Category: आम ग़लतफ़हमियों के जवाब

  • जहाँ मुस्लिम अधिक हैं वहां लोकतंत्र क्यों नहीं ?

    जहाँ मुस्लिम अधिक हैं वहां लोकतंत्र क्यों नहीं ?

    इस सवाल के बारे में पहले आप ख़ुद खुली बुद्धि से अपने आप से पूछें क्या UAE, क़तर, ओमान, कुवैत, अरब, बहरीन में दूसरे धर्मों के लोग सुरक्षित नहीं है? अगर नहीं तो फिर क्यों हमारे देश और दुनियाँ भर से लाखों (गैर मुस्लिम) लोग वहाँ जा रहे हैं और वहीं लम्बे समय तक बसने वालों की संख्या में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है? जबकि सभी देशों में मुस्लिम 70% से अधिक हैं??

     

    यदि आप खाड़ी देशों के अलावा देखना चाहते हैं तो एशिया में आप मलेशिया, इंडोनेशिया, ब्रुनेई देख लें। वहाँ भी यही स्थिति है।

     

    यह भी पर्याप्त नहीं तो फिर तुर्की, जॉर्डन, लेबनान, मोरक्को, मिस्र (इजिप्ट) देख लें। इनके अलावा भी देखना है तो अल्बानिया, सेनेगल, मालदीव, उत्तरी सायप्रस आदि और भी कई देश हैं जहाँ मुस्लिम बहुसंख्यक है और दूसरे धर्मों के लोग सदियों से सुरक्षित औऱ सम्पन्नता से रह रहे हैं।

     

    ज़रा खुली बुद्धि से नज़र ही दौड़ा लें, इसके लिए कोई बहुत गहन अध्ययन करने की भी ज़रूरत नहीं है तब यह झूठ क्यों कहा और मान लिया जाता है कि जहाँ मुस्लिम अधिक हैं वहाँ दूसरे धर्मो के लोग सुरक्षित नहीं?

     

    इसके आगे इस तथ्य पर बात करें कि लोकतंत्र सिर्फ़ वहाँ है जहाँ हिन्दू अधिक है और कोई मुस्लिम देश सेक्युलर नहीं है यह तो एक साफ़ झूठ है जो बस हम पढ़ते हैं और मान लेते हैं। चेक भी करने का कष्ट नहीं करते। तो आज ख़ुद गूगल का प्रयोग कर चेक कर ले की कितने देशों और विशेषकर मुस्लिम देशों में लोकतंत्र एवं सेक्युलर स्टेट है? संक्षिप्त में कुछ के नाम अल्बानिया, अज़रबैजान, बोस्निया, बांग्लादेश, बुर्किना फासो, चाड, इंडोनेशिया, कज़ाख़िस्तान, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान आदि हैं।

     

    कुछ एक जगह / मामलों को हाइलाइट कर ग़लत छवि कैसे बनाई जाती है इस को आसानी से हम इस तरह समझ सकते हैं कि विश्व धार्मिक असहिष्णुता सूचकांक (World religious intolerance) का विश्लेषण करने वाली वैश्विक संस्था Pew research center analysis report ने 2017 की रिपोर्ट में विश्व के 198 देशों में भारत को 4 थे नम्बर पर रखा था। इसे मानें तो विश्व में अल्पसंख्यकों पर धर्म के कारण हो रहे अत्याचार में भारत 4थे नम्बर पर है यानी यहाँ स्थिति विश्व के कई कुख्यात देशों से भी बुरी है जबकि यह बात सही नहीं है। ना भारत में ऐसी स्थिति है और यह एक बिल्कुल ग़लत चित्रण हुआ है। दरअसल यह कुछ मॉब लिंचिंग और दूसरी कुछ घटनाओं पर आधारित कर दिया गया।

     

    उसी तरह कुछ एक मामलों को हाइलाइट कर यह बताने का प्रयत्न किया जाता है कि जहाँ मुस्लिम अधिक है वहाँ दूसरों पर अत्याचार हो रहा है। जो कि बिल्कुल ग़लत है।

     

    और यदि कोई इस दृष्टिकोण से सहमत हैं और ऐसे ही विश्लेषण करना चाहता है तो फिर उसको ठीक इसका उल्टा यानी कि यह मानने पर मजबूर होना होगा कि मुस्लिम जहाँ कम हैं वहाँ उन पर अत्याचार हो रहा है। जैसे म्यान्मार में रोहिंग्या की पुरी की पुरी आबादी को मार-काट कर निष्कासित कर दिया गया। असम में, बोडो ने मुस्लिमों के साथ क्या किया? श्रीलंका में मुस्लिमों पर अत्याचार, चीन में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार! और ऐसे एक दो नहीं बल्कि विश्व भर में स्वीकृत (Recognized) मामले हैं जो सैकड़ों की तादाद में है।

    अतः आंकड़ों और भौगोलिक स्थिति पर नज़र डालें तो यह बात सामने आती है कि यह कहना झूठ के सिवा और कुछ नहीं कि जहाँ मुस्लिम अधिक है वहाँ दूसरे धर्म वाले सुरक्षित नहीं। बल्कि ऐसे कई देश हैं जहाँ गैर मुस्लिम बहुत अच्छी स्थिति में हैं और वे इन मुस्लिम बहुल मुल्कों में रहना और बसना पसंद कर रहे हैं।

     

    लेकिन अगर कुछ एक जगहों और मामलों पर ही ध्यान देकर तय करना हो तो फिर इसके विपरीत इस बात के कई ज़्यादा साक्ष्य मिलते हैं कि जिस जगह मुस्लिम कम हैं वहाँ वे सुरक्षित नहीं है।

  • तलाक़ के बारे में सवाल ?

    तलाक़ के बारे में सवाल ?

    बिल्कुल नहीं। तलाक हो जाने पर बच्चों की सम्पूर्ण ज़िम्मेदारी उनके पिता की है। उनकी हर आर्थिक और दूसरी ज़रूरतों को पूरा करना पूर्ण रूप से उनके बाप के ज़िम्मे है।

    इस्लाम में इस तरह की कोई चीज़ नहीं है। यह पूर्ण रूप से निराधार और झूठ है। लोग यह सवाल हलाला के नाम से फैलाये जा रहे झूठ और गलतफहमी में पढ़कर करते हैं। जिसके बारे में लेख हलाला” पर पहले भी शेयर किया जा चुका है। उस का अध्ययन करें।

    https://islamconnect.in/2021/04/23/3234/

  • मुस्लिम हर देश मे लड़ क्यों रहे हैं?

    मुस्लिम हर देश मे लड़ क्यों रहे हैं?

    जवाब:– इसका उत्तर बिल्कुल इसी मैसेज में ही मिल जाएगा।

    उनकी इस लिस्ट में कि मुस्लिम हर देश में लड़ रहे हैं वे भारत के बारे में कहते हैं कि भारत में हिंदुओं से लड़ रहे हैं?

    कहाँ लड़ रहे हैं भाई? अब ज़रा बताएँ की यह बात किस बुनियाद पर कही गई? जिस तरह यह झूठ गढ़ लिया गया है वैसे ही पूरी दुनिया के बारे में गढ़ कर वह बात साबित करने की कोशिश की जा रही है जो वास्तव में है ही नहीं।

    (यहाँ illusory correlation और confirmation bias techniques का इस्तेमाल किया जा रहा है जिसे *ब्रेन वाशिंग प्रक्रिया* को जानने वाले आसानी से समझ सकते हैं।)

    भारत में ना मुसलमान-हिंदुओं से लड़ रहे हैं ना ही हिन्दू-मुसलमानो से लड़ रहे हैं। बल्कि दोनों एक दूसरे का साथ देकर महामारी से ज़रूर लड़ रहे हैं।

    हाँ! लेकिन यह बात ज़रूर है कि कुछ लोग 24 घण्टे हिन्दू-मुस्लिमो को लड़ा कर धर्म की राजनीति पर रोटी सेक कर सत्ता में बने रहने का अथक प्रयास ज़रूर कर रहे हैं और यह लोग कौन हैं यह बताने की ज़रूरत नहीं।

    अब आपको क्या लगता है? अल्पसंख्यको के धर्म को बुनियाद बना कर सत्ता हासिल करने का यह बड़ा ही आसान-सा जो गोल्डन फार्मूला है वह विदेशियों को नहीं पता होगा यह सिर्फ़ हमारे देश के नेताओ को पता है?

