पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम के अनादर (शान में गुस्ताख़ी) करने का आख़िर क्या मक़सद है? सोचें या कठपुतली बनें रहें।
देश में किसी भी बड़ी समस्या, राजनेताओं की असफ़लता या किसी भी मुद्दे से बहुसंख्यकों का ध्यान भटकाने का सबसे बेहतरीन और कारगर उपाय है मुसलमान और इस्लाम।
कितना भी बड़ा नुक़सान हो रहा हो या जान के लाले पड़े हों फिर भी हमारी जनता ऐसी है कि मुसलमान और इस्लाम का मुद्दे से हर वक़्त ठगाने के लिए तैयार रहती है। बात कड़वी है लेकिन जब तक यह कड़वी गोली नहीँ ली जाएगी तब तक ऐसे ही स्वास्थ्य व्यवस्थाओं के अभाव में जाने जाती रहेंगी ऐसे ही बेरोजगारी की मार और महँगाई में जनता लुटती रहेगी।
आख़िर क्या मक़सद होता है जब एक ऐसा आदमी जिसकी कोई हैसियत नहीं वह उठकर उस शख्सियत के बारे में अनर्गल बातें कह देता है जो दुनियाभर में करोड़ों मुसलमानों के लिए जान से भी अधिक प्रिय है। ऐसी शख्सियत जिस के उच्च किरदार और मानवता पर एहसान को दुनिया का हर ज्ञानी और इतिहासकार जानता और मानता है फिर चाहे वह किसी धर्म का क्यों ना हो।
सीधी-सी बात है यहाँ मकसद होता है देश के बहुसंख्यकों का ध्यान समस्याओं से हटाना जिस में वे घिर चुके हैं और देश को सीधे-सीधे तौर पर धार्मिक मुद्दे और हिंसा में झोंकना ताकी दीर्घकालीन यह मुद्दा चलता रहे और जनता इसी में उलझी रहे। तभी तो बार-बार देश के करोड़ो मुस्लिमों को उकसाया जाता है, कभी क़ुरआन पर सवाल, कभी मस्जिद पर तो कभी किसी और पर। जब हर बार ऐसी घटिया हरकतों की पोल खुलती रही और काम नहीँ बना तो अब सीधे तौर पर पैगम्बर ए इस्लाम की शख्सियत पर लाँछन लगाए जा रहें है। बेशर्मी की इंतेहा है यह।
और आश्चर्य की बात है कि इतने कॉमन सेंस की बात होने पर भी देश के बहुसंख्यकों को कठपुतली बनना मंज़ूर है लेकिन ग़लत को ग़लत कहने का साहस नहीं।
क्या वज़ह है कि एक तरफ़ लगातार ऐसी घटिया हरकतें करवाई जाती हैं और फिर पीछे से यह सुनिश्चित किया जाता है देशभर के मुस्लिमों की कानूनी कार्यवाही की मांग के बावजूद कोई कार्यवाही ना हो और ना ही इन्हें रोका जाए? आख़िर इसके परिणाम क्या होंगे? ज़रा इसका ठीक उल्टा कर सोचें कि अगर यही काम करने वाला मुस्लिम होता और आहत मुस्लिम नहीं बल्कि दूसरे धर्म के लोग हो रहे होते तो क्या होता ?
इस्लाम की शिक्षा तो यह है कि आप किसी दूसरे धर्म के पूज्यों को बुरा ना कहो।
और हे ईमान वालो! उन्हें बुरा न कहो, जिन (मूर्तियों) को वे अल्लाह के सिवा पुकारते हैं। अन्यथा, वे लोग अज्ञानता के कारण अति करके अल्लाह को बुरा कहेंगे। (क़ुरआन 6:108)
ऐसी उच्च शिक्षा है जो अमन को बढ़ावा देती है।
वहाँ दूसरी तरफ पर आपकी शिक्षा क्या है ?? निराधार बातें बोलकर दूसरों का अपमान करो, अपमान करने वालो पर कार्यवाही मत करो, ताकि प्रतिक्रिया में दूसरे कुछ करें और फिर अशांति हो, लोगों का और देश का नुक़सान हो?
भाई यह तो देश प्रेम नहीं है। बल्कि कठपुतली की तरह इस्तेमाल होना है। ग़लत को ग़लत कहना साहस का काम है वह भी तब जब ख़ुद अपने वालो के खिलाफ कहना हो।
और ईमानदारी से बात करें तो ख़ुद उत्तर दें कितने वाट्सएप ग्रुप्स चल रहे हैं जिनका दिन भर का काम सिर्फ़ इस्लाम और मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत फ़ैलाना और लोगों को भड़काना है? कितने ऐसे वक्ता हैं जिनका काम सिर्फ़ और सिर्फ़ इस्लाम के बारे में बुरा कहना लोगों को भड़काना और इस्लाम और उसके आदर्शों के अनादर करने के लिये लोगों को उकसाना है? इसका जवाब तो आप जानते ही हैं।
इसके उलट देखें तो एक भी मुस्लिम वक्ता या व्हाट्सएप ग्रुप नहीं मिलेगा जो यह काम कर रहा हो। बल्कि पैगम्बर के अनादर और ऐसे मसलों के खिलाफ बोलते वक़्त भी हर वक्ता बार-बार यही कहता है कि सिर्फ़ दोषी पर कार्यवाही हो हमारी दूसरों से कोई शिकायत नहीं है। इन बातों से देश में अशांति होगी।
यहाँ फ़र्क़ साफ़ दिख जाता है लेकिन बात वही है। ग़लत को ग़लत कहने का साहस। यह जो आपको सुबह से शाम और हर समस्या और सवाल के जवाब में सिर्फ़ “मुस्लिमों और इस्लाम से नफ़रत परोसी जाती है” इसकी वज़ह कुछ तो होगी। विचार ज़रूर करें।
उसके बाद भी आप ठगाते रहना चाहते हैं और अपने आने वाली नस्लों का भी भविष्य इसी तरह बर्बाद करना चाहते हैं तो भूल जाइए महामारी को बेरोज़गारी को और हर समस्या को और बने रहें कठपुतली।
रही बात पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम की तो उनका नाम तो कल भी रोशन था आज भी है और हमेशा-हमेशा रहेगा, हर अगले दिन उनके नाम लेवा बढ़ते ही जाएंगे। उनसे ईर्ष्या रखने वाले अपनी ईर्ष्या में ही ख़त्म हो गए और ना उनके नाम बाक़ी रहे ना कोई जानने वाला ही।
इन्ना आतयना कल कौसर
फ़सल्ली लिरब्बिका वन्हर
इन्ना शानिअका हुवल अबतर।
(क़ुरआन 108:1-3)