Tag: गैर मुस्लिम

  • क़ाफ़िरो को क़त्ल करने का हुक्म?

    क़ाफ़िरो को क़त्ल करने का हुक्म?

    जवाब:-  नहीं, क़ुरआन किसी निर्दोष क़ाफ़िर (गैर-मुस्लिम) को मारने का हुक्म नहीं देता है।

    क़ुरआन [5:32] में इसका खुला आदेश है। 👇
    “जो शख़्स किसी को क़त्ल करे बग़ैर इसके कि उसने किसी को क़त्ल किया हो या ज़मीन में फ़साद बरपा किया हो तो गोया उसने सारे इंसानों को क़त्ल कर डाला और जिसने एक शख़्स को बचाया तो गोया उसने सारे इंसानों को बचा लिया”

    इस्लाम निर्दोष मुसलमान और निर्दोष गैर-मुस्लिम (क़ाफ़िर) की जानों में कोई अंतर नहीं करता। यानी जिस तरह एक निर्दोष मुस्लिम का क़त्ल करना हराम / वर्जित है वैसे ही एक निर्दोष गैर-मुस्लिम की हत्या करना भी हराम / वर्जित है और दोनों के क़त्ल की सज़ा बराबर, यानी सज़ा-ए-मौत है।

    क़ुरआन की जिन आयातः में क़त्ल का ज़िक्र है वह या तो जंग के मैदान के सम्बंध में है या फिर किसी जघन्य अपराध की सज़ा के रूप में है और इन्हीं आयातः को बता कर यह दिखाने का कुप्रयास किया जाता है कि क़ुरआन सभी क़ाफ़िर को मारने का हुक्म देता है। जो कि पूर्णतः ग़लत और झूठ है।

     

    कुरआन सूरह 2:191 का हवाला देकर अकसर यह कहा जाता है कि इसमे लिखा है “जहाँ तुम बहुसंख्यक हो जाओ वहाँ गैर मुस्लिमों को क़त्ल करो।” बिलकुल झूठ है। ऐसा इस आयत तो क्या पूरे कुरआन में कहीं भी नहीं लिखा है।

    झूठा प्रोपेगेंडा कर नफ़रत फैलाने वालो लोगों को चैलेंज है कि सूरह 2:191 तो क्या पूरे कुरआन में कहीं कोई आयात बता दे जिसमे यह बात लिखी हो। जो कि वे नहीं बता पाएंगे अतः इनसे निवेदन है कि झूठ की बुनियाद पर नफ़रतें फ़ैलाना बन्द कर दें।

    अब हम कुरआन सूरह 2:191 के बारे में बात करें तो इसका सन्दर्भ क्या है और उसमे क्या लिखा है यह सिर्फ़ उसकी पहले की आयत यानी की 2:190 पढ़ लेने से ही स्पष्ट हो जाता है।

    और अल्लाह के मार्ग में उन लोगों से लड़ो जो तुमसे लड़े, किन्तु ज़्यादती न करो। निस्संदेह अल्लाह ज़्यादती करनेवालों को पसन्द नहीं करता।
    (कुरआन 2:190)

    यानी कि यह स्पष्ट है कि यहाँ युद्ध के हालात के बारे में ज़िक्र है और अंततः अल्लाह ने उन लोगों से लड़ने की अनुमति दी है जो ख़ुद तुमसे लड़ते हैं और तुम्हें क़त्ल करने के लिए आते हैं और अल्लाह की रहमत देखिए कि इसमें भी यह स्पष्ट कर दिया की जो तुमसे लड़े उन्ही से लड़ने की अनुमति है और इसके अलावा किसी तरह की ज़्यादती की अनुमति नहीं है।

    दरअसल जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मक्का में लोगों को अल्लाह की तरफ़ बुलाने लगे तो मक्का के सारे लोग आपके दुश्मन बन गए। जो कोई भी इस्लाम स्वीकार करता उसको तरह-तरह की तकलीफ दी जाती थी। उन पर इतने भयानक अत्याचार किए गए कि उसको सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

