्म कहता है कि जनसंख्या रोकथाम करो? यह तो सिर्फ़ एक विचार है जो सिर्फ़ प्रचार प्रसार ले चूका है। चीन भी जनसंख्या नियंत्रण कानून रद्द करने का फ़ैसला ले चूका है। लेकिन इसके लिए आप सिर्फ़ इस्लाम के ख़िलाफ का प्रोपेगेंडा क्यों कर रहे हैं ? बात जब धर्म की करें तो विभिन्न धर्मों के आधार पर ही करें। एक गैर धार्मिक मुद्दे में विशेष तौर से सिर्फ़ इस्लाम धर्म को बीच में लाने की क्या मंशा है?

     

     

    *मैंने कहा, “तलाक़ सिर्फ़ कोर्ट में हो।” तो वह बोला, ये क़ुरआन का अपमान है।*

     

    भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार हिन्दू समाज में कुल 11 लाख तलाक़ हुए और 23 लाख महिलाये बिना तलाक़ के ही अलग रह रही है। इसका मतलब कोर्ट से ज़्यादा तलाक़ तो समाज में होते है। (वास्तविक आंकड़े सरकारी आंकड़ों से ज़्यादा है)

     

    मैंने कहा, “बहुपत्नी प्रथा बंद हो।” तो वह बोला, ये इस्लाम के ख़िलाफ है।

     

    कमाल की बात है आप को इस्लाम और मुस्लिमों के अंदुरूनी मामले की इतनी चिंता क्यो है? शादी के बिना कई स्त्रियों से कोई सम्बन्ध बनाये तो आपको चिंता नहीं। कानून इस बात की इजाज़त दे कि शादी के बाद भी किसी और से अपनी मर्ज़ी से विवाहेत्तर सम्बन्ध बनाये तो आपको कोई आपत्ति नहीं। लिव-इन में रहे आपको कोई आपत्ति नहीं। बिना तलाक दिए बीवी छोड़ दे आपको दिक्कत नहीं।

     

    लेकिन अगर मुस्लिम बहु विवाह करे तो दिक्कत है? एक बात और ग़ौर करें कि अभी तक इस मैसेज में आपको भावनात्मक जोड़ने के बाद आपके मतलब की एक बात भी नहीं की जा रही जैसे, गिरती अर्थव्यवस्था, महंगाई, बेरोजगारी, पेट्रोल-डीज़ल के दाम। बस सारी बातें मुस्लिमों और उनके अंदरूनी मामले पर ही। कमाल के समाज सुधारक / हितैषी है ये आपके? समाज सुधारक है या ध्यान भटकाऊ? यह आपको सोचना है।

     

     

    अब इस मैसेज में आगे बढ़ें और देखें *पाखंड (Hypocrisy)* का प्रयोग:-

     

    *मैंने बोला, “बांग्लादेशियों को वापस भेजना चाहिए।” वह बोला, वे हमारे मुस्लिम भाई है। मैंने कहा, “रोहिंग्या को वापस भेजो।” वह बोला, वे हमारे भाई है।*

     

    आस पड़ोस के जितने देश है उनमें अगर कहीं हिंदुओं पर कोई प्रताड़ना की ख़बर भी मिल जाये तो ये लोग उनके लिए खूब आवाज़ उठाते हैं। उन्हें अपना भाई बताकर उन्हें भारत में लाकर भारत की नागरिकता देने के किये ही CAA कानून लाया गया है । अच्छी बात है करना भी चाहिए।

     

    लेकिन ठीक इसी तरह अगर कोई मुस्लिम, किसी देश में हो रहे मुस्लिमों पर अत्याचार और उनके घोषित निष्कासन और प्रताड़ना पर ज़रा-सी चिंता भी अगर ज़ाहिर कर दे तो एकदम से दृष्टिकोण बदल जाता है उसे देशद्रोही और पता नहीं क्या-क्या कह कर देश का दुश्मन ही साबित कर दिया जाता है। अतः यह पाखंड क्यों ? *यह दोहरा मापदंड क्यों?*

