जवाब:- झूठ की बुनियाद पर नफरत की मुहिम चलाने वाले 24 घण्टे तरह-तरह से तरीके बदल-बदल कर नफ़रत और झूठ फैलाने में लगे रहते हैं ।
जैसे यहाँ एक कहानी की शक्ल में लोगों के दिमाग में ज़हर भरा जा रहा है। सबसे पहले तो यह बात भली भांति समझ लें कि झूठ, झूठ ही रहता है चाहे वह सीधी तरह कह दिया जाए या कहानी के रूप में बोला जाए।
अब देखिए इस प्रोपेगंडे उर्फ़ कहानी की शुरुआत ही यहाँ से होती है कि “एक परिवार के दो बेटे थे जिसमें से “एक बेईमान था” जिस से अभिप्राय मुसलमान है। अतः अगर कोई ध्यान दे तो उसे इस घटिया मैसेज की मंशा का यहीं आभास हो जाये और उसे आगे पड़ने की ज़रूरत ही ना पड़े ।
70 सालों से इस देश के मुसलमान इस देश के लिए जान माल लुटाते आये हैं सुरक्षा से लेकर चिकित्सा, खेल से लेकर कला हर जगह उनका योगदान है। बात सिर्फ पाकिस्तान के विरुद्ध करे तो रक्षा के उपकरणों की ईजाद हो, युद्ध का मैदान हो या खेल का मैदान भारत की जीत में मुसलमानों का योगदान हर जगह रहा है।
फिर भी यह झूठे, देश तोड़ने और नफरत फैलाने वाले लोग रणनीति के तहत मुसलमानों का इस घटिया तरीके से चित्रण करते हैं, उन्हें पाकिस्तान परस्त और देश का दुश्मन बताने का कुप्रयास करते हैं । शर्म आना चाहिए इन्हें।
देश के प्रगति और अखंडता के असली दुश्मन तो यह है जो ख़ुद देश को गृह युद्ध की तरफ धकेल रहे हैं और ऐसा यह पहल भी कर चुके हैं ।
अब आइए इन के कहानी के माध्यम से ब्रेन वाश करने के उद्देश्य से उठाये कुछ बिंदुओं पर
- 1. मुस्लिमो ने देश के टुकड़े किये?
यदि आप इतिहास का अध्ययन करे तो आप इस तथ्य से अवगत होंगे जो यहाँ छुपा दिया जाता है दरअसल दो राष्ट्र की बुनियाद हिंदू राष्ट्रवादी सोच के लोगों ने रखी थी
यह बात बिल्कुल प्रमाणित है कि मुस्लिम लीग की दो देश की बात उठाए जाने से बहुत पहले अठारहवीं सदी में ही हिन्दू राष्ट्रवादियों ने इस सिद्धांत की बुनियाद डाल दी थी। जो कि उन्नीसवीं सदी के आते-आते बहुत मुखर होती गई उनके मशहूर और उभरते हुए नेताओं के ईसाईयों और ख़ास तौर से मुसलमानों को लेकर दिए जा रहे ज़हरीले भाषण भी बढ़ते गए।
भाई परमानंद, राजनारायण बसु (1826-1899), उनके साथी नव गोपाल मित्र, लाला लाजपत राय, डॉ. बी एस मुंजे,
वी डी सावरकर, एम एस गोलवलकर आदि हिंदूवादी लोग लगातार एक हिन्दू राष्ट्र की कल्पना कर रहें थे। एक ऐसे हिन्दू राष्ट्र की कल्पना जिसमें ईसाई और मुस्लिम समुदाय के लोग हिंदुओं की दया पर पले। गोलवलकर ने तो जर्मनी के नाज़ियों और इटली के फासिस्टों द्वारा यहूदियों के सफ़ाये की तर्ज़ पर भारत के मुसलमानों और ईसाईयों को चेतावनी दी कि-
“अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो वे राष्ट्र की तमाम सहिंताओ और परम्पराओं से बंधे, राष्ट्र की दया पर टिके, जिनको कोई विशेष सुरक्षा का अधिकार नहीं होगा, विशेष अधिकारों या अधिकारों की बात तो दूर रही। इन विदेशी तत्वों के सामने सिर्फ़ दो ही रास्ते हैं, या तो वह राष्ट्रीय नस्ल में मिल जाए और उसकी तहज़ीब को अपनाए या उसकी दया पर ज़िंदा रहें जब तक कि राष्ट्रीय नस्ल उन्हें इजाज़त दे और जब राष्ट्रीय नस्ल की मर्ज़ी हो तब वे देश को छोड़ दें।