सवाल:- गीता, वेद, रामायण पढ़कर कोई आतंकवादी नहीं बनता लेकिन क़ुरआन पढ़कर ही लोग आतंकवादी क्यों बनते है?
जवाब:- सर्वप्रथम तो यह सवाल / इल्ज़ाम ही ग़लत है कि क़ुरआन पढ़ कर लोग आतंकवादी बन जाते हैं। आप की जानकारी के लिए बता दे कि दुनिया में निःसंदेह सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली किताब क़ुरआन ही है। विश्व में 180 करोड़ (1.8 Billion) मुस्लिम हैं और अगर क़ुरआन पढ़ कर लोग आतंकवादी बन रहे होते तो आज दुनिया की क्या हालत हुई होती उसका आप अनुमान लगा सकते हैं।
तमाम कुप्रचारो के बाद भी आज विश्व में सबसे ज़्यादा तेज़ी से कबूल किया जाने वाला धर्म इस्लाम ही है, लाखों लोग इस किताब को पढ़ कर इस्लाम अपना रहे हैं और अगर इस बात का ज़रा-सा भी आधार होता कि क़ुरआन पढ़ लोग आतंकवादी बन रहे हैं तो क्या यह होना संभव था ?
इस्लाम की बढ़ती लोकप्रियता को रोकने के लिए हमेशा से ही कुप्रयास किए गए (जैसे इस्लाम तलवार के ज़ोर से फैला) उन्ही में से एक प्रयास आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल करना है, जो 2001 से शुरू हुआ। इस से पहले कभी यह शब्द मुसलमानों के लिए प्रयोग नहीं किया गया जिस से इसका कुप्रचार और षड्यंत्र होना साबित होता है।
यह बात तो जग जाहिर है और कई बार इसका जवाब दिया जा चूका है की कुरआन अमन और शान्ति का पैग़ाम देता है। साथ ही यह भी कई बार साबित किया जा चुका है की इस्लाम को बदनाम करने के इसी षडयंत्र का प्रोपेगेंडा करने के लिए मीडिया आतंकवाद शब्द का प्रयोग इस्लाम और मुस्लिमों के लिए कर, अपना एजेंडा सिद्ध करती है, सभी ने देखा देश विदेश में हुई जघन्य आतंकवादी घटनाओं (जैसे मॉबलिंचिंग, न्यूज़ीलैंड अटैक) जिन को करने वाले मुस्लिम नहीं थे उन घटनाओं के लिए आतंकवाद शब्द प्रयोग ही नहीं किया गया ना करने वालो को उनके धर्म से जोड़ा गया जैसे मुस्लिमों के बारे में किया जाता है। बल्कि कुछ और तरीके से उल्लेखित किया गया ।
लेकिन यहाँ हम आज इस षडयंत्र के दूसरे पहलू को उजागर करेंगे जिस पर कम ही चर्चा हुई है। वह यह कि अक्सर आतंकवादी घटना बता कर कई लोगों की गिरफ्तारी की जाती है। उन का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि सालों बाद उन पर आरोप सिद्ध ही नहीं हुए और वे रिहा हो गए और ये पता ही नहीं चल पाया कि असल में घटना के पीछे था कौन? या यह जान बूझ कर छुपा दिया जाता है? क्या यह आतंकी घटना थी या सोची समझी साज़िश।
देखें :-
️ देश में नक्सली और आतंकी हमले और उनका विश्लेषण
1980 से 2019 तक देश में नक्सली और आतंकी हमले 110 से ज़्यादा है, इन हमलों में 3870 से ज़्यादा नागरिक मारे गए, 6683 से ज़्यादा घायल हुए।
इन 110 हमलों में से मात्र 11 केस पर फ़ैसला आया और अपराधियों को सजा हुई। बचे 100 से ज़्यादा नक्सली / आतंकी हमलों में गिरफ्तार किए गये लोग बेगुनाह साबित हुए औऱ 5-साल, 10-साल और 20-सालों के लम्बे मुकदमों के बाद बाइज़्ज़त बरी हुए।
हर हमले के बाद पकड़े जाने वाले, जिनको इस दावे के साथ पकड़ा जाता था, की ये आतंकी है और इनके खिलाफ पुख्ता सबूत है। पर सरकार यह कभी साबित ही नहीं कर पाई और आंकड़े बताते है, की जिनको आतंकवाद के इल्ज़ाम में पकड़ा है, वे सब तो निर्दोष थे।
- अक्षरधाम मंदिर हमले में जिनको पकड़ा था, वे बाइज्ज़त बरी हुए…? मतलब जिनको आतंकी कह कर पकड़ा था, वे सब बेगुनाह थे..?
तो फिर सवाल उठता है कि अक्षरधाम मंदिर पर हमला किसने करवाया था और इसके पीछे किस लाभ का मकसद था?
- संसद हमले के समय 4 लोगों को आरोपी बनाया गया था। एक को फाँसी दी गई (जिसको फाँसी दी थी, उसने कहा था कि मुझे देवेंद्र सिंह ने फँसाया है, उस समय किसी ने भी नहीं सुना, लेकिन अब देवेंद्र सिंह ख़ुद पकड़ा गया) 2 को बाद में बरी कर दिया चौथा जिसको मास्टर माइंड बताया गया था, 3 साल बाद सुप्रीम कोर्ट से बाइज्ज़त बरी हो गया।
फिर सवाल ये है? संसद / अक्षरधाम औऱ दूसरे हमले किसने करवाये? जिनको आरोपी बनाया वे बरी हो गए तो असली आरोपी कौन थे? उनको बचाने में किस की भूमिका है?
क्यों आज तक हमले के असली मुज़रिम पकड़े नहीं गये…?
किन लोगों को बचाने के लिए किन लोगों ने निर्दोषों को झूठे मुकदमे में फँसाया…?
क्या आतंकी और नक्सली हमले राजनीतिक हित साधने के लिए होते है..?
कब तक हम झूठे प्रोपेगेंडा में आकर सच्चाई को अन देखा करते रहेंगे..?
कब तक हमारे देश के वीर सैनिक और आम जनता बलि चढ़ते रहेंगे…?
अक्सर ये घटनाएँ चुनाव के आस पास या कोई बड़ा मुद्दा खड़ा हो जाने पर ही क्यों होते हैं? क्या ये सिर्फ़ बार-बार होने वाला इत्तेफ़ाक (Coincidence) है ? या कुछ और?
- यह वे कुछ सवाल हैं जो आपको ख़ुद से पूछने होंगे।