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  • “मुसलमानों की विचारधारा”

    “मुसलमानों की विचारधारा”

    जवाब:-  झूठ की बुनियाद पर नफरत की मुहिम चलाने वाले 24 घण्टे तरह-तरह से तरीके बदल-बदल कर नफ़रत और झूठ फैलाने में लगे रहते हैं ।

    जैसे यहाँ एक कहानी की शक्ल में लोगों के दिमाग में ज़हर भरा जा रहा है। सबसे पहले तो यह बात भली भांति समझ लें कि झूठ, झूठ ही रहता है चाहे वह सीधी तरह कह दिया जाए या कहानी के रूप में बोला जाए। 

    अब देखिए इस प्रोपेगंडे उर्फ़ कहानी की शुरुआत ही यहाँ से होती है कि “एक परिवार के दो बेटे थे जिसमें से “एक बेईमान था” जिस से अभिप्राय मुसलमान है। अतः अगर कोई ध्यान दे तो उसे इस घटिया मैसेज की मंशा का यहीं आभास हो जाये और उसे आगे पड़ने की ज़रूरत ही ना पड़े ।

    70 सालों से इस देश के मुसलमान इस देश के लिए जान माल लुटाते आये हैं सुरक्षा से लेकर चिकित्सा, खेल से लेकर कला हर जगह उनका योगदान है। बात सिर्फ पाकिस्तान के विरुद्ध करे तो रक्षा के उपकरणों की ईजाद हो, युद्ध का मैदान हो या खेल का मैदान भारत की जीत में मुसलमानों का योगदान हर जगह रहा है।

    फिर भी यह झूठे, देश तोड़ने और नफरत फैलाने वाले लोग रणनीति के तहत मुसलमानों का इस घटिया तरीके से चित्रण करते हैं, उन्हें पाकिस्तान परस्त और देश का दुश्मन बताने का कुप्रयास करते हैं । शर्म आना चाहिए इन्हें।

    देश के प्रगति और अखंडता के असली दुश्मन तो यह है जो ख़ुद देश को गृह युद्ध की तरफ धकेल रहे हैं और ऐसा यह पहल भी कर चुके हैं ।

     

    अब आइए इन के कहानी के माध्यम से ब्रेन वाश करने के उद्देश्य से उठाये कुछ बिंदुओं पर

    • 1. मुस्लिमो ने देश के टुकड़े किये?

    यदि आप इतिहास का अध्ययन करे तो आप इस तथ्य से अवगत होंगे जो यहाँ छुपा दिया जाता है दरअसल दो राष्ट्र की बुनियाद हिंदू राष्ट्रवादी सोच के लोगों ने रखी थी

    यह बात बिल्कुल प्रमाणित है कि मुस्लिम लीग की दो देश की बात उठाए जाने से बहुत पहले अठारहवीं सदी में ही हिन्दू राष्ट्रवादियों ने इस सिद्धांत की बुनियाद डाल दी थी। जो कि उन्नीसवीं सदी के आते-आते बहुत मुखर होती गई उनके मशहूर और उभरते हुए नेताओं के ईसाईयों और ख़ास तौर से मुसलमानों को लेकर दिए जा रहे ज़हरीले भाषण भी बढ़ते गए।

    भाई परमानंद, राजनारायण बसु (1826-1899), उनके साथी नव गोपाल मित्र, लाला लाजपत राय, डॉ. बी एस मुंजे, 

    वी डी सावरकर, एम एस गोलवलकर आदि हिंदूवादी लोग लगातार एक हिन्दू राष्ट्र की कल्पना कर रहें थे। एक ऐसे हिन्दू राष्ट्र की कल्पना जिसमें ईसाई और मुस्लिम समुदाय के लोग हिंदुओं की दया पर पले। गोलवलकर ने तो जर्मनी के नाज़ियों और इटली के फासिस्टों द्वारा यहूदियों के सफ़ाये की तर्ज़ पर भारत के मुसलमानों और ईसाईयों को चेतावनी दी कि-

    “अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो वे राष्ट्र की तमाम सहिंताओ और परम्पराओं से बंधे, राष्ट्र की दया पर टिके, जिनको कोई विशेष सुरक्षा का अधिकार नहीं होगा, विशेष अधिकारों या अधिकारों की बात तो दूर रही। इन विदेशी तत्वों के सामने सिर्फ़ दो ही रास्ते हैं, या तो वह राष्ट्रीय नस्ल में मिल जाए और उसकी तहज़ीब को अपनाए या उसकी दया पर ज़िंदा रहें जब तक कि राष्ट्रीय नस्ल उन्हें इजाज़त दे और जब राष्ट्रीय नस्ल की मर्ज़ी हो तब वे देश को छोड़ दें।…. विदेशी नस्लों को चाहिए कि वे हिन्दू तहज़ीब और ज़बान को अपना ले… हिन्दू राष्ट्र के अलावा दूसरा कोई विचार अपने दिमाग़ में न लायें और अपना अलग अस्तित्व भूलते हुए हिन्दू नस्ल में मिल जाये या देश में हिन्दू राष्ट्र के साथ दोयम दर्जे के आधार पर रहे, अपने लिए कुछ न मांगे, अपने लिए कोई ख़ास अधिकार न मांगे यहां तक कि नागरिक अधिकारों की भी चाहत न रखें।”   (एम एस गोलवलकर, वी ऑर अवर नेशन हुड डिफाइंड)

    हिन्दू महासभा के बाल कृष्ण शिवराम मुंजे ने भी ऐसी ही घोषणा की थी।

    डॉ. बी एस मुंजे ने हिन्दू महासभा के फलने फूलने और उसके बाद आर आर एस के बनने में मदद की थी, सन 1923 में अवध हिन्दू महासभा के तीसरे सालाना जलसे में उन्होंने ऐलान किया-

    “जैसे इंग्लैंड अंग्रेज़ो का, फ्रांस फ्रांसीसी का और जर्मनी जर्मन नागरिकों का है, वैसे ही भारत हिंदुओं का है। अगर हिन्दू संगठित हो जाए, तो वह मुसलमानों को वश में कर सकते हैं।”   (उध्दृत जेएस धनकी, ‘लाला लाजपतराय ऐंड इंडियन नेशनलिज़्म’)

    सावरकर ने हमेशा से ईसाई और मुस्लिम समुदाय को विदेशी मानते हुए सन 1937 में अहमदाबाद में हिंदु महासभा के 19 वें सालाना जलसे में अपने भाषण में कहा-

    “आज यह कतई नहीं माना जा सकता कि हिंदुस्तान एकता में पिरोया हुआ राष्ट्र है, जबकि हिंदुस्तान में ख़ास तौर से दो राष्ट्र है- हिन्दू और मुसलमान।”   (समग्र सावरकर वांग्मय: हिन्दू राष्ट्र दर्शन, खंड 6)

    बाबा साहब अंबेडकर इस तरह के भाषणों से होने वाले एक बड़े नुक्सान के खतरे को समझ रहे थे, उन्होंने इस संदर्भ में परिस्थितियों को देखते हुए साफ लिख दिया था-

    “ऐसे में देश का टूटना अब ज़्यादा दूर की बात नहीं रह गया। सावरकर मुसलमान क़ौम को हिन्दू राष्ट्र के साथ बराबरी से रहने नहीं देंगे। वह देश में हिंदुओं का ही दबदबा चाहते है और चाहते हैं कि मुसलमान उनके अधीन रहे। हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दुश्मनी का बीज बोने के बाद सावरकर अब क्या चाहेंगे कि हिन्दू मुसलमान एक ही संविधान के तले एक अखंड देश में होकर जिए, इसे समझना मुश्किल है।” (बी आर अंबेडकर, पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन)

    इसी तरह के भाषणों, बिगड़ते माहौल और क्रिया प्रक्रिया स्वरूप अंत में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान का प्रस्ताव सन् 1940 में पारित किया था, वह भी तब जब अक्सर नेताओं के भाषण से उन्हें लगा कि अब भारत में रहना आसान नहीं होगा।

