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  • दी लॉस्ट ट्राइब ऑफ़ इज़राइल।

    दी लॉस्ट ट्राइब ऑफ़ इज़राइल।

    यहूदियों का यह मानना है कि वह ग्रेटर इज़राइल का निर्माण कर विश्वभर में फैले हुए यहूदीयो को वहाँ बसाये। यह उनके मसीहा (Messiah /Jewish king from Davidic line) के आगमन से जुड़ा है जिसके बारे में उनका मानना है कि उस मसीहा के आने से मसीआनिक काल (Messianic Age) का आरंभ होगा जिस पूरे काल में उनके इस मसीहा का राज होगा।
     
    यही कारण है कि वे दुनियाभर में फैले यहूदियों को इज़राइल में लाकर बसाना चाहते हैं। शुरुआत में यहूदियों के 12 कबीले थे जिन्हें अंग्रेज़ी में ट्राइब कहा जाता है लेकिन 722 ईसा पूर्व निओ असीरियन ने यहूदियों के इन 12 कबीलों में से 10 कबीलों को निष्कासित कर दिया जो कि दुनिया में अलग-अलग जगह जाकर बस गए। इन्हें ही लॉस्ट ट्राइब यानी कि गुम हुए कबीले या नस्लें कहा जाता है।
     
    अब जब 1948 में मित्र राष्ट्र द्वारा जबरन फिलिस्तीन की ज़मीन पर इज़राइल देश की स्थापना की गई तो उन्होने इसके बाद अपने उन 10 गुम हुए कबीलों की दुनियाभर में तलाश शुरू की। इसी को लेकर इज़राइल में एक कानून है जिसे “Law of return”(लॉ आफ रिटर्न) कहा जाता है यानी कि ढूँढने पर अगर दुनियाभर में कहीं भी बसा कोई यहूदी पाया जाता है तो उसे इज़राइल की राष्ट्रीयता दी जाएगी साथ ही अगर यहूदी पूरी दुनिया में कही के भी हो वह इजराइल के नागरिक कहलाएंगे। जब भी वह इज़राइल आना चाहे उन्हें नागरिकता मिलेगी।
     
    इसी तलाश में दुनिया के अलग-अलग देशों से अलग-अलग नस्लें पाई गई जिनकी यहूदी वंशावली (Ancestry) है जिन्हें इसी कानून के अंतर्गत इज़राइली राष्ट्रीयता दी गई।
     
    जैसे ख़ुद हमारे देश भारत में भी कुछ जाती पाई गई हैं जो इसके अंतर्गत आती हैं जिसके बारे में आप विकिपीडिया (Wikipedia) में पढ़ सकते हैं जिनमे से एक है “बनिए  मेनाशे” (Bnei Menashe) जिनका सम्बन्ध उन 10 कबीलों में से Menashe कबीले से पाया गया।
     
    ▪️ गौर करने वाली बात यह है कि इज़राइल चारों तरह से मुस्लिम देशों से घिरा है। और फ़िलहाल वह एक छोटा-सा राष्ट्र है, अब अगर वह अपने ग्रेटर इज़राइल के निर्माण के लिए सारी दुनिया से यहूदियों को वहाँ लाकर बसाता है तो स्वभाविक है कि उसे विस्तार करने की ज़रूरत पड़ेगी। उसे और जगह की ज़रूरत पड़ेगी ही और इसके लिए उसे आस पास के मुस्लिम देशों पर कब्ज़ा करना होगा और वहाँ की ज़मीन पर कब्ज़ा किये बिना यह सम्भव नहीं है।
     
    लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अब किसी देश को अनुमति नहीं है कि वह जबरन अपना विस्तार करे और बेवजह आस पास के देशों पर कब्ज़ा करे। अगर कोई ऐसा करता है तो विश्व के बाक़ी देश मिलकर उसे ऐसा करने से रोकेंगे।
     
    और यहीं से शुरू होती है मुस्लिमो को बदनाम करने उन्हें आतंकी, हत्यारे, सभी के दुश्मन बताने की साज़िश। क्योंकि अगर उन्हें ऐसा साबित कर दिया गया तो फिर कोई इज़राइल के आस पास के मुल्कों पर कब्जे और मासूम मुस्लिमो की जान लेने पर कुछ नहीं कहेगा ना उन्हें रोकेगा। इस तरीके को पहले भी कई बार इस्तेमाल किया जा चुका है।
     
