सवाल:- कुरआन की इन आयतों का हवाला देकर यह बताने की कोशिश की जाती है कि इस्लाम में बहु, पुत्रवधू से शादी करना जाइज़ है..?क्या पैग़म्बर ऐ इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम ने अपनी बहु से निकाह किया था?.?

जवाब :-  इस्लाम में पुत्रवधू / बहु से शादी करना हराम (पूर्णतः प्रतिबंधित)है।
 
इस्लाम में तलाकशुदा, या बेवा औरत के निकाह पर बहुत ज़ोर दिया गया है ताकि वह भी सामान्य ज़िंदगी जी सके ना कि समाज से कट कर दुःख भरी ज़िंदगी जीने को मजबूर हो। अतः इस बारे में भी स्पष्ट मार्गदर्शन किये गए कि किन से शादी की जा सकती है और किस से नहीं। इसी के अंतर्गत जैसे ऊपर बताया गया कि अगर पुत्रवधू बेवा या तलाकशुदा हो जाए तब भी उससे जीवन भर विवाह नहीं किया जा सकता।
 
लेकिन यह नियम मुँह बोले बेटे के बारे में लागू नहीं है। क्योंकि वह आपका पुत्र नहीं होता बल्कि सिर्फ़ कहने या मानने की बात होती है। इसमे भी यह याद रहे कि ऐसा करना कोई अनिवार्य नहीं है बल्कि इसकी सिर्फ़ अनुमति है क्योंकि इस्लाम के नियम कोई आज कल के लिए तो है नहीं बल्कि हर काल खंड ता क़यामत तक के लिये हैं और ऐसी परिस्थिति कई बार बन सकती है इसलिये यह बता देना आवश्यक था।
 
इस के बावजूद इस्लाम के दुश्मन आप सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम की ज़ैनब बिन्त जहश से शादी पर आरोप लगाते हैं जबकि वे आपकी पुत्रवधू नहीं थी बल्कि ज़ैद बिन हारिसा जो की गुलाम थे और बाद में आपने उनको गुलामी से छुटकारा दिला कर अपना बेटा कहा थी यानि मुँह बोला बेटे की तरह रखा था उनकी पूर्व पत्नी थीं जिन्हें वे तलाक़ दे चुके थे।
 
दरअसल इस पूरे वाकये के जरिये अल्लाह तआला को अपने बन्दों को बहुत-सी बातो के बारे में नियम बता देने थे।
जैसे – गुलाम, यतीम से व्यवहार, विरासत, शादी के नियम, रिश्तों में अंतर आदि।
 
जो इस बारे में जानने और कुरआन की इन आयतों को पढ़ने से मालूम होती हैं। जबकि इस बारे में इस्लाम से नफ़रत रखने वालों ने बहुत-सी झूठी रिवायतें गढ़ ली हैं जिनमे कोई सच्चाई नहीं है इसलिए हमें चाहिए कि इस वाकये को विस्तार में जानें।
 
हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम से पहले और उनके दौर में गुलामी प्रथा का बहुत चलन था। लोग अपने गुलामो को बुरी तरह इस्तेमाल करते उन्हें समाज में किसी तरह का हैसियत (Status) प्राप्त नहीं था और उनसे बहुत बुरी तरह का व्यवहार किया जाता था। ऐसे दौर में हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम की करुणा और उच्च किरदार का आलम यह था कि जब छोटी उम्र में ज़ैद बिन हारिसा ग़ुलाम बन कर आप मुहम्मद सल्लाहो अलैहिवसल्लम की सेवा में आए तो उन्होंने उनको गुलामो की तरह नहीं बल्कि अपने बच्चे की तरह पाला अनुकम्पा/हमदर्दी कि ऐसी मिसाल और कहीं नही मिलती है। क़ुरआन में इसे इन शब्दों में उल्लेखित किया गया है  _याद करो (ऐ नबी), जबकि आप उस व्यक्ति से कह रहे थे जिसपर अल्लाह ने अनुकम्मा/ऐहसान किया, और आपने भी जिस पर अनुकम्मा की..(सुरः अहज़ाब 37)
 
जब ज़ैद की उम्र शादी लायक हुई तो हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम ने उनके लिए रिश्ता ढूँढना चालू किया। चूँकि वे ग़ुलाम थे और हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम जैसी उच्च सोच दुसरो की तो नहीं हो सकती इसलिए उनके लायक रिश्ते ढूँढने में समस्या उत्पन्न हुई उस समय अरब में जाती, कबीलों की ऊँच-नीच बहुत चलन में थी। जिसे आप सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम ने ही ख़त्म किया।
 
इस हेतु आप  सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम ने अपनी फूफी/बुआ की बेटी हज़रत ज़ैनब बिन्त जहश से ज़ैद की शादी करने का इरादा किया।
 
