इस्लाम और ब्लड डोनेशन।

जवाब:- इस्लाम में ब्लड डोनेशन जाइज़ है। बल्कि इसके ज़रिये अगर किसी की जान बचती है यह बहुत अज्र और सवाब (पुण्य) का काम भी है।

जैसा फ़रमाया क़ुरआन में :-
“..जिसने जीवित रखा एक प्राणी को, तो वास्तव में, उसने जीवित रखा सभी मनुष्यों को…”
(क़ुरआन 5:32)

यानी कि इस्लाम में किसी की जान बचाना की इतनी अहमियत और अज्र है जैसे उसने तमाम मनुष्यों की जान बचाई हो।

इस्लाम सभी मामलों में स्पष्ट मार्गदर्शन करता है ऐसे ही ब्लड डोनेशन के बारे में भी यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यह इतनी मात्रा या स्थिति में नहीं हो कि ख़ुद रक्त दान करने वाली की जान ही मुसीबत में पड़ जाए।

जैसे फ़रमाया क़ुरआन में –

“..अपने ही हाथों से अपने-आपको तबाही में न डालो..”
(क़ुरआन 2:195)

“..और आत्म हत्या न करो, वास्तव में, अल्लाह तुम्हारे लिए अति दयावान् है।..”
(क़ुरआन 4:29)

साथ ही खून, अल्लाह की दी हुए नेअमत है इसे दान करने की तो इजाज़त है लेकिन बेचने की नहीं ।

लिहाज़ा मालूम हुआ कि इस्लाम में किसी की जान बचाने या अहम ज़रुरत के लिए ब्लड डोनेट करना जिससे ब्लड देने वाले कि भी जान पर ख़तरा ना हो बिल्कुल जाइज़ है, बल्कि बहुत अज्र और सवाब का काम भी है।

यही कारण है कि विश्वभर में हर जगह मुस्लिम ब्लड डोनेट करते हैं फिर चाहे वह सीधे तौर पर जान पहचान वाले के लिए हो या ब्लड बैंक में किसी अनजान के लिए जिस के ज़रिए किसी (मुस्लिम, गैर मुस्लिम) का भी लाभ हो।

अतः अगर कोई यह कह रहा है कि मुस्लिम ब्लड डोनेट नहीं करते या इस्लाम में ब्लड डोनेट करना मना है तो या तो उसे ग़लत जानकारी है या वह जानबूझकर झूठ फैला रहा है।

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