सवाल:- कोरोना के इलाज के लिए अस्पतालों में व्यवस्थाएँ इसलिए नहीं हो पाई क्योंकि आज़ादी के बाद से अब तक अरबों रुपये हज सब्सिडी पर खर्च कर दिये गए।

जवाब:- महामारी के इस कठिन समय में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं के अभाव में लोग परेशान हो रहे हैं जब लोगों ने सोशल मीडिया पर यह आवाज़ उठाना शुरू की तो उनका यह आक्रोश ट्रेंड में आ गया। कई बुद्धिजीवियों ने यह भी कटाक्ष किए की लोगों ने “धर्म के नाम पर वोट दिये थे अस्पतालों के नहीं ” अब अगर अस्पताल में बेड नहीं मिल रहे है तो इसमें सरकार कि क्या गलती अगर जनता ने सरकार से विकास के मुद्दे पर वोट दिया होता तो आज अस्पताल, बेड और ऑक्सीजन होते।

जब सोशल मीडिया (Social media) पर यह ट्रेंड तेज़ी से वायरल होने लगा और जनता सवाल करने लगी तो लोगों का ध्यान हर बार असल मुद्दों से भटका कर मुसलमानों पर लाने वालों ने मामला बिगड़ता देख तुरंत जनता को भ्रमित करने के लिये इस तरह के मैसेज वायरल करना चालू किये ~”अस्पताल बनवाने कि ज़िम्मेदारी सिर्फ मोदी जी को मिली है…बाकी को हज हाउस, मदरसे, मस्जिद, कब्रिस्तान बनाने का ठेका मिला था। आज़ादी के बाद से खरबों रूपये कि हज सब्सिडी मुसलमानों को दे दी गई है।”~

असल में वे अच्छी तरह जानते हैं कि आज बहुसंख्यक समाज के दिमाग में उन्होंने यह बात बैठा दी है कि उनके होने वाले हर नुकसान के पीछे मुस्लिम शब्द है और इसी का सहारा लेकर इस बार भी वे अपना काम बना लेंगे।

इसलिए कोरोना कि इस आपदा के समय हज सब्सिडी की बात को बिना किसी आधार के ही उछाल दिया गया । 

खैर, इनका तो यह काम है और इसमे इनका फ़ायदा जुड़ा है लेकिन ग़लती तो उन भोले-भाले लोगों की है जिनको कोई भी बड़े आराम से मूर्ख बना देता है और जो लोग इस तरह की बातों से चला दिये जाते हैं उनकी बुद्धि पर हँसी कम बल्कि दया ज़्यादा आती है।

वैसे तो हज सब्सिडी को इस मामले में जोड़ना ही बड़ा तर्कहीन (Illogical) औऱ मूर्खता पूर्ण है। फिर भी अगर हम इस बहाने ही सही हज सब्सिडी की बात करें तो हर समझदार और जागरूक भारतीय नागरिक को ये पता है कि हज के नाम पर सब्सिडी हाजियों को नहीं बल्कि एयर इंडिया (Air India) को दी जाती थी और जब तक सब्सिडी दी गई तब तक ही एयर इंडिया (Air India) चली। सब्सिडी के बंद होते से ही एयर इंडिया (Air India) भी बन्द हो गई

 

अब इस खेल को समझने के लिए इतिहास और कुछ आंकड़ों को समझना होगा।

जाने-माने उद्योगपति जेआरडी टाटा ने भारत की आज़ादी से पहले ही 1932 में टाटा एयरलाइंस की स्थापना की थी। आज़ादी के बाद यानी 1947 में टाटा एयरलाइंस की 49 फ़ीसदी भागीदारी सरकार ने ले ली थी। 1953 में इसका राष्ट्रीयकरण हो गया था.

1954 तक हज यात्री मुंबई के शिपिंग कंपनी के जहाजों से हज करने के लिये जाते थे। लेकिन 1954 में हवाई मार्ग द्वारा हज यात्रा शुरू हुई। बावजूद इसके भारी संख्या में यात्री समुद्री मार्ग से ही जाते थे। 1973 में हज यात्रियों को लेकर जा रहे एक जहाज के हादसे के बाद 1973 में सरकार ने फैसला लिया कि हज यात्री अब सिर्फ हवाई यात्रा से ही हज करने जाएंगे। लेकिन हवाई यात्रा महंगी थी। एयर इंडिया (Air India) शिपिंग कंपनी से सस्ती यात्रा उपलब्ध कराने में असमर्थ थी। इसके लिए इंदिरा गांधी ने एयर इंडिया (Air India) को सब्सिडी देना शुरू किया। जो कि 2016 तक चली। जी हाँ सब्सिडी हज के नाम पर एयर इंडिया (Air India) को दी जाती थी।

हज के नाम पर सब्सिडी का जो गौरख धंधा चल रहा था। जिसमे नेताओं और उनके चहेतों को फ्री यात्रा का मज़ा दिया जा रहा था और बदनाम मुस्लिमों को किया जा रहा था। उसकी सच्चाई मोहम्मद जाहिद साहब का 2016 का यह लेख आँखें खोलने के लिए काफी है।

