सवाल:- क्या क़ुरआन की 24 आयतें दूसरे धर्म वालों से झगड़ा करने एवं हिंसा के लिए प्रेरित करती हैं?

जवाब:- क़ुरआन के बारे में दुष्प्रचार फैलाने का यह तरीक़ा बहुत ही पुराना है कि क़ुरआन की जिन आयतों में जंग के मैदान में अत्याचारियों के प्रति युद्ध का जिक़्र (उल्लेख) है उन आयतों को अलग-अलग सूरतों (अध्यायों / पाठों) में से और अलग-अलग जगह से सन्दर्भ के बाहर (Out of context) निकाल कर ऐसा दिखाने का कुप्रयास किया जाता है कि क़ुरआन हिंसा के लिए प्रेरित करता है।

 

जबकि जब आप इन आयतों को इनके सन्दर्भो के साथ पढ़ेंगे या आगे पीछे की आयत ही पढ़ लेंगे तो आप जान लेंगे की यह दावा कितना झूठा है।

 

जैसे उदाहरण के तौर पर क़ुरआन 9:5 का हवाला देकर यह कहा जाता है कि क़ुरआन गैर मुस्लिमों को मारने का हुक्म देता है। जबकि इसकी अगली और पिछली आयात यानी 9: 4 और 9: 6 ही पढ़ लेने से इसका सन्दर्भ पता चल जाता है कि यह युद्ध के मैदान की आयत है और उसमें भी अल्लाह का हुक्म यह है अगर इस (युद्ध के) दौरान भी अगर कोई मुस्लिमों से पनाह (शरण) मांगे तो उसे पनाह दी जाए।

 

दरअसल सिर्फ़ क़ुरआन ही नहीं बल्कि विश्व के हर प्रमुख धर्म ग्रन्थ में इस तरह की बातें, यानी की युद्ध के मैदान, अत्याचार और अत्याचारियों के विरुद्ध मौजूद हैं। लेकिन अगर इसी तरह इन ग्रन्थों से इन श्लोकों / आयतों / वर्सेज को सन्दर्भ के विपरीत (Out of context) अलग-अलग निकाल कर एक जगह इकट्ठा कर दिखाया जाए। तो *विश्व का हर धर्म ग्रन्थ हिंसा को बढ़ावा देता दिखाई देगा।

और ऐसे ही क़ुरआन की इन 24 आयतों के बारे में किया जाता रहा है। हालाँकि यह स्वाभाविक है कि इस तरह तो प्रथम दृष्टया (Prima facie) कोई भी इन्हें पढ़कर ग़लतफ़हमी का शिकार हो जाएगा। लेकिन अगर वह क़ुरआन और मुहम्मद (स.अ.व.) की जीवनी का अध्ययन करेगा तो वह ज़रूर सच जान लेगा।

उदाहरण के तौर पर: ऐसे ही 1950 के दौरान फैलाए जा रहे इसी कुप्रचार का शिकार होकर स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य ने इस्लाम को हिंसा और आतंकवाद से जोड़ते हुए इस्लाम के ख़िलाफ लिखी जिसका आधार यही 24 आयतों के प्रति कुप्रचार रहा लेकिन जब उन्हें बाद में सत्य का ज्ञान हुआ तो उन्होंने ख़ुद अपनी लिखी किताब पर खेद व्यक्त करते हुए उसे शून्य घोषित किया और ईश्वर से माफी मांगते हुए किताब लिखी “इस्लाम आतंक या आदर्श?”

उसकी प्रस्तावना में उन्होंने लिखा (उन्हीं के शब्दों में)

मैंने कई साल पहले दैनिक जागरण में श्री बलराज मधोक का लेख “दंगे क्यों होते हैं?’’ पढ़ा था। इस लेख में हिन्दू-मुस्लिम दंगा होने का कारण क़ुरआन मजीद में काफिरों से लड़ने के लिए अल्लाह के फरमान बताए गए थे। लेख में क़ुरआन मजीद की वे आयते भी दी गई थी।

 

*इसके बाद दिल्ली से प्रकाशित एक पैम्फलेट (पर्चा) ‘क़ुरआन की चौबीस आयतें, जो अन्य धर्मावलंबियों से झगड़ा करने का आदेश देती हैं’ किसी व्यक्ति ने मुझे दिया। इसे पढ़ने के बाद मेरे मन में जिज्ञासा हुई कि मैं क़ुरआन पढूं। इस्लामी पुस्तकों की दुकान से क़ुरआन का हिंदी अनुवाद मुझे मिला।*

 

क़ुरआन मजीद के इस हिंदी अनुवाद में वे सभी आयतें मिली, जो पैम्फलेट (पर्चे) में लिखी थी। इससे मेरे मन में यह ग़लत धारणा बनी कि इतिहास में हिन्दू राजाओं व मुस्लिम बादशाहों के बीच जंग में हुई मार-काट तथा आज के दंगों और आतंकवाद का कारण इस्लाम हैं। दिमाग़ भ्रमित हो चुका था, इसलिए हर आतंकवादी घटना मुझे इस्लाम से जुड़ती दिखाई देने लगी।