    इस्लाम स्वीकार करने वालो पर मक्का के लोगों की तरफ़ से यह अत्याचार 13 वर्षों तक चलते रहे इन लोगों का कसूर सिर्फ़ इतना था कि इन्होंने इस बात को स्वीकारा था कि सिर्फ़ एक अल्लाह की इबादत की जाए, उसके साथ किसी को शरीक ना किया जाए उसके बताए आदेशों का पालन किया जाए, गरीब और यतीमो पर अत्याचार ना करें, हराम का माल ना खाएँ, ब्याज के ज़रिए गरीबों पर ज़ुल्म ना किया जाए, झूठ ना बोलें, रिश्वत ना लें, लड़कियों को ज़िंदा दफन ना करें, शराब और किसी भी तरह का नशा ना करें।

    लेकिन मक्का के सरदारों को यह बात कबूल ना थी और उन्होंने मुस्लिमो पर 13 साल तक कठोर अत्याचार किये और जब वे इस्लाम को बढ़ने से ना रोक पाए तो हथियार और ताकत के दम पर मुस्लिमो को ख़त्म कर देने की ठानी यहाँ तक मुस्लिमो को इस बात के लिए मजबूर कर दिया गया कि उन्हें अपने जीवन भर की कमाई, घर-बार और अपना वतन छोड़ कर मदीना में जाना पड़ा।

    गौरतलब रहे कि इस पूरे अरसे (13 वर्षो) तक अल्लाह ने मुस्लिमो को अपने ऊपर अत्याचार करने वालो को किसी तरह का जवाब देने की अनुमति नहीं दी यहाँ तक अपने बचाव / आत्मरक्षा (Self defense) में भी हाथ उठाने की अनुमति नहीं थी। कई मुस्लिमो ने इस बात की इजाज़त माँगी लेकिन उन्हें सिर्फ़ सब्र करने का ही कहा गया और इजाज़त नहीं दी गई। यहाँ तक कि कितने ही मुस्लिम इन अत्याचारों को सहते हुए स्वर्ग सिधार गए।

    अंततः जब 13 वर्षों के अंतराल के बाद मुस्लिम अपने घरों से निकाल दिए गए और मदीना में जाकर शरण लेने को मजबूर हुए इसके बाद भी मक्का के काफिरों को चैन नहीं मिला और वे मुस्लिमो को ख़त्म करने में लगे रहे कभी पूरा लश्कर लेकर हमला करने आते तो कभी कुछ कभी कुछ और। 14-15 साल का अंतराल गुज़र जाने के बाद अल्लाह ने मुस्लिमो को ऐसे ज़ालिमों को जवाब देने और जो जंग करने आए उनसे युद्ध करने की इजाज़त दी। ऐसा ही ज़िक्र कुरआन सूरह 2:190 में है,

    इसके आगे फिर आयात 2:191 आती है👇

    और जहाँ कहीं उन पर क़ाबू पाओ, क़त्ल करो और उन्हें निकालो जहाँ से उन्होंने तुम्हें निकाला है, इसलिए कि फ़ितना (उत्पीड़न) क़त्ल से भी बढ़कर गम्भीर है। लेकिन मस्जिदे हराम (काबा) के निकट तुम उनसे न लड़ो जब तक कि वे स्वयं तुमसे वहाँ युद्ध न करें। अतः यदि वे तुमसे युद्ध करें तो उन्हें क़त्ल करो-ऐसे इनकारियों का ऐसा ही बदला है।
    (कुरआन 2:191)

    ज़ाहिर है जंग के मैदान में जब अंततः लड़ने की अनुमति दी गई तो यही कहा जायेगा कि जब वे तुमसे लड़ने आएँ तो उन्हें जहाँ पाओ वहाँ क़त्ल करो, यह तो नहीं कहा जायेगा कि जब वे लड़ने आएँ तो पीठ फेर कर भाग जाना या खुद ही क़त्ल हो जाना। इस आयत के ही शब्दों से यह भी साफ़ हो जाता है कि उन्हें उस जगह से निकालने के लिए कहा जा रहा है जहाँ से इन्होंने ख़ुद मुसलमानो को बाहर निकाला था और उस पर अब कब्ज़ा किये हुए बैठे हैं। फिर इस आयत में एक बार फिर खबरदार कर दिया गया की तुम उनसे ना लड़ो जब तक कि वे तुमसे ना लड़े।

    अतः इस आयत का सन्दर्भ स्पष्ट हुआ, तथा यह भी मालूम चला कि इस आयत का हवाला देकर जो बताया गया था वह झूठ था और यह भी मालूम हुआ कि कुरआन में जो लड़ने की आयतें हैं वे अत्याचार और अत्याचारियों के विरुद्ध ही है। ना कि आम हालात में और आम लोगों के बारे में।

    जिन्हें नफ़रत फैलाने वाले अपने प्रोपेगेंडा के लिए तोड़ मरोड़ के इस्तेमाल करते हैं।

     

    इसी विषय को विस्तार में जाने के लिए वीडियो देखें।👇https://www.facebook.com/Aimimyakuthpura.hyd/videos/1669457576569984/

  • गैर मुस्लिमो के साथ गलत व्यवहार?

