Category: इसलामिक सीरीज़

  • सृष्टि का सबसे पहला धर्म (इस्लामिक सीरीज़ पोस्ट 8)

    सृष्टि का सबसे पहला धर्म (इस्लामिक सीरीज़ पोस्ट 8)

    अक्सर लोग अज्ञानता के कारण समझते है कि मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम) ने इस्लाम धर्म की स्थापना 1400 वर्ष पूर्व की। जबकि तथ्य यह है कि मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम) इस्लाम धर्म के संस्थापक नहीं बल्कि इस्लाम धर्म के अंतिम संदेष्टा एवं रसूल है।

     

    स्वाभाविक है कि जिसका कोई अंतिम हो उसका कोई पहला भी होगा।

    तो वह पहले कौन थे?

    कुरआन में कई जगह इसका ज़िक्र है कि आदम अलैही सलाम (धरती पर पहले मनुष्य) ही प्रथम संदेष्टा यानी ईश्वर के प्रथम दूत भी थे, जिन्होंने अपनी संतानों को ईश्वरीय संदेश पहुँचाया और ईश्वरीय शिक्षा दी और उन्हीं से इस्लाम धर्म का आरम्भ हुआ।

     

    प्रथम संदेष्टा से लेकर आखिरी संदेष्टा तक सभी संदेष्टाओं का मुख्य संदेश एक ही रहा है जो है एकेश्वरवाद एवं ईश्वरीय आदेश का पालन करना

     

    जैसा कि हमने जाना समस्त संसारो का बनाने और चलाने वाला अल्लाह (ईश्वर) ही है। तो इस संसार मे जो कुछ भी है उनका सबसे पहला कर्तव्य यही है की वह सिर्फ अपने उस ईश्वर की इबादत करें। यानी कि उसके आदेशों का पालन करें। जिस बात का वह हुक्म दे उसे पूरा करें और जिन बातों से रोके उस से बचें। अतः अपने आप को ईश्वर की मर्ज़ी के प्रति समर्पित कर अपने ईश्वर के आज्ञाकारी बने और उसकी कृपा और इनामों के हक़दार बने । यही परिभाषा शब्द “इस्लाम” की भी है ।

     

    ऐसे ही आदम अलैहिस्सलाम का धर्म यानी कि समस्त मनुष्य जाति का सबसे पहला धर्म यही है।

    सृष्टि में सभी उस ईश्वर के आदेशों का पालन करते हैं जैसा कि हमने फ़रिश्तों के बारे में देखा ।

    अब इसके उलट जो कोई ईश्वर के आदेशों का पालन नहीं करता और उसके आदेशों को झूठलाता है वही उसके गज़ब और सज़ा का हकदार होता है।

    जैसा कि हमने इब्लीस (शैतान) के बारे में देखा जिसने अल्लाह के आदेश की अवहेलना की और सत्य धर्म से भटक गया ।

     

    ऐसा ही एक आदेश अल्लाह ने आदम अलैहिस्सलाम को दिया :-

    और हमने आदम से कहा ऐ आदम तुम अपनी बीवी समेत बेहिश्त में रहा सहा करो और जहाँ से तुम्हारा जी चाहे उसमें से बफराग़त खाओ (पियो) मगर उस दरख्त के पास भी न जाना (वरना) फिर तुम अपना आप नुक़सान करोगे

    (क़ुरआन 2:36)

  • आदम और इब्लीस (इस्लामिक सीरीज़ पोस्ट 7)

    आदम और इब्लीस (इस्लामिक सीरीज़ पोस्ट 7)

    जैसा हमने पिछली पोस्ट में देखा कि इब्लीस (शैतान) ने घमण्ड किया और अल्लाह के हुक्म की ना फरमानी कर सज़ा का मुस्तहिक़ बना।

     

    वह आदम के प्रति अपने घमण्ड और हसद में ऐसा अड़ा रहा कि अल्लाह तआला से अपनी ना फरमानी की माफ़ी माँगने की बजाय उसने क़यामत तक के लिए सज़ा से मौहलत माँगी ताकि बनी आदम को अल्लाह की ना फरमानी करवा कर सज़ा का भागीदार बनवा सके ।

     

    जैसा कि बयान है क़ुरआन में :-

     

     उसने (इब्लीस) कहा: मुझे उस दिन तक के लिए अवसर दे दो, जब लोग फिर जीवित किये जायेंगे।         

    (क़ुरआन 7:14)

     

