क्या इस्लाम में मांसाहारी होना ज़रूरी है? मांसाहार के लिए जीव हत्या क्यों की जाती है?

जवाब:- मांसाहार इस्लाम में अनिवार्य (फ़र्ज़) नहीं है। एक मुसलमान पूर्ण शाकाहारी होने के बावजूद एक अच्छा मुसलमान हो सकता है। मांसाहारी होना एक मुसलमान के लिए ज़रूरी नहीं है।

 

यह भी एक भ्रांति है कि सिर्फ़ मुस्लिम ही मांसाहार करते हैं। जबकि तथ्य यह है कि विश्व की लगभग 90% जनता और ख़ुद हमारे देश भारत की 70% जनता मांसाहारी है।

विश्व के किसी भी प्रमुख धर्म में मांसाहार को वर्जित नहीं बताया गया है।

🍃 मुस्लिमों और क़ुरआन की बात करें तो पवित्र क़ुरआन मुसलमानों को मांसाहार की अनुमति देता है। निम्न कुरआनी आयातः इस बात की सुबूत हैं-

 

ऐ ईमान वालों! प्रत्येक कर्तव्य का निर्वाह करो। तुम्हारे लिए चौपाए जानवर जायज़ हैं केवल उनको छोड़कर जिनका उल्लेख किया गया है।…..

(क़ुरआन 5:1)

“और उसने चौपायों को बनाया उन में तुम्हारे लिए पोशाक भी है और ख़ूराक भी और दूसरे फ़ायदे भी और उन में से तुम खाते भी हो।”

(क़ुरआन 16:5)

 

”और वास्तव में, तुम्हारे लिए पशुओं में एक शिक्षा है, हम तुम्हें पिलाते हैं, उसमें से, जो उनके पेटों में है तथा तुम्हारे लिए उन में अन्य बहुत-से लाभ हैं और उन में से कुछ को तुम खाते हो।”

(क़ुरआन 23:21)

 

मांस पौष्टिक आहार है और प्रोटीन से भरपूर है, मांस उत्तम प्रोटीन का अच्छा स्रोत है। इसमें आठों आवश्यक अमीनो एसिड पाए जाते हैं जो शरीर के भीतर नहीं बनते और जिसकी पूर्ति आहार द्वारा की जाना ज़रूरी है। मांस में लोह, विटामिन बी-1 और नियासिन भी पाए जाते हैं।

प्रकृति में हमें भोजन के आधार पर 3 तरह के जीव देखने को मिलते हैं।

  1. शाकाहारी (Herbivorous),
  2. मांसाहारी (Carnivorous),
  3. मांस और शाक दोनों खाने वाले (Omnivorous).

 

अब अगर हम मनुष्य की प्राकृतिक रचना की तरफ़ ध्यान दें तो पता लगता है कि इंसान के दाँतों में दो प्रकार की क्षमता है यदि आप घास-फूस खाने वाले जानवरों यानी शाकाहारी (Herbivorous) जैसे भेड़, बकरी अथवा गाय के दाँत देखें तो आप उन सभी में समानता पाएँगे। इन सभी जानवरों के चपटे दाँत होते हैं अर्थात जो घास-फूस खाने के लिए उचित हैं और यदि आप मांसाहारी (carnivorous) जानवरों जैसे शेर, चीता अथवा बाघ इत्यादि के दाँत देखें तो आप उन में नुकीले दाँत भी पाएँगे जो कि मांस को खाने में मदद करते हैं।

 

यदि मनुष्य के दाँतों का अध्ययन किया जाए तो आप पाएँगे उनके दाँत नुकीले और चपटे दोनों प्रकार के हैं। इस प्रकार वे वनस्पति और मांस खाने में सक्षम होते हैं। यहाँ प्रश्न उठता है कि यदि सर्वशक्तिमान परमेश्वर मनुष्य को केवल सब्जियां ही खिलाना चाहता तो उसे नुकीले दाँत क्यों देता? यह इस बात का प्रमाण है कि उसने हमें मांस एवं सब्जियां दोनों को खाने की इजाज़त दी है। यानी के इन्सान प्राकृतिक रूप से सर्वभक्षी (Omnivorous) जीव है।

 

ऐसे ही इंसान मांस अथवा सब्जियां दोनों पचा सकता है शाकाहारी जानवरों के पाचन-तंत्र केवल सब्जियां ही पचा सकते हैं और मांसाहारी जानवरों का पाचन-तंत्र केवल मांस पचाने में सक्षम है, परंतु इंसान का पाचन-तंत्र सब्जियां और मांस दोनों पचा सकता है। यदि सर्वशक्तिमान ईश्वर हमें केवल सब्जियां ही खिलाना चाहता है तो वह हमें ऐसा पाचन-तंत्र क्यों देता जो मांस एवं सब्ज़ी दोनों को पचा सके।

 