    गैर मुस्लिमो के साथ गलत व्यवहार?

    जवाब:-  इस विडियो में इस्तेमाल की गई 2 विडियो कटिंग की पूरी विडियो आप ख़ुद देखें और इसकी सत्यता की जाँच स्वयं करें 👇

    https://youtu.be/8t28RtIEayA (0:38 से 3:25 तक)

    https://youtu.be/M0PF2NCLcW4 (0:10 से 3:00 तक)

    जिस तरह से क़ुरआन की आयातः को काट-छाँट कर ग़लत तरीके से पेश किया जाता रहा है, ठीक वैसा ही अब कई विडियो को काट-छाँट कर कुछ का कुछ बता कर पेश किया जाने लगा है। जैसे इस विडियो में पता नहीं कहाँ-कहाँ की विडियो को इस्तेमाल करते हुए किया गया और उपर्युक्त विडियो को पूरा देखने पर आपको इस चालबाज़ी का स्वयं अनुभव हो गया होगा।

    दरअसल इस्लाम में इंसान के जीवन के हर पहलू के बारे में मार्गदर्शन मौजूद है चाहे वह कोई भी पहलू क्यों ना हो। ऐसे ही अत्याचार और अन्याय के बारे में भी है। इस्लाम ना केवल अत्याचार करने से रोकता है बल्कि इंसान को अत्याचार के खिलाफ लड़ने और ख़त्म करने का भी हुक्म देता है ना कि अत्याचार और अन्याय सहने का।

    ऐसे ही अगर कोई मुस्लिमों पर ज़ुल्म करे, उन्हें यातनाएँ दें उनकी जान और महिलाओं की इज़्ज़त का हनन करे, उन्हें उनके घरों से निकाल दे, सिर्फ़ मुस्लिम होने की वज़ह से उनका बॉयकॉट कर अत्याचार करे। तो निश्चय ही क़ुरआन ऐसे गैर-मुस्लिमों से अत्याचार के खिलाफ लड़ने और अत्याचार ख़त्म करने का हुक्म देता है, जिसका ज़िक्र इन आयातः में है।

    जिन्हें संदर्भ से हटा कर आम हालात में प्रस्तुत करने का कुप्रयास किया जाता है।

    जबकि स्पष्ट रूप से इस्लाम आम हालात में उपर्युक्त बताए अत्याचारी गैर मुस्लिमों के अलावा आम गैर-मुस्लिमों (काफ़िरों) से अच्छा व्यवहार और परोपकार करने का हुक्म देता है और इसके अनेक उदाहरण मौजूद हैं:-👇