    इस पर अल्लाह तआला ने उसे क़यामत तक के किए मौहलत अता फ़रमाई।

     

    जिस पर इब्लीस ने अपना प्रण और मंसूबा और उजागर किया जिसका जिक्र इन आयतों में है

     

    मैं भी तेरी (अल्लाह की) सीधी राह पर इनकी (इंसानों की) घात में लगा रहूँगा।

    फिर उनके पास उनके आगे और पीछे तथा दायें और बायें से आऊँगा, और तू उनमें से अधिकतर को (अपना) कृतज्ञ नहीं पायेगा।

    (क़ुरआन 7:16-17)

     

    अर्थात हर तरीके से इनको भटकाउंगा।

     

    इस पर अल्लाह ने अगली आयात *(7:18)* में स्पष्ट कर दिया कि जो तेरी पैरवी करेगा और तेरी ही तरह ना फरमानी करेगा उन सब का बदला जहन्नुम होगा।

  • सबसे पहले मनुष्य (इस्लामिक सीरीज़ पोस्ट 6)

    सबसे पहले मनुष्य (इस्लामिक सीरीज़ पोस्ट 6)

    जैसा कि हमने पिछली पोस्ट में जाना कि इंसान से पहले फरिश्तों और जिन्नों की रचना हो चुकी थी ।

    फिर इंसान की रचना हुई, जिस पर फरिश्तों ने अपने ईश्वर से जिज्ञासा वश सवाल पूछा और इस घटना / क़िस्से को अल्लाह ने हमें क़ुरआन में इन आयत में बताया

    *और याद करो जब तुम्हारे रब ने फरिश्तों से कहा कि “मैं धरती में (मनुष्य को) खलीफ़ा बनाने वाला हूँ।” उन्होंने कहा, “क्या उसमें उसको रखेगा, जो उसमें बिगाड़ पैदा करे और रक्त पात करे और हम तेरा गुणगान करते और तुझे पवित्र कहते हैं?” उसने कहा, “मैं जानता हूँ जो तुम नहीं जानते।”*
    *(क़ुरआन 2:30)*

    जैसा हमने पहले जाना कि फरिश्तों को जो हुक्म मिलता है वही वे करते हैं। जबकि मनुष्य को स्वतंत्र-इच्छा (Free will)या स्वतंत्र-चयन (Free choice) मौजूद है और अपने इच्छा अनुसार फ़ैसला करने की छूट है। इसलिए उन्होंने पूछा कि यह मनुष्य तो धरती पर बिगाड़ पैदा करेगा, रक्त पात करेगा। तो इन्हें क्यों ख़लीफा (नायब/प्रतिनिधि) नियुक्त किया जा रहा है ?

    यहाँ उनके मन में यह भी निहित था कि वह हर वक़्त ईश्वर के आदेश का पालन करते हैं, (उनका निर्माण नूर से हुआ आदि बातों की वज़ह से वह मनुष्य से) श्रेष्ठ हैं और उन्हे ख़लीफा (नायब/प्रतिनिधि) नियुक्ति होने की चेष्टा हुई, लेकिन उन्होंने यह कहा नहीं सिर्फ़ मन में रखा।

    लेकिन अल्लाह तो सभी बातों का जानने वाला है..

    अतः अगली आयत में बताया :

    *उसने (अल्लाह ने) आदम को सारे नाम सिखाए, फिर उन्हें फ़रिश्तों के सामने पेश किया और कहा, “अगर तुम सच्चे हो तो मुझे इनके नाम बताओ।”*
    (क़ुरआन 2:31)

    नाम से यहाँ मतलब सभी चीज़ों का ज्ञान एवं उनकी विशेषताएँ, उपयोग, गुण, सारी जानकारी इत्यादि है। मतलब इन सभी बातों का इल्म अल्लाह ने आदम (अलै.) के दिल में उतार दिया।

    और फिर उन्हें फरिश्तों के सामने पेश कर उनसे इन्हीं चीज़ों के नाम (विशेषता, गुण, उपयोगी इत्यादि) पूछे , की यदि तुम अपने ख़्याल में सच्चे हो कि तुम श्रेष्ठ हो और ख़िलाफ़त के हक़दार हो तो इनके नाम बताओ?