    दरअसल आज जनता को समझना होगा कि आज जो लोग देश के बँटवारे का आरोप लगाते हैं उनका ख़ुद का बँटवारे में कितना बड़ा हाथ था और आज भी जो नफरत फैलाने वाले लोग कर रहे हैं उनका एजेंडा समझना होगा।

     

    • 2. भारत हिन्दू राष्ट्र है और हिंदुओं ने मुसलमानों को अपनी ज़मीन पर रखा उनके लिए मस्जिद बनाई आदि-

    भारत हिन्दू राष्ट्र नहीं बल्कि एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। जो मुस्लिम भारत मे रहे वे अपने तमाम संसाधनों, सम्पत्तियों और अपनी ज़मीन के साथ रहे ना ही किसी और के आश्रय पर। हिंदुओं ने उन्हें अपनी ज़मीन पर नहीं रखा बल्कि ये ख़ुद उनकी ज़मीन है और इसी तरह बाकियो की भी। सिखों की, ईसाईयों की, आदिवासियों की सभी की और उन सभी ने अपनी ज़मीनों को मिलाकर भारत देश का निर्माण किया है।

    बेवजह इसे कुछ और दिखाने का प्रयास ना करें। हाँ यह ज़रूर है कि अब कुछ लोग इस देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने की मांग कर रहे हैं।

    उनके बारे में हम यही कहेंगे कि इस मांग को मुस्लिमो से नफरत के चश्मे को उतार के देखे और बाबा साहब और काशीराम जी और दूसरे लोगों ने जिन्होंने इसका विरोध किया है उन्हें इसका विरोध क्यों किया है उसे एक बार ज़रूर पढ लें।

     

    • 3. इस्लाम तलवार से और सूफी संतों के गाने के ज़रिये फैला-

    जब यह बात पुरी तरह झूठ साबित हो गई कि इस्लाम तलवार से नहीं फैला, यहाँ तक कि स्वामी विवेकानंद जी ने ख़ुद इस सोच को ही पागलपन बता दिया उन्ही के शब्दों में:-

     

    “भारत में मुस्लिम विजय ने उत्पीड़ित, ग़रीब मनुष्यों को आज़ादी का जायका दिया था। इसीलिए इस देश की आबादी का पांचवां हिस्सा मुसलमान हो गया। यह सब तलवार के ज़ोर से नहीं हुआ। तलवार और विध्वंस के जरिये हिंदुओं का इस्लाम में धर्मांतरण हुआ, यह सोचना पागलपन के सिवाए और कुछ नहीं है_।”   (संदर्भ : Selected Works of Swami Vivekananda, Vol.3,12th edition,1979.p.294)

    तो नफरत फैलाने वालों ने एक नया हास्यास्पद तथ्य देना शुरू कर दिया कि इस्लाम सूफी संतों के गानों से फैला जिसमे अल्लाह, सजदा आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता था।

    हमे यह बताये की अगर गाने सुनने से धर्म परिवर्तन हो जाता तो आज भारत में एक भी मुसलमान ना बचता क्योंकि यहाँ वे सभी सदियों से हिन्दू भजन ना सिर्फ सुन रहे हैं बल्कि पिछले कुछ दशकों से सुनने के साथ साथ टी व्ही (TV) पर देख भी रहे हैं।

    अतः ज़रा बुद्धि का प्रयोग करें और इस तरह के बुद्धिहीन तथ्य देना बंद करें।

     

    • 4. मुसलमानों का पूर्व नियोजित (Pre planned) काम करना-

    इस पूरे झूठ की पोल खुल जाने पर मुसलमानों का तो नहीं बल्कि इन नफरत फैलाने वालों का प्री प्लान काम ज़्यादा उजागर होता है। जो है अंग्रेजों की तर्ज पर तोड़ो और राज करो (डिवाइड एंड रूल) । फिर जो बच जाए उन पर विभाजन (Division) का आरोप थोप दो। नफरत फैलाते रहो। ख़ुद करो आरोप दूसरों पर। ख़ुद देश को तोड़ने वाले और गृह युद्ध के काम करो और बताओ स्वंय को देश भक्त। आप ख़ुद देख लें, मुस्लिमो से नफरत का मुद्दा हटा दें तो इनके पास बने रहने (survive) के लिए बचता ही क्या है ?? इसे ही तो कहते हैं षड्यंत्र।

    अंत मे यहीं कहना चाहेंगे कि आज के नौजवान इतने बेवकूफ़ नहीं रह गए हैं कि उन्हें पिताजी कुछ भी मनगढ़ंत झूठी कहानी सुनाएंगे जिसे सुनकर नौजवान स्तब्ध रह जाएंगे।

    बल्कि आज का नौजवान इतना समझदार है कि झूठ का शिकार होने की बजाय उल्टा अपने पिताजी को ही कहेगा कि आप आई टी सेल (IT cell) के फेक मैसेज के शिकार हुए हो, षड्यंत्र में आकर बेवजह ब्रेन वाश हो रहे हो और सत्य बता कर उन्हें ख़ुद स्तब्ध कर देगा ना कि ख़ुद स्तब्ध होकर मूर्ख बनेगा।

  • “मुसलमानों की विचारधारा”

    “मुसलमानों की विचारधारा”

    अभी कुछ दिन पहले मैं छुट्टी पर अपने घर गया हुआ था, शाम को मैं और पिताजी “ज़ी न्यूज़” पर सुधीर चौधरी वाला “DNA” देख रहे थे जिसमें बुरहान वानी और महिलाओं इस्लामिक आतंकवाद का मुद्दा चल रहा था।

    अचानक पिताजी ने मुझसे पूछा “मुसलमानों की क्या आइडियोलॉजी है कभी तुमने इस पर ग़ौर किया है”

    मैं थोड़ा संशय में पड़ गया आज पिताजी ने ये कौन-सा अजीब प्रश्न कर दिया, मैं कुछ जवाब देता उससे पहले ही पिताजी ने मुझसे कहा तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ।

     

    “एक गाँव में एक संपन्न परिवार रहता था, उनके पास खेती बाड़ी और पशुओं की कोई कमी नहीं थी, परिवार में दो बेटे थे जो शादीशुदा और संपन्न थे लेकिन एक बेटा बेईमान था वह हमेशा किसी न किसी बात पर अपने माता पिता और भाई से झगड़ा करता रहता था, उसकी रोज़ की कलह कलेश को देखकर माता पिता ने सारी संपत्ति दो भागों में बाँट दी, वह क्लेशी लड़का अपनी सारी सम्पत्ति लेकर दूसरे गाँव में बस गया।

     

    लेकिन उस बेईमान लड़के के भी एक लड़का और लड़की थी जो विभाजन के समय ये कहकर की “वह दादा और दादी को छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे वह दादा दादी को बहुत प्रेम करते हैं, वह हमेशा दादा दादी के साथ ही रहेंगें”

    और वह दोनों दादा दादी के साथ रुक गये।

     

    बूढे दादा दादी उन्हें बहुत प्यार करते थे, अब दादा दादी ने उन बच्चों का अच्छे स्कूल में दाख़िला कराया, उन्हें अच्छी-अच्छी व्यवस्था देने लगे। शुरुआती दिनों में उन बच्चों ने दादा दादी से कहा की वे कभी उन माता पिता के पास नहीं जाएँगे, दादा दादी ने बच्चों को समझाया की तुम हर महीने अपने माता पिता से मिल सकते हो। 

    अब बच्चे हर महीने अपने माता पिता के पास जाते थे और दादा दादी के ख़र्चे से मौज उड़ाते थे। इस तरह उनका समय बीतता गया।

     

