सवाल 1:- रोज़ा रखने से खुदा नहीं मिलता। आपने रमज़ान के 30-रोजे रखे तो क्या आपको अल्लाह मिला? 2 अगर अल्लाह सब कुछ देता है तो फिर मस्जिद के बाहर भिखारियों की लाइन क्यों? यह मत कहना कि मस्जिद के बाहर आपको ख़ुद अपनी हिफ़ाज़त करना होगी। अल्लाह क्यों हिफ़ाज़त नहीं कर सकता? 3 आप जुमआ के दिन मस्जिद में नहा कर जाते हैं फिर दोबारा मस्जिद जाकर वुज़ू करके पानी क्यों बर्बाद करते हैं? क्या इस तरह पानी बर्बाद करने से खुदा मिल जाता है?

जवाब:-  सबसे पहले इस सम्बंध में इस्लाम के बुनियादी अक़ीदे (मूल सिद्धांत) को समझना बहुत ज़रूरी है। क्योंकि अक्सर लोग इस्लाम के बुनियादी अक़ीदे को समझे बिना ही इसे दूसरे धर्मो की तरह मानकर सवाल करने लगते हैं।

जैसा कि दूसरे धर्मो का अक़ीदा (विश्वास) होता है कि यह दुनिया ही सब कुछ है आदमी को पुनर्जन्म लेकर बार-बार यहीं आना है। अच्छे कर्मों का फल अगले जीवन में अच्छा बदला और बुरे कर्मों का फल अगले जीवन में दरिद्रता / ग़रीबी दुःख आदि है, यानी कि इस दुनिया की परिस्थिति और सफलता ही सब कुछ है।

ऐसा इस्लाम में नहीं है बल्कि इस्लाम में यह दुनिया तो मात्र परीक्षा का स्थान है और बहुत थोड़े समय के किये है। जबकि असल जीवन तो आख़िरत / परलोक का है जो हमेशा रहने वाला है। अतः असली कामयाबी तो आख़िरत / परलोक की कामयाबी है।

जैसा कि अल्लाह ने क़ुरआन में फरमाया-  उसने मौत और जिंदगी को इसलिए पैदा किया ताकि वह तुम्हें आजमाए कि तुम में से कौन अच्छे अमल करता है, वह सर्व शक्तिमान और बहुत माफ़ करने वाला है।
(क़ुरआन 67:2)

यानी कि इस से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि इंसान इस दुनिया में गरीबी, अमीरी, सुख, दुःख, बीमारी, सेहत, जवानी, बुढ़ापा, औलाद, माता, पिता यह सारी चीज़ें और परिस्थिति इंसान की परीक्षा के लिए बनाई गई है। जिस तरह से परीक्षा में अलग-अलग तरह के टेस्ट पेपर सेट (Test paper set) होते हैं और अंत में यह मायने नहीं रखता की किस को कौन-सा सेट मिला था बल्कि यह मायने रखता है कि किस ने अपने सेट को सही तरीके से हल किया अतः कौन-कौन पास हुआ और कौन नहीं । वैसे ही इस जीवन में अलग-अलग लोगों की परिस्थिति और ईश्वर के आदेश का पालन कर आख़िरत में कामयाबी के बारे में है ।

अब आते हैं आपके सवालों पर।

  • 1)  आपने पहला सवाल यह किया है कि आपने रमज़ान के 30-रोजे रखे तो क्या अल्लाह आपको मिला?

जी बिल्कुल मिला! क्योंकि रोजे का बुनियादी उद्देश्य तक़वा हासिल करना है। क़ुरआन में है:  ऐ इमान वालों: तुम पर रोजे़ फर्ज़ किए गए जैसे कि तुम से पहली उम्मतो पर फर्ज़ किए गए थे, ताकि तुम तक़वा हासिल करो।
(क़ुरआन 2:183)

तक़वा यानी हर बुरे काम से बचना है और जो भी बुरे कामों से बचता है और नेक अमल / कर्म करता है वह अल्लाह के करीब होता जाता है। हदीस में है: अल्लाह तआला फरमाते हैं:  बंदा रोजा सिर्फ़ मेरे लिए रखता है और मैं ही उसका बदला दूँगा। 
(बुखारी vol 2 page 226)

रोजे की और भी बहुत-सी फजीलत है। बल्कि अगर आप एक महीने रोजा रख कर देख ले तो आपको ख़ुद ही अंदाजा हो जाएगा कि आप अल्लाह के कितने करीब होते हैं और शैतान (बुरे कर्म) से कितने दूर। आज दुनिया में हजारों की तादाद में ऐसे लोग मौजूद हैं जो ख़ुद मुसलमान नहीं है लेकिन आत्मिक शांति और वैज्ञानिक कारणों से रमज़ान के पूरे रोजे रखते हैं ।

अब बात रही अल्लाह को भौतिक रूप से प्राप्त करने की और उसका दर्शन करने की। तो वह कोई ऐसी चीज़ नहीं जो आपको यूँ ही प्राप्त हो जाये। इसके बारे में स्पष्ट संदेश है कि आख़िरत में अल्लाह के उन बंदों को अल्लाह का दर्शन प्राप्त होगा जिन्होंने इस जीवन में उसके आदेशों का पालन कर अपने आपको इसका हक़दार बनाया है। जो आप भी कर सकते हैं बल्कि हर मुस्लिम इसके लिए जीवन भर प्रयासरत रहता है।