    *वे (फरिश्ते) बोले, “पाक और महिमा वान है तू! तूने जो कुछ हमें बताया उसके सिवा हमें कोई ज्ञान नहीं। निस्संदेह तू सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है।”*
    (क़ुरआन 2:32)

    चूंकि फ़रिश्तों को इस का इल्म नहीं था, अतः उन्हें अपनी लाचारी और गलती का एहसास हुआ जिसका उन्होंने एतराफ़ (Acknowledgment) किया।

    फिर अगली आयात में :

    *उसने (अल्लाह ने) कहा, “ऐ आदम! उन्हें उन चीज़ों के नाम बताओ।” फिर जब उसने (यानि आदम ने) उन्हें उनके नाम बता दिए तो (अल्लाह ने) कहा, “क्या मैंने तुमसे कहा न था कि मैं आकाशों और धरती की छिपी बातों को जानता हूँ और मैं जानता हूँ जो कुछ तुम ज़ाहिर करते हो और जो कुछ छिपाते हो।”*
    (क़ुरआन 2:33)

    जब आदम (अलै.) ने सभी नाम बता दिए तो फ़रिश्तों को अपनी कमतरी और आदम (अलै.) की श्रेष्ठता का एहसास हुआ। साथ ही इस बात की याददिहानी भी हुई कि अल्लाह वह बात भी जानता है जो हम दिलों में छुपाते हैं और ज़ाहिर नहीं करते ।

    यकीनन महान है वह ईश्वर जो सब ज़ाहिर और छुपी बातों को जानता है और उन ख्यालों को भी जो हमारे मन में छुपे होते हैं ।

    फिर अगली आयात में फ़रमाया :

    *और जब हमने फ़रिश्तों से कहा: आदम को सज्दा करो, तो इब्लीस के सिवा सबने सज्दा किया, उसने इनकार तथा अभिमान किया और काफ़िरों में से हो गया।*
    (क़ुरआन 2:34)

    अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को सारी सृष्टि का नमूना और रूहानी व जिस्मानी दुनिया का मजमूआ बनाया और फ़रिश्तों के लिये कमाल हासिल करने का साधन किया तो उन्हें हुक्म फ़रमाया कि हज़रत आदम को सज्दा करें क्योंकि इसमें शुक्र गुज़ारी (कृतज्ञता) और हज़रत आदम के बड़प्पन के एतराफ़ (Acknowledgement) और अपने कथन की माफ़ी की शान पाई जाती है।

    अतः हुक्म की तामील में सभी फरिश्तों ने सजदा किया सिवाए इब्लीस (शैतान) के।

    इब्लीस (जो कि एक जिन्न है) ने सज्दा न किया और घमंड के तौर पर यह सोचता रहा कि वह हज़रत आदम से उच्चतर है और उसके लिये सज्दे का हुक्म (मआज़ अल्लाह) हिक़मत (समझदारी) के ख़िलाफ़ है। इस झूठे अक़ीदे से वह काफ़िर हो गया।

    घमंड बहुत बुरी चीज़ है। इससे कभी घमंडी की नौबत कुफ़्र तक पहुँचती है। अल्लाह तआला घमंड और कुफ्र से हम सब की हिफाज़त फरमाए।
    आमीन।

  • अल्लाह की मख़लूक़ात (इस्लामिक सीरीज़ पोस्ट 5)

    अल्लाह की मख़लूक़ात (इस्लामिक सीरीज़ पोस्ट 5)

    जैसा कि पिछली पोस्टों में हमने देखा की अल्लाह ना सिर्फ़ मनुष्यों या इस समस्त ब्रह्माण्ड का ईश्वर है। बल्कि वह तो तमाम कायनात (समस्त संसार और इसके अलावा जो कुछ भी है सभी) का ईश्वर और मालिक है।

     

    तारीफ़ अल्लाह ही के लिये है जो तमाम क़ायनात का रब है। बड़ा कृपालु, अत्यंत दयावान हैं।

    (क़ुरआन 1:1-2)

     

    अतः उस रचियता की तमाम कायनात में ना मालूम कितनी ही जानदार (मख़लूक़), बे जानदार रचनाएँ हैं जिनमे से कुछ का तो हमें ज्ञान है जैसे पेड़-पौधे, जीव-जन्तु, पृथ्वी, आकाश, सूर्य, चंद्रमा, ग्रह, नक्षत्र, ब्रह्मांड आदि और कई दूसरी जो हमारे ज्ञान से परे हैं ।

     