    कुछ वर्षों बाद जब बच्चे बड़े हो गये, अब दादा दादी ने अपना हिस्सा बेचकर लड़के के लिए एक अच्छा व्यवसाय खुलवाया और लड़की के लिए एक अच्छा परिवार देखकर शादी कर दी, जिसमें दादा दादी ने अपनी सम्पत्ति का चौथाई हिस्सा दहेज़ में दे दिया।

     

    अब लड़के ने अपने व्यवसाय में घाटा दिखा कर उस व्यवसाय को बचाने के बहाने दादा दादी से और रुपया ऐंठा, फिर लड़की ने भी अपने पति के लिए व्यवसाय खुलवाने के लिए दादा दादी से एक अच्छी रक़म उधार ली, इस तरह ये माज़रा चलता रहा और दादा दादी हमेशा इस भ्रम में रहे की उनके नाती नातिन उन्हें बहुत प्यार करते हैं।

     

    लेकिन दादा दादी का दूसरा लड़का जो ये मंशा समझ रहा था ने उन बुजुर्गो को समझाने की बहुत कोशिश की जिसके चलते परिवार में बहुत झगड़ा हुआ, फिर उन लड़के लड़की ने सारे गाँव में ये हल्ला मचा दिया की दादा दादी और उसके चाचा जी उन पर बहुत अत्याचार कर रहे हैं, फिर उन बच्चों ने गाँव में शोर कर दिया की इन दादा दादी के कहने पर वे अपने माता पिता के साथ नहीं गये और आज ये सभी हम पर अत्याचार कर रहें हैं, फिर उन बच्चों ने “पटवारी” को कुछ लालच देकर अपने पक्ष में खड़ा कर लिया और गाँव में घोषणा कर दी की वे दादा दादी की सम्पत्ति के जायज़ हक़दार हैं और वे अपना हिस्सा लेकर दादा दादी से अलग होना चाहते हैं।

     

    अब गाँव के कुछ लालची उनके पक्ष में खड़े हो गये और इस तरह उन बच्चों ने दादा दादी को कंगाल कर दिया और उन बूढे दादा दादी को सारे गाँव की नज़रों में अत्याचारी, बेईमान, धोखेबाज़ की पदवी दिला दी और फिर वह बच्चे अपने माँ बाप के साथ मिल गये।

     

    अब दिनों बाद कहानी में ट्विस्ट आया जब दादा दादी को पता चला की “ये सारा खेल पूर्व नियोजित (प्री प्लान) था, जिसे उनके ही उस क्लेशी लड़के ने रचा था और जान बूझकर अपने बच्चों को वहाँ छोड़कर गया जिससे वह उनकी सारी सम्पत्ति को हड़प सके”

     

    अब मेरे पिताजी ने मुझसे कहा की “अब मुसलमानों की स्थिति देखो, उन्होंने भारत जैसे सम्पन्न परिवार को जान बूझकर धर्म के आधार पर विभाजित करवाया और अपना हिस्सा लिया।

     

    अब उन्होंने अपने प्लान के अनुसार कुछ मुसलमानों को भारत में ही रहने की हिदायत दी, अब उन मुसलमानों ने भी भारत के हिन्दुओँ को भरोसा दिया की वह भारत से बहुत प्यार करते हैं (ठीक वैसे ही जैसे वह बच्चे उन बूढ़े दादा दादी से करते थे) और वह अपने मरते दम तक भारत में ही रहेंगें”। 

     

    फिर कुछ सालों बाद उन मुसलमानों ने पाकिस्तान के अपने रिश्तेदारों (माता पिता) से मिलना शुरू कर दिया, लेकिन मासूम भारत के हिन्दू यही समझते रहे की वह मुसलमान उन्हें बहुत प्यार करते हैं, इसलिये वह मुस्लिम भारत छोड़कर नहीं गये।

    इस वात्सल्य में हिन्दुओँ ने अपनी जमींन पर उनके लिए मस्जिदें बनवायीं और उन्हें सिर आँखों पर रखा। फिर उन मुसलमानों ने अपना रँग दिखाना शुरू किया और बेईमानी पर उतर आये और उन्होंने भारत के कई हिस्सों पर अपनी आबादी के आधार पर कब्ज़ा जमा लिया, जिसमें उस “पटवारी” जैसे वामपंथियों ने भारत में ये घोषणा कर दी की हिन्दू बहुत दमनकारी और अत्याचारी हैं, इन हिन्दुओँ ने मासूम मुसलमानों पर अत्याचार किया है और उनका हिस्सा नहीं दे रहे।

     

    फिर पिताजी ने कहा की “तुम्हें क्या लगता है, की उन दादा दादी (हिन्दुओँ) को आज बेवकूफ़ बनाया जा रहा है, वास्तव में उन दादा दादी (हिन्दुओँ) का बेवकूफ बनने का इतिहास बहुत पुराना है, पहले मुसलमानों ने हिन्दुओँ को तलवार के बल पर इस्लाम कबूल कराया और जब इससे बात ना बनी तो उन्होंने हिन्दुओँ को बेवकूफ़ बनाने का एक और तरीका ईजाद कर लिया, वह था “सूफ़ी संत” जिसमें हिन्दुओँ को ढोंगी प्रेम के नाम पर इस्लाम और अल्लाह की महत्ता दिखाने लगे, उनके हर सूफ़ी गाने में सिर्फ़ इस्लाम के प्रतीकों जैसे “अल्लाह, ख़ुदा, मौला, रसूल, सजदा जैसे शब्द ही आते थे जिसको उन मासूम दादा दादी जैसे हिन्दुओँ ने पुरजोर से अपनाया।

     

    फिर पिताजी ने मुझसे कहा की “भारत एक मात्र हिन्दू राष्ट्र है, लेकिन दुःख की बात है यहाँ हिन्दुओँ को आज भी मुसलमानों की मानसिकता समझ नहीं आयी, तुम्हें क्या लगता है अगर कश्मीर इन्हें दे दिया जाए तो समस्या ख़त्म हो जायेगी! बिल्कुल नहीं ख़त्म होगी, आज ये कश्मीर की माँग कर रहे हैं आने वाले कल को ये हैदराबाद माँगेगे फिर केरल फिर असम फिर पश्चिम बंगाल और इस तरह ये धीरे-धीरे पूरे भारत पर कब्ज़ा करना चाहेँगे।”

     

    क्या तुम जानते हो मुसलमान हमेशा अपने पूर्व नियोजित अनुसार काम करते हैं, जब उन्हें किसी देश पर कब्ज़ा करना होता है तो वह हमेशा अपने आप को दो ग्रुप में बाँट लेते हैं जिसमें एक कट्टर होता है जो आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देता है और दूसरा तुमसे झूठे प्रेम का ढोंग दिखाता है जो तुम्हें हमेशा ये विश्वास दिलाता है कि आतंकवादी इस्लामी नहीं होते, उन्हें धर्म के आधार पर नहीं देखना चाहिए और तुम मासूम हिन्दू उनकी बात मान लेते हो, ये रक़म ख़र्च करके हिन्दुओँ के कुछ ग़द्दारों जैसे वामपंथी और पत्रकारों को अपनी तरफ़ मिला लेते हैं फिर वह ग़द्दार देश में हर तरह ये माहौल बना देते हैं कि मुसलमानों पर अत्याचार हो रहा है और धीरे-धीरे तुम सभी हिन्दू अपनी सम्पत्ति जैसे कश्मीर, बंगाल, असम, केरल, यूपी, बिहार, जैसे कई राज्यों से उन दादा दादी की तरह बे दखल कर दिए जाते हो, लेकिन वह दूसरा शांति और प्रेम का ढोंग दिखाने वाला समुदाय तुम्हें कभी महसूस ही नहीं होने देता की तुम्हारे घर से बे दख़ल किया जा रहा है और तुम आँख बन्द करके मान भी लेते हो। 

     

