क्या क़ुरआन बाइबल से नक़ल (Copy) किया गया है..?
जवाब:– इस तरह का दुष्प्रचार उन गैर मुस्लिम भाईयों के सवाल पर किया जाता है, जो क़ुरआन को समझने पर जिज्ञासावश क़ुरआन के बारे में अपने स्कॉलर से पूछते है। जिसका वे जवाब नहीं देना चाहते है।
इस तरह के सवाल करने वालों से पहला सवाल ये है कि क़ुरआन कौनसी बाइबल से और कब नक़ल (Copy) हुआ?
क्योंकि रोमन कैथोलिक के अनुसार बाइबल कि कुल 73 (46 ओल्ड टेस्टामेंट और 27 न्यू टेस्टामेंट) किताबें हैं तथा प्रोटेस्टेंट के अनुसार बाइबल में केवल 66 (39 ओल्ड टेस्टामेंट और 27 न्यू टेस्टामेंट) किताबें ही हैं। इन सभी किताबों में आपस में विरोधाभास / टकराव भी है। यहाँ तक कुछ ईसाईयों के मुताबिक जो किताबें बाइबल में शुमार हैं वह कुछ दूसरे ईसाईयों की नज़र में बाइबल ही नहीं है। दूसरी बात *पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम* उम्मी थे और क़ुरआन अरबी में है। जबकि बाइबल सबसे पहले 867ई में यानी 250 साल बाद अरबी में अनुवाद हुई है। बाइबल कि तरह क़ुरआन के कोई संस्करण (version) नहीं है। यानी पैग़म्बर ऐ इंसानियत पर जो आयत जिस रूप में पहले नाजिल हुई थी वह उसी रूप में आज भी है। यानी क़ुरआन पूरी दुनियाँ में कहीं भी पढ़ लो एक जैसा ही मिलेगा। ये चमत्कार सिर्फ़ क़ुरआन के साथ ही है। बाक़ी जितने भी ग्रन्थ है, सबमें मिलावट हो गई है। फिर सवाल ये उठता है कि बाइबल और क़ुरआन में समानता क्यों है..
दरअसल यह सवाल ख़ुद में एक निशानी की तरह है और इस्लाम के बुनियादी पैगाम को समझने में मदद करता है।
जैसा कि हम जानते हैं क़ुरआन अल्लाह की भेजी हुई आखरी किताब है और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह के आखिरी पैगम्बर और रसूल हैं। उनसे पहले भी अल्लाह ने दुनियाँ में कई पैग़म्बर और किताबें भेजी जैसे मूसा अलैहिस्सलाम को तौरात (Old Testament) दी, ईसा अलैहिस्सलाम को इंजील (New Testament) दी। यानी कि क़ुरआन से पहले भी कई ग्रन्थ अल्लाह ने भेजे हैं।
(ऐ रसूल) उसी ने तुम पर बरहक़ किताब नाज़िल की जो (आसमानी किताबें पहले से) उसके सामने मौजूद हैं उनकी तसदीक़ करती है और उसी ने उससे पहले लोगों की हिदायत के वास्ते तौरेत व इन्जील नाज़िल की।
(क़ुरआन 3:3)
ऐसे ही विश्व की हर उम्मत के प्रति अल्लाह ने अपने पैगाम को भेजा और कोई उम्मत ऐसी नहीं गुज़री है जिसमें कोई ख़बरदार करनेवाला (सन्देष्टा /नबी /रसूल / ईश दूत) न आया हो।
(क़ुरआन 35:24)
क़ुरआन से पहले जितने भी ग्रन्थ आये है, चाहे आज वह अपने मूल रूप में मौजूद ना हो, लेकिन उनमें किसी दर्जे में कुछ मूल बाते मौजूद है। यही वज़ह है कि दुनियाँ के सभी प्रमुख ग्रँथों में इस्लाम के मूल सिद्धांत यानी कि एकेश्वरवाद की बात मिलती ही हैं। जो कि न केवल एक महत्वपूर्ण निशानी है बल्कि इस्लाम इसी की और निमंत्रित करता है ।
(हे नबी!) कहो कि हे अह्ले किताब! एक ऐसी बात की ओर आ जाओ, जो हमारे तथा तुम्हारे बीच समान रूप से मान्य है कि अल्लाह के सिवा किसी की इबादत (वंदना) न करें और किसी को उसका साझी न बनायें तथा हममें से कोई एक-दूसरे को अल्लाह के सिवा पालनहार न बनाये। फिर यदि वे विमुख हों, तो आप कह दें कि तुम साक्षी रहो कि हम (अल्लाह के) आज्ञाकारी हैं।
(क़ुरआन 3:64)
यानी क़ुरआन तो पुरानी किताबों की तस्दीक करते हुए आया है और इसका तो यह पैगाम है कि सभी उस बात की तरफ़ आये जो सभी पुरानी किताबों में भी मौजूद है।
लेकिन क़ुरआन के अलावा आप दूसरे ग्रँथों में देखें तो आप पाएंगे कि इन मूल-सन्देश के अलावा भी विरोधाभास हैं जैसे बाइबल के पहले धर्मादेश (Commandment) में ही कहा गया कि “ईश्वर सिर्फ़ एक है”। लेकिन दूसरी जगह फिर कुछ और बातें हैं। ऐसा कई विषयों में है।
अब अगर क़ुरआन किसी ग्रन्थ से कॉपी किया गया होता तो जो विरोधाभास बाइबल या दूसरे ग्रन्थों में है, वह विरोधाभास क़ुरआन में भी होना चाहिए थे।
“क्या वे क़ुरआन में सोच–विचार नहीं करते? यदि यह अल्लाह के अतिरिक्त किसी और की ओर से होता, तो निश्चय ही वे इसमें बहुत-सा विरोधाभास / बदलाव पाते”।
(सूरह निसा 4, आयत 82)
इसके अलावा अगर हम साइंस की रोशनी में देखें तो क़ुरआन में कई विस्मयकारी जानकारी हमें मिलती हैं जिससे क़ुरआन का ईश्वरीय ग्रन्थ होना साबित होता है। कुछ जानकारियाँ ऐसी भी है जो बाइबल में भी मौजूद हैं तो कई ऐसी हैं जो सिर्फ़ क़ुरआन में ही हैं ।
अब अगर क़ुरआन बाइबल से कॉपी किया गया होता तो इसमें विस्मयकारी निशानियाँ कहाँ से आई जो बाइबल में मौजूद नहीं है ? और इसमें वह गलतियाँ और साइंस विरुद्ध बातें क्यो नहीं है जो बाइबल में मौजूद है ?
इससे ये साबित होता है कि क़ुरआन असली अंतिम ईश्वरीय ग्रन्थ है।