    👉 जैसे उदाहरण के तौर पर अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान, इराक़ पर हमले किये जिसमें लाखों मासूम मारे गए पूरा देश तबाह हो गये, उसकी वज़ह यह बताई गई कि यहाँ परमाणु और जैविक हथियार हैं और ओसामा बिन लादेन छुपा है। इस पर पूरी दुनिया ख़ामोश रही किसी ने अमेरिका को नहीं रोका और लाखों मासूमों की हत्या होने दी लेकिन ना वहाँ से ओसामा मिला ना परमाणु हथियार।
     
    अब ज़रा सोचिए कि अगर उक्त वज़ह ना बताई गई होती तो क्या दुनिया अमेरिका को यूँ ही अफ़ग़ानिस्तान या इराक़ पर बम बारी कर लाखों लोगों को मारने देती? नही…!
     
    यह बात इस से भी साबित होती है कि अमेरिका का अफ़ग़ानिस्तान और इराक़ पर हमले का दिखाने का कारण कुछ और था और करने का कारण कुछ और। क्योंकि जब अमेरिका को ओसामा को पकड़ना था तो बड़े ही आराम से उसने उसे पाकिस्तान से पकड़ लिया और उसे पाकिस्तान पर एक बम तक गिराने की ज़रुरत नहीं पड़ी।
     
    लेकिन उधर अफगानिस्तान के मामले में तो उसने इसी बहाने से इतने बम बरसाए थे कि पूरा अफ़ग़ानिस्तान ही खंडहर बन गया था। इराक़ मामले में बाद में माफ़ी माँगी जिसका अहसास भी किसी को नहीं हुआ। लेकिन चूंकि उसने दुनिया के सामने यह स्थापित कर दिया था कि ऐसा वह दूसरे कारणों से कर रहा है तो किसी ने उसे इस बारे में नहीं रोका।
     
    👉 ऐसे ही अपने विस्तार और मुस्लिम देशों पर आक्रमण को सही ठहराने के लिए इज़राइल मुस्लिमो का ग़लत चित्रण करता है।
     
    चूँकि वर्ल्ड मीडिया और सोशल मीडिया यहूदियों के हाथ में है और उन्होंने यह काम बखूबी किया भी है।
     
    दुनियाभर में मुस्लिमो को बदनाम करना फ़र्ज़ी इस्लामिक नाम से हमले करवाना, झूठी वीडियो बनाना, मुस्लिम देशों में गृह युद्ध करवाना आदि यह करवा कर इज़राइल कई बार एक्सपोज़ भी हो चुका है जैसे कई वीडियो जिनमे आतंकी हत्या करते दिखाई देते हैं उनका बाद में स्टुडियो में शूट होना साबित होना। इसके अलावा ख़ुद इज़राइल रक्षा बल (Israel defense force) के चीफ गादी ईज़ानकोट (Gadi Eizenkot)* का यह कबूल करना कि उन्होंने सीरिया में विद्रोहियों और आतंकियों को हथियार उपलब्ध कराए थे। जिसके इस्तेमाल से वहाँ युद्ध और हिंसा होती रही।
     
    इज़राइल वायु सेना के पायलट योनातन शपीरा (yonatan shapira) ने खुद इज़राइल को आतंकी राष्ट्र बताते हुए वायुसेना से इस्तीफा दिया था और खुले तौर पर कहा था की इज़राइल फिलिस्तीनियों पर बर्बरता और आतंकी हमले कर रहा है और खुले तौर पर war crime में लिप्त है और विश्व के सामने फिलिस्तीनियों का ग़लत  चित्रण कर रहा है जब की वास्तविकता कुछ और है , yonatan की बात का समर्थन करते हुए बाद में और २७ पायलटों ने इस्तीफा दिया था आदि।
     