    और सुनो जब वह तुम्हारे राज्य या देश पर कब्ज़ा कर लेते हैं तो फिर वह दोनों (आतंकवादी कट्टर और शांति का ढोंग करने वाले) उस राज्य या देश को आपस में बराबर बाँट लेते हैं ठीक उस क्लेशी बाप और उनके बच्चों की तरह”……

     

    अब पिताजी ने अपनी बात पर विराम दिया और मैं आज अपने पिताजी की बात सुनकर स्तब्ध रह गया, कितनी बड़ी बात उन्होंने कितने आसान शब्दों में समझा दी।

     

    झूठ की बुनियाद पर नफरत की मुहिम चलाने वाले 24 घण्टे तरह-तरह से तरीके बदल-बदल कर नफ़रत और झूठ फैलाने में लगे रहते हैं ।

     

    जैसे यहाँ एक कहानी की शक्ल में लोगों के दिमाग में ज़हर भरा जा रहा है। सबसे पहले तो यह बात भली भांति समझ लें कि झूठ, झूठ ही रहता है चाहे वह सीधी तरह कह दिया जाए या कहानी के रूप में बोला जाए। 

     

    अब देखिए इस प्रोपेगंडे उर्फ़ कहानी की शुरुआत ही यहाँ से होती है कि “एक परिवार के दो बेटे थे जिसमें से “एक बेईमान था” जिस से अभिप्राय मुसलमान है। अतः अगर कोई ध्यान दे तो उसे इस घटिया मैसेज की मंशा का यहीं आभास हो जाये और उसे आगे पड़ने की ज़रूरत ही ना पड़े ।

     

    70 सालों से इस देश के मुसलमान इस देश के लिए जान माल लुटाते आये हैं सुरक्षा से लेकर चिकित्सा, खेल से लेकर कला हर जगह उनका योगदान है। बात सिर्फ पाकिस्तान के विरुद्ध करे तो रक्षा के उपकरणों की ईजाद हो, युद्ध का मैदान हो या खेल का मैदान भारत की जीत में मुसलमानों का योगदान हर जगह रहा है।

     

    फिर भी यह झूठे, देश तोड़ने और नफरत फैलाने वाले लोग रणनीति के तहत मुसलमानों का इस घटिया तरीके से चित्रण करते हैं, उन्हें पाकिस्तान परस्त और देश का दुश्मन बताने का कुप्रयास करते हैं । शर्म आना चाहिए इन्हें।

     

    देश के प्रगति और अखंडता के असली दुश्मन तो यह है जो ख़ुद देश को गृह युद्ध की तरफ धकेल रहे हैं और ऐसा यह पहल भी कर चुके हैं ।

     

    अब आइए इन के कहानी के माध्यम से ब्रेन वाश करने के उद्देश्य से उठाये कुछ बिंदुओं पर

    • 1. मुस्लिमो ने देश के टुकड़े किये?
      यदि आप इतिहास का अध्ययन करे तो आप इस तथ्य से अवगत होंगे जो यहाँ छुपा दिया जाता है दरअसल दो राष्ट्र की बुनियाद हिंदू राष्ट्रवादी सोच के लोगों ने रखी थी

    यह बात बिल्कुल प्रमाणित है कि मुस्लिम लीग की दो देश की बात उठाए जाने से बहुत पहले अठारहवीं सदी में ही हिन्दू राष्ट्रवादियों ने इस सिद्धांत की बुनियाद डाल दी थी। जो कि उन्नीसवीं सदी के आते-आते बहुत मुखर होती गई उनके मशहूर और उभरते हुए नेताओं के ईसाईयों और ख़ास तौर से मुसलमानों को लेकर दिए जा रहे ज़हरीले भाषण भी बढ़ते गए।

    भाई परमानंद, राजनारायण बसु (1826-1899), उनके साथी नव गोपाल मित्र, लाला लाजपत राय, डॉ. बी एस मुंजे,
    वी डी सावरकर, एम एस गोलवलकर आदि हिंदूवादी लोग लगातार एक हिन्दू राष्ट्र की कल्पना कर रहें थे। एक ऐसे हिन्दू राष्ट्र की कल्पना जिसमें ईसाई और मुस्लिम समुदाय के लोग हिंदुओं की दया पर पले। गोलवलकर ने तो जर्मनी के नाज़ियों और इटली के फासिस्टों द्वारा यहूदियों के सफ़ाये की तर्ज़ पर भारत के मुसलमानों और ईसाईयों को चेतावनी दी कि-

    “अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो वे राष्ट्र की तमाम सहिंताओ और परम्पराओं से बंधे, राष्ट्र की दया पर टिके, जिनको कोई विशेष सुरक्षा का अधिकार नहीं होगा, विशेष अधिकारों या अधिकारों की बात तो दूर रही। इन विदेशी तत्वों के सामने सिर्फ़ दो ही रास्ते हैं, या तो वह राष्ट्रीय नस्ल में मिल जाए और उसकी तहज़ीब को अपनाए या उसकी दया पर ज़िंदा रहें जब तक कि राष्ट्रीय नस्ल उन्हें इजाज़त दे और जब राष्ट्रीय नस्ल की मर्ज़ी हो तब वे देश को छोड़ दें।…. विदेशी नस्लों को चाहिए कि वे हिन्दू तहज़ीब और ज़बान को अपना ले… हिन्दू राष्ट्र के अलावा दूसरा कोई विचार अपने दिमाग़ में न लायें और अपना अलग अस्तित्व भूलते हुए हिन्दू नस्ल में मिल जाये या देश में हिन्दू राष्ट्र के साथ दोयम दर्जे के आधार पर रहे, अपने लिए कुछ न मांगे, अपने लिए कोई ख़ास अधिकार न मांगे यहां तक कि नागरिक अधिकारों की भी चाहत न रखें।”
    (एम एस गोलवलकर, वी ऑर अवर नेशन हुड डिफाइंड)

    हिन्दू महासभा के बाल कृष्ण शिवराम मुंजे ने भी ऐसी ही घोषणा की थी।

    डॉ. बी एस मुंजे ने हिन्दू महासभा के फलने फूलने और उसके बाद आर आर एस के बनने में मदद की थी, सन 1923 में अवध हिन्दू महासभा के तीसरे सालाना जलसे में उन्होंने ऐलान किया-

    “जैसे इंग्लैंड अंग्रेज़ो का, फ्रांस फ्रांसीसी का और जर्मनी जर्मन नागरिकों का है, वैसे ही भारत हिंदुओं का है। अगर हिन्दू संगठित हो जाए, तो वह मुसलमानों को वश में कर सकते हैं।”
    (उध्दृत जेएस धनकी, ‘लाला लाजपतराय ऐंड इंडियन नेशनलिज़्म’)

    सावरकर ने हमेशा से ईसाई और मुस्लिम समुदाय को विदेशी मानते हुए सन 1937 में अहमदाबाद में हिंदु महासभा के 19 वें सालाना जलसे में अपने भाषण में कहा-

    “आज यह कतई नहीं माना जा सकता कि हिंदुस्तान एकता में पिरोया हुआ राष्ट्र है, जबकि हिंदुस्तान में ख़ास तौर से दो राष्ट्र है- हिन्दू और मुसलमान।”
    (समग्र सावरकर वांग्मय: हिन्दू राष्ट्र दर्शन, खंड 6)

    बाबा साहब अंबेडकर इस तरह के भाषणों से होने वाले एक बड़े नुक्सान के खतरे को समझ रहे थे, उन्होंने इस संदर्भ में परिस्थितियों को देखते हुए साफ लिख दिया था-

    “ऐसे में देश का टूटना अब ज़्यादा दूर की बात नहीं रह गया। सावरकर मुसलमान क़ौम को हिन्दू राष्ट्र के साथ बराबरी से रहने नहीं देंगे। वह देश में हिंदुओं का ही दबदबा चाहते है और चाहते हैं कि मुसलमान उनके अधीन रहे। हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दुश्मनी का बीज बोने के बाद सावरकर अब क्या चाहेंगे कि हिन्दू मुसलमान एक ही संविधान के तले एक अखंड देश में होकर जिए, इसे समझना मुश्किल है।”
    (बी आर अंबेडकर, पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन)