    हम अगर सिर्फ़ इस संसार की सजीव, सोच-समझ रखने वाली मख़लूक़ात की बात करें जिनमे ख़ुद शऊर / आत्म चेतना (Self consciousness) मौजूद हैं तो ऐसी तीन जीव (मख़लूक़ात) हैं जिनका क़ुरआन में अल्लाह ने ज़िक्र किया और हमे बताया है।

     

    1. फरिश्ते:-

    फरिश्तों को अल्लाह ने नूर से बनाया, उनका गुण यह है कि उनको अल्लाह से जो आदेश प्राप्त होता है उसे वे पूरा कर देते हैं। उनके पास स्वतंत्र-इच्छा (Free will) या स्वतंत्र-चयन (Free choice) यानी कि चुनने और अपनी इच्छा अनुसार फ़ैसला करने की छूट नहीं होती। उन्हें जो हुक्म होता है वही वे करते हैं बिना कुछ फेर बदल किये।

     

    जैसा कि बताया गया:-

    *ऐ ईमान लाने वालो! अपने आपको और अपने घरवालों को उस आग से बचाओ जिसका ईंधन मनुष्य और पत्थर होंगे उन पर वह तन्दख़ू सख़्त मिज़ाज फ़रिश्ते (मुक़र्रर) हैं कि ख़ुदा जिस बात का हुक्म देता है उसकी ना फरमानी नहीं करते और जो हुक्म उन्हें मिलता है उसे बजा लाते हैं।*

    (क़ुरआन 66:6)

     

    2. जिन्न:-

    क़ुरआन में बताया गया कि जिन्न को आग से बनाया गया हैं।

    *और जिन्न को उसने आग की लपट से पैदा किया।*

    (क़ुरआन 55:15)

     

    3. इंसान:-

    क़ुरआन में बताया गया कि इंसान को मिट्टी से बनाया गया हैं।

    उसने मनुष्य को ठीकरी जैसी खनखनाती हुए मिट्टी से पैदा किया।

    (क़ुरआन 55:14)

     

    प्रथम फरिश्तों फिर जिन्नों की रचना हुई और उनके बाद इंसान अस्तित्व में आये। इनमें जिन्न और इंसान अल्लाह की वह मख़लूक़ात हैं जिनको अल्लाह ने सही ग़लत चुनने और फ़ैसला लेने की शक्ति दी है। यानी कि इनके पास अल्लाह का आदेश है, अब चाहे तो यह उसके अनुसार करें और अल्लाह की रहमत और इनाम के हक़दार बने या चाहें तो ना फरमानी करें और उसकी सज़ा के हक़दार बनें।

     

  • इस्लाम और बिग बेन्ग।

    इस्लाम और बिग बेन्ग।

    अंतरिक्ष विज्ञान के विशेषज्ञ सृष्टि की व्याख्या एक ऐसी घटना (Phenomenon) के माध्यम से करते हैं जिसे व्यापक रूप से महा विस्फोट (Big Bang) के रूप में जाना जाता है। महा विस्फोट (Big Bang) के अनुसार प्रारम्भ में यह सम्पूर्ण सृष्टि प्राथमिक रसायन (Primary nebula) के रूप में थी फिर एक महा विस्फोट यानी बिग बैंग से माध्यमिक अलगाव (Secondary separation) हुआ जिस का नतीजा आकाशगंगा के रूप में उभरा, फिर वह आकाशगंगा विभाजित हुआ और उसके टुकड़े सितारों, गृहों, सूर्य, चंद्रमा आदि के रूप में परिवर्तित हो गए। कायनात, प्रारम्भ में इतनी पृथक और अछूती थी कि संयोग (Chance) के आधार पर उसके अस्तित्व में आने की संभावना (Probability) शून्य थी। पवित्र क़ुरआन सृष्टि की संरचना के संदर्भ से निम्न लिखित आयात में बताता है।

     

    *‘‘क्या वह लोग जिन्होंने (नबी स.अ.व. की पुष्टि) से इनकार कर दिया है ध्यान नहीं करते कि यह सब आकाश और धरती परस्पर मिले हुए थे फिर हम ने उन्हें अलग किया।…”*

    (क़ुरआन 21:30)

    इस क़ुरआनी वचन और ‘‘बिग बैंग” के बीच आश्चर्यजनक समानता से इनकार सम्भव ही नहीं! यह कैसे सम्भव है कि एक किताब जो आज से 1400 वर्ष पहले अरब के रेगिस्तानों में व्यक्त हुई, अपने अन्दर एक ऐसे असाधारण वैज्ञानिक यथार्थ समाए हुए है?