     

    और आगे पढ़ें –

    *मैंने बोला, “राम मंदिर बनना चाहिए।” वह बोला, कहीं भी बना लो पर अयोध्या में नहीं..वहाँ बाबरी मस्जिद बनेगी।*

     

    सुप्रीम कोर्ट में सदियों से बोला जा रहा प्रोपेगेंडा, झूठ साबित हुआ। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इस बात के कोई सबूत नहीं कि मंदिर गिरा कर मस्जिद बनाई गई हो। उसके बाद भी फ़ैसला राम मंदिर पक्ष में आया। इतना संवेदनशील मामला होने पर भी देश भर के मुस्लिमों ने उसे आत्मसात किया और आज वहाँ मंदिर बन रहा है।

     

    इस बात पर मुस्लिमों की सराहना करने और सद्भावना बनाने की बजाय यह लोग नई लिस्ट निकाल कर अगली कई सदियों तक देश को हिन्दू-मुस्लिमों मामले में उलझाए रखना चाहते हैं।

     

    *मैंने कहा, “मदरसे बंद हो, सबको समान शिक्षा मिले।” वह बोला, ये इस्लाम का अपमान है।*

     

    आप पहले तो यह बताएँ की आप यह क्यों कह रहे हैं कि मदरसे बन्द हो ?🤔 आप की मंशा शिक्षा देने की है या मदरसे बन्द करने की? सबको शिक्षा देने के लिए मदरसे बन्द करने की क्या ज़रूरत ? क्या तर्क है या मूर्खता। सबको शिक्षा दें शिक्षा का स्तर ऊंचा करें, मदरसे तो ख़ुद स्वचलित होते हैं। उनको बीच में लाकर अपनी ज़िम्मेदारी से क्यों भाग रहे हैं?

     

    इतना *ब्रेन-वाश* करने बाद अब आप आगे देखेंगे मैसेज का असली एजेंडा –

     

    *मैंने बोला, “मोदी ने ये अच्छा किया।” वह बोला, गुजरात में मुसलमानों के साथ ग़लत हुआ।*

     

    तो कुल मिलाकर बात यह है कि मोदी समर्थन। जो अब खुल के सामने आ जाता है। लेकिन पढ़ने वाला ये समझ नहीं पाता ।

     

    और आगे देखें –

    *मैंने बोला, “बंगाल में हिंदू के साथ ग़लत हो रहा है।” वह बोला, दीदी ने बहुत विकास किया है।*

     

    अब एजेंडा खुल के सामने आ गया बंगाल चुनाव और मोदी समर्थन-

     

    अब इसमें भी 2 मुख्य बिंदुओं पर ग़ौर करें-

     

    १. जितनी भी विरोधी पार्टी है उन्हें मुस्लिम समर्थक बता दिया जाता है।

     

    _”बंगाल के मुसलमान मानव विकास सूचकांक में किसी भी अल्पसंख्यक की तुलना में सबसे खराब हालत में है!”_अरे भाई इन सब पार्टियों ने कौन से मुस्लिमों का भला कर दिया? जो वे ममता की तारीफ करेंगे।

     

    २. जिस तरह मोदी जी 3 बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने वैसे ममता बैनर्जी भी बंगाल की मुख्यमंत्री बनी।

     

    पिछ्ले बिंदु में आपने अपने ही शब्दो में लिखा जिसके अनुसार आप यह कह रहे हैं कि मोदी ने अच्छा किया तो किसी को यह नहीं कहना चाहिए कि गुजरात में मुस्लिमों के साथ ग़लत हुआ। लेकिन अगर कोई यह कहे कि ममता ने बंगाल में अच्छा किया तो आप यह ज़रूर कहेंगे कि बंगाल में हिंदुओं के साथ ग़लत हुआ। वाह भाई कमाल की *हिपोक्रेसी (hypocrisy)* है, ख़ुद अपने शब्दों में एक ही मैसेज में सारी सीमाएँ पार कर रहे हो ।

     