    इसी तरह के भाषणों, बिगड़ते माहौल और क्रिया प्रक्रिया स्वरूप अंत में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान का प्रस्ताव सन् 1940 में पारित किया था, वह भी तब जब अक्सर नेताओं के भाषण से उन्हें लगा कि अब भारत में रहना आसान नहीं होगा।

    दरअसल आज जनता को समझना होगा कि आज जो लोग देश के बँटवारे का आरोप लगाते हैं उनका ख़ुद का बँटवारे में कितना बड़ा हाथ था और आज भी जो नफरत फैलाने वाले लोग कर रहे हैं उनका एजेंडा समझना होगा।

    • 2. भारत हिन्दू राष्ट्र है और हिंदुओं ने मुसलमानों को अपनी ज़मीन पर रखा उनके लिए मस्जिद बनाई आदि-

    भारत हिन्दू राष्ट्र नहीं बल्कि एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। जो मुस्लिम भारत मे रहे वे अपने तमाम संसाधनों, सम्पत्तियों और अपनी ज़मीन के साथ रहे ना ही किसी और के आश्रय पर। हिंदुओं ने उन्हें अपनी ज़मीन पर नहीं रखा बल्कि ये ख़ुद उनकी ज़मीन है और इसी तरह बाकियो की भी। सिखों की, ईसाईयों की, आदिवासियों की सभी की और उन सभी ने अपनी ज़मीनों को मिलाकर भारत देश का निर्माण किया है।

    बेवजह इसे कुछ और दिखाने का प्रयास ना करें। हाँ यह ज़रूर है कि अब कुछ लोग इस देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने की मांग कर रहे हैं।

    उनके बारे में हम यही कहेंगे कि इस मांग को मुस्लिमो से नफरत के चश्मे को उतार के देखे और बाबा साहब और काशीराम जी और दूसरे लोगों ने जिन्होंने इसका विरोध किया है उन्हें इसका विरोध क्यों किया है उसे एक बार ज़रूर पढ लें।

    • 3. इस्लाम तलवार से और सूफी संतों के गाने के ज़रिये फैला-

    जब यह बात पुरी तरह झूठ साबित हो गई कि इस्लाम तलवार से नहीं फैला, यहाँ तक कि स्वामी विवेकानंद जी ने ख़ुद इस सोच को ही पागलपन बता दिया उन्ही के शब्दों में:-

    “भारत में मुस्लिम विजय ने उत्पीड़ित, ग़रीब मनुष्यों को आज़ादी का जायका दिया था। इसीलिए इस देश की आबादी का पांचवां हिस्सा मुसलमान हो गया। यह सब तलवार के ज़ोर से नहीं हुआ। तलवार और विध्वंस के जरिये हिंदुओं का इस्लाम में धर्मांतरण हुआ, यह सोचना पागलपन के सिवाए और कुछ नहीं है_।”
    (संदर्भ : Selected Works of Swami Vivekananda, Vol.3,12th edition,1979.p.294)

    तो नफरत फैलाने वालों ने एक नया हास्यास्पद तथ्य देना शुरू कर दिया कि इस्लाम सूफी संतों के गानों से फैला जिसमे अल्लाह, सजदा आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता था।

    हमे यह बताये की अगर गाने सुनने से धर्म परिवर्तन हो जाता तो आज भारत में एक भी मुसलमान ना बचता क्योंकि यहाँ वे सभी सदियों से हिन्दू भजन ना सिर्फ सुन रहे हैं बल्कि पिछले कुछ दशकों से सुनने के साथ साथ टी व्ही (TV) पर देख भी रहे हैं।
    अतः ज़रा बुद्धि का प्रयोग करें और इस तरह के बुद्धिहीन तथ्य देना बंद करें।

    • 4.  मुसलमानों का पूर्व नियोजित (Pre planned) काम करना-

    इस पूरे झूठ की पोल खुल जाने पर मुसलमानों का तो नहीं बल्कि इन नफरत फैलाने वालों का प्री प्लान काम ज़्यादा उजागर होता है। जो है अंग्रेजों की तर्ज पर तोड़ो और राज करो (डिवाइड एंड रूल) । फिर जो बच जाए उन पर विभाजन (Division) का आरोप थोप दो। नफरत फैलाते रहो। ख़ुद करो आरोप दूसरों पर। ख़ुद देश को तोड़ने वाले और गृह युद्ध के काम करो और बताओ स्वंय को देश भक्त। आप ख़ुद देख लें, मुस्लिमो से नफरत का मुद्दा हटा दें तो इनके पास बने रहने (survive) के लिए बचता ही क्या है ?? इसे ही तो कहते हैं षड्यंत्र।

    अंत मे यहीं कहना चाहेंगे कि आज के नौजवान इतने बेवकूफ़ नहीं रह गए हैं कि उन्हें पिताजी कुछ भी मनगढ़ंत झूठी कहानी सुनाएंगे जिसे सुनकर नौजवान स्तब्ध रह जाएंगे।

    बल्कि आज का नौजवान इतना समझदार है कि झूठ का शिकार होने की बजाय उल्टा अपने पिताजी को ही कहेगा कि आप आई टी सेल (IT cell) के फेक मैसेज के शिकार हुए हो, षड्यंत्र में आकर बेवजह ब्रेन वाश हो रहे हो और सत्य बता कर उन्हें ख़ुद स्तब्ध कर देगा ना कि ख़ुद स्तब्ध होकर मूर्ख बनेगा।

     

     

  • ISIS के झण्डे पर कलमा लिखा होता है मुस्लिम इसका विरोध क्यों नही करते ?

    ISIS के झण्डे पर कलमा लिखा होता है मुस्लिम इसका विरोध क्यों नही करते ?

    जवाब:-  पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ जी के हर वीडियो की तरह यह विडियो भी झूठ के द्वारा डर और हिंसा भड़का कर समाज में ध्रुवीकरण कर राजनीतिक फायदा उठाने के चतुर प्रयास का उदाहरण है।

    आइए सिर्फ़ सुने नहीं बल्कि ध्यान देकर शब्दों के पीछे के षड्यंत्र और कुतर्कों को समझें और इनकी हक़ीक़त सामने लाएँ।

    सबसे पहले कुलश्रेष्ठ जी ISIS के झंडे पर “पहला कलमा” लिखा है से शुरू करते हैं और बड़ी ही चालाकी से कुछ सेकंड के अंदर ही ISIS के आतंकी शब्द की जगह सीधे “मुसलमान कलमा लिखा झंडा लेकर आतंक कर रहे है” कहने लग जाते हैं और अगले सेकंड में ही उन मुसलमान (जो कि वास्तव में मुस्लिम नहीं है सिर्फ़ हुलिया बना रखा है) को हिंदुस्तान का मुसलमान बना डालते हैं। कमाल है कुछ फ़र्क़ ही नहीं रहा।

    खैर आगे वे कहते हैं चूंकि इस्लामिक नारे का इस्तेमाल हो रहा है और मुसलमान इसका विरोध नहीं कर रहे हैं इसलिए हिंदुस्तान के मुसलमान मक्कार और मुनाफिक है।

    सर्वप्रथम यहाँ पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ जी ख़ुद को ही अपने ही शब्दों में मक्कार साबित कर रहे हैं क्योंकि यह वह अच्छे से जानते हैं कि ख़ुद हमारे देश में जय श्री राम का नारा लगाने को मजबूर करते हुए लोगों की भीड़ कई निर्दोषो को बाँधकर मौत के घाट उतार देती है उन वीडियो में कई सारे धार्मिक झंडे भी नज़र आते हैं कई सारे लोग धार्मिक नारे लगा रहे होते हैं और ऐसे एक नहीं बल्कि कई सारे मॉब लिंचिंग और दंगों के केस इस देश में हो रहे है तो क्या श्री पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ को शर्म नहीं आ रही?? ख़ुद के आस पास और धर्म से जुड़े मामलों की बात छोड़कर हजारों किलोमीटर दूर किसी घटना का ज़िक्र करके अपने ही देश वालों को आतंकी घोषित कर रहे हैं।

    तो ऐसा करते ही वह ख़ुद अपने ही शब्दों के अनुसार मक्कार निर्लज्ज और झूठे साबित नहीं हो जाते?