…. विदेशी नस्लों को चाहिए कि वे हिन्दू तहज़ीब और ज़बान को अपना ले… हिन्दू राष्ट्र के अलावा दूसरा कोई विचार अपने दिमाग़ में न लायें और अपना अलग अस्तित्व भूलते हुए हिन्दू नस्ल में मिल जाये या देश में हिन्दू राष्ट्र के साथ दोयम दर्जे के आधार पर रहे, अपने लिए कुछ न मांगे, अपने लिए कोई ख़ास अधिकार न मांगे यहां तक कि नागरिक अधिकारों की भी चाहत न रखें।” (एम एस गोलवलकर, वी ऑर अवर नेशन हुड डिफाइंड)
हिन्दू महासभा के बाल कृष्ण शिवराम मुंजे ने भी ऐसी ही घोषणा की थी।
डॉ. बी एस मुंजे ने हिन्दू महासभा के फलने फूलने और उसके बाद आर आर एस के बनने में मदद की थी, सन 1923 में अवध हिन्दू महासभा के तीसरे सालाना जलसे में उन्होंने ऐलान किया-
“जैसे इंग्लैंड अंग्रेज़ो का, फ्रांस फ्रांसीसी का और जर्मनी जर्मन नागरिकों का है, वैसे ही भारत हिंदुओं का है। अगर हिन्दू संगठित हो जाए, तो वह मुसलमानों को वश में कर सकते हैं।” (उध्दृत जेएस धनकी, ‘लाला लाजपतराय ऐंड इंडियन नेशनलिज़्म’)
सावरकर ने हमेशा से ईसाई और मुस्लिम समुदाय को विदेशी मानते हुए सन 1937 में अहमदाबाद में हिंदु महासभा के 19 वें सालाना जलसे में अपने भाषण में कहा-
“आज यह कतई नहीं माना जा सकता कि हिंदुस्तान एकता में पिरोया हुआ राष्ट्र है, जबकि हिंदुस्तान में ख़ास तौर से दो राष्ट्र है- हिन्दू और मुसलमान।” (समग्र सावरकर वांग्मय: हिन्दू राष्ट्र दर्शन, खंड 6)
बाबा साहब अंबेडकर इस तरह के भाषणों से होने वाले एक बड़े नुक्सान के खतरे को समझ रहे थे, उन्होंने इस संदर्भ में परिस्थितियों को देखते हुए साफ लिख दिया था-
“ऐसे में देश का टूटना अब ज़्यादा दूर की बात नहीं रह गया। सावरकर मुसलमान क़ौम को हिन्दू राष्ट्र के साथ बराबरी से रहने नहीं देंगे। वह देश में हिंदुओं का ही दबदबा चाहते है और चाहते हैं कि मुसलमान उनके अधीन रहे। हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दुश्मनी का बीज बोने के बाद सावरकर अब क्या चाहेंगे कि हिन्दू मुसलमान एक ही संविधान के तले एक अखंड देश में होकर जिए, इसे समझना मुश्किल है।” (बी आर अंबेडकर, पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन)
इसी तरह के भाषणों, बिगड़ते माहौल और क्रिया प्रक्रिया स्वरूप अंत में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान का प्रस्ताव सन् 1940 में पारित किया था, वह भी तब जब अक्सर नेताओं के भाषण से उन्हें लगा कि अब भारत में रहना आसान नहीं होगा।
दरअसल आज जनता को समझना होगा कि आज जो लोग देश के बँटवारे का आरोप लगाते हैं उनका ख़ुद का बँटवारे में कितना बड़ा हाथ था और आज भी जो नफरत फैलाने वाले लोग कर रहे हैं उनका एजेंडा समझना होगा।
- 2. भारत हिन्दू राष्ट्र है और हिंदुओं ने मुसलमानों को अपनी ज़मीन पर रखा उनके लिए मस्जिद बनाई आदि-
भारत हिन्दू राष्ट्र नहीं बल्कि एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। जो मुस्लिम भारत मे रहे वे अपने तमाम संसाधनों, सम्पत्तियों और अपनी ज़मीन के साथ रहे ना ही किसी और के आश्रय पर। हिंदुओं ने उन्हें अपनी ज़मीन पर नहीं रखा बल्कि ये ख़ुद उनकी ज़मीन है और इसी तरह बाकियो की भी। सिखों की, ईसाईयों की, आदिवासियों की सभी की और उन सभी ने अपनी ज़मीनों को मिलाकर भारत देश का निर्माण किया है।