    इसके बाद अंत में फिर एक-दो इधर-उधर की बात करके असली एजेंडे को उजागर किये बिना आपको मुस्लिमों की नफ़रत में लगा कर मैसेज का समापन किया जाता है।

     

    *मैंने बोला, “सारे आतंकवादियों को गोली मार देनी चाहिए। “वह बोला, सुधरने का एक मौका दो।*

    यह एकदम मनगढ़ंत बात कही गई है।

     

    मैंने बोला, “कश्मीरी पंडितों को उनका घर मिलना चाहिए।”

    यह बात आप उस काल्पनिक मुस्लिम से क्यों कह रहे हैं ? यह बात तो आपको सरकार से कहनी चाहिए । अब तो पुरा अधिकार उनका है और यह उनका वादा भी था। तो अब क्या हुआ? क्या वे उन्हें वापस भेजना नहीं चाहते या वे अब वापस जाना ही नहीं चाहते??

     

    *भाई. . .सारे मुसलमान एक ही होते है। जहाँ कम है, वहाँ सॉफ्ट है। जहाँ ज़्यादा है, वहाँ रोज़ हिन्दू मर रहे है।*

     

    *जहाँ कम है, वहाँ उन्हें आपसे रोजगार मिलता है..इसलिए आपके दोस्त है। जहाँ कम है, वहाँ तुम्हारे भाई है।*

    *पर जहाँ ज़्यादा है…..वहाँ आप सोच भी नहीं सकते।*

     

    क्यों नहीं सोच सकते ? सोचो भाई UAE, कतर, ओमान, बहरीन, सऊदी, खाड़ी के 22 देश, उसके बाद मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया और भी कई देश जहाँ मुस्लिमों की संख्या हिंदुओं से कहीं ज़्यादा है ! और रोजगार भी हिंदुओं को मुस्लिमों से ही मिल रहा है क्या वहाँ हिंदू शांति और सुरक्षा से नहीं रह रहे? अगर यह प्रोपेगेंडा सच होता तो हर साल कई गैर मुस्लिम वहाँ क्यों बस रहे है? सत्य तो यह है कि यह बिलकुल झूठ है। एक नहीं अनेक देश हैं जहाँ मुस्लिम बहुसंख्यक हैं और हिन्दू वहाँ शांति से रह रहे हैं।

     

    इसके उलट यह ज़रूर है कि ऐसी भी जगह हैं जहाँ मुस्लिम कम है वहाँ उनके साथ बहुत अत्याचार हो रहा है जैसे रोहिंग्या का ज़िक्र तो इस मैसेज में ही हो चुका लेकिन इसके लिए धर्म नहीं बल्कि नफ़रत फैलाने वाले ही ज़िम्मेदार होते हैं ।

     

    दरअसल यह नफ़रत फैलाने वाले सभी एक जैसे ही होते हैं जहाँ ज़्यादा हो जाते हैं उस जगह रक्तपात और गृह- युद्ध की नौबत ला देते हैं और जहाँ कम होते हैं वहाँ ऐसे ही झूठे मैसेज लिख लोगों को भड़काने का प्रयास करते रहते हैं ।

     

    अब सोचना आपको है। अंधकार में न रहें। *ब्रेन-वाश* से बचें!

  • सवाल:- सोशल मीडिया पर हमें कई लोग इस्लाम और मुसलमानों के बारे में बुरा भला लिखते हुए और मज़ाक उड़ाते हुए दिख जाते हैं तो हमें क्या करना चाहिये?