    अब आते हैं उनके इस आरोप पर की मुसलमान पैगम्बर ऐ इंसानियत हज़रत मोहम्मद सलल्लाहो अलैहि व सल्लम के अपमान पर जिस स्तर का विरोध करते हैं वैसे ही ISIS आदि के लिए क्यों नहीं करते?

    पुष्पेंद्र जी तो यह बात भली भांति जानते हैं कि दोनों ही बातों में एक मूल फ़र्क़ है जिसे जानते ही इस प्रोपेगंडे की पोल खुल जाती है लेकिन वह बड़ी चालाकी से इसे लोगों के सामने छुपा जाते हैं। जिसे हमें जानना चाहिए।

    वह यह है कि हज़रत मोहम्मद सलल्लाहो अलैहि व सल्लम के अपमान के मामले में मुस्लिमों ने ही शांति पूर्वक यह अपील की कि आप ऐसा कर हमारी धार्मिक भावना आहत ना करें लेकिन इस अपील पर ना ही वे रुके ना किसी देश / सरकार ने इसे रोकने का प्रयास किया अतः विरोध प्रदर्शन हुए।

    जबकि ISIS के मामले में तो देश / दुनिया की बड़ी-बड़ी मिलिट्री आर्मी उन्हें ख़त्म करने में लगी हुई हैं। उन्हें ख़त्म करने में दुनिया के तमाम संसाधन और ताकत लगा रखी है। अगर इसी तरह का या इससे 100 गुना छोटा प्रयास भी अगर दुनिया ने हज़रत मोहम्मद (स.अ.व.) के अपमान को रोकने में लगाया होता तो मुस्लिमो को किसी तरह का विरोध प्रदर्शन नहीं करना पड़ता।

    बल्कि इसमें तो बड़े आश्चर्य की बात है कि अमेरिका, रूस जैसे देश इतने सारे मिलिट्री संसाधन लगाने के बावजूद ISIS का खात्मा क्यों नहीं हो पा रहा??

    ISIS मुस्लिम है भी या जैसे बुर्का, टोपी पहनकर गैर-मुस्लिम ग़लत काम करते है उस तरह से कोई अन्य है ताकि मुस्लिमो के खिलाफ नफ़रत का प्रोपेगेंडा चलाया जा सके जो अंतरराष्ट्रीय स्तर का प्रयास है?

    क्योंकि बहुत-सी बातें है जो इस और इशारा करती हैं कि ISIS मुस्लिम संगठन नहीं है। बल्कि मोसाद और CIA के द्वारा खड़ा किया गया लगता है??

    • 1. जैसे ISIS के हमले प्रमुख रूप से मुस्लिम राष्ट्रों पर ही हो रहे हैं जिनमे शिया सुन्नी दोनों मुस्लिम तरह के राष्ट्र शामिल हैं।
    • 2. ISIS के नाम से प्रचारित की गई वीडियो का झूठा (fake) साबित होना जैसा कि अमेरिका के द्वारा 2 लाख $ डॉलर की लागत से फ़िल्माया जाना साबित हुआ।
    • 3. ख़ुद अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प का यह दावा करना कि ISIS को खड़ा करने के पीछे पूर्व राष्ट्रपति ओबामा का हाथ है।

    ऐसे और भी कई तथ्य हैं जो ISIS को मुस्लिम नहीं बल्कि भाड़े के क़ातिल का गुट कह सकते है। इसके बावजूद विश्व भर में मुस्लिमो ने ISIS और इस तरह के सभी आतंकी संस्थाओं का पुरज़ोर विरोध किया है जो श्री पुष्पेंद्र को नहीं दिखता।👇

    विश्व का सबसे बड़ा मदरसा (दारुल उलूम देवबंद) ने फतवा जारी किया👇

    1) https://m.timesofindia.com/india/deoband-first-a-fatwa-against-terror/articleshow/3089161.cms

    2)https://www.hindustantimes.com/delhi/coming-fatwa-against-terrorism/story-EZRGI5IPyMv2e5b8bZ1EUP.htm

    3)https://www.thehindu.com/news/national/darul-uloom-deoband-condemns-alqaeda-move/article6384559.ece

    4)https://www.indiatvnews.com/news/india/madrasasjoin-hands-to-create-awareness-against-isis-55989.html

    • मुस्लिम कार्यकर्ता ने की पेरिस आतंकी हमले की निंदा👇

    • शहर भर के मुस्लिम संगठनों ने घोषणा की कि मुस्लिम कब्रिस्तानों में मारे गए आतंकवादी के लिए कोई जगह नहीं है👇

    https://edition.cnn.com/2009/WORLD/asiapcf/04/17/mumbai.bodies/

    हाँ यह अवश्य है कि पुष्पेंद्र कभी राम और भगवा के नाम पर हो रहे ग़लत कामो के खिलाफ बोलते नहीं दिखे। तो उन्ही के शब्दों में वे क्या हैं यह अब दोहराने की ज़रूरत नहीं।

    उनका नजरिया बिल्कुल यही है।👇

     

    हर धर्म से जुड़े उग्रवादी संगठन अपने नामो में उस धर्म के प्रतीक और चिन्हों का प्रयोग करते हैं जैसे फलाँ सेना ,फलाँ दल आदि तो क्या पुष्पेंद्र हथियार लेकर उन्हें ख़त्म करने चले जाते है?? नहीं ना यह काम तो सेना और सुरक्षा बल का होता है। तो क्या वे यह चाहते हैं कि हिंदुस्तान का मुसलमान हथियार लेकर ISIS आदि का खात्मा करने चले जाएँ? इस तरह की बचकाना बाते और मूर्खतापूर्वक तर्क गंभीर चेहरा बना कर कहने से लोग भड़क जाएंगे और मूर्ख बन जाएंगे ऐसा अब श्रीमान को सोचना छोड़ देना चाहिए।

    क्या नमाज़ डर का प्रतीक है इससे पलायन होता है?

    जिसने भी जीवन में किसी को नमाज़ पड़ते देखा है वह जानता है कि पुष्पेंद्र जी यहाँ कितना बड़ा झूठ रच रहे हैं। नमाज़ कोई उग्र और हिंसक प्रदर्शन नहीं है। अगर पलायन की बात करें तो यातनाओं से दुखी होकर देशभर में जिन जगहों से मुस्लिमो को पलायन करना पड़ा है उसकी लिस्ट इतनी लंबी है कि उल्लेख ही नहीं किया जा सकता। कुछ एक की बात करे तो यू.पी. के श्यामली, तापराना, सम्भल राजस्थान के डाँटल आदि के बारे में पुष्पेंद्र जी का क्या कहना है?? जहाँ से सैकड़ो की संख्या में मुसलमानों ने प्रताड़ना की वज़ह से पलायन किया है।

    फिर भी यहाँ हम बहुसंख्यक को दोष नहीं देंगे। बल्कि इस तरह के सारे पलायनो के ज़िम्मेदार ये ज़हर फैलाने वाले लोग ही हैं जिनकी मंशा वोट की ध्रुवीकरण करने की है। नहीं तो सदियों से साथ रह रहे लोगों को आज क्या हो गया जो डर और असुरक्षा की वज़ह से पलायन करना पड़ रहा है?