    और इन सबके पीछे कारण यही है कि मुस्लिमो को बदनाम करो उन्हें सबका दुश्मन बताओ ताकि जब हम निर्दोषों की हत्या करे, उनकी जमीनों पर कब्ज़ा करें तो लोग हमें रोके नहीं बल्कि उसे सही समझें।और हम यह सब इस आड़ में करें कि हम तो आतंक का खात्मा कर रहे हैं।
     
    ▪️हालाँकि यहाँ यह भी समझ लेना चाहिए कि सभी यहूदियों की यह मंशा नहीं है कितनों ने ख़ुद अपने देश की इन हरकतों के खिलाफ आवाज़ उठाई है (जैसे yonatan shapira ) जबकि कई यहूदी नस्लो ने बाद में दूसरे धर्म (प्रमुखत: इस्लाम) कबूल कर लिया और उन्होंने ग्रेटर इज़राइल बनाने और इज़राइल राष्ट्रीयता लेने से भी इंकार कर दिया। उदाहरण के तौर पर भारत के उत्तर प्रदेश में पाए जाने वाले “बनु इस्राएली “
     
    लेकिन यहूदी उग्रवादियों का यह विशेष मंसूबा है जिसने सत्ता पर कब्ज़ा जमाया हुआ है। साथ ही दुनियाभर के उग्र संगठनों जिनकी मंशा स्वयं को श्रेष्ठ समझना और सत्ता पर कब्ज़ा जमाना है, उनके साथ मिलकर यह अपनी इस साज़िश को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं जिस की बुनियाद पर वह अपने अलग अलग मकसद हासिल करते हैं ।
     
  • “फिलिस्तीन” महत्वपूर्ण क्यों?

    “फिलिस्तीन” महत्वपूर्ण क्यों?

