*सवाल:- एक पोस्ट में कहा जा रहा है कि सेक्युलर देश भारत में अज़ान को Ban (प्रतिबंध) कर देना चाहिए क्योंकि उस के अर्थ (अज़ान में कहि जाने वाली बातों ) से दूसरे धर्म के लोगों की भावना आहत होती है?*
जवाब:- इस पोस्ट में बड़ी ही चालाकी से सिलेक्टिव एप्रोच (Selective Approach) का उपयोग करते हुए पाठक को गुमराह किया जा रहा है।
यहाँ आपका ध्यान इस तरफ़ तो खींचा जा रहा है कि मस्जिद में लाउडस्पीकर में अज़ान देते हैं, और उसका क्या मतलब होता है, लेकिन इस बात से ध्यान हटाया जा रहा है कि मंदिर, गुरुद्वारे, बौद्ध मठ, चर्च, जैन मंदिर, सिंधी मंदिरों आदि में लाउडस्पीकर पर क्या कहा जाता है।
आइये हम इस पर थोड़ा विचार करते हैं।
जिस तरह इस पोस्ट में कहा गया है कि हिन्दू अपनी आस्था के अनुसार बहुत से भगवानो को पूजा के योग्य समझते हैं, पर अज़ान में मुसलमान कहता है कि सिर्फ़ *अल्लाह* ही इबादत के योग्य है अतः इस से हिन्दूओ की भावना आहत होती है इसलिए अज़ान पर Ban (प्रतिबंध) लगा देना चाहिए।
अब अगर इसका उल्टा (Vice versa) मैं कहूँ, यानी कि “एक मुसलमान होने के नाते, मेरी ये आस्था है कि सिर्फ़ अल्लाह ही पूजा के योग्य है, लेकिन सभी हिन्दू मंदिरों में अल्लाह के अलावा बहुत सारे भगवानो की पूजा, भजन, आरती होती है और लाउडस्पीकर पर सुनाई जाती है। इससे मुसलमानों की भावना आहत होती है अतः इन पर बेन लगा देना चाहिए..??
तो आप क्या कहेंगे..?
आप जो भी कहें….
वही बात अज़ान पर सवाल उठाने वाले के बारे में भी लागू होती है अतः *कुतर्क (illogic) तो यहीं उजागर हो गया।*
फिर भी हम आगे और विचार करते हैं।
बात सिर्फ़ हिन्दू-मुस्लिम तक ही सीमित नहीं है बल्कि हर धर्म और आस्था पर लागू होती है।
जब आप लाउडस्पीकर में *विष्णु* आरती करते हैं
*ओम जय जगदीश हरे…*
*तुम पूरण परमात्मा,*
*स्वामी तुम अन्तर्यामी।*
*पारब्रह्म परमेश्वर,*
*तुम सब के स्वामी॥*
*॥ ॐ जय जगदीश हरे…॥*
तो आप कह रहे होते हैं के विष्णु / जगदीश सबके स्वामी हैं, अंतर्यामी हैं, परमात्मा हैं आदि।
तो क्या इस संदर्भ में यह कहा जाए कि आप सिख, मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध आदि सभी धर्म के लोगों की भावना आहत कर रहे हैं? क्योंकि एक सिख के अनुसार जग के स्वामी तो वाहेगुरु हैं, मुस्लिम के अनुसार परमात्मा, जग का स्वामी तो अल्लाह है। ईसाई के अनुसार तो जग का स्वामी/परमात्मा गॉड या जीसस है।
जब आप पूजा करते हैं *श्री गणेश* की।
*जयदेव जयदेव जय मंगलमूर्ति*
*सुखकर्ता दुःखहर्ता वार्ता विघ्नाची।*
अर्थात सुख के देने वाले, दुःख को हरने वाले, विघ्न को दूर करने वाले गणेश जी हैं।
तो यह बात हिन्दू धर्मावलंबियों को छोड़ कर बाकी सभी धर्मो कि आस्था के विरुद्ध हैं क्योंकि उनके अनुसार सुख देने वाला, दुःख हरने वाला विघ्न दूर करने वाला उनके धर्म के अनुसार “गणेश जी” नहीं बल्कि कोई और होगा फिर चाहे वो वाहेगुरु हो, झूलेलाल हो, ईसा मसीह हो, गौतम बुद्ध हो या यहोवा हो।
*तो क्या इस संदर्भ में फिर यही कहा जाए कि आप यह आरती बजाकर सबकी भावनाओं को आहत कर रहे हैं..?*
इसी तरह अनेक उदाहरण हैं।
और सोचिए:
यह बात सिर्फ़ *इस्लाम और हिन्दू* धर्म के उद्घोष पर ही लागू नहीं है बल्कि सभी धर्मों का उद्घोष एक दूसरे के विरुद्ध जाता है, आइए देखते हैं मंदिर, मस्जिद के अलावा बाकी धर्म स्थलों में लाऊडस्पीकर पर क्या बजाया जाता है और उसका मतलब क्या है।
*गुरुद्वारा की गुरबानी के:-*
*इक्क औंकार वाहेगुरु की फतेह।*
*….,अजूनी सैभं गुर प्रसाद ॥….*
ईश्वर (वाहेगुरु) सिर्फ़ एक है, उसी की विजय है, और गुरु कृपा से प्रसाद मिलता है।
*बुद्ध मठ में होने वाली वंदना*
भगवान का श्रावक संघ सन्मार्ग पर चल रहा हैं,
भगवान का श्रावक संघ सीधे मार्ग पर चल रहा हैं,
भगवान का श्रावक संघ ज्ञान के मार्ग पर चल रहा हैं,
भगवान का श्रावक संघ उत्तम मार्ग पर चल रहा हैं॥
*चर्च में होने वाला मास:*
“Blessed be God: Father, Son and Holy spirit. And blessed be his kingdom, now and forever. Amen”…
“Jesus the only begotten son”…..