 

⚫ कैलकुलेशन ऑफ़ सब्सिडी 2016 के अनुसार

2016 के अनुसार मक्का शरीफ से इंडिया के लिये हाजियों का कोटा एक लाख छत्तीस हज़ार (1,36,000) का था।

2015 में हमारी सरकार ने सालाना बजट में 691-करोड़ हज सब्सिडी के तौर पर मंज़ूर किये थे।

691 करोड़ ÷ 1.36 लाख = 50.8 हज़ार

यानी एक हाजी के लिए 50000 रुपये ।।

 

◀ अब ज़रा खर्च जोड़ लेते हैं ▶

2015 में एक हाजी को हज के लिए सरकार को एक लाख अस्सी हज़ार (1,80,000) देने पड़े।

जिसमे चौतीस हज़ार (34,000) लगभग 2100 रियाल मक्का पहुँचने के बाद खर्च के लिए वापस मिले।

 

1.8 लाख – 34000 = 1.46 लाख

यानी हमें (एक हाजी को) हमारी सरकार को एक लाख छियालीस हज़ार (1,46,000) रुपये अदा करने पड़ें हैं ।।

दिल्ली मुम्बई लखनऊ से जेद्दाह रिटर्न टिकट 2 महीने पहले बुक करते हैं तो कुछ फ्लाइट का किराया 25000 रुपये से भी कम होगा। फिर भी 25000 रुपये मान लेते हैं । (IRCTC पर चेक कर लीजिये) खाना टैक्सी/बस का बंदोबस्त हाजियों को अलग से अपनी जेब से करना होता है।

सरकार को अदा किये एक लाख छियालीस हज़ार रुपये (1,46,000) में से होने वाला खर्च

फ्लाइट = 25,000

मक्का में रहना (25 दिन) = 50,000

मदीना में रहना (15 दिन) = 20,000

अन्य खर्चे = 25,000

कुल खर्च हुआ = 1,20,000

 

😧 कन्फ्यूज़न 😧

मतलब एक हाजी से लिये 1,46,000 रुपये और खर्च आया 1,20,000 रुपये मतलब एक हाजी अपनी जेब से सरकार को रूपये 26,000 अधिक देता है ।

 

अब असल मुद्दा ये है कि जब हाजी सारा रुपया अपनी जेब से खर्च करता है और उसके ऊपर भी 26,000 रुपये और सरकार के पास चला जाता है। मतलब लगभग एक हाजी से रूपये 50 हज़ार सब्सिडी मिला कर सरकार के पास 76,000 हज़ार हो जाता है तो ये पैसा जाता कहाँ है..?

26,000+50,000 =76000 (बचत)× 1,36,000 हाजी =10,33,60,00,000 (दस अरब तैंतीस करोड़ साठ लाख रुपया)

 

ध्यान दीजिए कि सऊदी अरब सरकार एयर इंडिया को हज यात्रा के लिए एक तरफ के हवाई जहाज़ का ईंधन भी मुफ्त में देती है जिसे यह लोग खा जाते हैं। यह प्रति व्यक्ति खर्च का गणित है। यदि एक लाख छत्तीस हजार हज यात्रियों को हज कराने का टेंडर निकाला जाए तो इसमें 10 से 15 हजार रुपये की और बचत होगी। जो खर्च बताए गए हैं उनमें एक रूपये का भी अन्तर नहीं है क्योंकि उमरा करने पर लगभग यही खर्च आता है।

 

इसी तरह हज हाउस, मस्जिद, मदरसे जो भी मुस्लिम धार्मिक स्थल होते है। वे सब मुस्लिम समाज के चंदे से बनते है।।

 

यह तो थी हज सब्सिडी की बात जिस से मुसलमानों को तो नहीं बल्कि सरकार, सरकारी अफसरों और उनसे जुड़े लोगों को ही फायदा हो रहा था, ख़ैर वह भी 2018 में बंद भी हो गई , जबकि महामारी ने भारत में विकराल रूप दिखाया 2020 में और दूसरी लहर आई 2021 में लेकिन इसके बावजूद किसी मंदबुद्धि को महामारी नियंत्रण (Control) ना कर पाने और इलाज की व्यवस्थाओं की कमी का कारण किसी तरह की धार्मिक सब्सिडी दिख रही हो तो उसे एक बार हर धार्मिक आयोजन या धार्मिक यात्राओं पर सरकारी सहायता, यात्राओं पर ख़र्च जैसे मानसरोवर, वैष्णोदेवी, अमरनाथ आदि एवं मध्य प्रदेश और अन्य प्रान्तों में मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा योजनाओं पर मुफ्त में तीर्थ यात्रा के प्रावधानों आदि को भी एक बार देख लेना चाहिए जो पहले भी थी और अब भी जारी हैं।

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