    पिछली post में हमने फिलिस्तीन के बारे में 1906 से जाना इस Post में हम ई.पू. 6000 से ईतिहास पर बात करेंगे। लेकिन उससे पहले कुछ जगह और शब्दों के बारे में जान लेते है।
    • बैतूल मुक़द्दस जिसे येरुशलम/Jerusalem कहते है। 
    • हरम शरीफ, मस्ज़िद ऐ अक़सा, हैकल ऐ सुलेमानी, Solomon temple, Temple Mount, first temple
    • ️ कुब्बत-अल-सख़रा जिसे Dome of the Rock कहते है इस पर 200kg सोना लगा है जिसे 685 – 691ई में अब्दुल मलिक बिन मरवान ने बनवाया था। जो की मस्ज़िद अल अक़सा के दालान/कारीडोर में है।
    फिलिस्तीन तिनो धर्मो के लिए महत्वपूर्ण क्यों है..?
    फिलिस्तीन एक बोहत ही प्राचीन जगह है जिसे पैगम्बरों (Prophet) की धरती भी कहते है क्योंकि कई पैग़म्बरों ने वहाँ जन्म लिया ।
    ▪️ यहूदियों (jews) के लिए –
    यहूदी मानते हैं कि यह धरती का केंद्र है और इस स्थान पर दुनियां की नींव रखी गई थी और यहीं पर Prophet अब्राहम ने अपने बेटे इस्माईल की बलि/क़ुरबानी देने की तैयारी की थी ,35 ऐकड का क्षेत्र जिसमें मस्ज़िद ऐ अक़सा है के पास ऐक दिवार के अवशेष है जिसे यहुदी Wailing Wall कहते है और उसे हैकल ऐ सुलेमानी, माबद,  यानि 1st Temple  के अवशेष मानते हैं।
    ▪️ ईसाईयों (Christians) के लिए :-
    इसाई मानते हैं कि ये वह स्थान है जहां कलवारी की पहाड़ी पर यूशु को सूली पर चढ़ाया गया था । सूली के बाद जिस पत्थर पर उनको लिटाया गया वो पत्थर आज भी बैतूल मुक़द्दस/येरुशलम में है। चूँकि यह घटना ईसाई धर्म की नींव है इसीलिए उनके लिए यह स्थान महत्वपूर्ण है ।
    ▪️ मुसलमानो के लिए :-
    मुसलमानों के लिए यह स्थान उपरोक्त कुछ कारणों के आलावा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि फिलिस्तीन में बैतूल मुक़द्दस, मस्ज़िद ऐ अक़सा इस्लाम में तीसरी सबसे पवित्र जगह है (पहली मक्का, दूसरी मदिना)  यह मुसलमानों का पहला क़िबला भी है और मुसलमानों की मान्यता है कि पैगंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब मैराज पर गए तो आपने सबसे पहले मक्का से यहां तक की यात्रा की और कुब्बत-अल-सख़रा यानि Dome of the Rock भी है।
    मुस्लिम यहुदी में सम्बन्ध –
    पैगंबर ईब्राहिम (Prophet अब्राहम) अलैहिस्सलाम के पोते का नाम हजरत याकूब (Prophet Jacob) था, जिनको इस्राइल (इजराइल) भी कहते है। जिनके नाम पर आज का यहूदी राष्ट्र इजराइल है। हजरत याकूब के एक पुत्र का नाम यहूदा(जुडा) था यहूदा के नाम पर ही इनके वंशज यहूदी कहलाए जिन्हें Jews भी कहते है। जो की मिस्र से थे जिन्हें पैग़म्बर मूसा (Prophet Moses) अलैहिस्सलाम ने फिलिस्तीन (Palestine) में बसाया था।
    ♦️ इसी अब्राहम/इब्राहिम धर्म में पैग़म्बर ईब्राहिम के दो बेटे थे 1 Prophet हज़रत इस्हाक़ (इस्राइल) इनसे जो नस्ल चली वह यहूदी कहलाए पैग़म्बर के नाम के कारण इनको इसराइल/इज़्राइल भी कहा जाता है। इसलिए यहूदीयों को इसराइली भी कहते हैं। हजरत इब्राहिम के दूसरे बेटे Prophet हज़रत इस्माईल थे जिनकी नस्ल से पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद सलल्लाहो अलैहिवसल्लम आये जो की अरबी थे। यहूदियों मैं कई हजारो पैगंबर आ चुके थे और उनकी किताबों में लिखा था की आखिरी पैगंबर भी जल्द ही तशरीफ लाने वाले हैं। उन्हें यकीन था कि वह पैगंबर यहूदियों में से ही होंगे। लेकिन उनकी उम्मीद के खिलाफ वह पैगंबर हजरत इस्माइल अलेही सलाम की नस्ल से हो गए। इसलिए यहूदियों ने घमंड किया और उनको नबी मानने से इनकार कर दिया।