    बिल्कुल नहीँ। बल्कि यह तो राजनीति की किताबों में लिखा है। अब चूंकि मुस्लिम सिर्फ़ एक देश के वासी तो हैं नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हर नस्ल के हैं औऱ दुनिया के हर देश में हैं। तो स्वभाविक-सी बात है कि कई देशों में प्रमुख अल्पसंख्यको का धर्म इस्लाम ही है। अब या तो इसे इस्लाम की विशेषता कहें या कुछ औऱ।

    इसीलिए यह जो अल्पसंख्यको के धर्म की बुनियाद पर राजनीति की जाती है उसमें अक्सर मुस्लिम ही केन्द्र में होते हैं।

    तभी तो बताएँ इजराइल में बहुमत ना मिलने पर और सरकार ना बना पाने पर 1 साल का एक्सटेंशन और जनता का भावनात्मक सपोर्ट नेतन्याहू को फिलिस्तीन पर हमला करने के सिवा और कैसे हासिल हो सकता था?

    भला जिन देशों में औरतों के नग्न घूमने पर किसी को आपत्ति नहीं और इसे औरत की मर्ज़ी बताया जाता है उस देश में औरत की मर्ज़ी से चेहरा ढंकने पर हंगामा कर इसे रूढ़िवादिता बता कर राजनीति करने का मौका कैसे मिल पाता?

    म्यानमार हो या श्री लंका हर जगह यही है कि अल्पसंख्यको को केंद्र बनाओ बहुसंख्यको को भड़काओ और राजनीति करो।

    लेकिन इसके उलट अगर हम उन देशों की बात करें जहाँ मुस्लिम अधिक हैं और दूसरे धर्म के लोग वहाँ कम है तो आप यह पैटर्न कम ही देखेंगे। UAE, क़तर, ओमान, कुवैत, अरब, बहरीन में इस तरह की कोई बात नहीं देखी जाती वहाँ क्या दूसरे धर्मों के लोगों से बहुसंख्यक मुस्लिम लड़ रहे हैं?जबकि इन सभी देशों में मुस्लिम 70% से अधिक हैं?

    यदि आप खाड़ी देशों के अलावा देखना चाहते हैं तो एशिया में आप मलेशिया, इंडोनेशिया, ब्रुनेई देख लें। वहाँ भी यही स्थिति है।

    यह भी पर्याप्त नहीं तो फिर तुर्की, जॉर्डन, लेबनान, मोरक्को, मिस्र(इजिप्ट) देख लें। इनके अलावा भी देखना है तो अल्बानिया, सेनेगल, मालदीव, उत्तरी सायप्रस आदि और भी कई देश हैं जहाँ मुस्लिम बहुसंख्यक है और दूसरे धर्मों के लोग सदियों से सुरक्षित औऱ सम्पन्नता से रह रहे हैं और वहाँ इस तरह से कभी नहीं सुना जाता कि रोहिंग्या की तरह पूरी की पूरी किसी दूसरे धर्म की आबादी को निष्कासित कर दिया गया हो।

    लेकिन इस तरह की राजनीति और बातें हम उन देशों में ज़रूर सुनते हैं जहाँ मुस्लिम अल्पसंख्यक हों उसके बाद भी इसका दोष भी उल्टा उन्हीं पर लगा दिया जाता है।

    हालाँकि इसके दुष्परिणाम बाद में वह देश व ख़ुद भुगतते है जैसे आज इस मार्ग पर आगे चला म्यानमार बर्बाद हो कर भुगत रहा है और ख़ुद हमारा देश इस अल्पसंख्यको केंद्र बना कर की गई धर्म और नफ़रत की राजनीति में अंधा होकर इस महामारी में बहुत कुछ भुगत चुका है।

    इसलिए समय है कि बेवजह के ब्रेन वाश करने वाले इन मैसेज को भेजने वाले और धर्म की राजनीति करने वाले ऐसे लोगों को अब ठीक से पहचान लिया जाए। क्योंकि जहाँ कहीं भी कोई लड़ रहा है उनके पीछे इन लोगों की मानसिकता और तंत्र ही काम कर रहा है जिस से देश और देशवासियों सभी का नुक़सान होता है।
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    सीरिया में मुस्लिम आपस में लड़ रहे हैं? इस बारे में पहले जवाब दिया जा चुका है जिसे हमारी website पर इस लिंक के ज़रिए पढ़ा जा सकता है। 👇
    https://islamconnect.in/2021/05/27/3775/

     

  • क्या मदरसों में गैर मुस्लिमों को मारने की ट्रेनिंग दी जाती है ?

    क्या मदरसों में गैर मुस्लिमों को मारने की ट्रेनिंग दी जाती है ?

    जवाब:-मदरसों में आतंकवाद की तालीम देने का इल्ज़ाम नया नहीं है। पिछले 15-20 सालों में शायद ही कोई दिन ऐसा गुजरा हो जब नफ़रत फैलाने वाले किसी भी छोटे और बड़े लीडर ने मदरसों पर इस तरह के इल्ज़ाम न लगाए हो। कभी मदरसों को आतंकवाद का अड्डा क़रार दिया जाता है। कभी उनको दकियानूसी और कट्टरता का ताना दिया जाता है। कभी यह कहा जाता है कि भारत के मदरसे विदेशी फंड से चल रहे हैं। तो कभी यह कहा जाता है कि इन मदरसों में गैर मुस्लिमों को मारने की ट्रेनिंग दी जाती है।

    और हम इस ब्रेन वाशिंग और झूठ में इतने अंधे हो जाते हैं कि अपनी सामान्य तर्क (Common sense) और बुद्धि का भी इस्तेमाल नहीं कर पाते।

     

    ज़रा सोचिये क्या हमारी इंटेलिजेंस, सुरक्षा बल, RAW, खुफिया एजेंसी जो दुनियाँ भर की आतंकवाद और देश विरोधी गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए जानी जाती हैं वे इतनी अक्षम और अपंग हो गई हैं कि देश के अंदर ही चल रहे हज़ारों मदरसों में खुले तौर पर आतंकवाद और गैर मुस्लिमों को मारने की ट्रेनिंग चलाई जा रही है और वह उन्हें ना नज़र आ रही है और ना ही वे इस पर कोई कार्यवाही कर रहे हैं? जब कि मदरसे तो हर वक़्त जाँच पड़ताल के लिए खुले होते हैं।

    और इस से भी आश्चर्य की बात यह कि जो बात हमारी इंटेलिजेंस और सुरक्षा बल पता नहीं कर पा रही हैं वह इन व्हाट्सअप ज्ञाताओं और नेताओँ ने पता लगा ली है?

