सवाल:-जज़िया क्या है? और क्यों लिया जाता है?*

जवाब:– किसी भी देश में रहने वाले नागरिकों के लिए एक कर प्रणाली अवश्य होती है। उस प्रणाली से ही देश चलता है। सभी सुविधाओं जैसे रोड़, बिजली पानी, अस्पताल, शिक्षा, रक्षा उपकरण एवं देश की सुरक्षा आदि का प्रबन्ध इसी के ज़रिए होता है।

हमारे देश में भी GST, इनकम टैक्स, प्रॉपर्टी टैक्स आदि का प्रावधान है। इनके अलग-अलग प्रकार हैं जो विभिन्न लोगों पर विभिन्न रूप से लागू होते हैं।

उसी तरह इस्लामिक रियासत में भी टैक्स सिस्टम (कर प्रणाली) का प्रावधान है। जो उस देश में रहने वाले सभी नागरिकों पर लागू होती है। उसी के अंतर्गत जज़िया कर भी आता हैं। जो उस मुल्क में रहने वाले गैर मुस्लिमों पर उन्हें दी जाने वाली विभिन्न सुविधाओं, रक्षा को सुचारू रखने के लिए लिया जाता है।

 

*तो क्या इस्लामिक रियासत में सिर्फ़ गैर मुस्लिमों से टैक्स लिया जाता है मुस्लिमों से नहीं?*

बिल्कुल नहीं, बल्कि जैसा पहले बताया गया कि मुस्लिमों से भी टैक्स लिया जाता है इसे *ज़कात* कहते हैं और यह मुस्लिमों के लिए मात्र टैक्स ही नहीं बल्कि धार्मिक अनिवार्यता भी होती है।

 

अगर यह दोनों टैक्स ही हैं और मुस्लिमों से ज़कात लिया जाता है तो गैर मुस्लिमों से भी ज़कात लेना चाहिए इसके लिए अलग नाम या प्रकार रखने की आवश्यकता क्यों?

 

इसके 2 प्रमुख कारण हैं :-

 

१. चूंकि ज़कात टैक्स के साथ-साथ मुस्लिमों की धार्मिक अनिवार्यता (फ़र्ज़) भी है जैसे उदाहरण के तौर पर ” नमाज़” पढ़ना। इस्लाम का यह उसूल है कि वह अपनी किसी अनिवार्यता को किसी दूसरे धर्म वाले पर नहीं थोपता। इसलिए उन से ज़कात नहीं ली जा सकती।

 

२. दूसरा कारण यह है कि जज़िया श्रेणी के कर वालों को बहुतसी विशेष सुविधाओं का प्रावधान भी होता है जो किज़कात श्रेणीके कर वालों को इस्लामिक रियासत में प्राप्त नहीं होता।

जैसे इस्लामिक रियासत में गैर मुस्लिमों की जंग आदि में जान माल की रक्षा की पूरी जिम्मेदारी इस्लामिक रियासत एवं मुसलमानों की होती है। अतः किसी भी वक़्त जंग, आक्रमण में ज़रूरत पड़ने पर मुस्लिम शासक देश में रह रहे मुस्लिमों (ज़कात कर श्रेणी) को तो ज़कात देने के साथ-साथ जंग में लड़ने के लिए भी बुला सकता है (फिर चाहे वह सैनिक नहीं हो आम नागरिक और आम कारोबार करते हों)। उन्हें सुरक्षा के लिए तैनात किया जा सकता है। या यूँ कहें कि उन्हें आपात स्थिति में तैनाती पर लगाया जा सकता है।

 

लेकिन गैर मुस्लिम (जज़िया श्रेणी) के साथ ऐसा नहीं किया जा सकता उन्हें यह विशेष अधिकार प्राप्त होता है कि वे इस तरह के किसी अतिरिक्त भार के लिए बाध्य नहीं हैं और ना उनसे मजबूरन यह काम लिया जा सकता है।

 

इसके अलावा जज़िया श्रेणी के नागरिक रियासत में ज़िम्मी कहलाते हैं जो शब्द ज़िम्मेदारी से आता है। मतलब रियासत में रह रहे सभी गैर मुस्लिमों की जान माल, कारोबार, धार्मिक आज़ादी, धार्मिक स्थल आदि की सुरक्षा एवं संचालन की ज़िम्मेदारी इस्लामिक रियासत यानी गवर्नमेंट की है और अगर वे यह ना उपलब्ध करा पाए तो ज़िम्मीयो को इस्लाम यह अधिकार देता है कि वह अपने दिए जज़िये (टैक्स) को लौटाने की माँग कर सकते हैं। जो कि इतिहास में हुआ भी है जब कई बार जज़िया लौटाया गया। जबकि ज़कात श्रेणी में ऐसा कोई अधिकार नहीं है।

 

अतः मालूम होता है कि इस्लामिक रियासत में रह रहे गैर मुस्लिमों / अल्पसंख्यको के अधिकारों एवं उन्हें दी जाने वाली सुविधाओं का मुस्लिमों से अधिक ध्यान रखा गया है।

 

यहाँ यह भी सोचने वाली बात है कि जिस तरह इस्लाम को बदनाम करने वाले दुष्प्रचार करते रहते हैं कि इस्लाम गैर मुस्लिमों को अपनी रियासत में रहने का हक़ नहीं देता या उन पर अत्याचार का कहता है। यदि इस बात में थोड़ी भी सच्चाई होती तो फिर इस्लामिक रियासत में गैर मुस्लिमों की रक्षा और सुविधाओं के प्रावधान किस लिए दिए गए हैं?

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