    आकाशगंगा की उत्पत्ति से पूर्व प्रारम्भिक वायुगत रसायन वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं कि सृष्टि में आकाशगंगाओं के निर्माण से पहले भी सृष्टि का सारा द्रव्य एक प्रारम्भिक वायुगत रसायन (Gas) की अवस्था में था, सृष्टि के इस प्रारम्भिक द्रव्य के विश्लेषण में गैस से अधिक उपयुक्त शब्द ‘‘धुआँ” है।

    क़ुरआन में सृष्टि की इस अवस्था ‘‘धुआँ” शब्द से रेखांकित हुई है।

    “फिर उस ने आकाश की ओर रुख़ किया, जबकि वह मात्र धुआँ था और उस ने उससे और धरती से कहा, ‘आओ, स्वेच्छा के साथ या अनिच्छा के साथ।’ उन्होंने कहा, ‘हम स्वेच्छा के साथ आए।”*

    (क़ुरआन 41:11)

     

    इस तरह सृष्टि कि उत्पत्ति (बिग बैंग) के अनुकूल है जिसके बारे में अंतिम सन्देष्टा पैग़म्बरे इस्लाम मुहम्मद (स.अ.व.) से पहले किसी को कुछ ज्ञान नहीं था । (बिग बैंग 20 वी शताब्दी की खोज है जो पैगम्बर के काल से 1300 वर्ष उपरांत है।)

     

    अगर इस युग में कोई भी इसका जानकार नहीं था तो फिर इस ज्ञान का स्रोत क्या हो सकता है?

  • Islamic series post 3

    जैसा कि हमने देखा अल्लाह बरहक़ बेनियाज़ है और उसे किसी काम को अंजाम देने में किसी की मदद या साथ की ज़रूरत नहीं पड़ती।

    जब वह किसी काम का इरादा कर लेता है तो वह उसे अंजाम देता है।

    फ़रमाया –

    वह (अल्लाह तआ’ला) आसमानों और ज़मीन का ईजाद करने वाला (पहली बार पैदा करने वाला) है और जिस बात का वह फ़ैसला करता है, उसके लिए बस ये हुक्म देता है कि “हो जा” और वह हो जाता है।*

    (क़ुरआन 2:117)

    साथ ही अल्लाह की कुदरत है कि वह हर काम एक बेहतरीन निज़ाम के ज़रिये करता है जिसको जान ने पर बंदे को अपने ईश्वर की महानता का अंदाज़ा होता है।

    उसी तरह इस सृष्टि की रचना किस प्रकार हुई उस बारे में अल्लाह ने हमें क़ुरआन में बताया।

     

    निस्संदेह तुम्हारा रब वही अल्लाह है, जिसने आकाशों और धरती को छह दिनों में पैदा किया फिर राजसिंहासन पर विराजमान हुआ। वह रात को दिन पर ढाँकता है जो तेज़ी से उसका पीछा करने में सक्रिय है और सूर्य, चन्द्रमा और तारे भी बनाए, इस प्रकार कि वे उसके आदेश से काम में लगे हुए है। सावधान रहो, उसी की सृष्टि है और उसी का आदेश है। अल्लाह सारे संसार का रब, बड़ी बरकत वाला है।

    (क़ुरआन 7:54)

     

    क़ुरआन में अल्लाह ने इस सृष्टि की रचना पर बहुत ही आश्चर्यजनक प्रकाश डाला है और वह बातें 1400 साल पहले बता दी जो विज्ञान 20 वीं सदी में जाकर समझ पाया है और विज्ञान के जानकार यह जान-समझकर, यह मानने पर मजबूर होते हैं कि निश्चय ही क़ुरआन अल्लाह का कलाम है। ऐसी ही कुछ आयात (आयत का बहुवचन), बिग बैंग थ्योरी और सृष्टि की उत्पत्ति के बारे में हम अगली पोस्ट में जानेंगे।

  • Islamic series post 2

    जैसा की पिछली पोस्ट में स्पष्ट हुआ की समस्त मानव जाती और इस पुरे संसार के रचियता एवं स्वामी परमेश्वर को ही अरबी भाषा में अल्लाह के नाम से पुकारा जाता है।

    अब आगे हम जानते हैं की वह परमेश्वर अल्लाह कौन है ? कैसा है ?