    इतनी सामान्य बुद्धि (Common sense) की बात भी लोग नफ़रत फैलाने के एजेंडे में पड़ कर ध्यान नहीं दे पाते।

     

    तो चलिए तर्क छोड़ अब आंकड़ों और तथ्यों की नज़र से भी देख लें। इस पूरे मामले का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि आज तक इस तरह का कोई भी इल्ज़ाम अदालत में या अदालत से बाहर साबित नहीं किया जा सका, ना किसी मदरसे से कोई आतंकवादी गिरफ्तार किया गया, ना किसी मदरसे से बम बनाने की फैक्ट्री पकड़ी गई। ना ही गैर मुस्लिमों को मारने की ट्रेनिंग देता कोई पकड़ा गया। यह सब जानते हैं कि मदरसे अमन शांति और अच्छे अखलाक की तालीम देते हैं। यहाँ आतंकवादी नहीं बल्कि अमन पसंद इंसान बनाया जाता है।

    साथ ही ऐसा कहना भी पूर्ण ग़लत है कि मदरसे हिंदुओं के टैक्स के पैसों से चलते हैं।

    क्योंकि अधिकांश मदरसे पूर्ण रूप से स्वचालित ही होते हैं और मुस्लिमों के दान से ही चलते हैं जिनमें ना कोई सरकार के अनुदान का दखल होता है और ना ही किसी और का। मदरसों में ज़्यादातर गरीब या आर्थिक रूप से कमज़ोर बच्चे पढ़ते हैं। इस तरह से आर्थिक रूप से पिछड़ी एक बड़ी जनसंख्या को प्राथमिक शिक्षा, भोजन और आवास प्रदान कर मदरसे देश की सरकार को एक बहुत बड़ा योगदान भी करते हैं, क्योंकि देश भर के गरीब और आर्थिक रूप से कमज़ोर बच्चों को शिक्षा, भोजन और आवास देना तो पूर्ण रूप से सरकार की ज़िम्मेदारी होता है।

     

    देश भर के छोटे बड़े सभी मदरसों ने समय-समय पर हर स्तर पर आतंकवाद का विरोध किया है। बार-बार इस इल्ज़ाम से तंग आकर 2007 में दारुल उलूम देवबंद में आतंकवाद के ख़िलाफ एक बहुत बड़ी कॉन्फ्रेंस की थी, जिसमें हर रंग और हर शक्ल के आतंकवाद की खुलकर निंदा की गई और यह ऐलान किया गया कि जिन लोगों को मदरसों के ताल्लुक से कोई शक है वह मदरसों में आए और अपनी आंखों से मदरसों की गतिविधियों को देखें। मदरसे खुली किताब की तरह है जिसे हर शख़्स पढ़ सकता है।

     

    2008 में आतंकवाद के ख़िलाफ तफ्सीली फतवा भी जारी किया था जिसको मीडिया ने बड़े पैमाने पर कवरेज दिया। इसी तरह मुसलमानों की सभी बड़े संगठनों ने अलग-अलग प्लेटफार्म से आतंकवाद और आतंकवादियों की कड़ी निंदा की और इस्लाम के नाम पर होने वाली हर प्रकार की आतंकवादी घटनाओं को इस्लाम के ख़िलाफ बताया और जैसे पहले भी कहा गया इन में से कोई भी मदरसे कभी भी किसी ग़लत गतिविधि में संलिप्त नहीं पाया गया।

     

    जबकि इस के उलट NIA कि वेबसाइट (Website) पर अगर आतंक सम्बंधित मामलों के लिए मोस्ट वांटेड की लिस्ट सेक्शन है उस पर नज़र दौड़ाई जाए तो उसमें मुस्लिम कम बल्कि दूसरे धर्म और उनसे जुड़े संगठनों से जुड़े लोग अधिक हैं जिनमें पूर्व राजदूत माधुरी गुप्ता, आमनंदलाल उर्फ नंदू महाराज और इन जैसे प्रमुख हैं।

     

    इन सभी के बावजूद नफ़रत फैलाने वालों की सोच में कोई तब्दीली नहीं आ सकी। ‌जो कि स्वभाविक है क्योंकि इसी में इनके राजनीतिक हित छुपे हुए हैं, लेकिन आम जनता को तो अब तर्क और बुध्दि से काम लेना चाहिए और इस तरह के बहकावे में नहीं आना चाहिए।

  • औरतों को परदा क्यों? मर्दो को क्यों नहीं?

    औरतों को परदा क्यों? मर्दो को क्यों नहीं?

    जवाब:-इस्लाम की विशेषता यह है कि यह ना केवल महिला सुरक्षा-मुक्त, व्यभिचार-मुक्त, अश्लीलता-मुक्त, बलात्कार-मुक्त समाज बनाने की बात करता है बल्कि वह कैसे बनेगा उसकी पूरी दिशा निर्देश (Guideline) देता है।

     

    इसी गाइडलाइन के अंतर्गत जहाँ एक तरफ़ सख्त कानूनी सज़ा का प्रावधान हैं तो इसकी रोकथाम के लिए दूसरी तरफ़ विवरण आता है हिजाब का। जिसके अंतर्गत ना केवल पहनावा आता है बल्कि व्यवहार और आचरण की पूरी व्याख्या मौजूद है।

     

    यह एक भ्रम पूर्ण एवं असत्य है कि इस्लाम हिजाब हेतु सिर्फ़ महिलाओं को ही आदेश देता है। जबकि क़ुरआन में पुरूषों को भी हिजाब का आदेश और पूर्ण दिशा निर्देश है।

    इस संदर्भ में क़ुरआन में जब बात कही गई, तो हम पाते है कि पहले पुरुषों को निर्देश दिया गया है और फिर औरतों को।

    अल्लाह तआला ने क़ुरआन में फरमाया:-

    (ऐ रसूल) ईमानदारों से कह दो कि अपनी नज़रों को नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें यही उनके वास्ते ज़्यादा सफ़ाई की बात है ये लोग जो कुछ करते हैं ख़ुदा उससे यक़ीनन ख़ूब वाक़िफ है।

    (क़ुरआन: 24:30)

     

    अतः इस्लामी शिक्षा में प्रत्येक मुसलमान को यह निर्देश दिया गया है कि जब वह किसी स्त्री को देखे और सम्भवतः उसके मन में कोई बुरा विचार आ जाए अतः उसे चाहिए कि वह तुरंत अपनी नज़रे नीची कर ले।

    इसके बाद फिर अगली आयत में क़ुरआन में महिलाओं को दिए निर्देश का ज़िक्र किया है।

    अक्सर काले वस्त्र को हिजाब समझा जाता है या काले बुर्के को महिलाओं पर अनिवार्य समझा जाता है। जबकि हिजाब यही नहीं हैं, हिजाब में वस्त्रों के अंतर्गत किस तरह के वस्त्र पहनना चाहिए उसकी गाइडलाइन दी गयी है और जो कपड़े उन गाइडलाइन पर पूरे उतरते हैं उन्हें हिजाब कहा जाता है। फिर चाहे वे कैसे भी हों।

    स्पष्ट हो कि यह गाइडलाइन भी सिर्फ़ महिलाओं के लिए ही नहीं बल्कि पुरषों के लिए भी समान रूप से है।

    प्रमुख रूप से कपड़े के 6 मापदंड है जिन्हें हिजाब की कसौटी कहा जाता है। अगर कोई वस्र इन 6 कसौटियों पर पूरा उतरता है तो उसे हिजाब कहा जायेगा ।

     

    वह 6 कसौटी हैं :-

    1. शरीर का उतना भाग पूरा ढकना जितना कि हुक्म है।
    2. कपड़े इतने तंग (Tight) ना हो कि उनसे अंग प्रदर्शन हो।
    3. वस्त्र पारदर्शी ना हों।
    4. वस्त्र इतने चटक या भड़काऊ ना हो जो विपरित लिंग को उत्तेजित करे।
    5. पुरुष और स्त्रियों के लिबास भिन्न प्रकार के हों।
    6. वस्त्र ऐसे ना हो जिसमें दूसरे धर्मो के चिन्ह वगैरह बने हो या दूसरे धर्मो की विशेष पहचान जुड़ी हो।

    विचार करने योग्य बात है कि पुरुषों और स्त्रियों दोनों के लिए यह 6 कसौटी एक जैसी ही है और दोनों को समान रूप से अनुपालन (Compliance) करना होता है।

     

    सिर्फ़ पहली शर्त की व्याख्या में भिन्नता यह है कि जहाँ पुरुषों का सतर (शरीर का वह अनिवार्य हिस्सा जिसे ढकना आवश्यक होता है) वह नाभी से लेकर घुटनों तक है।

     

    जबकि महिलाओं का सतर अधिकांश पूर्ण काया है।

    अतः यह स्पष्ट हुआ कि इस्लाम में हिजाब सिर्फ़ महिलाओं के लिये ही नहीं बल्कि महिला-पुरुष दोनों के लिए है और आदर्श समाज बनाना दोनों की ज़िम्मेदारी है।

    अब यह सवाल ज़रुर उठ सकता है कि इस्लाम में हिजाब दोनों के लिए तो है परन्तु पुरुषों और महिलाओं का सतर अलग-अलग क्यों है?