    जवाब:- इल्म ना होने की वज़ह से अक्सर हम लोग इस तरह की बातों को देख कर या तो बहस और झगड़े में पड़ जाते हैं और अपने ताल्लुकात खराब कर लेते हैं या फिर इन्हें नजरअंदाज कर देते हैं और अपनी जिम्मेदारी से मुँह फेर लेते हैं।

     

    जब की इन हालात में क्या करना है वह क़ुरआन में हमें बहुत ही विस्तार से समझाया गया है।

     

    अल्लाह तआला फरमाता है क़ुरआन में :-

     

    *और भलाई बुराई (कभी) बराबर नहीं हो सकती तो (सख्त कलामी का) ऐसे तरीके से जवाब दो जो निहायत अच्छा हो (ऐसा करोगे) तो (तुम देखोगे) जिसमें और तुममें दुश्मनी थी गोया वह तुम्हारा दिल सोज़ दोस्त है।*

    (क़ुरआन 41:34)

     

    मतलब हमें यह सिखाया गया है कि हम बुरी बातों का और सख्त कलामी का बदला अच्छी बातों से और अच्छे व्यवहार से दें। अगर हम ऐसा करेंगे तो देखेंगे कि सामने वाले ना केवल हमारी बात को सुनेंगे और समझेंगे बल्कि दिलों में बैठी हुई दुश्मनी दूर होगी और दोस्ती में बदल जाएगी।

     

    आगे यह भी बताया कि कहीं लोगों की बदज़ुबानी या सरकशी तुम्हें हक़ बात कहने से ना रोक दे। क्योंकि हक़ बात कहने वालों के सामने ये हालात हमेशा आते रहे, लेकिन मुहम्मद (स.अ.व.) और सहाबा कभी इन बातों से घबराकर हक़ कहने से पीछे ना हटे।

     

    अलबत्ता यह काम भी अल्लाह ने हमें इतने खूबसूरत तरीके से समझाया कि अगर इस काम में हमें नसीहत देना पड़े और बहस व मुबाहिशा करना भी पड़े तो वह भी बड़े भले तरीक़े से और हिकमत से किया जाए और इस तरह किया जाए जो लोगों के नज़दीक सबसे भला और अच्छा मालूम हो।

     

    *(ऐ रसूल) तुम (लोगों को) अपने परवरदिगार की राह पर हिकमत और अच्छी-अच्छी नसीहत के ज़रिए से बुलाओ और बहस व मुबाहिशा करो भी तो इस तरीक़े से जो लोगों के नज़दीक सबसे अच्छा हो….*

    (क़ुरआन 16:125)

     

    इस के दिगर अगर कोई महफ़िल या कलाम करने वाले ऐसे हों कि जिनका मकसद सिर्फ़ अल्लाह की आयतों को झुठलाना हो और वह कोई बात सुनना या समझना ही नहीं चाहते और क़ुरआन की आयतों की हँसी उड़ाने में लगे हों और या माहौल ऐसा बन जाये कि वह हठधर्मी पर उतर कर यह काम करने लगें।

     

    तब ऐसे वक़्त में क़ुरआन हमें सिखाता है कि हम उस महफ़िल को छोड़ दें और इस काम में शरीक ना हो हत्ता की (यहाँ तक की) वह कुछ और बात करने लगें (या की फिर कभी और माकूल माहौल हो और फिर तब आप अपनी बात उन्हें समझा सकें)।

     

    *(मुसलमानों) हालांकि ख़ुदा तुम पर अपनी किताब क़ुरआन में ये हुक्म नाज़िल कर चुका है कि जब तुम सुन लो कि ख़ुदा की आयतों से इनकार किया जाता है और उससे मसख़रापन किया जाता है तो तुम उन (कुफ्फ़ार) के साथ मत बैठो यहाँ तक कि वह किसी दूसरी बात में ग़ौर करने लगें वरना तुम भी उस वक़्त उनके बराबर हो जाओगे..*

    (क़ुरआन 4:140)

     

    तो हमने देखा क़ुरआन ने हमारी कितनी रहनुमाई की है, बजाय इस पर अमल करने और अपने फ़रीज़े को अंजाम देने के हम लोग ख़ुद अपने-अपने दिमाग़ से तय कर लेते हैं। कभी बहस और झगड़ा कर लेते हैं या तो नज़रअंदाज़ कर अपने आप को सही समझते हैं।

     

    इसलिये ज़रूरत है क़ुरआन को समझने की, इल्म हासिल करने की और फिर एतबार से उस पर अमल करने की।