    ♦️ यहुदी, पैग़म्बर हज़रत ईसा यानि Jesus और पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद सलल्लाहो अलैहिवसल्लम को नही मानते है। जबकि इस्लाम के अनुसार अगर कोई पहले के किसी पैग़म्बर जैसे हज़रत मूसा (Prophet Moses, Suleman etc.) और हज़रत ईसा (Prophet Jesus/yeshu) etc. को नही माने तो वो मुस्लमान ही नही हो सकता।
    फिलिस्तीन और मस्ज़िद ऐ अक़सा – ईतिहास के आयने में।
    मस्जिद अल अक़सा जिसका निर्माण प्रथम मनुष्य हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने क़ाबा के 40 साल बाद किया था। जो तूफान ऐ नूह में ध्वस्त हो गई थी, जिसे पैग़म्बर हज़रत इब्राहिम ने अपने बेटे हज़रत इस्हाक़ के साथ पुनः निर्माण की। इसके आलावा सबसे पहले जिसने फिलिस्तीन में आवास किया वे कन्आनी हैं, जो 6 हज़ार वर्ष ईसा पूर्व में अरब महाद्वीप से फिलिस्तीन आए।
    1200 ईपू हज़रत मूसा जिन्हें ईसाई/यहुदी Prophet Moses कहते है ने यहूदियों को मिस्र से लाकर फिलिस्तीन में बसाया।
    ♦️ 957 ईसा पूर्व इजरायल राज्य के शुरुआती वर्षों में, राजा सुलैमान जिन्हें इस्लाम में पैग़म्बर सुलैमान भी कहते है, इसी मस्ज़िद को फिर से बनवाया जिसे यहुदी 1st temple कहते है। जिसे 586 ईपू बेबीलोन के बादशाह ने यहूदियों की साजिशो से तंग आ कर फिलिस्तीन से निष्कासित कर दिया और 1st Temple भी गिरा दिया।
    ♦️ 70 साल तक ये नगर खण्डर के रूप में रहा और 515/559 ईसा पूर्व राजा साइरस ने पुनःनिर्माण करवाया लेकिन विरोध के कारण बिच में रुक गया जिसे पैग़म्बर ज़कर्या (Prophet Zechariah) के काल में दारा (Darius) ने निर्माण करवाया जिसे यहुदी second temple कहते है। )
    ♦️ हज़रत ईसा जिन्हें ईसाई Prophet Jesus कहते है, उनके crucifiction के बाद 70 ई में रोमन जो की ईसाई हो गए थे ने यहूदियो को फिर फिलिस्तीन से निष्कासित कर दिया ,दरअसल ईसाई जो को ईसा अलैही. को ईश्वर का बेटा मानते हैं उनके अनुसार यहूदि ईसा अले. की हत्या के दोषी हैं इसी वजह से ईसाइयों की इन से दुश्मनी हुई ।
    ♦️ ऊपर बताए कारण की वजह से ही सन् 70 ई से सन् 637 तक यहूदीयो को फिलिस्तीन आने पर भी पाबन्दी थी *सन् 637 मे जब फिलिस्तीन ईसाईयो से मुस्लिमो के हाथों में आया तब दूसरे खलीफा हज़रत उमर रज़ीअल्लाह अन्हु ने यहूदियों पर लगी इन पाबंदी को हटाया और उन्हें फिलिस्तीन में दाखिल होने और इबादत करने की अनुमति दी।
     1100ई में ईसाईयो ने बैतूल मुक़द्दस/Jerusalem पर हमला कर कब्ज़ा कर लिया और जिसे 1187 में सुलतान सलाउद्दीन अय्यूबी रह० ने Jerusalem वापस ले लिया।
    ⚫ *ईस तरह सन् 70 से 1948 तक लगभग 1900 सालो तक फिलिस्तीन और बैतूल मुक़द्दस यानि येरुशलम पर यहूदियों का कोई क़ब्ज़ा नही था।*
    आखिर में… यहूदियों का मोजुदा फिलिस्तीन को लेकर यह मानना है की ,अगर वो मस्ज़िद ऐ अक़सा को गिरा कर 3rd Temple को बना दे औऱ आसपास के इलाकों पर कब्ज़ा कर Greater Israel की स्थापना कर विश्वभर के यहूदियों को यहाँ लाकर बसा दें तो उनका मसीहा आ जायेगा जिसके सानिध्य में वे विश्व मे राज करेंगे। यही कारण है कि इज़राइल में यह कानून है कि दुनियाभर का कोई भी यहूदी जिसकी नस्ल यहूदियों से मिलती है वह इज़राइल जा कर बस सकता है और उसको वहाँ की राष्ट्रीयता दी जाएगी साथ ही इज़रायल विश्वभर में lost tribe को ढूंढेने और उन्हें इज़राइल लाने के प्रयास के लिए बाकायदा मिशन चलाता है ।
  • फिलिस्तीन और इज़राइल के विवाद का क्या कारण है ?