    तो स्वभाविक-सी बात है कि पुरूष और महिलाओं की शारीरिक बनावट भिन्न है, दोनों के अंग भिन्न-भिन्न है, दोनों के शरीर की आकर्षण क्षमता अलग है।

    और दोनों की मनोविज्ञान (Psychology) और एक दूसरे के शरीर के प्रति आकर्षण-कारक (Attraction factor) अलग-अलग हैं।

    इसीलिए दोनों का सतर अलग होना भी तार्किक (लॉजिकल) और न्यायपूर्ण है।

     

    इसके प्रमाण स्वरूप एक नहीं बल्कि सैकड़ों शोध, सर्वे और तथ्य, देश और दुनियाँ दोनों स्तर पर मौजूद हैं। ज़रा-सा सर्च करने पर आपको यह जानकारी मिल जाएगी। यह बात तो वैज्ञानिक रूप से भी सिद्ध हो चुकी है ।

     

    यदि आप इन शोध और तथ्यों को ढूँढने में असमर्थ हैं तो हमें सूचित करें आप को उपलब्ध करा दिए जाएंगे।

     

  • नफ़रत फ़ैलाने वाली एक पोस्ट का जवाब दीजिए ? (#1 )

    नफ़रत फ़ैलाने वाली एक पोस्ट का जवाब दीजिए ? (#1 )

    जवाब :-ब्रेन वाशिंग के ज़रिए कैसे आपके दिलों में अपने मुस्लिम मित्रों के लिये नफ़रत भरकर आप से राजनीतिक लाभ उठाया जाता है यह पोस्ट उसका शानदार उदाहरण है।

     

    आइए दिमाग़ खुला रखकर इस पोस्ट पर ध्यान दें और इसकी चतुराई देखें।

     

    पोस्ट शुरू होती है यहाँ से:-

     

    *मेरे भी मुस्लिम मित्र हैं*

    *मेरे भी क्लास में मुस्लिम पढ़े हैं*

    *मेरे भी आफिस में मुस्लिम काम करते हैं*

    *मैं जहाँ से सामान लेता हूँ वहाँ से मुस्लिम भी सामान लेते हैं*

    *मैं जहाँ रहता हूँ वहाँ भी मुस्लिम रहते है*

     

    इन सभी बातों में आश्चर्य की क्या बात है? यह तो बहुत ही सामान्य-सी बात है तब फिर यहाँ से शुरू करने की क्या ज़रूरत पड़ी?

     

    एक सामान्य-सी बात से शुरू करके जो सभी पर लागू होती है यानी विषय समायोजन (Theme setting), द्वारा आपका इस पोस्ट से जुड़ाव बनाया जा रहा है ताकि आप इससे जुड़ने लगें और आपके ध्यान में आपके मित्र और दूसरे जान-पहचान के मुस्लिम आ जाएँ जिनके ख़िलाफ आपको भड़काया जाना है।

     

    अब आगे बढ़ें:-

    वे कहते है, हम जुमे की नमाज पढ़ेंगे, सड़को पर मैंने भी कहा कोई बात नहीं, संविधान ने सबको धार्मिक आजादी का हक़ दिया है।

     

    अब जुड़ाव जोड़ने के बाद, अपना षड्यंत्र चालू किया गया है। बड़ी ही चालाकी से आपका ध्यान चयनात्मक दृष्टिकोण (Selective approach) से सिर्फ़ मुस्लिमों पर लगा कर कैसे नफ़रत भरी जा रही है वह देखिये।

     

    अरे भाई नमाज़ अदा की जाती है मस्जिद में, जैसे पूजा आरती होती है मंदिरों में। लेकिन मंगलवार, शनिवार आदि विशेष अवसरों पर जब लोग अधिक हो जाते हैं तो मन्दिर फुल हो जाने पर लोगों का जमावड़ा सड़कों तक हो जाता है और इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होती । आप यहाँ जुमे का तो ज़िक्र कर रहे हैं लेकिन इन सब को छुपा रहे हैं और इस बात को कुछ अलग ही दिखाने का निर्लज्ज कुप्रयास कर रहे हैं।

     

    आगे पढ़ते हैं:-

    वे कहते है हम मांस खायेंगे, अब वह बकरे का हो या किसी और का

    मैंने कहा कोई बात नहीं, संविधान ने सबको हक़ दिया है कुछ भी खाने पीने का।

     

    अब मांसाहार के ज़रिए आपके मन में मुस्लिमों के लिये नफ़रत का प्रयास के लिए एक बार फिर *चयनात्मक दृष्टिकोण (Selective approach)* का प्रयोग जारी रखा गया है । भारत में 72% जनसंख्या मांसाहारी है। जबकि मुस्लिम मात्र 15% हैं। अतः यह कुप्रयास और इसका इरादा उजागर है ।

     

    और आगे पढ़ें:-

    अब मैंने कहा, “कॉमन सिविल कोड” आना चाहिए। तो वह बोला नहीं, ये इस्लाम के ख़िलाफ है।

     

    यह देखिये चयनात्मक दृष्टिकोण (Selective approach) का प्रयोग। देश में सिर्फ़ मुस्लिमों के लिए ही पर्सनल लॉ बोर्ड नहीं है। सिख हथियार रखते है, आदिवासी धनुष और शराब रखते है, जैन / नागा-साधू बिना वस्त्र के रहते है। कुछ के यहाँ जीवित समाधि लेने की प्रथा है ये सब अपने धर्म के व्यक्तिगत कानून (Personal law) के कारण ऐसा कर सकते है। जबकि दूसरे धर्म के लोगों के लिए इस पर सजा का प्रावधान है। इसी तरह शादी, जन्म-मृत्यु पर जो भी रीति-रिवाज हैं वह संविधान द्वारा दिए गए पर्सनल लॉ के कारण ही है। लेकिन यह सब छुपा कर सिर्फ़ मुस्लिमों का चित्रण, अपना प्रोपेगेंडा करने के लिए किया जा रहा है।

     

    और आगे पढ़ें:-

    *मैंने कहा, “जनसंख्या रोकथाम के लिए कानून बनना चाहिए।” तो वह बोला, ये इस्लाम ले ख़िलाफ है।*

     

    जनसंख्या रोकथाम कानून कौन से धर्म के ख़िलाफ नहीं है ज़रा यह बताने का कष्ट करे? कौन-सा धर्म कहता है कि जनसंख्या रोकथाम करो? यह तो सिर्फ़ एक विचार है जो सिर्फ़ प्रचार प्रसार ले चूका है। चीन भी जनसंख्या नियंत्रण कानून रद्द करने का फ़ैसला ले चूका है। लेकिन इसके लिए आप सिर्फ़ इस्लाम के ख़िलाफ का प्रोपेगेंडा क्यों कर रहे हैं ? बात जब धर्म की करें तो विभिन्न धर्मों के आधार पर ही करें। एक गैर धार्मिक मुद्दे में विशेष तौर से सिर्फ़ इस्लाम धर्म को बीच में लाने की क्या मंशा है?