बेवजह इसे कुछ और दिखाने का प्रयास ना करें। हाँ यह ज़रूर है कि अब कुछ लोग इस देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने की मांग कर रहे हैं।
उनके बारे में हम यही कहेंगे कि इस मांग को मुस्लिमो से नफरत के चश्मे को उतार के देखे और बाबा साहब और काशीराम जी और दूसरे लोगों ने जिन्होंने इसका विरोध किया है उन्हें इसका विरोध क्यों किया है उसे एक बार ज़रूर पढ लें।
- 3. इस्लाम तलवार से और सूफी संतों के गाने के ज़रिये फैला-
जब यह बात पुरी तरह झूठ साबित हो गई कि इस्लाम तलवार से नहीं फैला, यहाँ तक कि स्वामी विवेकानंद जी ने ख़ुद इस सोच को ही पागलपन बता दिया उन्ही के शब्दों में:-
“भारत में मुस्लिम विजय ने उत्पीड़ित, ग़रीब मनुष्यों को आज़ादी का जायका दिया था। इसीलिए इस देश की आबादी का पांचवां हिस्सा मुसलमान हो गया। यह सब तलवार के ज़ोर से नहीं हुआ। तलवार और विध्वंस के जरिये हिंदुओं का इस्लाम में धर्मांतरण हुआ, यह सोचना पागलपन के सिवाए और कुछ नहीं है_।” (संदर्भ : Selected Works of Swami Vivekananda, Vol.3,12th edition,1979.p.294)
तो नफरत फैलाने वालों ने एक नया हास्यास्पद तथ्य देना शुरू कर दिया कि इस्लाम सूफी संतों के गानों से फैला जिसमे अल्लाह, सजदा आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता था।
हमे यह बताये की अगर गाने सुनने से धर्म परिवर्तन हो जाता तो आज भारत में एक भी मुसलमान ना बचता क्योंकि यहाँ वे सभी सदियों से हिन्दू भजन ना सिर्फ सुन रहे हैं बल्कि पिछले कुछ दशकों से सुनने के साथ साथ टी व्ही (TV) पर देख भी रहे हैं।
अतः ज़रा बुद्धि का प्रयोग करें और इस तरह के बुद्धिहीन तथ्य देना बंद करें।
- 4. मुसलमानों का पूर्व नियोजित (Pre planned) काम करना-
इस पूरे झूठ की पोल खुल जाने पर मुसलमानों का तो नहीं बल्कि इन नफरत फैलाने वालों का प्री प्लान काम ज़्यादा उजागर होता है। जो है अंग्रेजों की तर्ज पर तोड़ो और राज करो (डिवाइड एंड रूल) । फिर जो बच जाए उन पर विभाजन (Division) का आरोप थोप दो। नफरत फैलाते रहो। ख़ुद करो आरोप दूसरों पर। ख़ुद देश को तोड़ने वाले और गृह युद्ध के काम करो और बताओ स्वंय को देश भक्त। आप ख़ुद देख लें, मुस्लिमो से नफरत का मुद्दा हटा दें तो इनके पास बने रहने (survive) के लिए बचता ही क्या है ?? इसे ही तो कहते हैं षड्यंत्र।
अंत मे यहीं कहना चाहेंगे कि आज के नौजवान इतने बेवकूफ़ नहीं रह गए हैं कि उन्हें पिताजी कुछ भी मनगढ़ंत झूठी कहानी सुनाएंगे जिसे सुनकर नौजवान स्तब्ध रह जाएंगे।
बल्कि आज का नौजवान इतना समझदार है कि झूठ का शिकार होने की बजाय उल्टा अपने पिताजी को ही कहेगा कि आप आई टी सेल (IT cell) के फेक मैसेज के शिकार हुए हो, षड्यंत्र में आकर बेवजह ब्रेन वाश हो रहे हो और सत्य बता कर उन्हें ख़ुद स्तब्ध कर देगा ना कि ख़ुद स्तब्ध होकर मूर्ख बनेगा।
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