  • 2)  दूसरा सवाल है कि अगर अल्लाह होता तो दुनिया में गरीब और फ़क़ीर ना होते।

इसका पूरा जवाब तो इस्लाम के बुनियादी अक़ीदे (मूल श्रद्धा) को समझने से ही पता चल गया होगा। फिर भी इसका थोड़ा और खुलासा कर देते हैं।

सर्वप्रथम तो इस बात से आपके आख़िरत के जीवन में कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि आप अमीर हैं या गरीब। दरअसल दुनिया में संतुलन बनाये रखने के लिए भी कुछ लोगों को अमीर और कुछ को गरीब होना ज़रूरी है। अगर सभी अमीर बन जाते तो यह संतुलन ही नहीं रहता और दुनिया का निजाम / व्यवस्था तहस नहस हो जाता। लेकिन जैसा ऊपर उल्लेख किया गया कि दुनिया में गरीब और अमीर दोनों परीक्षा / आजमाइश में है। अमीर की आजमाइश इसमें है कि वह अपने ईश्वर की आदेशों का पालन करते हुए गरीबों का ख़्याल रखे। इसीलिए इस्लाम में अमीरों पर ज़कात फ़र्ज है। ज़कात का मतलब हर साल अपने माल में से 2.5% गरीबों को देना। इसी तरह ज़कात के अलावा भी अपने माल को दान करने के बहुत सारे फजाइल / फायदे क़ुरआन और हदीस में बताये गए हैं। जैसे एक हदीस में है : वह शख़्स मुसलमान नहीं हो सकता जो ख़ुद तो पेट भर कर खाए और उसका पड़ोसी भूखा रहे।
(तबरानी)

नबी सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम की पूरी जिंदगी यह तालीम देते हुए गुजरी कि पहले दूसरों का पेट भरो फिर ख़ुद खाओ। अब अमीर लोगों की गलती है कि वह गरीबों का हक़ खा जाते हैं। अगर अमीर सही तौर से गरीबों का ख़्याल रखें तो दुनिया से भीख मांगने वाले ख़त्म हो जाए और कोई भी भूखा ना सोएगा।‌ ऐसे लोगों को दुनिया में भी सख्त सजा मिलती है और आखिरत का अज़ाब तो बहुत दर्दनाक है।

ऐसे ही जो लोग गरीब पैदा हुए हैं अगर वह सब्र से काम ले और अल्लाह के थोड़े दिए हुए माल पर खुश रहें तो अल्लाह तआला क़यामत में उनको इसका बेहतरीन बदला देंगे और दुनिया में भी उन्हें अमीरों से ज़्यादा खुशहाली नसीब होगी। क्योंकि खुशहाली सिर्फ़ माल की वज़ह से हासिल नहीं होती। आप बहुत से गरीब लोगों को देख सकते हैं जिनके चेहरे अमीरों से ज़्यादा चमकते और मुस्कुराते हैं।

  • 3) तीसरा सवाल है कि जब घर से नहा कर जाते हैं तो मस्जिद में दोबारा जाकर वुज़ू क्यों करते हैं?

इस्लाम में स्वच्छता की बहुत अधिक अहमियत है, बावुज़ू होना नमाज़ अदा करने के लिए ज़रूरी है। हमारे वह अंग जो खुले रहते हैं और उन पर गंदगी लग जाती है उन्हें नमाज़ से पहले धोया जाता है। ताकि इंसान अल्लाह तआला के सामने मस्जिद में बिल्कुल पाक साफ़ होकर खड़ा हो। अगर आदमी अभी-अभी नहाया है और उसने लैट्रिन पेशाब वगैरह नहीं किया है तो उसका वुज़ू बाक़ी है और उसे दोबारा वुज़ू करने की ज़रूरत नहीं। ‌

इस्लाम में स्वच्छता तो अहम है लेकिन पानी की फ़िज़ूलखर्ची (दुरुपयोग) बिल्कुल मना है। वुज़ू करने में इस्लाम इस बात की तालीम देता है कि उसमें पानी कम से कम ख़र्च किया जाये और उसका पूरा सदुपयोग हो।‌ एक हदीस में है:  एक बार नबी सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम अपने एक साथी हजरत स‌अद (रजि.) के पास से गुजरे, वह उस वक़्त वुज़ू कर रहे थे (और पानी ज़रूरत से ज़्यादा उपयोग में आ रहा था)। नबी सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम ने फरमाया: ए स‌अद ! पानी की यह फ़िज़ूलखर्ची क्यों? उन्होंने कहा, क्या वुज़ू करते वक़्त भी पानी की फ़िज़ूलखर्ची होती है? आप सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम ने फरमाया: हाँ ! चाहे तुम किसी नहर पर ही वुज़ू कर रहे हो।
(मुसनदे अहमद 6768, इब्ने माज़ा 419)

यानी वुज़ू करने में पानी को व्यर्थ नहीं बहाना है फिर चाहे आप नदी / नहर से ही वुज़ू क्यों ना कर रहे हो (अर्थात पानी बहुतायत मात्रा में उपलब्ध हो तब भी)

इसी तरह अगर आप इस्लाम की बुनियादी बातों को जानकर अगर आप बुनियादी तस्वीर ( मूल अवधारणा / बेसिक कॉन्सेप्ट) को समझ लेंगे तो आपको आपके सवालों के जवाब ख़ुद ही मिल जाएंगे।

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