उस वक़्त ज़ैनब बिन्त जहश और उनके कबीले वाले इस बात से राज़ी ना हुए क्योंकि ज़ैनब ऊँचे ख़ानदान की थीं और ज़ैद तो उनकी नज़र में ग़ुलाम थे और उस वक़्त गुलामो की हैसियत तो यह थी कि ऊँचे ख़ानदान तो दूर उनसे आज़ाद स्त्री की शादी करने में भी लोग संकोच करते थे।
 
ऐसे में हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम की शिक्षा यह थी कि कोई रंग, रूप, जाती से ऊंचा नीचा नहीं होता बल्कि अपने कर्मो से होता है। अतः वे चाहते थे कि ज़ैनब, ज़ैद से शादी करें। जिस बारे में पहले तो वे और उनके कबीले वाले राज़ी नहीं हुए लेकिन फिर कुरआन की सूरह 33 आयत नम्बर 36 नाज़िल हुई।
 
तथा किसी ईमान वाले पुरुष और ईमान वाली स्त्री के लिए योग्य नहीं कि जब निर्णय कर दे अल्लाह तथा उसके रसूल किसी बात का, तो उनके लिए अधिकार रह जाये अपने विषय में और जो अवज्ञा करेगा अल्लाह एवं उसके रसूल की, तो वह खुले कुपथ में पड़ गया। (भटक गया)” (सुरः अल-अहज़ाब आयात:36) 
 
इस आदेश के आ जाने के बाद ज़ैनब बिन्त जहश शादी के लिए राज़ी हुई और हज़रत ज़ैद से उनका निकाह हुआ।
 
इसके जरिये से आप सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम का लोगों को यह खुली शिक्षा दे देना था कि इस्लाम में कोई ऊँच-नीच नहीं है और यह सब मानवीय बुराइयाँ है जिनसे हमे उठना चाहिए। दूसरी तरफ़ अल्लाह को भी यह स्पष्ट कर देना था कि अगर अल्लाह और उसके रसूल ने आप के हक़ में कोई फ़ैसला कर दिया है तो मुस्लिम की यही शान है कि उसे तस्लीम (खुशी से स्वीकार) करें।
 
इस के बाद वैवाहिक जीवन में हज़रत ज़ैद और हज़रत ज़ैनब की ना बन सकी और उनमें मतभेद होते रहे।
 
हज़रत ज़ैद बिन हारिसा पैगंबर ऐ ईस्लाम के पास आते थे और यह इच्छा प्रकट करते थे कि वे अपनी पत्नी ज़ैनब बिन्त जहश को छोड़ देंगे क्योंकि उनके साथ उनके जीवन में मेल मिलाप नहीं था और दोनों में कुछ न कुछ विवाद चलता ही रहता है।
 
इस पर हज़रत मोहम्मद सलल्लाहो अलैही व सल्लम फिक्रमंद होते और उन्हें ऐसा ना करने ,अपनी पत्नी के साथ ही रहने और अल्लाह से डरते रहने का कहते।
 
जिसे कुरआन की इसी आयात में आगे इन शब्दों में उल्लेखित किया है _(ऐ नबी), जबकि आप उस व्यक्ति से कह रहे थे जिसपर अल्लाह ने अनुकम्मा (ऐहसान) की, और आपने भी जिसपर अनुकम्मा की कि “अपनी पत्नी को अपने पास रोके रखे और अल्लाह का डर रखो..(सुरः अहज़ाब 37)
 
आप सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम को यह फ़िक्र भी थी कि ज़ैनब जो कि महान ख़ानदान से हैं और उन्होने आपके कहने पर ही ज़ैद जो कि एक गुलाम थे से शादी की थी। अगर अब ज़ैद उन्हें तलाक दे देते हैं तो यह उनके लिए बहुत बुरी बात होगी। वह यह कि एक तो ग़ुलाम से शादी हुई और फिर उसने भी तलाक दे दी और फिर उनकी उनके समक्ष या उनके ही स्तर के किसी से निकाह होना भी सम्भव नहीं था और समाज में यह भी ताने का इम्कान/सम्भावना थी कि नबी की बात मानकर ग़ुलाम से शादी की और फिर तलाक भी ही गया।
 
आप सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम की इस फ़िक्र के बारे में अल्लाह ने ख़ुद आपको “वही” के द्वारा भविष्य से अवगत करवाया और निर्देश दिया कि हज़रत  ज़ैद और हज़रत ज़ैनब का तलाक़ होगा और  तलाक़ हो जाने पर अल्लाह के हुक़्म से मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम से ज़ैनब बिन्त जहश का निकाह होगा।
 
क्योंकि आप मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम के अलावा कोई इतना उच्च नहीं था जिनसे निकाह होने पर हज़रत ज़ैनब की इज़्ज़त की हिफाज़त हो औऱ समाज में सम्मान में बढ़ोतरी मिले औऱ नबी के आदेश पालन का फल भी मिले।
 