     

     

    *मैंने कहा, “तलाक़ सिर्फ़ कोर्ट में हो।” तो वह बोला, ये क़ुरआन का अपमान है।*

     

    भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार हिन्दू समाज में कुल 11 लाख तलाक़ हुए और 23 लाख महिलाये बिना तलाक़ के ही अलग रह रही है। इसका मतलब कोर्ट से ज़्यादा तलाक़ तो समाज में होते है। (वास्तविक आंकड़े सरकारी आंकड़ों से ज़्यादा है)

     

    मैंने कहा, “बहुपत्नी प्रथा बंद हो।” तो वह बोला, ये इस्लाम के ख़िलाफ है।

     

    कमाल की बात है आप को इस्लाम और मुस्लिमों के अंदुरूनी मामले की इतनी चिंता क्यो है? शादी के बिना कई स्त्रियों से कोई सम्बन्ध बनाये तो आपको चिंता नहीं। कानून इस बात की इजाज़त दे कि शादी के बाद भी किसी और से अपनी मर्ज़ी से विवाहेत्तर सम्बन्ध बनाये तो आपको कोई आपत्ति नहीं। लिव-इन में रहे आपको कोई आपत्ति नहीं। बिना तलाक दिए बीवी छोड़ दे आपको दिक्कत नहीं।

     

    लेकिन अगर मुस्लिम बहु विवाह करे तो दिक्कत है? एक बात और ग़ौर करें कि अभी तक इस मैसेज में आपको भावनात्मक जोड़ने के बाद आपके मतलब की एक बात भी नहीं की जा रही जैसे, गिरती अर्थव्यवस्था, महंगाई, बेरोजगारी, पेट्रोल-डीज़ल के दाम। बस सारी बातें मुस्लिमों और उनके अंदरूनी मामले पर ही। कमाल के समाज सुधारक / हितैषी है ये आपके? समाज सुधारक है या ध्यान भटकाऊ? यह आपको सोचना है।

     

     

    अब इस मैसेज में आगे बढ़ें और देखें *पाखंड (Hypocrisy)* का प्रयोग:-

     

    *मैंने बोला, “बांग्लादेशियों को वापस भेजना चाहिए।” वह बोला, वे हमारे मुस्लिम भाई है। मैंने कहा, “रोहिंग्या को वापस भेजो।” वह बोला, वे हमारे भाई है।*

     

    आस पड़ोस के जितने देश है उनमें अगर कहीं हिंदुओं पर कोई प्रताड़ना की ख़बर भी मिल जाये तो ये लोग उनके लिए खूब आवाज़ उठाते हैं। उन्हें अपना भाई बताकर उन्हें भारत में लाकर भारत की नागरिकता देने के किये ही CAA कानून लाया गया है । अच्छी बात है करना भी चाहिए।

     

    लेकिन ठीक इसी तरह अगर कोई मुस्लिम, किसी देश में हो रहे मुस्लिमों पर अत्याचार और उनके घोषित निष्कासन और प्रताड़ना पर ज़रा-सी चिंता भी अगर ज़ाहिर कर दे तो एकदम से दृष्टिकोण बदल जाता है उसे देशद्रोही और पता नहीं क्या-क्या कह कर देश का दुश्मन ही साबित कर दिया जाता है। अतः यह पाखंड क्यों ? *यह दोहरा मापदंड क्यों?*

     

    और आगे पढ़ें –

    *मैंने बोला, “राम मंदिर बनना चाहिए।” वह बोला, कहीं भी बना लो पर अयोध्या में नहीं..वहाँ बाबरी मस्जिद बनेगी।*

     

    सुप्रीम कोर्ट में सदियों से बोला जा रहा प्रोपेगेंडा, झूठ साबित हुआ। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इस बात के कोई सबूत नहीं कि मंदिर गिरा कर मस्जिद बनाई गई हो। उसके बाद भी फ़ैसला राम मंदिर पक्ष में आया। इतना संवेदनशील मामला होने पर भी देश भर के मुस्लिमों ने उसे आत्मसात किया और आज वहाँ मंदिर बन रहा है।

     

    इस बात पर मुस्लिमों की सराहना करने और सद्भावना बनाने की बजाय यह लोग नई लिस्ट निकाल कर अगली कई सदियों तक देश को हिन्दू-मुस्लिमों मामले में उलझाए रखना चाहते हैं।

     

    *मैंने कहा, “मदरसे बंद हो, सबको समान शिक्षा मिले।” वह बोला, ये इस्लाम का अपमान है।*

     

    आप पहले तो यह बताएँ की आप यह क्यों कह रहे हैं कि मदरसे बन्द हो ?🤔 आप की मंशा शिक्षा देने की है या मदरसे बन्द करने की? सबको शिक्षा देने के लिए मदरसे बन्द करने की क्या ज़रूरत ? क्या तर्क है या मूर्खता। सबको शिक्षा दें शिक्षा का स्तर ऊंचा करें, मदरसे तो ख़ुद स्वचलित होते हैं। उनको बीच में लाकर अपनी ज़िम्मेदारी से क्यों भाग रहे हैं?

     

    इतना *ब्रेन-वाश* करने बाद अब आप आगे देखेंगे मैसेज का असली एजेंडा –

     

    *मैंने बोला, “मोदी ने ये अच्छा किया।” वह बोला, गुजरात में मुसलमानों के साथ ग़लत हुआ।*

     

    तो कुल मिलाकर बात यह है कि मोदी समर्थन। जो अब खुल के सामने आ जाता है। लेकिन पढ़ने वाला ये समझ नहीं पाता ।

     

    और आगे देखें –

    *मैंने बोला, “बंगाल में हिंदू के साथ ग़लत हो रहा है।” वह बोला, दीदी ने बहुत विकास किया है।*

     

    अब एजेंडा खुल के सामने आ गया बंगाल चुनाव और मोदी समर्थन-

     

    अब इसमें भी 2 मुख्य बिंदुओं पर ग़ौर करें-

     

    १. जितनी भी विरोधी पार्टी है उन्हें मुस्लिम समर्थक बता दिया जाता है।

     

    _”बंगाल के मुसलमान मानव विकास सूचकांक में किसी भी अल्पसंख्यक की तुलना में सबसे खराब हालत में है!”_अरे भाई इन सब पार्टियों ने कौन से मुस्लिमों का भला कर दिया? जो वे ममता की तारीफ करेंगे।

     

    २. जिस तरह मोदी जी 3 बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने वैसे ममता बैनर्जी भी बंगाल की मुख्यमंत्री बनी।

     

    पिछ्ले बिंदु में आपने अपने ही शब्दो में लिखा जिसके अनुसार आप यह कह रहे हैं कि मोदी ने अच्छा किया तो किसी को यह नहीं कहना चाहिए कि गुजरात में मुस्लिमों के साथ ग़लत हुआ। लेकिन अगर कोई यह कहे कि ममता ने बंगाल में अच्छा किया तो आप यह ज़रूर कहेंगे कि बंगाल में हिंदुओं के साथ ग़लत हुआ। वाह भाई कमाल की *हिपोक्रेसी (hypocrisy)* है, ख़ुद अपने शब्दों में एक ही मैसेज में सारी सीमाएँ पार कर रहे हो ।

     

    इसके बाद अंत में फिर एक-दो इधर-उधर की बात करके असली एजेंडे को उजागर किये बिना आपको मुस्लिमों की नफ़रत में लगा कर मैसेज का समापन किया जाता है।

     

    *मैंने बोला, “सारे आतंकवादियों को गोली मार देनी चाहिए। “वह बोला, सुधरने का एक मौका दो।*

    यह एकदम मनगढ़ंत बात कही गई है।

     

    मैंने बोला, “कश्मीरी पंडितों को उनका घर मिलना चाहिए।”

    यह बात आप उस काल्पनिक मुस्लिम से क्यों कह रहे हैं ? यह बात तो आपको सरकार से कहनी चाहिए । अब तो पुरा अधिकार उनका है और यह उनका वादा भी था। तो अब क्या हुआ? क्या वे उन्हें वापस भेजना नहीं चाहते या वे अब वापस जाना ही नहीं चाहते??