*आदि*
तो अब क्या यूँ कहा जाए कि बौद्ध मठ में कहा जा रहा है कि उनका मार्ग ही ज्ञान मार्ग और उत्तम मार्ग है, मतलब बाकी सब धर्म वाले अज्ञान के मार्ग पर चल रहे हैं? और क्या उनका मार्ग खराब है? जहाँ चर्च में कहा जा रहा है कि सिर्फ़ येशु ईश्वर की सन्तान है तो वहाँ मंदिर में कहा जा रहा है गणेश जी भगवान की सन्तान है।
जहाँ मुस्लिम कह रहे हैं ईश्वर सिर्फ़ एक है तो वहीं सिख कह रहे हैं कि वह सिर्फ़ एक है लेकिन सिर्फ़ गुरु कृपा से मिलता है। तो इसका मतलब क्या यह निकाला जाए कि ईश्वर बाकियों को नहीं मिलेगा। अगर सिर्फ़ वाहेगुरु की फतह है तो क्या ये कहा जाए बाकियो की हार है??
तो क्या इसका मतलब यह है कि सब एक दूसरे की भावनाओं को आहत कर रहे हैं?
बल्कि कुछ और धर्मो को जोड़ लिया जाए तो विरोधाभास और लंबा हो जाएगा।
अतः क्या सब धर्म स्थलों को बंद कर देना चाहिए क्योंकि सेक्युलर देश इसकी इजाज़त नहीं देता??
*बिल्कुल नहीं, बल्कि अगर कोई यह कहता है तो उसे बहुत बड़ा ना समझ ही कहा जायेगा क्योंकि ये संदर्भ ही ग़लत है।*
बल्कि इसका संदर्भ तो यह है कि सभी अपनी अपनी आस्था अनुसार अपने धर्म का उद्घोष कर रहे हैं।
सेक्युलर का मतलब यह नहीं होता कि कोई आस्था रखे ही ना या सब एक आस्था को मानने को मजबूर कर दिए जाएं और अगर उसके विपरीत कोई आस्था जाती है तो उसको बेन करने की मांग की जाए, बल्कि *यह Secular शब्द की आड़ में कट्टरवाद है जिसका पाठ आपको पढ़ाने की कोशिश की गई।*
बल्कि सेक्युलर (Secular) का मतलब तो यह होता है कि सभी को अपनी अपनी आस्था रखने और उस का उद्घोष करने कि आजादी हो और इससे समस्या सिर्फ़ उस कट्टरवादी सोच को हो सकती है जो कट्टरवाद लाना चाहता हो और लोगों को किसी तरह धर्म विशेष के प्रति भड़काना चाह रहा हो।
अंत में यही कहूँगा की समझदार को इशारा काफी होता है, जैसा आपने देखा किस तरह चालाकी के साथ “Selective approach” (चयनात्मक दृष्टिकोण) के ज़रिए आपके Perception (धारणा) को चेंज कर आपका इस्लाम धर्म के प्रति ब्रेन वॉश करने की कोशिश की गई।
कोशिशे और भी होंगी क्योंकि मकसद एक ही है इस्लाम को और मुसलमानों को आपका दुश्मन दिखाना।
लेकिन अगर आप चालाकी भरी हर कोशिश पर विवेक से एक बार पुनः दृष्टि/नज़र डालेंगे और थोड़ा सोचेंगे तो पूरी आशा है कि आप हर प्रकार की चालाकी से बचे रहेंगे और किसी के बहकावे में नहीं आएंगे।
धन्यवाद।