आरोप है कि मदरसों में गैर मुस्लिमों को मारने की ट्रेनिंग दी जाती है और सरकारें इसके लिए अनुदान देती हैं
जवाब:-मदरसों में आतंकवाद की तालीम देने का इल्ज़ाम नया नहीं है। पिछले 15-20 सालों में शायद ही कोई दिन ऐसा गुजरा हो जब नफ़रत फैलाने वाले किसी भी छोटे और बड़े लीडर ने मदरसों पर इस तरह के इल्ज़ाम न लगाए हो। कभी मदरसों को आतंकवाद का अड्डा क़रार दिया जाता है। कभी उनको दकियानूसी और कट्टरता का ताना दिया जाता है। कभी यह कहा जाता है कि भारत के मदरसे विदेशी फंड से चल रहे हैं। तो कभी यह कहा जाता है कि इन मदरसों में गैर मुस्लिमों को मारने की ट्रेनिंग दी जाती है।
और हम इस ब्रेन वाशिंग और झूठ में इतने अंधे हो जाते हैं कि अपनी सामान्य तर्क (Common sense) और बुद्धि का भी इस्तेमाल नहीं कर पाते।
ज़रा सोचिये क्या हमारी इंटेलिजेंस, सुरक्षा बल, RAW, खुफिया एजेंसी जो दुनियाँ भर की आतंकवाद और देश विरोधी गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए जानी जाती हैं वे इतनी अक्षम और अपंग हो गई हैं कि देश के अंदर ही चल रहे हज़ारों मदरसों में खुले तौर पर आतंकवाद और गैर मुस्लिमों को मारने की ट्रेनिंग चलाई जा रही है और वह उन्हें ना नज़र आ रही है और ना ही वे इस पर कोई कार्यवाही कर रहे हैं? जब कि मदरसे तो हर वक़्त जाँच पड़ताल के लिए खुले होते हैं।
और इस से भी आश्चर्य की बात यह कि जो बात हमारी इंटेलिजेंस और सुरक्षा बल पता नहीं कर पा रही हैं वह इन व्हाट्सअप ज्ञाताओं और नेताओँ ने पता लगा ली है?
इतनी सामान्य बुद्धि (Common sense) की बात भी लोग नफ़रत फैलाने के एजेंडे में पड़ कर ध्यान नहीं दे पाते।
तो चलिए तर्क छोड़ अब आंकड़ों और तथ्यों की नज़र से भी देख लें। इस पूरे मामले का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि आज तक इस तरह का कोई भी इल्ज़ाम अदालत में या अदालत से बाहर साबित नहीं किया जा सका, ना किसी मदरसे से कोई आतंकवादी गिरफ्तार किया गया, ना किसी मदरसे से बम बनाने की फैक्ट्री पकड़ी गई। ना ही गैर मुस्लिमों को मारने की ट्रेनिंग देता कोई पकड़ा गया। यह सब जानते हैं कि मदरसे अमन शांति और अच्छे अखलाक की तालीम देते हैं। यहाँ आतंकवादी नहीं बल्कि अमन पसंद इंसान बनाया जाता है।
साथ ही ऐसा कहना भी पूर्ण ग़लत है कि मदरसे हिंदुओं के टैक्स के पैसों से चलते हैं।
क्योंकि अधिकांश मदरसे पूर्ण रूप से स्वचालित ही होते हैं और मुस्लिमों के दान से ही चलते हैं जिनमें ना कोई सरकार के अनुदान का दखल होता है और ना ही किसी और का। मदरसों में ज़्यादातर गरीब या आर्थिक रूप से कमज़ोर बच्चे पढ़ते हैं। इस तरह से आर्थिक रूप से पिछड़ी एक बड़ी जनसंख्या को प्राथमिक शिक्षा, भोजन और आवास प्रदान कर मदरसे देश की सरकार को एक बहुत बड़ा योगदान भी करते हैं, क्योंकि देश भर के गरीब और आर्थिक रूप से कमज़ोर बच्चों को शिक्षा, भोजन और आवास देना तो पूर्ण रूप से सरकार की ज़िम्मेदारी होता है।
देश भर के छोटे बड़े सभी मदरसों ने समय-समय पर हर स्तर पर आतंकवाद का विरोध किया है। बार-बार इस इल्ज़ाम से तंग आकर 2007 में दारुल उलूम देवबंद में आतंकवाद के ख़िलाफ एक बहुत बड़ी कॉन्फ्रेंस की थी, जिसमें हर रंग और हर शक्ल के आतंकवाद की खुलकर निंदा की गई और यह ऐलान किया गया कि जिन लोगों को मदरसों के ताल्लुक से कोई शक है वह मदरसों में आए और अपनी आंखों से मदरसों की गतिविधियों को देखें। मदरसे खुली किताब की तरह है जिसे हर शख़्स पढ़ सकता है।
2008 में आतंकवाद के ख़िलाफ तफ्सीली फतवा भी जारी किया था जिसको मीडिया ने बड़े पैमाने पर कवरेज दिया। इसी तरह मुसलमानों की सभी बड़े संगठनों ने अलग-अलग प्लेटफार्म से आतंकवाद और आतंकवादियों की कड़ी निंदा की और इस्लाम के नाम पर होने वाली हर प्रकार की आतंकवादी घटनाओं को इस्लाम के ख़िलाफ बताया और जैसे पहले भी कहा गया इन में से कोई भी मदरसे कभी भी किसी ग़लत गतिविधि में संलिप्त नहीं पाया गया।
जबकि इस के उलट NIA कि वेबसाइट (Website) पर अगर आतंक सम्बंधित मामलों के लिए मोस्ट वांटेड की लिस्ट सेक्शन है उस पर नज़र दौड़ाई जाए तो उसमें मुस्लिम कम बल्कि दूसरे धर्म और उनसे जुड़े संगठनों से जुड़े लोग अधिक हैं जिनमें पूर्व राजदूत माधुरी गुप्ता, आमनंदलाल उर्फ नंदू महाराज और इन जैसे प्रमुख हैं।
इन सभी के बावजूद नफ़रत फैलाने वालों की सोच में कोई तब्दीली नहीं आ सकी। जो कि स्वभाविक है क्योंकि इसी में इनके राजनीतिक हित छुपे हुए हैं, लेकिन आम जनता को तो अब तर्क और बुध्दि से काम लेना चाहिए और इस तरह के बहकावे में नहीं आना चाहिए।