सवाल:- अल्लाह सब जगह है, चारो दिशा में है, तो सिर्फ़ काबे की ओर क्यों सजदा करते है अन्य तीनों दिशा में क्यों नहीं?

जवाब:- बेशक अल्लाह तो हर दिशा का मालिक है। 

और पूरब व पश्चिम सब अल्लाह ही का है तो तुम जिधर मुंह करो उधर वज्हुल्लाह (ख़ुदा की रहमत तुम्हारी तरफ़ मुतवज्जेह) है बेशक अल्लाह वुसअत (विस्तार) वाला इल्म वाला है।

(क़ुरआन 2:115)

लेकिन अल्लाह ने अपने बन्दों पर करम और आसानी करते हुए उनके लिए एक क़िबला (Direction) मुकर्रर कर दिया ताकि वे जब भी, जहाँ कहीं भी हों, नमाज़ अदा करें तो सभी 1 ही Direction में अदा करें। ताकि किसी तरह के इख्तिलाफ (मतभेद) या Confusion की गुंजाइश ना रहे।

(हे नबी!) हम आपके मुख को बार-बार आकाश की ओर फिरते देख रहे हैं। तो हम अवश्य आपको उस क़िबले (काबा) की ओर फेर देंगे, जिससे आप प्रसन्न हो जायें। तो (अब) अपना मुख मस्जिदे ह़राम की ओर फेर लो। तथा (हे मुसलमानों!) तुम जहाँ भी रहो, उसी की ओर मुख किया करो…

(क़ुरआन 2:144)

इस्लाम एकता और अनुशासन (Discipline) का प्रतीक है। मुस्लिम दिन में पाँच बार नमाज़ अदा करते हैं जो कि सामूहिक रूप से अदा करना श्रेष्ठ है। यदि कोई क़िबला मुकर्रर नहीं किया गया होता तो कोई किधर चेहरा कर के नमाज़ अदा करता तो कोई किसी दूसरी ओर। जिस से जमाअत से नमाज़ पढ़ना मुमकिन नहीं हो पाता और हर वक्त मतभेद और Confusion की स्थिति बनी रहती। इसलिये अल्लाह ने अपने बन्दों पर करम करते हुए उनके लिए एक क़िबला मुकर्रर किया और उसी ओर चेहरा कर नमाज़ अदा करने का हुक्म दिया। अतः अल्लाह के हुक्म का पालन करते हुए विश्व भर में जहाँ कहीं भी नमाज़ अदा करते हैं तो काबे की दिशा में करते हैं।

➡️ इसी संबंध में ग़लतफ़हमी और अज्ञानता के चलते कुछ गैर मुस्लिम यह समझ लेते हैं कि काबे कि इबादत (पूजा/उपासना) की जाती है। जबकि मुस्लिम काबे कि इबादत नहीं करते हैं ना ही उसे पूजनीय समझते हैं।

▪️काबा के मुकाम पर स्थित *“हजरे-अस्वद” (काले पत्थर)* से संबंधित दूसरे इस्लामी शासक हज़रत उमर (रज़ि.) से एक कथन उल्लिखित है। हदीस की प्रसिद्ध पुस्तक “सहीह बुख़ारी” भाग-दो, अध्याय-हज, पाठ-56, हदीस न. 675 के अनुसार हज़रत उमर (रज़ि.) ने फ़रमाया–

“मुझे मालूम है कि (हजरे-अस्वद) तुम एक पत्थर हो। न तुम किसी को फ़ायदा पहुँचा सकते हो और न नुक़सान और मैंने अल्लाह के पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को तुम्हें छूते (और चूमते) न देखा होता तो मैं न तो कभी तुम्हें छूता (और न ही चूमता)।”

▪️इसके अलावा लोग काबा पर चढ़कर अज़ान देते थे:-

अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ज़माने में तो लोग काबा पर चढ़कर अज़ान देते थे। यह बात इतिहास से सिद्ध है। अब जो लोग यह आरोप लगाते हैं कि मुसलमान काबा की उपासना (इबादत) करते हैं उनसे पूछना चाहिए कि भला बताइए तो सही कि कौन मूर्तिपूजक मूर्ति पर चढ़कर खड़ा होता है।

▪️इस बात में किसी प्रकार का संदेह बाकी ना रहे इसीलिए मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जीवन काल में ही अल्लाह ने तहविले क़िबला (क़िबले का बदलना) कर यह बात ख़ुद मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और सहाबा से प्रैक्टिल कर सबके सामने स्पष्ट कर दी गई, की जब आप मक्का में थे तब अल्लाह का आदेश बैतूल मुकद्दस की तरफ़ चेहरा कर नमाज़ पढ़ने का था। आप मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के मदीना तशरीफ़ ले जाने के एक साल बाद तक इस हुक्म पर अमल होता रहा। फिर अल्लाह ने क़िब्ले को बदलने का हुक्म दिया जिसे  तहविले क़िबला कहा जाता है और फिर मुसलमानो ने काबे की तरफ चेहरा कर नमाज़ पढ़ना शुरू की।

जिस से साबित हो गया कि मुसलमान ना काबे को पूजनीय समझते हैं ना पूजते हैं यह तो सिर्फ़ अल्लाह का आदेश है उसने जिधर रुख करने का कहा उस तरफ़ रुख कर नमाज़ की जाती है।

और अंत में इस सम्बन्ध में कुर’आन की यह आयत ही पर्याप्त है: –

नेकी यह नहीं कि तुम अपने मुँह मशरिक या मग़रिब की तरफ़ कर लो, मगर नेकी यह है जो ईमान लाए अल्लाह पर और यौमे आखिरत पर और फरिश्तों और किताबों पर और नबियों पर, और उस (अल्लाह) की मुहब्बत पर माल दे रिश्तेदारों को और यतीमों और मिस्कीनो को और मुसाफिरों को और सवाल करने वालों को और गर्दनों के आज़ाद कराने में, और नमाज़ काईम करें और ज़कात अदा करें, और जब वह अहद करें तो उसे पूरा करें, और सब्र करने वाले सख्ती में और तकलीफ में और जंग के वक़्त, यही लोग सच्चे हैं, और यही लोग परहेज़गार हैं।

(क़ुरआन-2:177)

 

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