    इसी संदर्भ के दौरान पुष्पेंद्र जी की यह बात बड़ी हास्यास्पद है कि वे पूरे देशभर की जगहों की गिनती कराते हुए कहने लगते हैं कि सभी को मालूम है यहाँ ये हो रहा है वहाँ वह हो रहा है।

    अगर सबको मालूम है कि ऐसा हो रहा है, तो फिर आपकी चहेती सरकार कुछ कर क्यों नहीं रही? *क्या अब आप यह मानने पर मजबूर नहीं है कि या तो आपकी प्रिय सरकार अक्षम है, या आप झूठ बोल रहे हैं? या न आप झूठ कह रहे है ना सरकार अक्षम है बल्कि वह तो ख़ुद यह होने दे रही है ताकि आप ऐसे ज़हर फैलाते रहे और उन्हें लाभ मिलता रहे??*

    और अंत में ~सेना के खिलाफ सोशल मीडिया पर कमेंट~

    पुलवामा हमले पर बहुत ही गंभीर सवाल उठे थे जिन पर से ध्यान हटाने के लिए हर बार की तरह पुष्पेंद्र जी के पास एक ही तरीक़ा है वह है मुस्लिम और इस्लाम।

    ज़रा वे यह बताने का कष्ट करेंगे कि जब कफील खान देश की एकता पर भाषण देते हैं तो उसे देश विरोधी बता कर महीनों जेल में रखा जा सकता है NSA जैसे एक्ट लगा दिये जा सकते हैं। तब पुष्पेंद्र जी और उनकी चहेती सरकार उस कॉमेंट जिस का वे ज़िक्र कर रहे हैं पर तो बड़ी से बड़ी कार्यवाही कर सकती थी और ऐसे सभी लोगों पर तो UAPA, POTA लगाया जा सकता था? मगर ऐसा नहीं किया गया तो क्या वे सब IT सेल वाले थे जो मुसलमानों की फ़र्ज़ी id बना कर कमेंट कर गए?? ताकि ध्यान मुख्य मुद्दे से ध्यान हटा कर साम्प्रदायिकीकरण किया जा सके?

    असल बात तो यह है कि किसे नहीं मालूम के पुलवामा से सबसे ज़्यादा लाभ किसे हुआ..?? इंटेलिजेंस की सूचना देने के बाद भी इतना बड़ा हमला क्यों रोका नहीं जा सका.?? सैनिकों को एयरलिफ्ट करने की मांग की जगह बसों से ही क्यों भेजा गया..??

    अब चाहे पुष्पेंद्र जी मुसलमानों को दोष देते रहें, सोशल मीडिया की फ़र्ज़ी कमेंट की बात करते रहे चाहे जो करें आज नहीं तो कल वे ज़्यादा दिन तक अपना प्रोपेगेंडा नहीं चला पाएंगे जनता अब इतनी भी मूर्ख नहीं रही। उन्हें इन सवालों के जवाब देना पड़ेंगे। हर चीज़ में मुस्लिम एंगल लाकर ध्यान बटा कर राज करते रहना अब ज़्यादा दिन चलने वाला नहीं। झूठ और डर की यह दूकान जल्द बन्द होगी।

     

  • क्या सड़कों पर नमाज़ लोगों को डराने के लिए पढ़ी जाती है?

    क्या सड़कों पर नमाज़ लोगों को डराने के लिए पढ़ी जाती है?

    जवाब:-  झूठे हवाले देने में माहिर और अपने आप को इस्लाम का महा ज्ञाता बताने वाले इन महाशय से ज़रा ये पुछिये की क्या वे इस बात का कोई झूठा ही सही मगर कोई हवाला दे सकते हैं कि ऐसा कहाँ लिखा है कि नमाज़ गैर मुस्लिम को डराने के लिए पढ़ी जाती है?

    यह दरअसल पुष्पेंद्र के उस एजेंडे का ही हिस्सा है कि मुस्लिमों के हर कृत्य को ऐसा दिखाओ की मानो वह ऐसा गैर मुस्लिमों को तकलीफ़ देने के लिए या डराने के लिए ही कर रहे हैं। जबकि ऐसा कुछ नहीं है।

    मुस्लिम नमाज़ अल्लाह की रज़ा और ख़ुशनूदी के लिए पढ़ते हैं। नमाज़ पढ़ते हुए कई ग़ैर मुस्लिमों ने अपने मुस्लिम दोस्तो को देखा होगा। नमाज़ बिल्कुल शांति से अदा की जाती है, ना इसमें कोई मूर्ति स्थापित की जाती है, न कोई रंग-रोगन या कोई आग वगैरह लगाई जाती है ना ही ऐसा कुछ और किया जाता है। पूरी नमाज़ में कोई एक भी ऐसा कृत्य नहीं होता जिस से डरना तो दूर किसी दूसरे व्यक्ति को एतराज़ भी हो।

    जिनको शांति से अदा की जा रही नमाज़ ऐसे लग रही है जैसे वह दूसरे धर्म के लोगों को डराने के लिए किया जा रहा है तो फिर वे चौराहों पर होली के दौरान होली दहन, सड़को पर मूर्ति स्थापना, विसर्जन यात्रा, शस्त्र-पूजन और फिर अन्य यात्रा के बारे में क्या कहेंगे?

    अतः यह बेवजह का प्रोपेगेंडा दरअसल धार्मिक नफ़रत और हिंसा भड़काने के मिशन पर लगे यह महाशय कर रहे हैं ।

    दूसरी बात यह कि यह बिल्कुल सत्य है कि किसी को कोई तकलीफ देना इस्लाम में बिल्कुल मना है और आम हालात में कोई भी मस्जिद में जगह होने पर बेवजह सड़क पर नमाज़ नहीं पढ़ता है। ऐसा सिर्फ़ ख़ास अवसरों पर ही भीड़ अधिक हो जाने पर होता है, ठीक वैसे ही जैसे विशेष अवसरों पर मंदिरों के बाहर, या गुरुद्वारों के बाहर हो जाता है।

    इसके अलावा अगर मजबूरी में कही मस्जिद आसपास नहीं हो और कहीं और नमाज़ पढ़ना भी पढ़े तो ऐसी जगह पढ़े जहाँ किसी को तकलीफ़ ना हो। लेकिन अगर कोई बेवजह ही एतराज़ (objection) ले रहा हो तो उसका कोई मतलब नहीं। ऐसे ही झूठे हवाले देने में माहिर श्रीमान कह रहे हैं कि फ़रमाया “कि कहीं भी अगर किसी को डॉट (.) बराबर भी ऑब्जेक्शन हो तो मैं नमाज़ कबूल करूँगा ही नहीं? “तो यह महाशय बताएँ की इसका संदर्भ (रेफरेंस) कहाँ है? कहाँ ऐसा लिखा है? ऐसे तो पुष्पेंद्र जैसे लोगों को तो मस्जिद या घरों में नमाज़ पढ़ रहे लोगों से भी एतराज़ (Objection) होगा तो क्या इसका मतलब यह हुआ कि कही नमाज़ पढ़े ही नहीं?

    और अंत में पुष्पेंद्र जी ख़ुद इस बात से वाकिफ़ तो होंगे ही की इस देश में मुस्लिमों के वक़्फ़ बोर्ड की कितनी ज़मीन है और उस पर किसका कितना कब्ज़ा किया हुआ है और उनकी प्रिय पार्टी से जुड़े व्यक्ति जिसको वक्फ बोर्ड का चेयरमैन बना दिया गया था उसके ऊपर वक्फ बोर्ड की कितनी ज़मीनो को हड़पने और बेचने का केस चल रहा है?

    अगर वक़्फ़ की यह ज़मीन सही मायनों में मुस्लिमों को प्राप्त हो जाये तो सभी मस्जिदों की इतनी गुंज़ाइश (Capacity) हो जाएगी कि विशेष अवसरों पर भी अधिक भीड़ होने पर भी किसी को बाहर नमाज़ पढ़ने की ज़रूरत नहीं होगी।

  • पुष्पेंद्र के मस्जिद, हज और नमाज़ के बारे में सवाल का जवाब दें?