    फिलिस्तीन और इज़राइल के विवाद का क्या कारण है ?

    बात 1492 की है, जब स्पेन से यहूदियों को मार कर भगाया जा रहा था तब *तुर्क साम्राज्य, सल्तनत ऐ उस्मानिया (Ottoman Empire) के सुल्तान बायज़ीद ने स्पेन के तट पर अपने जहाज़ खड़े कर दिए और लाखों यहूदियों को अरब से तुर्की तक फैली अपनी सल्तनत में पनाह दी।
     
    दूसरी बार फिर जब 1943 में जर्मनी में हिटलर के होलोकॉस्ट (नरसंहार) से निष्कासित किए गए लाखों यहूदी शरणार्थियों से ठसाठस भरे हुए जहाज़ समुद्र को चीरते हुए इटली, फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका में पनाह मांगने पहुचे लेकिन हर जगह से नाउम्मीद होने पर एक बार फिर जहाजों पर बैनर लगा कर फिलिस्तीन से गुहार की।
     
    “जर्मन ने हमारे घर, परिवार को तबाह कर दिया है आप हमारी उम्मीदों को मत कुचलना” और 1400 सालों से बसे फिलिस्तीनियों ने अपनी ज़मीन पर यहूदियों को जगह दी।
     
    जिस बारे में ख़ुद यहूदी प्राइम मिनिस्टर डेविड बेन-गुरियन (David Ben-Gurion) ने अपनी किताब में लिखा है की 70ई. से 1917 तक जो Diaspora (यहूदियों की प्रताड़ना / बिखराव ) का समय था, जिसमें ईसाईयों की गुलामी / प्रताड़ना से मुस्लिमो ने हमे बचाया और स्पेन की मुस्लिम हुक़ूमत हमारे लिए स्वर्ण काल (Golden Period) था।
     
    इन सब के बावजूद आज इज़राइली लोग फिलिस्तीनियों की जान के दुश्मन बने हैं और उनके ग़लत चित्रण में कोई कमी नहीं छोड़ रहे।
     
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    फिलिस्तीन (अरब-मुस्लिम) और इजराइल (यहूदियों) के विवाद का मुख्य कारण क्या है?
     
    इसका मुख्य कारण है फिलिस्तीनियों को बेघर कर उनकी ज़मीन पर क़ब्ज़ा करना। जो कि उन्होंने लगभग कर भी लिया है। 1948 के पहले आज का इज़राइल कोई देश ही नहीं था उक्त भूमि सिर्फ़ फिलिस्तीन थी जिस पर यहूदियों को बसाया गया जिन्होंने लगातार विस्तार और दमन कर आज पूरे फिलिस्तीन पर कब्ज़ा कर लिया है और अब थोड़े ही हिस्से में मूल निवासी फिलिस्तीनी बचे हुए हैं जिन्हें भी निष्कासित करने की कोशिश हर वक़्त इज़राइल करता रहता है
     
    यह तथ्य इतना स्पष्ट तथ्य है कि इस बारे में हर कोई जानता है कि इज़राइल कब बना।
     
    अब इस बारे में थोड़ा और विस्तार से जानते हैं।
     
    ▪️ प्रथम विश्व युद्ध (1st World war) के बाद जब वैश्विक हुक़ूमत बदलने लगी तब यहूदियों को अहसास हो गया था, की अब ख़ुद का देश होना ज़रूरी है। द्वितीय विश्व युद्ध (Second world war) से पहले जब यूरोप और दूसरी जगह से जब यहूदियों को भगाया जाने लगा तब से वह अपने लिए ज़मीन की तलाश में थे जो की फिलिस्तीन में जाकर पूरी हुई। लेकिन फिलिस्तीन में 1400 सालों से रह रहे अरब मुस्लिमो को वहाँ से हटाए बिना यह सम्भव नहीं था। 1948, 1956, 1967, 1980, 1994, 2006, 2008, 2014 और अब 2021 में लगातार फिलिस्तीनियों को उनकी जगह से खदेड़ कर यहूदियों की बस्ती बसाई जा रही है। 1941 में 20% पर फिलिस्तीनी ज़मीन पर यहूदी थे जो आज 95% ज़मीन पर कब्जा कर चुके है और वहाँ के मज़लूमो ने जब कभी इसके खिलाफ संघर्ष किया तो मुस्लिम विरोधियों ने उन्हें ही आतंकी घोषित कर दिया गया।
     
    ▪️ 1906 में विश्व ज़ायोनी संगठन World Zionist Organization (WZO) ने अर्जेंटीना को *Zionist (यहूदी) मातृभूमि बनाने को लेकर चर्चा की। लेकिन 1917 में ब्रिटेन के विदेश सचिव लॉर्ड बेलफोर और यहूदी (Zionist) नेता लॉर्ड रोथ्सचाइल्ड के बीच एक पत्र व्यवहार हुआ जिसमे लॉर्ड बेलफोर ने ब्रिटेन की ओर से ये आश्वासन दिया की अर्जेंटीना के बजाए फिलिस्तीन को यहूदियों की मातृभूमि के रूप में बनाने के लिए वह पूरी कोशिश करेंगे।
     