इस्लाम, इतिहास और आज की घटनाओं को जोड़ते हुए मैने एक पुस्तक लिख डाली ‘इस्लामिक आतंकवाद का इतिहास’ जिसका अंग्रेज़ी अनुवाद “The History Of Islamic Terrorism” के नाम से सुदर्शन प्रकाशन, सीता कुंज, लिबर्टी गार्डेन, रोड नम्बर-3, मलाड (पश्चिम), मुंबई -400064 से प्रकाशित हुआ।

हाल ही में मैने इस्लाम धर्म के विद्वानों (उलेमा) के बयानों को पढ़ा कि इस्लाम का आतंकवाद से कोई सम्बन्ध नहीं है। इस्लाम प्रेम,सद्भावना व भाईचारे का धर्म है। किसी बेगुनाह को मारना इस्लाम धर्म के विरूद्ध हैं। आतंकवाद के ख़िलाफ फतवा (धर्मादेश) भी जारी हुआ।

इसके बाद मैंने क़ुरआन मजीद में जिहाद के लिए आई आयतों के बारे में जानने के लिए मुस्लिम विद्वानों से सम्पर्क किया, जिन्होने मुझे बताया कि क़ुरआन मजीद की आयत भिन्न-भिन्न तत्कालीन परिस्थितियों में उतरी।

इसलिए क़ुरआन मजीद का केवल अनुवाद ही न देखकर यह भी देखा जाना ज़रूरी हैं कि कौन-सी आयत किस परिस्थिति में उतरी, तभी उसका सही मतलब और मकसद पता चल पाएगा।

साथ ही ध्यान देने योग्य हैं कि क़ुरआन इस्लाम के पैगम्बर मुहम्मद (स.अ.व.) पर उतारा गया था। अत: क़ुरआन को सही मायने में जानने के लिए पैगम्बर मुहम्मद (स.अ.व.) की जीवनी से परिचित होना भी ज़रूरी हैं। विद्वानों ने मुझसे कहा, ‘‘आपने क़ुरआन मजीद की जिन आयतों का हिंदी अनुवाद अपनी किताब से लिया हैं, वे आयतें उन अत्याचारी काफ़िर और मुशरिक लोगों के लिए उतारी गई जो अल्लाह के रसूल (स.अ.व.) से लड़ाई करते और मुल्क में फसाद करने के लिए दौड़ते फिरते थे। सत्य धर्म की राह में रोड़ा डालने वाले ऐसे लोगों के विरूद्ध ही क़ुरआन में जिहाद का फरमान हैं।’’

उन्होने मुझसे कहा कि इस्लाम की सही जानकारी न होने के कारण लोग क़ुरआन मजीद की पवित्र आयतों का मतलब समझ नहीं पाते। यदि आपने पूरे क़ुरआन मजीद के साथ हजरत मुहम्मद (स.अ.व.) की जीवनी भी पढ़ी होती, तो आप भ्रमित न होते।

मुस्लिम विद्वानों के सुझाव के अनुसार मैने सबसे पहले पैगम्बर हजरत मुहम्मद (स.अ.व.) की जीवनी पढ़ी। जीवनी पढ़ने के बाद इसी नजरिए से जब मन की शुद्धता के साथ क़ुरआन मजीद शुरू से अन्त तक पढ़ा, तो मुझे क़ुरआन मजीद की आयतों का सही मतलब और मकसद समझ में आने लगा।

सत्य सामने आने के बाद मुझे अपनी भूल का एहसास हुआ कि मैं अनजाने में भ्रमित था और इसी कारण ही मैंने अपनी उक्त किताब ‘इस्लामिक आतंकवाद का इतिहास’ में आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ा हैं जिसका मुझे हार्दिक खेद (दुःख) हैं और इसलिये मैं अपने भुल एवं दुःख व्यक्त करते हुए फिर से एक नयी पुस्तक लिखी जिसका नाम है “इस्लाम आतंक या आदर्श?” इस पुस्तक में मैंने इस्लाम के अपने अध्ययन को बखूबी पेश किया है।

और साथ ही मैं अल्लाह से, पैगम्बर मुहम्मद (स.अ.व.) से और सभी मुस्लिम भाइयों से सार्वजनिक रूप से माफी मांगता हूँ तथा अज्ञानता में लिखे व बोले शब्दों को वापस लेता हूँ। जनता से मेरी अपील हैं कि मेरी पहली पुस्तक ‘इस्लामिक आतंकवाद का इतिहास पुस्तक में जो लिखा हैं उसे शून्य समझें और मेरी नयी पुस्तक “इस्लाम आतंक या आदर्श?” का अध्ययन करें और साथ ही अन्य लोगों तक पहुँचाए, धन्यवाद।। (स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य)

वैसे तो हर व्यक्ति को ख़ुद क़ुरआन और मुहम्मद (स.अ.व.) की जीवनी का स्वयं अध्ययन करना चाहिए लेकिन जो इतना समय न निकाल सके और इन 24 आयतों को लेकर भ्रम की स्थिति में है उसे कम से कम स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य की लिखी इस किताब का ज़रूर अध्ययन करना चाहिए जो कि बहुत ही आसानी से हर जगह उपलब्ध है।

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