🍃 पेड़-पौधों में भी जीवन:-

कुछ धर्मों ने शुद्ध शाकाहार को अपना लिया क्योंकि वे पूर्ण रूप से जीव-हत्या के विरूद्ध हैं। अतीत में लोगों का विचार था कि पौधों में जीवन नहीं होता। आज यह विश्वव्यापी सत्य है कि पौधों में भी जीवन होता है। अत: जीव-हत्या के संबंध में उनका तर्क शुद्ध शाकाहारी होकर भी पूरा नहीं होता।

 

➡️ पौधों को भी पीड़ा होती है:-

मांसाहार के विरोधी आगे यह तर्क देते हैं कि पौधे पीड़ा महसूस नहीं करते, अत: पौधों को मारना जानवरों को मारने की अपेक्षा कम अपराध है। जो कि आज ग़लत साबित हो चुका है।

 

आज विज्ञान कहता है कि पौधे भी पीड़ा अनुभव करते हैं परंतु उनकी चीख मनुष्य के द्वारा नहीं सुनी जा सकती है। इसका कारण यह है कि मनुष्य में आवाज़ सुनने की क्षमता, जो श्रुत सीमा में नहीं आते अर्थात 20 हर्टज़ से 20,000 हर्टज़ तक इस सीमा के नीचे या ऊपर पड़ने वाली किसी भी वस्तु की आवाज़ मनुष्य नहीं सुन सकता है।

 

एक कुत्ते में 40,000 हर्टज़ तक सुनने की क्षमता है। इसी प्रकार ख़ामोश कुत्ते की ध्वनि की लहर संख्या 20,000 से अधिक और 40,000 हर्टज़ से कम होती है। इन ध्वनियों को केवल कुत्ते ही सुन सकते हैं, मनुष्य नहीं।

 

अमेरिका के एक किसान ने एक मशीन का आविष्कार किया जो पौधे की चीख को ऊँची आवाज़ में परिवर्तित करती है जिसे मनुष्य सुन सकता है। जब कभी पौधे पानी के लिए चिल्लाते तो उस किसान को इसका तुरंत ज्ञान हो जाता। वर्तमान के अध्ययन इस तथ्य को उजागर करते हैं कि पौधे भी पीड़ा, दुःख और सुख का अनुभव करते हैं और वे चिल्लाते भी हैं।

 

➡️ दो इंद्रियों से वंचित प्राणी की हत्या कम अपराध नहीँ है।

अक्सर शाकाहारी अपने पक्ष में यह तर्क देते हैं कि पौधों में दो अथवा तीन इंद्रियाँ होती हैं जबकि जानवरों में पांच होती हैं। अतः पौधों की हत्या जानवरों की हत्या के मुकाबले में छोटा अपराध है।

 

आप कल्पना करें कि अगर किसी का भाई पैदाइशी गूंगा और बहरा है और दूसरे मनुष्य के मुकाबले उसके दो इंद्रियाँ कम हैं। वह जवान होता है और कोई उसकी हत्या कर देता है तो क्या आप न्यायाधीश से कहेंगे कि वह दोषी को कम दंड दे क्योंकि उसके भाई की दो इंद्रियाँ कम हैं? बल्कि वह तो यह कहेगा कि उस अपराधी ने एक लाचार गूंगे-बहरे की हत्या की है और न्यायाधीश को उसे कड़ी-से-कड़ी सज़ा देनी चाहिए।

 

क्या लोग नहीं जानते कि खेती के दौरान कई तरह के कीटनाशक (पेस्टीसाइड) का इस्तेमाल कर फसल पर छिड़काव करके फल सब्जियों को खराब करने वाले कीड़े, जीव जंतुओं को मारा जाता है इनमें छोटे भी होते हैं और बड़े भी। पिछले दिनों टिड्डी दल के बारे में सभी ने सुना है। इन जीवों में तो सभी इंद्रियाँ होती हैं तो क्या यह जीव हत्या नहीं हुई? मांसाहार को ग़लत कहने वाले इस पर क्या कहेंगे। अगर यह ना किया जाए तो फसल ही नष्ट हो जाएगी और खाने को कुछ बचेगा ही नहीं। अगर सिर्फ़ बहस के लिए मान भी लिया जाए कि किसी तरह बिना किसी जीव को मारे कोई फल या सब्जी तैयार हो भी गई तब भी यह बात तो रहेगी ही कि फल सब्ज़ी में भी जान होती है और आप उन्हें खा कर उनकी हत्या कर रहे हैं।

 

अतः इस से इंसान बच ही नहीं सकता यानी आज के दौर में मांसाहार / कुर्बानी को ग़लत कहना बहुत बड़ी अज्ञानता और अंध विश्वास की बात है।

 

पवित्र क़ुरआन में कहा गया है- “ऐ लोगों ! खाओ जो पृथ्वी पर है परंतु पवित्र और जायज़।”……

(क़ुरआन 2:168)

 

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