    ▪️ प्रथम विश्व युद्ध के बाद उस्मानिया खिलाफत (Ottoman Empire) को ख़त्म करने के लिए ब्रिटेन और फ्रांस ने एक गुप्त समझौता किया जिसे *साइक्स-पिकोट समझौता (Sykes-Picot Agreement) भी कहते है। इसके अंतर्गत पूरे अरब जगत को दो “क्षेत्रों” में बाँट दिया गया जिसमे रूस की भी स्वीकृति थी। इसके अंतर्गत सीरिया और लेबनान फ्रांस के प्रभाव क्षेत्र मे और जॉर्डन, इराक और फिलिस्तीन ब्रिटेन के क्षेत्र में और फिलिस्तीन का कुछ क्षेत्र मित्र देशों की संयुक्त सरकार के क्षेत्र में आ गया। रूस को इस्तांबुल, तुर्की और अर्मेनिया का कुछ इलाक़ा मिल गया।
     
    ▪️ प्रथम विश्व युद्ध (1st World War) के बाद फिलिस्तीन, तुर्की (उस्मानिया खिलाफत) से ब्रिटिश हुक़ूमत में चला गया। 1922 में मित्र देशों का ब्रिटेन को समर्थन था। ब्रिटिश फिलिस्तीन में एक स्थानीय और स्वशासनीय सरकार का प्रबंध चाहते थे मगर यहूदी ऐसे किसी भी स्वशासनीय सरकार के प्रबंध से डरे हुए थे क्योंकि इसमे जनसंख्या के अनुपात से अरबों की बहुलता हो जाती। जैसा कि शुरू में बताया गया कि 1492 में उस्मानिया खिलाफत में जब यहूदियों को सहारा दिया था तब से कुछ यहुदी उस क्षेत्र में रह रहे थे। प्रथम विश्व युद्ध (1st world war) तक फिलिस्तीन में 6 लाख फिलिस्तीनी और 1 लाख यहूदी रहते थे।
     
    ▪️ 1932 से 1943 तक लाखों यहूदी जर्मनी, पोलैंड और पूर्वी यूरोप से भागकर अपनी जान बचा कर फिलिस्तीन आने लगे। फिलिस्तीन में यहूदियों की बढ़ती आबादी से यहूदी (Zionist) ब्रिटेन पर दबाव बनाने लगे की उसको एक राष्ट्र घोषित करें। इधर फिलिस्तीनियों को चिंता होने लगी की यहूदियों की बढ़ती आबादी से उनको अपनी ज़मीन छोड़नी होगी। इस बढ़ते दबाव से ब्रिटेन अलग हो गया और उसमे इजराइल और फिलिस्तीन विवाद संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) को दे दिया।
     
    ▪️ संयुक्त राष्ट्र ने अरब और यहूदियों का फिलिस्तीन में टकराव देखते हुए फिलिस्तीन को दो हिस्सों अरब राज्य और यहूदी राज्य (इजराइल) में विभाजित कर दिया। संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) ने एक योजना बनाई जिसमे 45% जमीन 70% फिलिस्तीनियों को और 55% जमीन 30% यहूदियों को देने की बात करी। इस अन्याय पूर्ण प्लान का फिलिस्तीनियों ने विरोध किया जिससे *14 मई 1948 को इजराइल ने ख़ुद स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी और इजराइल को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया।
     
    जिसके कारण पहला अरब और इजराइल युद्ध हुआ। जिसमे लाखों फिलिस्तीनी बेघर हुए और इजराइल (Israel) ने फिलिस्तीन के 78% हिस्से कब्जा कर लिया। गाज़ा और ईस्ट येरूशलम जॉर्डन के कंट्रोल में गया और इजराइल ने 11 मई 1949 में संयुक्त राष्ट्र की मान्यता हासिल की। (इस युद्ध में अक्सर हम सुनते है, की एक अकेले इजराइल ने अरब लीग जिसमे 8 देश थे को हराया, जबकि सच्चाई ये है  कि  इजराइल को मित्र राष्ट्रों का पूरा समर्थन था क्योंकि इजराइल फिलिस्तीन में बसना शुरू ही हुए थे तथा इजराइल के समर्थन में 117500 और अरब के साथ मात्र 63 हज़ार फ़ौज थी)
     
