सृष्टि का सबसे पहला धर्म कौन?

अक्सर लोग अज्ञानता के कारण समझते है कि मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम) ने इस्लाम धर्म की स्थापना 1400 वर्ष पूर्व की। जबकि तथ्य यह है कि मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम) इस्लाम धर्म के संस्थापक नहीं बल्कि इस्लाम धर्म के अंतिम संदेष्टा एवं रसूल है।

 

स्वाभाविक है कि जिसका कोई अंतिम हो उसका कोई पहला भी होगा।

तो वह पहले कौन थे?

कुरआन में कई जगह इसका ज़िक्र है कि आदम अलैही सलाम (धरती पर पहले मनुष्य) ही प्रथम संदेष्टा यानी ईश्वर के प्रथम दूत भी थे, जिन्होंने अपनी संतानों को ईश्वरीय संदेश पहुँचाया और ईश्वरीय शिक्षा दी और उन्हीं से इस्लाम धर्म का आरम्भ हुआ।

 

प्रथम संदेष्टा से लेकर आखिरी संदेष्टा तक सभी संदेष्टाओं का मुख्य संदेश एक ही रहा है जो है एकेश्वरवाद एवं ईश्वरीय आदेश का पालन करना

 

जैसा कि हमने जाना समस्त संसारो का बनाने और चलाने वाला अल्लाह (ईश्वर) ही है। तो इस संसार मे जो कुछ भी है उनका सबसे पहला कर्तव्य यही है की वह सिर्फ अपने उस ईश्वर की इबादत करें। यानी कि उसके आदेशों का पालन करें। जिस बात का वह हुक्म दे उसे पूरा करें और जिन बातों से रोके उस से बचें। अतः अपने आप को ईश्वर की मर्ज़ी के प्रति समर्पित कर अपने ईश्वर के आज्ञाकारी बने और उसकी कृपा और इनामों के हक़दार बने । यही परिभाषा शब्द “इस्लाम” की भी है ।

 

ऐसे ही आदम अलैहिस्सलाम का धर्म यानी कि समस्त मनुष्य जाति का सबसे पहला धर्म यही है।

सृष्टि में सभी उस ईश्वर के आदेशों का पालन करते हैं जैसा कि हमने फ़रिश्तों के बारे में देखा ।

अब इसके उलट जो कोई ईश्वर के आदेशों का पालन नहीं करता और उसके आदेशों को झूठलाता है वही उसके गज़ब और सज़ा का हकदार होता है।

जैसा कि हमने इब्लीस (शैतान) के बारे में देखा जिसने अल्लाह के आदेश की अवहेलना की और सत्य धर्म से भटक गया ।

 

ऐसा ही एक आदेश अल्लाह ने आदम अलैहिस्सलाम को दिया :-

और हमने आदम से कहा ऐ आदम तुम अपनी बीवी समेत बेहिश्त में रहा सहा करो और जहाँ से तुम्हारा जी चाहे उसमें से बफराग़त खाओ (पियो) मगर उस दरख्त के पास भी न जाना (वरना) फिर तुम अपना आप नुक़सान करोगे

(क़ुरआन 2:36)

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