सवाल:-इस बात की क्या दलील है कि क़ुरआन अल्लाह का कलाम है और इसे हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने नहीं गढ़ा है?
जवाब:- इस बात की 1 नहीं बल्कि अनगिनत दलीलें है कि यह कलाम किसी इंसान का हो ही नहीं सकता बल्कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त जो इस कायनात को बनानेवाला का ही है औऱ कोई भी इंसान क़ुरआन को सच्चे मन से पढ़ कर यह बात जान सकता है।
सभी दलीलों का ज़िक्र करना तो किसी के बस की बात नहीं, इसलिए यहाँ चन्द बातें बताई जा रही हैं :-
1. ख़ुद क़ुरआन का अंदाज़ यह है कि यह अंधविश्वास की बात नहीं करता बल्कि कई जगहों पर पढ़ने वाले को आमंत्रित करता है कि वह ख़ुद बुद्धि का प्रयोग करें और ख़ुद जांच कर ले कि क्या यह रब का कलाम है?
तो क्या ये लोग क़ुरआन में भी ग़ौर नहीं करते और (ये नहीं ख़्याल करते कि) अगर ख़ुदा के सिवा किसी और की तरफ़ से (आया) होता तो ज़रूर उसमें बड़ा इख्तेलाफ़ पाते।
(सुरः निसा: 82)
क़ुरआन में किसी तरह का विरोधाभास नहीं है कि कहीं कोई बात कह दी तो कहीं उसके उलट बात कह दी, कहीं यह उल्लेख हो कि ईश्वर 1 है तो कहीं यह कह दिया कि 1 नहीं बहुत है। जो कि मानवी त्रुटि होती है या तब होता है जब 1 कि बजाय कई लेखक हों।
2. आप हज़रत मुहम्मद (स॰अ॰व॰) का उम्मी होना।
पूरा क़ुरआन विस्मयकारी और आश्चर्यचकित कर देने वाली निशानियों से भरा हुआ है, इसमें दुनियाँ के कई Field कि जानकारी कि निशानियाँ मौजूद हैं फिर चाहे वह Archaeology, Astronomy, Embryology, Geology हो या Cosmology (कॉस्मोलॉजी) हो क़ुरआन में 1400 साल पहले ऐसी चीज़ों का ज़िक्र कर दिया गया जिसको इंसान ने वर्तमान में ही जाना है। जैसे सूरज का अपने दायरे में चक्कर लगाना, बिग बैंग, बच्चे का पेट में प्रारम्भिक विकास और भी बहुत कुछ।
किसी भी व्यक्ति के लिए यह कैसे सम्भव है कि वह अपने समय से आगे और पीछे दोनों की इतनी विस्मयकारी जानकारी दे-दे जब कि वह ख़ुद पढ़-लिख नहीं सकता हो?
यहाँ तक कि Encyclopedia Britannica भी इस बात की गवाही देता है कि जितने भी तारीखी हवाले मिलते हैं सब से यही साबित होता है कि आप पैगम्बर पढ़ना लिखना नहीं जानते थे।
3.ख़ुद क़ुरआन करीम का चैलेंज-
क़ुरआन करीम ऐसे ज़माने में उतरा है जब अरबी ज़बान में ख़ूब महारत हासिल कि जाती थी। अरबी ज़बान में फसाहत (वाक्पटुता) व बलाग़त / Eloquent and Atticism पर अरब लोग एक दूसरे को चैलेंज करते थे, क़ुरआन भी फसाहत व बलाग़त / Eloquent and Atticism से भरा हुआ था, मक्का के मुशरेकीन / बहुदेववादी ने क़ुरआन को जब नबी की गढ़ी हुई किताब कहा और कहा के ऐसी फसाहत व बलाग़त / Eloquent and Atticism के साथ तो हम भी एक किताब गढ़ लेंगे तो क़ुरआन में अल्लाह ने मुशरेकीन को चैलेंज किया कि अगर तुमको अपनी फसाहत व बलाग़त / Eloquent and Atticism पर इतना फख्र ओर गर्व है तो सब आपस में मिलकर क़ुरआन के समान कोई दूसरी किताब बना लाओ:
आप कह दें: यदि सब मनुष्य तथा जिन्न इस पर एकत्र हो जायें कि इस क़ुरआन के समान ले आयेंगे, तो इसके समान नहीं ला सकेंगे, चाहे वे एक-दूसरे के मददगार (सहायक) ही क्यों न हो जायें!