    इसका बहुत ही सरल और साफ़ मार्गदर्शन ख़ुद अल्लाह ने क़ुरआन में कर दिया ताकि कोई भी इन सवालों के बारे में अज्ञानता में ना रहे और उसे अल्लाह के बारे में बिल्कुल स्पष्ट और सीधी मालूमात रहे।

    *फरमाया क़ुरआन में सुरः इखलास आयात 1 से 4*

    *कुल हुवल लाहू अहद*

    *अल्लाहुस समद*

    *लम यलिद वलम यूलद*

    *वलम यकूल लहू कुफुवन अहद*

    मतलब:-

    *कहो वह अल्लाह (ईश्वर) एक है।*

    *अल्लाह बरहक़ बेनियाज़ है।*

    *न उसने किसी को जना न उसको किसी ने जना।*

    *और उसका कोई हमसर (समकक्ष) नहीं।*

     

    “समद” यानी कि बरहक़ बेनियाज़ का मतलब होता है कि अल्लाह को किसी काम को अंजाम देने में किसी शरीक व मददगार की ज़रुरत नहीं वह बेनियाज़ और अपने आप में काफ़ी है। सभी उसपर निर्भर हैं पर वह किसी पर किसी बात के लिए निर्भर नहीं।

     

    ना किसी को जना, ना जना गया मतलब ना उसकी कोई औलाद है ना वह किसी की और ना कोई उसके हमसर है। यानी कि कोई उसके समकक्ष या बराबर नहीं। उस जैसा कोई नहीं है और ना ही किसी से उसकी तुलना की जा सकती है।

    क़ुरान में अल्लाह की सिफ़तों (गुणों) के बारे में और भी कई आयते हैं। लेकिन विश्व में ईश्वर के बारे में इतनी सही, सटीक और छोटी परिभाषा नहीं है।

    इस पूरे संसार का करता धर्ता, पालनहार एवं रचियता ईश्वर जो उक्त परिभाषा पर सही उतरता है उसे ही मुसलमान अल्लाह के नाम से पुकारते हैं और उसकी इबादत करते हैं ।

    अगर कोई भी उस सच्चे ईश्वर जो की उक्त परिभाषा के अनुसार है को मानता है। फिर चाहे वह उसे किसी और नाम से ही क्यों ना पुकारे वह अल्लाह को ही पुकार रहा है।

    जैसा कि फरमाया क़ुरआन में

    *”तुम अल्लाह को पुकारो या रहमान को पुकारो या जिस नाम से भी पुकारो, उसके लिए सब अच्छे ही नाम है।”*

    (क़ुरआन 17:110)

  • “Islamic Series Post 1”

    जवाब : – *अल्लाह* एक अरेबिक शब्द है जो अरबी में परमेश्वर के लिए प्रयोग किया जाता है। हिंदी और अंग्रेज़ी में उसका पर्याय *परमेश्वर* एवं *The God* होगा।

    अक्सर लोगों को यह ग़लतफहमी होती है कि अल्लाह का मतलब सिर्फ़ मुसलमानों का ख़ुदा या अरब देश का ईश्वर / भगवान होता है।

    जबकि ऐसा नहीं है।

    क़ुरआन पाक की शुरू की आयत में ही कहा गया है :-

    *तारीफ़ अल्लाह ही के लिये है जो तमाम क़ायनात का रब है। बड़ा कृपालु, अत्यंत दयावान हैं।*

    (क़ुरआन 1:1-2)

     

    मतलब अल्लाह ना केवल मुसलमानों का या अरबों का बल्कि समस्त मनुष्य जाति का ही नहीं, बल्कि इस पूरे ब्रह्माण्ड और उसके अलावा जो कुछ भी है (तमाम कायनात) उसका रचियता है और उसका चलाने वाला है। सभी का परमेश्वर है।

    इस विश्व में जितने भी लोग हैं चाहे वे किसी धर्म के हों। या नास्तिक ही क्यों ना हो अमूमन सभी मानते हैं कि सबके ऊपर एक सबसे बड़ा ईश्वर है। या कोई तो है जिसने इस सारी सृष्टि को बनाया है उसी रचियता और परमेश्वर को अरबी भाषा में अल्लाह के नाम से पुकारा जाता है।

    अक्सर अज्ञानतावश और ना मालूमात की वज़ह से लोग अल्लाह शब्द और इसके पुकारने वालो से दुर्भावना रख लेते हैं और अनजाने में अल्लाह को कुछ भी अनर्गल बोल कर अपने ही बनाने वाले परमेश्वर का अनादर कर पाप के भागी होते हैं।