सवाल:-अगर आदम अलैहिस्सलाम पहले इंसान होते तो दुनियाँ में सारे लोगों की भाषा भी एक ही होती। अलग-अलग भाषाओं का होना यह बतलाता है कि आदम अलैहिस्सलाम पहले इंसान नहीं थे जैसा कि क़ुरआन कहता है।*

जवाब:- अल्लाह तआला क़ुरआन में फरमाते हैं:

और अल्लाह की निशानियाँ में से आसमान और ज़मीन का पैदा करना है और तुम्हारी भाषाओं और रंगों का अलग अलग होना है। बेशक इसमें पूरी दुनियाँ वालों के लिए बहुत-सी निशानियाँ है।

(सूरह रूम : 22)

इस आयत से स्पष्ट है कि दुनियाँ में सैकड़ों हजारों भाषाओं का होना तो अल्लाह तआला के कुदरत की जबरदस्त दलील है। जिस तरह से अल्लाह ने एक ही जोड़े आदम और हव्वा (अलैहिस्सलाम) से दुनियाँ की तमाम नस्ल और रंग के इंसानों को वजूद में लाया और फिर वे अलग-अलग इलाकों और जगहों में बसते चले गए। उसी तरह अल्लाह ने आदम और हव्वा अलैहिस्सलाम की भाषा के ज़रिए दुनियाँ की तमाम भाषाओं को उत्पन्न किया और फिर जब अल्लाह तआला ने अलग-अलग कौमो में नबी भेजे और उनको आसमानी किताबें दी तो वह किताबें भी अलग-अलग भाषाओं में भेजी जिन्हें उस कौम के लोग बोलते थे।

 

जैसे मूसा अलैहिस्सलाम जिस इलाके में भेजे गए वहाँ के लोगों की ज़बान इब्रानी थी। इसलिए अल्लाह की किताब तौरात भी इब्रानी भाषा में भेजी गई। अरब के लोगों की ज़बान अरबी थी इस लिए क़ुरआन अरबी में उतारा गया।

दुनियाँ में आज 7 हज़ार से भी ज़्यादा भाषाएँ हैं उनमें से हर एक की अपनी अलग खूबसूरती और खुसूसियत है। अगर आप हिन्दी को देखें तो हिन्दी का अपना अंदाज़, लबो लेहजा, शायरी और मुहावरे हैं। उर्दू हिन्दी के मुकाबले में अपनी अलग पहचान और खूबसूरती रखती है। साथ ही इन भाषाओं के और भी कई फायदे हैं जैसे हर सभ्यता और उसका दौर इन भाषाओं के ज़रिए पता चलता है। किसी भी देश जगह की संस्कृति, तौर तरीके आदि को जानने में उस जगह की भाषा का ज्ञान सबसे ज़्यादा मदद करता है।

अगर दुनियाँ में सिर्फ़ एक भाषा होती तब अलग-अलग भाषाओं को सीखने और उनसे तमाम फायदे हासिल करने से इंसानियत महरूम (वंचित) हो जाती। अतः इन भाषाओं का वजूद में आना और इंसान को उसका इल्म कराना अल्लाह की निशानियों में से है।

 

🔹 आज आधुनिक भाषा विज्ञान (Modern Linguistics) भी विभिन्न भाषाओं की उत्पत्ति का इसी और इशारा करता है।

 

कुछ लोगों को यह उलझन (Confusion) हो जाती है कि दुनियाँ की भाषाएँ जब इतनी अलग-अलग हैं तो फिर वे 1 जोड़े आदम और हव्वा (अलैहिस्सलाम) की भाषाओं से कैसे सम्बंधित हो सकती हैं।

 

जबकि आज की आधुनिक भाषा विज्ञान (Modern Linguistics) का अध्ययन करने पर पता चलता है कि आज दुनियाँ में 7,117 जीवित भाषा (Living Language) हैं जो आज बोली और जानी जाती हैं, इसके अलावा कई मृत और विलुप्त भाषाएँ भी हैं। यह सभी भाषाएँ किसी ना किसी एक मूल भाषा से निकली हैं जिन्हें Proto Language (आद्य भाषा) के नाम से जाना जाता है।

कई प्रोटो लैंग्वेज आज डेड या विलुप्त भी हो गई हैं। यानी उन में से निकली भाषाएँ तो आज जीवित हैं लेकिन वे ख़ुद जीवित नहीं है।

ऐसी ही एक प्रोटो लैंग्वेज जिसका नाम Anatolian या Proto-Indo-European (प्रोटो-इंडो-यूरोपियन) है आज दुनियाँ की 50% भाषाओँ की जनक है यानी आज दुनियाँ में बोले जानी वाली लगभग 3,550 भाषाएँ एक ही भाषा से उत्पन्न हुई है जिसको हम Anatolian नाम से जानते हैं।

यानी भले ही कई भाषाएँ अतीत में किसी एक भाषा से निकली हों लेकिन आज समय के साथ उनमें इतना बदलाव हो चुका है कि वे देखने में बिल्कुल अलग-अलग लगे औऱ उनमें कोई समानता ना दिखाई देती हो।

अतः स्पष्ट है कि आज मॉडर्न भाषा विज्ञान यह मानता है कि दुनियाँ की तमाम भाषाएँ कुछ एक भाषाओं से निकली हैं। साथ ही यह बात भी स्वाभाविक एवं प्रबल है कि यह प्रोटो भाषाएँ भी कहीं जा कर मिलती हो और किसी एक प्रमुख प्रोटो भाषा से निकली हों या उन भाषाओँ से जिनका इस्तेमाल आदम और हव्वा अलैहिस्सलाम करते थे।

 

अतः उपर्युक्त सवाल तो ग़ौर करने पर एक और निशानी में बदल जाता है।

और यक़ीन करने वालों के लिए ज़मीन में बहुत-सी निशानियाँ हैं

तथा स्वयं तुम्हारे भीतर (भी)। फिर क्यों तुम देखते नहीं?

(क़ुरआन 51: 20-21)

 

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