     

    *भाई. . .सारे मुसलमान एक ही होते है। जहाँ कम है, वहाँ सॉफ्ट है। जहाँ ज़्यादा है, वहाँ रोज़ हिन्दू मर रहे है।*

     

    *जहाँ कम है, वहाँ उन्हें आपसे रोजगार मिलता है..इसलिए आपके दोस्त है। जहाँ कम है, वहाँ तुम्हारे भाई है।*

    *पर जहाँ ज़्यादा है…..वहाँ आप सोच भी नहीं सकते।*

     

    क्यों नहीं सोच सकते ? सोचो भाई UAE, कतर, ओमान, बहरीन, सऊदी, खाड़ी के 22 देश, उसके बाद मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया और भी कई देश जहाँ मुस्लिमों की संख्या हिंदुओं से कहीं ज़्यादा है ! और रोजगार भी हिंदुओं को मुस्लिमों से ही मिल रहा है क्या वहाँ हिंदू शांति और सुरक्षा से नहीं रह रहे? अगर यह प्रोपेगेंडा सच होता तो हर साल कई गैर मुस्लिम वहाँ क्यों बस रहे है? सत्य तो यह है कि यह बिलकुल झूठ है। एक नहीं अनेक देश हैं जहाँ मुस्लिम बहुसंख्यक हैं और हिन्दू वहाँ शांति से रह रहे हैं।

     

    इसके उलट यह ज़रूर है कि ऐसी भी जगह हैं जहाँ मुस्लिम कम है वहाँ उनके साथ बहुत अत्याचार हो रहा है जैसे रोहिंग्या का ज़िक्र तो इस मैसेज में ही हो चुका लेकिन इसके लिए धर्म नहीं बल्कि नफ़रत फैलाने वाले ही ज़िम्मेदार होते हैं ।

     

    दरअसल यह नफ़रत फैलाने वाले सभी एक जैसे ही होते हैं जहाँ ज़्यादा हो जाते हैं उस जगह रक्तपात और गृह- युद्ध की नौबत ला देते हैं और जहाँ कम होते हैं वहाँ ऐसे ही झूठे मैसेज लिख लोगों को भड़काने का प्रयास करते रहते हैं ।

     

    अब सोचना आपको है। अंधकार में न रहें। *ब्रेन-वाश* से बचें!

  • क्या कुरआन अल्लाह की किताब है?

    क्या कुरआन अल्लाह की किताब है?

    जवाब:- इस बात की 1 नहीं बल्कि अनगिनत दलीलें है कि यह कलाम किसी इंसान का हो ही नहीं सकता बल्कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त जो इस कायनात को बनानेवाला का ही है औऱ कोई भी इंसान क़ुरआन को सच्चे मन से पढ़ कर यह बात जान सकता है।

    सभी दलीलों का ज़िक्र करना तो किसी के बस की बात नहीं, इसलिए यहाँ चन्द बातें बताई जा रही हैं :-

     

    🍁1. ख़ुद क़ुरआन का अंदाज़ यह है कि यह अंधविश्वास की बात नहीं करता बल्कि कई जगहों पर पढ़ने वाले को आमंत्रित करता है कि वह ख़ुद बुद्धि का प्रयोग करें और ख़ुद जांच कर ले कि क्या यह रब का कलाम है?

     

    तो क्या ये लोग क़ुरआन में भी ग़ौर नहीं करते और (ये नहीं ख़्याल करते कि) अगर ख़ुदा के सिवा किसी और की तरफ़ से (आया) होता तो ज़रूर उसमें बड़ा इख्तेलाफ़ पाते।

    (सुरः निसा: 82)

     

    क़ुरआन में किसी तरह का विरोधाभास नहीं है कि कहीं कोई बात कह दी तो कहीं उसके उलट बात कह दी, कहीं यह उल्लेख हो कि ईश्वर 1 है तो कहीं यह कह दिया कि 1 नहीं बहुत है। जो कि मानवी त्रुटि होती है या तब होता है जब 1 कि बजाय कई लेखक हों।

     

    🍁2. आप हज़रत मुहम्मद (स॰अ॰व॰) का उम्मी होना।

     

    पूरा क़ुरआन विस्मयकारी और आश्चर्यचकित कर देने वाली निशानियों से भरा हुआ है, इसमें दुनियाँ के कई Field कि जानकारी कि निशानियाँ मौजूद हैं फिर चाहे वह Archaeology, Astronomy, Embryology, Geology हो या Cosmology (कॉस्मोलॉजी) हो क़ुरआन में 1400 साल पहले ऐसी चीज़ों का ज़िक्र कर दिया गया जिसको इंसान ने वर्तमान में ही जाना है। जैसे सूरज का अपने दायरे में चक्कर लगाना, बिग बैंग, बच्चे का पेट में प्रारम्भिक विकास और भी बहुत कुछ।

     

    किसी भी व्यक्ति के लिए यह कैसे सम्भव है कि वह अपने समय से आगे और पीछे दोनों की इतनी विस्मयकारी जानकारी दे-दे जब कि वह ख़ुद पढ़-लिख नहीं सकता हो?

    यहाँ तक कि Encyclopedia Britannica भी इस बात की गवाही देता है कि जितने भी तारीखी हवाले मिलते हैं सब से यही साबित होता है कि आप पैगम्बर पढ़ना लिखना नहीं जानते थे।

     

    🍁3.ख़ुद क़ुरआन करीम का चैलेंज-

    क़ुरआन करीम ऐसे ज़माने में उतरा है जब अरबी ज़बान में ख़ूब महारत हासिल कि जाती थी। अरबी ज़बान में फसाहत (वाक्पटुता) व बलाग़त / Eloquent and Atticism पर अरब लोग एक दूसरे को चैलेंज करते थे, क़ुरआन भी फसाहत व बलाग़त / Eloquent and Atticism से भरा हुआ था, मक्का के मुशरेकीन / बहुदेववादी ने क़ुरआन को जब नबी की गढ़ी हुई किताब कहा और कहा के ऐसी फसाहत व बलाग़त / Eloquent and Atticism के साथ तो हम भी एक किताब गढ़ लेंगे तो क़ुरआन में अल्लाह ने मुशरेकीन को चैलेंज किया कि अगर तुमको अपनी फसाहत व बलाग़त / Eloquent and Atticism पर इतना फख्र ओर गर्व है तो सब आपस में मिलकर क़ुरआन के समान कोई दूसरी किताब बना लाओ:

     

    आप कह दें: यदि सब मनुष्य तथा जिन्न इस पर एकत्र हो जायें कि इस क़ुरआन के समान ले आयेंगे, तो इसके समान नहीं ला सकेंगे, चाहे वे एक-दूसरे के मददगार (सहायक) ही क्यों न हो जायें!