    ▪️ 1956 में दूसरा अरब इजराइल युद्ध हुआ और इजराइल ने पूर्वी येरुशलम पर भी अपना क़ब्ज़ा कर लिया और एक समझौता हुए जिसमे मस्जिद ऐ अक़्सा का क़ब्ज़ा जॉर्डन को दिया गया।
     
    यहूदियों के धार्मिक कानून और इजराइल सरकार (Government) के अनुसार यहूदी, उस 35 एकड़ के क्षेत्र जिसमे मस्जिद ऐ अक़्सा और डोम ऑफ द रॉक (Dome of the rock) है के अंदर नहीं जा सकते है क्योंकि वह उनके लिए बहुत ही पवित्र है और वह उसमे पैर नहीं रख सकते है। जिस बारे में 1967 में इजराइल के डिफेंस मिनिस्टर मोशे दयान ने कहा था कि यही सही है की मस्जिद ऐ अक़्सा की देख रेख जॉर्डन ही करें। लेकिन समय के साथ अपने अक़ीदे को खुद तोड़ दिया और सन् 2000 में 1000 पुलिस के साथ उग्रवादी यहूदी (Zionist) ज़बरदस्ती उस क्षेत्र में घुसे है और दमन करने लगे। जिससे दोनों पक्षों के लोग घायल हुए और मारे गए।
     
    ▪️ 1980 आते-आते जॉर्डन पीछे हटा और फिलिस्तीन लीडरशिप आगे आई और सत्ता हाथ में ली। लेकिन पूर्वी येरुशलम वापस नहीं मिला और वह यहूदियों के क़ब्ज़े में ही रहा 1994 तक मस्जिद ऐ अक़्सा के ग्रैंड मुफ्ती की नियुक्ति (Appointment) जॉर्डन करता था जो की फिलिस्तीनी होते थे। इस 35 एकड़ की जगह को अब तक जॉर्डन ही मरम्मत करता आ रहा है जिसमे तीनों धर्म (यहूदी / ईसाई / मुस्लिम) की निशान मौजूद है। इस पर अब तक 1 बिलियन डॉलर ख़र्च कर चूका है और इस क्षेत्र की सुरक्षा (Security) इजराइल के पास है जो फिलिस्तीनियों को अंदर आने में परेशानी पैदा करती है।
     
    ▪️ 1980 में इजराइल ने एक कानून पास किया और येरुशलम को एक पूर्ण इजराइल स्टेट की टेरिटरी ख़ुद ही बना दिया। जो अंतरराष्ट्रीय कानून (International law) का उल्लंघन है जिसे कोई भी देश मान्यता नहीं देता है। 06 दिसंबर 2017 में ट्रम्प सरकार येरुशलम, जो की फिलिस्तीन की राजधानी थी को इसराइल की राजधानी की मान्यता दे देती है। जगजाहिर है कि इज़राइल और अमेरिका का हमेशा से गठजोड़ रहा है जिसकी प्रमुख वज़ह अमेरिका के अहम ओहदों पर यहूदियों के कब्ज़ा और इकोनॉमी पर पकड़ है।
     
    इस पूरी लड़ाई का कारण ब्रिटेन, अमेरिका, फ़्राँस और रूस के समर्थन में इजराइल द्वारा फिलिस्तीन पर अवैध क़ब्ज़ा है जो की मस्ज़िद ऐ अक़्सा को गिरा कर पूरे फिलिस्तीन से मुस्लिमो को भगा कर ग्रेटर इज़राइल (Greater Israel) की स्थापना करना चाहते हैं जो कि यहूदियों के धर्म ग्रँथों से प्रेरित है, जिसका निर्माण करने से उनका मानना है कि उनका अंतिम मसीहा दुनिया में आगमन करेगा और वे उसके सान्निध्य में विश्व पर राज करेंगे। इस बारे में जानने के लिए यहूदी ग्रँथों *Greater Israel ,Third temple, New World Order, Freemason, Illuminati*  ( ग्रेटर इज़राइल, थर्ड टेम्पल , न्यू वर्ल्ड आर्डर   फ्रीमेसन, इल्लुमिनेटी)  और रोथ्सचाइल्ड परिवार (Rothschild Family) के बारे में पढ़ना चाहिए ।