लेकिन आप सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम में इतनी हया थी कि अल्लाह के इस हुक्म पर वे फिर फ़िक्र में पढ़ गए और इन्हें इस बात की चिंता सताने लगी कि लोग इस बारे में क्या कहेंगे। अरब में मुँह बोले बेटे को असली बेटे की तरह ही समझा जाता था।
 
इस हया, संकोच के कारण नबी सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम ने अल्लाह की यह ख़बर की भविष्य में ज़ैद और ज़ैनब का तलाक हो जाने के बाद उनका निकाह ज़ैनब से होगा यह किसी को बताई नहीं जिसे कुरआन की इसी आयात में आगे इन शब्दों में बयान किया गया है और तुम अपने जी में उस बात को छिपा रहे हो जिसको अल्लाह प्रकट करनेवाला है (सुरः अहज़ाब 37) हलाँकि  नबी सल्लाहो अलैहि व सल्ल्म को अल्लाह “वही ” के ज़रिये भविष्य की बाते बताता था और वे लोगो को यह बातें बताते थे जैसे नबी सल्लाहो अलैहि व सल्ल्म ने हज़रत हुसैन की शहादत और हसन-हुसैन की ज़िंदगी से जुड़े वाक़िये पहले ही अपने सहाबाओ को बता दिए थे जो की ४०-५० वर्षों बाद घटित हुए , ऐसे ही कई वाक़िये ,कयामत की निशानियाँ और भविष्य की बातें आप ने लोगों को बताई जिन्हे अल्लाह ने आपको “वही’ के द्वारा बताई थी। लेकिन आपकी हया और पाकदामनी की वजह से आप इस (हज़रत ज़ैनब) बारे में लोगों को अल्लाह की बताई हुई बात बताने में संकोच करते रहे। 
 
लेकिन अल्लाह को जो करना हो वह हो के रहता है और यही हुआ कि हज़रत ज़ैद औऱ हज़रत ज़ैनब का जब तलाक हुआ फिर इद्दत गुज़र जाने के बाद अल्लाह के हुक़्म से आप सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम का निकाह ज़ैनब बिन्त जहश से हुआ और फिर इस बारे में अपने नबी की हया पर तवज्जो दिलाते हुए कहा कि जो अल्लाह का फ़ैसला है उस बारे में किसी से संकोच करने की या डरने की ज़रूरत नहीं। जैसा कि इस आयत में आगे फ़रमाया
 तुम लोगों से डरते हो, जबकि अल्लाह इसका ज़ियादा हक़ रखता है कि तुम उससे डरो l…
 
औऱ फिर इसी वृतांत का पूरा ज़िक्र इस पूरी आयात में मिलता है।
 
“याद करो (ऐ नबी) , जबकि आप उस व्यक्ति से कह रहे थे जिसपर अल्लाह ने अनुकम्पा/ऐहसान की और आपने भी जिसपर अनुकम्पा की कि “अपनी पत्नि को अपने पास रोके रखे और अल्लाह का डर रखो और तुम अपने जी में उस बात को छिपा रहे हो जिसको अल्लाह प्रकट करनेवाला हैl तुम लोगों से डरते हो, जबकि अल्लाह इसका ज़्यादा हक़ रखता है कि तुम उससे डरो l “अत: जब ज़ैद ने अपनी बीवी से ताल्लुक़ात खत्म कर लिए तो हमने उसका तुमसे विवाह कर दिया, ताकि ईमानवालों पर अपने मुंह बोले बेटों की पत्नियों के विषय में कोई तंगी न रहे अल्लाह का फ़ैसला तो पूरा हो कर ही रहता है l)” (सुरः अल-अहज़ाब आयात:37)
 
साथ ही इस ज़रिये अल्लाह का एक मक़सद यह भी सीखा देना था कि मुँह बोले बेटे की बीवी से शादी करना जबकि उसकी तलाक / इद्दत पूरी हो जाए यह प्रतिबंधित नहीं है जैसा सगे बेटे के बारे में है।
 
इसके बाद लोगों को भी यह स्पष्ट हुआ कि भले आप सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम हज़रत ज़ैद को अपनी करुणा से बेटे की तरह रखते हैं लेकिन इस से कोई हकीकी बेटा नहीं बन जाता अतः उनके बाद कोई उन्हें उसका उत्तराधिकारी ना समझे और कोई वंश प्रथा ना चल पड़े।
 
मुहम्मद तुम्हारे पुरूषों में से किसी के बाप नहीं है, बल्कि वह अल्लाह के रसूल और नबियों के समापक हैं (अर्थात अंतिम ईशदूत हैं उनके बाद अब कोई ईशदूत नहीं आएगा l)(सुरः अल-अहज़ाब आयात:40)
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