    (सूरह बनी इसराइल: 88)

     

    जब कोई आगे ना आया तो क़ुरआन ने उन लोगों के लिए इसे और आसान करते हुए सिर्फ़ दस सुर: बनाने का चैलेंज किया।

     

    क्या वह कहते हैं कि उसने (मुहम्मद ने) इस (क़ुरआन) को स्वयं बना लिया है? आप कह दें कि इसी के समान दस सूरतें बना लाओ और अल्लाह के सिवा, जिसे हो सके, बुला हो, यदि तुम लोग सच्चे हो।

    (सुरः हुद: 13)

     

    जब यह भी ना हो सका तो अल्लाह ने इसे इतना आसान करते हुए कहा कि अगर तुम अपने दावे में सच्चे हो तो इस जैसी कोई 1 ही सुरः बना लाओ।

     

    और अगर तुम लोग इस कलाम से जो हमने अपने बन्दे (मोहम्मद) पर नाज़िल किया है शक में पड़े हो पस अगर तुम सच्चे हो तो तुम (भी) एक सूरा बना लाओ और खुदा के सिवा जो भी तुम्हारे मददगार हों उनको भी बुला लो।

    (सुरः अल बकरह: 23)

     

    इतनी आसानी देने के बावजूद उस ज़माने से लेकर आज तक कोई इस चैलेंज को पूरा नहीं कर पाया है।

     

    और इसी बारे में अल्लाह ने फ़रमाया क़ुरआन में-

     

    फिर यदि वे उत्तर न दें, तो विश्वास कर लो कि उसे (क़ुरआन को) अल्लाह के ज्ञान के साथ ही उतारा गया है और ये कि कोई वंदनीय (पूज्य) नहीं है, परन्तु वही। तो क्या तुम मुस्लिम होते हो?

    (सुरः हुद: 14)

     

    🍁4. क़ुरआन करीम अपनी निशानियों पर ग़ौर करने की दावत देता है, बेशुमार साइंटिस्ट, बुद्धिजीवी और अक्लमंद इन निशानियों पर ग़ौर कर मुस्लिम हुए और यह मानने पर मजबूर हुए की कोई शक नहीं कि यह किताब अल्लाह का कलाम है।

     

    🍁5. इतिहास में तमाम इल्ज़ाम लगाने वाले आज तक इस बात का कोई ठोस जवाब नहीं दे पाए कि अगर क़ुरआन अल्लाह का कलाम नहीं है तो इसमें कही गई बातें किसने कही है।

    इसी संदर्भ में इस्लाम से दुश्मनी के लिए जाने जानी वाली कैथोलिक चर्च ने भी नया केथॉलीक इनसाइक्लोपीडिया / New Catholic encyclopedia में क़ुरआन पर बहस करते हुए यह माना कि:

     

    गुज़रे ज़माने में अलग-अलग ज़माने में क़ुरआन करीम के मसदर व मंबा (कहाँ से इस में बातें ली गई हैं) के मुताल्लिक़ बहुत से नज़रिए और थ्योरी पेश की गई, लेकिन आज किसी सही अक्ल रखने वाले इन्सान के लिए उन पुराने नजरियों में से किसी भी नजरिए को मान लेना मुमकिन नहीं है।

     

    यानी कैथोलिक चर्च को भी यह मानने पर मजबूर होना पड़ा कि क़ुरआन को इंसानी दिमाग़ की पैदावार बताने के लिए किसी के पास कोई आधार नहीं है और इस दावे में पेश किए जाने वाला कोई भी नज़रिया काबिल ए कबुल नहीं है।

     

    इस तरह क़ुरआन अपने ईश्वरीय ग्रन्थ होने कि प्रमाणिकता के साथ आज 1400 साल बाद भी चैलेंज करता है।

  • सीरिया में मुस्लिम-मुस्लिमों को ही मार रहै हैं?

    सीरिया में मुस्लिम-मुस्लिमों को ही मार रहै हैं?

    जवाब:- कुछ वर्षों पहले तक जो यह झूठा प्रचार (प्रोपेगेंडा) करते थे कि सभी आतंकी संगठन मुस्लिम ही होते हैं? उन्होंने अपने इस झूठ की निरंतर पोल खुलते देख अब 5% का रियायत (Concession) कर दिया है और अब वे 95% बताने लगे है।

     

    लेकिन आज भी झूठे ही साबित हो रहे हैं क्योंकि यह 100% की तरह 95% भी पूर्ण झूठ एवं निराधार है। इसको जानने के लिये ज़्यादा मेहनत करने की भी आवश्यकता नहीं बल्कि ख़ुद अपने देश भारत की NIA (National Intelligence Agency) की लिस्ट अध्ययन कर लेना ही काफी है। NIA द्वारा बैन किये गए आतंकी संगठनों पर नज़र डाले तो 4 दर्जन में 3 दर्जन संगठन का किसी भी तरह से कोई रिश्ता मुस्लिमों से नहीं है। बचे कुछ उर्दू नाम वाले संगठन तो इसमें से कुछ के तो अस्तित्व पर सवाल पूर्व पुलिस / रक्षा अधिकारियो ने ही उठाया और उनको महज सुरक्षा एजेंसियों कि कल्पना करार दिया। जबकि कुछ संगठनों पर कोर्ट में आज तक इलज़ाम साबित नहीं हुआ।

    अगर हम भारत में आतंकी हमलो का विश्लेषण करें तो जिन आतंकी हमलो के नाम पर मुस्लिम समाज के युवाओं को फंसाया गया था, वे सब बाइज्ज़त बरी हुए, मुख्य रूप से अक्षरधाम और संसद हमले में जिन मुस्लिमों को फंसाया गया वे सब बरी हो गए। मतलब असल हमलावर कोई और थे जिनको बचा लिया गया। लेकिन जब #अभिनव भारत जैसे असली आतंकियों को पकड़ा तो भारत में हमले बन्द हो गए।

     

    सीरिया में मुस्लिम-मुस्लिमों को मार रहे है?

    दुनियाँ में मुस्लिमों को आतंकी बता कर, फर्जी आतंकी संगठनों के नाम गढ़ कर ख़ुद मुस्लिमों पर आतंकी हमले करना कोई नई बात नहीं है।

    कुछ उदाहरण देखना हो तो अफ़ग़ानिस्तान ज़्यादा पुराना नहीं है। जिस आतंकी संगठन तालिबान को खत्म करने के नाम पर अमेरिका ने पूरे अफ़ग़ानिस्तान को तबाह कर दिया आज वह सरकार बनाने के लिए उसी तालिबान से वार्ताएँ कर रही है। तो क्या अमेरिका का अब हृदय परिवर्तन हो गया है या तालिबान कभी आतंकी संगठन नहीं था?

     

    ऐसे अनेक उदाहरण है मनगढ़ंत मुस्लिम नामो के संगठन या तो गढ़ लिये जाते हैं या अपनी आतंकी करतूतों को मुस्लिमों की आड़ में छुपा दिया जाता है। ताकि मासूमों पर हो रहे अत्याचार और आतंकी हमलों पर दुनियाँ आवाज़ ना उठाये।

    ऐसे ही ISIS के बारे में देखें तो दुनियाँ के कई राजनीतिक, सामरिक विश्लेषको ने मजबूत दलील के आधार पर ये साबित किया है कि ISIS मुस्लिम संगठन नहीं है, बल्कि इज़राइली ख़ुफ़िया एजेंसी #मोसाद के द्वारा बनाया गया भाड़े के गैर मुस्लिम अपराधियों का समूह है। जिसका उद्देश्य मुस्लिम देशों पर हमला कर उनको कमज़ोर कर तेल के कुंओ पर कब्जा करना है और #New World Order की नीव रखना है।

     

    जिन्हें इस पर विश्वास न हो वह ख़ुद Israel and state sponsored terrorism (इजरायल और राज्य प्रायोजित आतंकवाद) के बारे में ख़ुद सर्च कर पढ़ ले और उनके द्वारा अंजाम दी गई आतंकी घटनाओ के बारे में जान ले।

    इज़राइल रक्षा बल (Israel defense force) के चीफ गादी ईज़ानकोट (Gadi Eizenkot) ने ख़ुद कबूल किया था कि उन्होंने सीरिया में विद्रोहियों और आतंकियों को हथियार उपलब्ध कराए थे।

     

    अगर इतना अध्ययन ना भी करें तो कुछ सामान्य बुद्धि (कॉमन सेंस) से ही यह बात पता चल जाती है जैसे :-

     

    अगर ISIS मुस्लिम संगठन है और उसे इस्लामिक कंट्री बनाना था, तो आज कि तारीख में सबसे आसान काम है किसी मुस्लिम देश का हीरो बनना, सिर्फ़ अमेरिका और इज़राइल को दबानाजबकि ISIS कि गतिविधियों का केन्द्र देखे तो वह सीरिया, इराक, तुर्की, फिलिस्तीन के बीच है और ये सब इस्लामिक मुल्क है और वह इन्हें नुकसान पहुंचाने में लगा है।

    फिलिस्तीन और इज़राइल संघर्ष कई सालों से चल रहा हे।

    अगर ISIS इस्लामिक कंट्री बनाना चाहता था, तो वह इज़राइल पर हमला करता।

     

    # लेकिन इस संगठन ने इस्लामिक मुल्कों पर ही हमला किया।

     

    # इस संगठन के पास ऐसे हथियार थे, जो उन इस्लामिक देशों के पास भी नहीं हैं। वे कहाँ से आये?

     

    हथियार विश्व में कितने देश सप्लाय करते है..?