    • ★ [60:8] अल्लाह तुम्हें इससे नहीं रोकता है कि तुम उन लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करो और उनके साथ न्याय करो, जिन्होंने तुमसे धर्म के मामले में युद्ध नहीं किया और ना तुम्हें तुम्हारे अपने घर से निकाला निस्संदेह अल्लाह न्याय करने वालों को पसंद करता है।
    • ★ [60:9] अल्लाह तो तुम्हें केवल उन लोगों से मित्रता करने से रोकता है जिन्होंने धर्म के मामले में तुमसे युद्ध किया और तुम्हें तुम्हारे अपने घरों से निकाला और तुम्हारे निकाले जाने के सम्बन्ध में सहायता की. जो लोग उनसे मित्रता करें वही ज़ालिम हैं।
    • ★ [04:36] और अल्लाह की इबादत करो और किसी चीज़ को उसका शरीक न बनाओ और माँ-बाप के साथ अच्छा सलूक करो और रिश्तेदारों के साथ और यतीमों और मुहताजों और रिश्तेदार पड़ोसी और अजनबी पड़ोसी और साथ उठने बैठने वाले और मुसाफ़िर के साथ और जिनके तुम मालिक हो (यानी नौकरों के साथ), बेशक अल्लाह पसंद नहीं करता इतराने वाले, बड़ाई जताने वाले को।
    • ★ ‘वह मोमिन नहीं जो ख़ुद पेट भर खाकर सोए और उसकी बगल में उसका पड़ोसी भूखा रहे।’
      (अल फिरदौस लिद्देल्मी 5/20 मुस्तदरक हाकिम 4/167)
      {पड़ोसी चाहे किसी भी धर्म का हो, आप मोहम्मद (स.अ.व.) के अनुसार आस-पास, आगे-पीछे के 40-घरों तक को पड़ोसी की श्रेणी में रखा गया है}
    • ★ अगर कोई मुसलमान ऐसा नहीं करता है… और गैर मुस्लिम पर ज़ुल्म / ज़्यादती करता है…तो फिर वह मुसलमान नहीं हो सकता और क़ुरआन उस मुस्लिम के बारे में सज़ा का हुक़्म देता है..!
    • ★ अल्लाह के रसूल (स.अ.व.) ने 3-बार अल्लाह की क़सम खाते हुए फ़रमाया के “अल्लाह की क़सम वह शख़्स मुसलमान नहीं जिसका पड़ोसी उसकी बुराई से महफूज़ नहीं।”
      (बुखारी 6016)
    • ★ अल्लाह के रसूल (स.अ.व.) ने फ़रमाया “जो कोई अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखता है वह अपने पड़ोसी को तकलीफ ना पहुँचाए”।
      (बुखारी 6018)
    • ★ [5:32] …..”जिसने कोई जान क़त्ल की, बग़ैर जान के बदले या ज़मीन में फसाद किया तो गोया उसने सब लोगों का क़त्ल किया और जिसने एक जान को बचा लिया तो गोया उसने सब लोगों को बचा लिया”…..।

    अतः ज्ञात हुआ कि दिखाई गई विडियो इस्लाम के प्रति नफ़रत फैलाने का एक छल मात्र है और इस्लाम आम गैर-मुस्लिमों (काफ़िरों) से सदव्यवहार और परोपकार करने की शिक्षा देता है।

  • मक्का में गैर मुस्लिमों के प्रवेश पर प्रतिबंध क्यों?

    मक्का में गैर मुस्लिमों के प्रवेश पर प्रतिबंध क्यों?

    जवाब:-  सर्वप्रथम तो कोई भी मुस्लिम मंदिरों में प्रवेश के प्रतिबन्ध पर विरोध का प्रदर्शन नहीं कर रहा है। बल्कि विरोध तो अबोध बालक की निर्मम पिटाई का हो रहा है।

    औऱ इस अमानवीय घटना का तो ख़ुद हिन्दू भाई ही विरोध कर रहे हैं। क्योंकि बेशक इस बात की शिक्षा कोई धर्म नहीं देता। बल्कि इस तरह की हरक़त कर कुछ लोग अपने ही धर्म को शर्मसार करते हैं।

    दरअसल इसके असली ज़िम्मेदार भी यह लोग ख़ुद नहीं होते बल्कि इनके पीछे वे असामाजिक और नफ़रत फैलाने वाले भड़काऊ लोग होते हैं जो निरंतर इनके दिमागों में ज़हर घोलते रहते हैं और ऐसा काम करने के लिए उन्हें निरन्तर प्रेरित करते हैं।

    और यही नहीं, जब इसके फलस्वरूप लोग कुछ ग़लत कर बैठते हैं तो यही नफ़रत और हिंसा का पाठ पढ़ाने वाले लोग उसके बाद भी (यह सोच करके कहीं सभी के विरोध पर) इन्हें आत्मग्लानि ना हो जाये इसलिए ब्रेनवॉश जारी रखते हैं और कुतर्को से उनकी पीठ थपथपाते रहते हैं और उन्हें बताते रहते हैं कि तुमने कुछ ग़लत नहीं किया बल्कि बहुत अच्छा किया है।

    बिल्कुल ऐसे ही यह ब्रेनवॉश नफरती गैंग, यहाँ पानी पीने गए बच्चे की पिटाई को डिफेंड कर सही साबित करने में लगे हैं। पहले कहे गए कई झूठ कि वह बच्चा यह करने आया था या वह करने आया था जब किसी झूठ से बात नहीं बनी तो एक और कुतर्क, मक्का में प्रवेश का देने लगे।

    जैसा की सबको पता है कि मंदिर का पर्याय मस्जिद होती हैं। जबकि मक्का तो एक तीर्थ और विशेष स्थान है जिसका पर्याय दुर्गम तीर्थ स्थान और विशेष स्थान हो सकते हैं और ऐसे तो कई हिन्दू स्थान, गर्भगृह, कपाट आदि हैं जहाँ मुस्लिम तो दूर की बात आम हिंदुओं का प्रवेश भी वर्जित होता है।