    पुष्पेंद्र के मस्जिद, हज और नमाज़ के बारे में सवाल का जवाब दें?

    जवाब:-

    पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ के हर वीडियो की तरह यह वीडियो भी ब्रेनवॉशिंग का बेहतरीन नमूना है, जिसमे झूठ और जज़्बातों (emotions) का घालमेल कर लोगों को मुस्लिमो से नफ़रत करने और इस्लाम का दुष्प्रचार करने की कोशिश की गई है। किसी समझदार व्यक्ति को यह बताने की ज़रूरत ही नहीं कि इसके पीछे कारण राजनीतिक लाभ है और इससे ही इनकी आजीविका जुड़ी हुई है।

    लेकिन ईश्वर की कृपा से ऐसी तमाम कोशिशों से इस्लाम को तो कुछ नुक़सान नहीं होता बल्कि फ़ायदा ही होता है। क्योंकि इस तरह के झूठ से लोगों की इस्लाम को जानने की जिज्ञासा ही बढ़ती है और कई लोगों ने इसके बाद इस्लाम का अध्ययन कर इस्लाम कबूल किया और ऐसा आज से नहीं बल्कि पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के समय से ही होता आ रहा है और आज भी विश्व में सबसे तेजी से क़बूल किया जाने वाला धर्म इस्लाम ही है।

    अब आइए इस वीडियो में उठाए गए सवालों और कहे गए झूठ की तरफ़ बढ़ते हैं।

    सबसे पहले यह समझें कि इस प्रोपेगंडे से पुष्पेंद्र यहाँ कौन-सा मकसद साधना चाहते हैं?

    थोड़ा ग़ौर करने पर ही आपको समझ में आ जायेगा कि यहाँ उनका मकसद लोगों की नज़र में मस्जिदों की अहमियत कम करके और उन्हें तोड़े जाने को एक सामान्य कार्य सिद्ध करना है ताकि वह लोगों को मस्जिद हटाकर मंदिर बनवाने की राजनीति में ही अगली कुछ सदियों तक फँसा रखे।

    • सवाल 1:- वे कहते हैं “इस्लाम में मस्ज़िद का कोई धार्मिक महत्व नहीं है क्योंकि इसमें अल्लाह की मूर्ति नहीं है। जिस तरह होटल में खाना खाया जाता है। उसी तरह मस्ज़िद में नमाज़ पड़ी जाती है। जैसे होटल को तोड़ कर दूसरी जगह बनाया जा सकता है, उसी तरह मस्ज़िद को तोड़ कर दूसरी जगह बनाया जा सकता है। इसकी दलील है, लोगों का सड़को पर नमाज़ पड़ना।

    जवाब:-

    1. सामान्य बुद्धि (Common sense) से:-

    इस्लाम में मूर्ति पूजा नहीं है, अल्लाह का ना कोई अक्स (आकार) है ना कोई मूर्ति। यह बात तो बिल्कुल ही बुनियादी (Basic) बात है और इसे सभी जानते हैं।

    अब अगर कोई यूँ कहे कि मस्जिद में अल्लाह की कोई मूर्ति नहीं होती इसलिये इस्लाम में मस्जिद की कोई अहमियत नहीं है। तो उसे तो बड़ा ही कम-अक्ल कहा जाएगा।

    और यही काम यहाँ पुष्पेंद्र जी कर रहे हैं। या तो उन्हें इतना भी नहीं पता की इस्लाम में मूर्ति का तसव्वुर ही नहीं है, या वह सामने बैठी जनता को महामूर्ख समझते हैं। यहाँ वे गम्भीर शक्ल बना कर यही बात कह रहे हैं कि “इस्लाम में मस्जिद की अहमियत नहीं है ऐसा इसलिए “क्योंकि वहाँ अल्लाह की मूर्ति नहीं है।”

    भाई, भले ही आप गम्भीर शक्ल बना लें और बड़ी-गम्भीर, बुद्धि-वाली बात कहने की एक्टिंग कर ले, लेकिन फिर भी मूर्खतापूर्ण कही गई बात तो मूर्खतापूर्ण ही रहेगी और ऐसा ही यहाँ हुआ है।

    आपको क़ुरआन या धर्म ग्रन्थों की जानकारी होना ज़रूरी नहीं है बल्कि सिर्फ़ सामान्य बुद्धि (Common sense) का ही उपयोग कर लेने से पता चलता है कि यह व्यक्ति यहाँ जो कह रहा है वह निश्चित ही झूठ होगा क्योंकि जो यह दलील दे रहा है उसका तो कोई औचित्य ही नहीं है।

    2. तार्किकता (Logic) से:-

    पुष्पेंद्र अपनी बात यानी कि “इस्लाम में मस्जिद की कोई अहमियत नहीं है” को साबित करने के लिए दूसरी दलील यह देते है कि मुस्लिमों का सड़को पर नमाज़ पढ़ना । अब ज़रा ग़ौर करे, जब कई धार्मिक अवसरों पर मंदिरों में भीड़ अधिक हो जाती है तो लोग सड़कों तक आ जाते हैं और पूजा आदि में भाग लेते हैं। तो पुष्पेंद्र के इस तर्क (लॉजिक) से तब क्या वे यह कहेंगे कि मंदिरों की हिन्दू धर्म में कोई अहमियत नहीं है?

    अतः उनकी यह दलील ना केवल बेबुनियाद है बल्कि बड़ी ही तर्कहीन (Illogical) भी है और कोई बिना धर्म का ज्ञान रख कर ही अगर लॉजिक का ही इस्तेमाल करे तो समझ लेगा की यह व्यक्ति कैसे वेवजह लोगों का ब्रेन वाश कर रहा है।

    3. इस्लामिक दलीलों से जवाब:-

    वैसे तो पूरी दुनिया ही अल्लाह की है और इस्लाम एक वास्तविक व व्यवहारिक (प्रेक्टिकल) मज़हब है, इसलिये मुस्लिम अगर मस्जिद ना पहुँच पाए तो कहीं भी स्वच्छ जगह पर वह नमाज़ अदा कर सकता है लेकिन इससे मस्जिद की अहमियत कोई कम नहीं हो जाती।

    और उससे बड़ा अत्याचारी कौन होगा, जो अल्लाह की मस्जिदों में उसके नाम का वर्णन करने से रोके और उन्हें उजाड़ने का प्रयत्न करे? उन्हीं के लिए योग्य है कि उसमें डरते हुए प्रवेश करें, उन्हीं के लिए संसार में अपमान है और उन्हीं के लिए आख़िरत (परलोक) में घोर यातना है।
    (क़ुरआन 2:114)

    और ये कि मस्जिदें अल्लाह के लिए हैं। अतः, मत पुकारो अल्लाह के साथ किसी को।
    (क़ुरआन 72:18)

    इसके अलावा क़ुरआन की कई आयतों और कई हदीसों से साबित होता है कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का ज़रूरी हिस्सा है। इतना ही नहीं कई हदीसो से यह भी स्पष्ट है कि बिना किसी मजबूरी के अगर कोई शख़्स अपने घर में फ़र्ज़ नमाज पढ़ता है और मस्जिद नहीं जाता तो उसकी नमाज़ होती ही नहीं है।

    हुज़ूर-ए-पाक सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब मक्के से मदीना के लिए जा रहे थे तो उन्होंने रास्ते में सबसे पहले मस्जिद-ए-क़ुबा की स्थापना की थी। इस्लाम की ये पहली मस्जिद मानी जाती है। इसके बाद आपने मदीने में मस्जिद-ए-नबवी की स्थापना की।

    इस्लाम में मस्जिदों का बहुत अहम मर्तबा (विशेष स्थान) है। अतः यह कहना बिल्कुल ही बेबुनियाद और अज्ञानता है कि इस्लाम में मस्जिद की कोई अहमियत नहीं है।