(सूरह बनी इसराइल: 88)
जब कोई आगे ना आया तो क़ुरआन ने उन लोगों के लिए इसे और आसान करते हुए सिर्फ़ दस सुर: बनाने का चैलेंज किया।
क्या वह कहते हैं कि उसने (मुहम्मद ने) इस (क़ुरआन) को स्वयं बना लिया है? आप कह दें कि इसी के समान दस सूरतें बना लाओ और अल्लाह के सिवा, जिसे हो सके, बुला हो, यदि तुम लोग सच्चे हो।
(सुरः हुद: 13)
जब यह भी ना हो सका तो अल्लाह ने इसे इतना आसान करते हुए कहा कि अगर तुम अपने दावे में सच्चे हो तो इस जैसी कोई 1 ही सुरः बना लाओ।
और अगर तुम लोग इस कलाम से जो हमने अपने बन्दे (मोहम्मद) पर नाज़िल किया है शक में पड़े हो पस अगर तुम सच्चे हो तो तुम (भी) एक सूरा बना लाओ और खुदा के सिवा जो भी तुम्हारे मददगार हों उनको भी बुला लो।
(सुरः अल बकरह: 23)
इतनी आसानी देने के बावजूद उस ज़माने से लेकर आज तक कोई इस चैलेंज को पूरा नहीं कर पाया है।
और इसी बारे में अल्लाह ने फ़रमाया क़ुरआन में-
फिर यदि वे उत्तर न दें, तो विश्वास कर लो कि उसे (क़ुरआन को) अल्लाह के ज्ञान के साथ ही उतारा गया है और ये कि कोई वंदनीय (पूज्य) नहीं है, परन्तु वही। तो क्या तुम मुस्लिम होते हो?
(सुरः हुद: 14)
4. क़ुरआन करीम अपनी निशानियों पर ग़ौर करने की दावत देता है, बेशुमार साइंटिस्ट, बुद्धिजीवी और अक्लमंद इन निशानियों पर ग़ौर कर मुस्लिम हुए और यह मानने पर मजबूर हुए की कोई शक नहीं कि यह किताब अल्लाह का कलाम है।
5. इतिहास में तमाम इल्ज़ाम लगाने वाले आज तक इस बात का कोई ठोस जवाब नहीं दे पाए कि अगर क़ुरआन अल्लाह का कलाम नहीं है तो इसमें कही गई बातें किसने कही है।
इसी संदर्भ में इस्लाम से दुश्मनी के लिए जाने जानी वाली कैथोलिक चर्च ने भी नया केथॉलीक इनसाइक्लोपीडिया / New Catholic encyclopedia में क़ुरआन पर बहस करते हुए यह माना कि:
गुज़रे ज़माने में अलग-अलग ज़माने में क़ुरआन करीम के मसदर व मंबा (कहाँ से इस में बातें ली गई हैं) के मुताल्लिक़ बहुत से नज़रिए और थ्योरी पेश की गई, लेकिन आज किसी सही अक्ल रखने वाले इन्सान के लिए उन पुराने नजरियों में से किसी भी नजरिए को मान लेना मुमकिन नहीं है।
यानी कैथोलिक चर्च को भी यह मानने पर मजबूर होना पड़ा कि क़ुरआन को इंसानी दिमाग़ की पैदावार बताने के लिए किसी के पास कोई आधार नहीं है और इस दावे में पेश किए जाने वाला कोई भी नज़रिया काबिल ए कबुल नहीं है।
इस तरह क़ुरआन अपने ईश्वरीय ग्रन्थ होने कि प्रमाणिकता के साथ आज 1400 साल बाद भी चैलेंज करता है।