    ऐसे स्थान विशेष ही होते हैं और आम शहर रास्तों में तो होते नहीं कि जहाँ कोई ग़लती से प्रवेश कर जाए या पानी पीने के लिये ही पहुँचे।

    जबकि ऐसा मंदिर, मस्जिदों में हो सकता है और इस्लाम की किसी मस्जिद में हिंदुओं को पानी पीने के लिए नहीं रोका जाता बल्कि इस्लाम में तो प्यासों को पानी पिलाना बड़ा पुण्य का काम है। साथ ही जैसा कई हिन्दू भाइयों, पंडितों ने हमे बताया कि हिन्दू धर्म और मंदिरों में भी ऐसा ही है।

    अतः इस्लाम के मुताबिक और हिन्दू धर्म के हमारे ज्ञान के मुताबिक तो यह ठीक नहीं फिर भी अगर कोई मंदिर या मस्जिद कमेटी भी गैर धर्म वालो को पानी पीने के लिए प्रवेश पर प्रतिबंध लगाना चाहे तो इसका प्रबंधन अवश्य कर ले कि अनजाने या गलती से प्रवेश की गुंजाइश ना रहे।

    जैसे कहीं लिख दिया गया प्रवेश वर्जित है और बेचारा अनपढ़ अनजाने में अंदर चला गया तो फिर उसे इस बुरी तरह पीटा जाए की वह अधमरा-सा हो जाए या मर ही जाए।

    क्योंकि यह तो किसी भी स्थिति में सही नहीं होगा और जो भी ऐसा करेगा वह अपने धर्म और उसकी शिक्षा का ही ग़लत प्रदर्शन कर उसे शर्मसार करेगा और नफ़रत फैला कर लोगों को लड़ाने वाले लोग तो चाहते भी ही यही हैं। अतः हमें सोचना चाहिए कि वाकई में हमे ख़तरा किन लोगों से है? दूसरे धर्म वालो से या हमारे धर्म के लोगों का ही ब्रेनवॉश करने वालों से?

  • क्या मदरसों में गैर मुस्लिमों को मारने की ट्रेनिंग दी जाती है ?

    क्या मदरसों में गैर मुस्लिमों को मारने की ट्रेनिंग दी जाती है ?

    जवाब:-मदरसों में आतंकवाद की तालीम देने का इल्ज़ाम नया नहीं है। पिछले 15-20 सालों में शायद ही कोई दिन ऐसा गुजरा हो जब नफ़रत फैलाने वाले किसी भी छोटे और बड़े लीडर ने मदरसों पर इस तरह के इल्ज़ाम न लगाए हो। कभी मदरसों को आतंकवाद का अड्डा क़रार दिया जाता है। कभी उनको दकियानूसी और कट्टरता का ताना दिया जाता है। कभी यह कहा जाता है कि भारत के मदरसे विदेशी फंड से चल रहे हैं। तो कभी यह कहा जाता है कि इन मदरसों में गैर मुस्लिमों को मारने की ट्रेनिंग दी जाती है।

    और हम इस ब्रेन वाशिंग और झूठ में इतने अंधे हो जाते हैं कि अपनी सामान्य तर्क (Common sense) और बुद्धि का भी इस्तेमाल नहीं कर पाते।

     

    ज़रा सोचिये क्या हमारी इंटेलिजेंस, सुरक्षा बल, RAW, खुफिया एजेंसी जो दुनियाँ भर की आतंकवाद और देश विरोधी गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए जानी जाती हैं वे इतनी अक्षम और अपंग हो गई हैं कि देश के अंदर ही चल रहे हज़ारों मदरसों में खुले तौर पर आतंकवाद और गैर मुस्लिमों को मारने की ट्रेनिंग चलाई जा रही है और वह उन्हें ना नज़र आ रही है और ना ही वे इस पर कोई कार्यवाही कर रहे हैं? जब कि मदरसे तो हर वक़्त जाँच पड़ताल के लिए खुले होते हैं।

    और इस से भी आश्चर्य की बात यह कि जो बात हमारी इंटेलिजेंस और सुरक्षा बल पता नहीं कर पा रही हैं वह इन व्हाट्सअप ज्ञाताओं और नेताओँ ने पता लगा ली है?