     

    # इस संगठन के पास इतनी दौलत कहाँ से आ गई जो ऐसे हथियार ले रहे हैं जिनको तो कई देश अफ़्फोर्ड ही नहीं कर सकते?

     

    ईरान जैसे देशों से तेल खरीदने पर बैन लगाया जा रहा है जबकि ISIS के कब्जे में जो तेल के कुँए थे उनसे लगातार तेल खरीदा गया। उस पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया। क्यों..? और अमेरिका और यूरोप ने उससे तेल क्यों खरीदा?

     

    # सीरिया के साथ रूस और तुर्की जैसी ताक़त ISIS के ख़िलाफ लड़ रही। लेकिन ISIS के ना तो हथियार खत्म हो रहे थे, ना ही संसाधन।

     

    # ISIS इतना ताक़तवर संगठन कैसे बना कब बना….? की वह कई देशों से लड़ रहा है? और खुली भौगोलिक जानकारी होने और अमेरिका, इजराइल की पास अनंत शक्ति होने के बावजूद यह उसे खत्म क्यों नहीं कर रहे हैं? जबकि इनके तो पूरे के पूरे देश को सिर्फ़ 1 आतंकी ढूँढने के लिए ही खत्म करने के रिकॉर्ड हैं।

     

    और भी बहुत कुछ। अतः अब आपको अंदाजा हो गया होगा कि मुस्लिमों को आतंकी बता कर विश्व भर में ख़ुद आतंकी हमलों को अंजाम देने वाले आतंकी कौन है? फिर चाहे वह देश में हो राष्ट्रीय स्तर पर या फिर विश्व में हो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर।

     

  • क़ुरआन क्या है?

    क़ुरआन क्या है?

    जवाब:-क़ुरआन अल्लाह का कलाम (ईश वाणी) है। जो उसके आख़िरी पैगम्बर मोहम्मद (स.अ.व.) पर नाज़िल (अवतरित) हुई। इसमें कुल 114 सुरः (पाठ) हैं, दूसरे धर्म ग्रँथों से अलग क़ुरआन की विशेषता यह है कि इसमें विशुद्ध अल्लाह का कलाम (ईश वाणी) है। इसके अलावा इसमें ना किसी और के वचन हैं ना किसी और कि कोई शिक्षा है।

     

    मुहम्मद (स.अ.व.) ने जो लोगों को क़ुरआन के बारे में सिखाया और दूसरी शिक्षाएँ दी वे अलग किताबों में संग्रहित है जिन्हें हदीस कहा जाता है।

     

    क़ुरआन अल्लाह की तरफ़ से तमाम इंसानियत के लिए खुला मार्गदर्शन और पैग़ाम है।

    रमज़ान का महीना जिसमें क़ुरआन उतारा गया लोगों के मार्गदर्शन के लिए और मार्गदर्शन, सत्य-असत्य के अन्तर के प्रमाणों के साथ।

    (क़ुरआन 2:185)

     

    हे लोगों! तुम्हारे पास, तुम्हारे पालनहार की ओर से, शिक्षा (क़ुरआन) आ गयी है, जो अंतरात्मा के सब रोगों का उपचार (स्वस्थ कर), मार्गदर्शन और दया है, उनके लिए, जो विश्वास रखते हों।

    (क़ुरआन 10:57)

     

  • इस्लाम एक से ज़्यादा पति रखने की अनुमति क्यों नहीं देता ?

    इस्लाम एक से ज़्यादा पति रखने की अनुमति क्यों नहीं देता ?

    जवाब : कुरआन  एक से ज़्यादा पती रखने कि इजाज़त (Permission) नहीं देता है और इस तरह कि इजाज़त (Permission) नहीं होना ही कितना उचित है वह आज उजागर हो चुका है, जो कि इस्लाम की सत्यता का प्रमाण है। इस्लाम एक प्राकृतिक जीवन शैली (Natural Way of Life) है और शादी एक सभ्य समाज के ताने बाने का नाम है। ना कि हवस को पूरा करने का। क़ुरान ने शादी के बारे में सुर:4 आयत 23,24,25 में विस्तृत में जानकारी दी है।

    हम सोचे अगर एक औरत एक से ज़्यादा शादी करती है। तो उसके साथ क्या समस्या पैदा हो सकती है?

     

    वैज्ञानिक समस्याएँ (Scientific Problems):-

    1 . एक औरत कई मर्दों से यौन (Sex) सम्बन्ध बनाती है, तो दोनों को एड्स की संभावना है, दूसरी गुप्त बीमारियाँ हो सकती है, बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास रुक सकता है। बच्चे पागलपन का शिकार हो सकते है। बच्चों में वंशानुगत समस्या भी हो सकती है।

     

    1. एक मर्द औरत के मुकाबले में ज़्यादा बहुविवाही (Polygamous) होता है। प्राकृतिक रूप से सामान्य अवस्था में उसके यौन चक्र (Sexual cycle) में कोई ब्रेक नहीं होता इसलिये वह एक से ज़्यादा बीवी का बिना किसी समस्या के निर्वाहन कर सकता है। जबकि प्राकृतिक रूप से यौन चक्र (Sexual cycle) में मासिक धर्म और गर्भ काल आदि ब्रेक होने के कारण बिना किसी समस्या के एक से अधिक पति रखना सम्भव नहीं।

     

    1. विश्व भर में औरतों की संख्या पुरुषों से ज़्यादा होना।

     

    1. सामाजिक समस्याएँ (Social problem):-
    2. i) बच्चों का असली बाप कौन?
    3. ii) बच्चे किस बाप कि वसीयत / जायदाद में हिस्से माँगेगे?

    iii) पतियों कि सामाजिक स्थिति / हैसियत कम ज़्यादा होने पर बच्चे अपना बाप किसे बोलेंगे?

    1. iv) ज़ायदाद का बँटवारा कैसे होगा?

     

    5) जिस्मानी / शारीरिक ज़रूरत (Sex) के लिए किस तरह से सभी पतियों के पास जा सकती है, बीमारी, डिलीवरी, मासिक परेशानी पर कौन-सा पति अपने नम्बर का मौका छोड़ेगा?

     

    6) मर्द प्राकृतिक / फ़ितरी तौर पर अधिक हिंसक होता है, उपर्युक्त बातों की वज़ह से अत्यधिक झगड़े और हिंसा हो सकती है।

     

    7) पति पत्नी में झगड़े / नोक झोंक होना आम बात है और बच्चे को डाँटने डपटने पर पतियों में आपस में झगड़े सम्भव है जिसमे हत्या होना भी बड़ी बात नहीं है और भी बहुत कुछ ।

     

    अतः उपर्युक्त बातों से पता चलता है कि एक से अधिक पति रखना हर तरीके से नुकसानदेह और विनाशकारी है।