    इतनी सामान्य बुद्धि (Common sense) की बात भी लोग नफ़रत फैलाने के एजेंडे में पड़ कर ध्यान नहीं दे पाते।

     

    तो चलिए तर्क छोड़ अब आंकड़ों और तथ्यों की नज़र से भी देख लें। इस पूरे मामले का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि आज तक इस तरह का कोई भी इल्ज़ाम अदालत में या अदालत से बाहर साबित नहीं किया जा सका, ना किसी मदरसे से कोई आतंकवादी गिरफ्तार किया गया, ना किसी मदरसे से बम बनाने की फैक्ट्री पकड़ी गई। ना ही गैर मुस्लिमों को मारने की ट्रेनिंग देता कोई पकड़ा गया। यह सब जानते हैं कि मदरसे अमन शांति और अच्छे अखलाक की तालीम देते हैं। यहाँ आतंकवादी नहीं बल्कि अमन पसंद इंसान बनाया जाता है।

    साथ ही ऐसा कहना भी पूर्ण ग़लत है कि मदरसे हिंदुओं के टैक्स के पैसों से चलते हैं।

    क्योंकि अधिकांश मदरसे पूर्ण रूप से स्वचालित ही होते हैं और मुस्लिमों के दान से ही चलते हैं जिनमें ना कोई सरकार के अनुदान का दखल होता है और ना ही किसी और का। मदरसों में ज़्यादातर गरीब या आर्थिक रूप से कमज़ोर बच्चे पढ़ते हैं। इस तरह से आर्थिक रूप से पिछड़ी एक बड़ी जनसंख्या को प्राथमिक शिक्षा, भोजन और आवास प्रदान कर मदरसे देश की सरकार को एक बहुत बड़ा योगदान भी करते हैं, क्योंकि देश भर के गरीब और आर्थिक रूप से कमज़ोर बच्चों को शिक्षा, भोजन और आवास देना तो पूर्ण रूप से सरकार की ज़िम्मेदारी होता है।

     

    देश भर के छोटे बड़े सभी मदरसों ने समय-समय पर हर स्तर पर आतंकवाद का विरोध किया है। बार-बार इस इल्ज़ाम से तंग आकर 2007 में दारुल उलूम देवबंद में आतंकवाद के ख़िलाफ एक बहुत बड़ी कॉन्फ्रेंस की थी, जिसमें हर रंग और हर शक्ल के आतंकवाद की खुलकर निंदा की गई और यह ऐलान किया गया कि जिन लोगों को मदरसों के ताल्लुक से कोई शक है वह मदरसों में आए और अपनी आंखों से मदरसों की गतिविधियों को देखें। मदरसे खुली किताब की तरह है जिसे हर शख़्स पढ़ सकता है।

     

    2008 में आतंकवाद के ख़िलाफ तफ्सीली फतवा भी जारी किया था जिसको मीडिया ने बड़े पैमाने पर कवरेज दिया। इसी तरह मुसलमानों की सभी बड़े संगठनों ने अलग-अलग प्लेटफार्म से आतंकवाद और आतंकवादियों की कड़ी निंदा की और इस्लाम के नाम पर होने वाली हर प्रकार की आतंकवादी घटनाओं को इस्लाम के ख़िलाफ बताया और जैसे पहले भी कहा गया इन में से कोई भी मदरसे कभी भी किसी ग़लत गतिविधि में संलिप्त नहीं पाया गया।

     

    जबकि इस के उलट NIA कि वेबसाइट (Website) पर अगर आतंक सम्बंधित मामलों के लिए मोस्ट वांटेड की लिस्ट सेक्शन है उस पर नज़र दौड़ाई जाए तो उसमें मुस्लिम कम बल्कि दूसरे धर्म और उनसे जुड़े संगठनों से जुड़े लोग अधिक हैं जिनमें पूर्व राजदूत माधुरी गुप्ता, आमनंदलाल उर्फ नंदू महाराज और इन जैसे प्रमुख हैं।

     

    इन सभी के बावजूद नफ़रत फैलाने वालों की सोच में कोई तब्दीली नहीं आ सकी। ‌जो कि स्वभाविक है क्योंकि इसी में इनके राजनीतिक हित छुपे हुए हैं, लेकिन आम जनता को तो अब तर्क और बुध्दि से काम लेना चाहिए और इस तरह के बहकावे में नहीं आना चाहिए।