सवाल:- मुसलमान क़रीबी रिश्ते (cousins) में शादी क्यों कर सकते हैं?/ क्या इस्लाम भाई बहन में शादी की इजाज़त देता है?

जवाब:- इस तरह के सवाल अज्ञानता के कारण होते है और अज्ञानता सिर्फ़ इस्लाम के प्रति ही नहीं बल्कि ख़ुद के धर्म के प्रति भी होती है। पहले हम यहाँ अपनी ग़लतफ़हमी दूर करे।

  1. इस्लाम में कज़िन (करीबी रिश्ते) से शादी करने की इजाज़त है ना कि अनिवार्यता।
  2. करीबी रिश्ते और हक़ीक़ी रिश्ते अलग-अलग हैं। करीबी कुछ रिश्तों में शादी मान्य/जायज़ है। हक़ीक़ी / Real / सगे खून के रिश्तों में शादी करना हराम है यानी कि वर्जित है।

इस्लाम एक व्यवहारिक और तार्किक मज़हब है और अल्लाह की तरफ़ से सीधा मार्गदर्शन है जिसमे सभी बातें खोल-खोल कर बता दी गयी। सिवाए इस्लाम के दुनिया में कोई भी ऐसा धर्म नहीँ है जिसमे शादी के बारे में इतने विस्तार से जानकारी दी गई हो।

जीवन के हर पहलू की तरह इस्लाम ने इस मामले में भी शादी किन से की जा सकती और किन से नहीं की जा सकती उसका स्पष्ट उल्लेख हमें दिया है।

क़ुरआन कहता है:–

*”तुम पर हराम (अवैध) कर दी गयी हैं; तुम्हारी मातायें, तुम्हारी पुत्रियाँ, तुम्हारी बहनें, तुम्हारी फूफियाँ, तुम्हारी मौसियाँ और भतीजियाँ, भाँजियाँ, तुम्हारी वे मातायें जिन्होंने तुम्हें दूध पिलाया हो तथा दूध पीने से संबंधित बहनें, तुम्हारी पत्नियों की मातायें, तुम्हारी पत्नियों की पुत्रियाँ जिनका पालन पोषण तुम्हारी गोद में हुआ हो और उन पत्नियों से तुमने संभोग किया हो, यदि उनसे संभोग न किया हो, तो तुम पर कोई दोष नहीं, तुम्हारे सगे पुत्रों की पत्नियाँ और ये कि तुम दो बहनों को एकत्र करो*

(क़ुरआन 4:23)

 

*और उन औरतों से शादी मत करो, जिनसे तुम्हारे बाप दादा शादी कर चुके हो।*

(क़ुरआन 4:22)

इस पूरी लिस्ट के अलावा किसी और औरत से इस कारण शादी ना करना कि वह कज़िन (Cousin) है, ये बिल्कुल ही बेबुनियाद और नासमझी होगी और कई समस्याओं की वज़ह भी, क्योंकि पूरी मानव जाति ही एक ही माँ-बाप आदम और हव्वा से पैदा हुए हैं, अतः फिर तो सभी आपस में भाई बहन हुए। हिन्दू धर्म के अनुसार सभी ब्रह्मा से पैदा हुए तो सभी भाई बहन हो गए।

इसके अलावा अल्लाह के इस आदेश में भी कई हिकमते (उत्तम युक्ति) छुपी हैं जिनमे से एक यह है कि:-

करीबी रिश्तेदारों जैसे मामा, मौसी, बुआ के परिवारों का आपस में मेल मिलन बहुत ज़्यादा होता है। चूंकि इस्लाम में इन रिश्तेदारों में शादी की जा सकती है इसलिए की वह ना महरम की श्रेणी में आते हैं। (ना महरम यानी कि जिन से परदा करना ज़रूरी है, अकेले में मिलना, बातें करना आदि वर्जित होता है।)

जबकि जिन धर्मों में लोग इन कज़िन से विवाह वर्जित मानते हैं वहाँ ऐसी कोई व्यवस्था नहीं होती बिना किसी पर्दे और नज़र के ख़ूब मेल मिलाप, देखना बातें करना आदि होती हैं जिस से आकर्षण की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है जो कि प्राकृतिक बात है। चूंकि इस केस में वहाँ विवाह की कोई संभावना ही नहीं होती इसलिए अक्सर ऐसे आकर्षण अनैतिक सम्बन्ध (Illegal relationship) में बदल जाते हैं जो कुछ मामलों में यौन अपराध (Sexual crime), रेप वगैरह का कारण बनते हैं।

इसके उलट इस्लाम पहले तो “ना-महरम” की श्रेणी होने की वज़ह से इस तरह के आकर्षण की ही रोकथाम करता है। फिर विवाह का विकल्प उपलब्ध होने पर इसका उचित हल भी देता है। जिस से समाज अनैतिकता और अपराध से बचता है।

इस्लाम के अलावा भी हर धर्म में करीबी रिश्तों में विवाह के साक्ष्य मिलते है।

▪️ महात्मा बुद्ध की पत्नी यशोधरा उनके सगे मामा और सगी बुआ की बेटी थीं।

▪️ स्वयं श्री कृष्ण जी ने अपनी बहन सुभद्रा का विवाह अपनी सगी बुआ के पुत्र अर्जुन से करवाया था! अर्जुन सुभद्रा के सगे फुफेरे भाई थे और सुभद्रा अर्जुन की सगी ममेरी बहन थीं,

श्रीमद् भागवत स्कंध 9:24:28,29 पेज 534-535

▪️ विराट् नरेश की एक बेटी थी, जिसका नाम उत्तरा था और एक बेटा था जिसका नाम उत्तर था. अर्जुन के बेटे अभिमन्यु का विवाह उत्तरा से हुआ जिससे उनके यहाँ एक बेटा पैदा हुआ जिसका नाम परिक्षित रखा गया परिक्षित ने अपने मामा उत्तर की बेटी इरावती से विवाह किया।

श्रीमद् भागवत स्कंध 1:16:2 Page- 63, महाभारत, विराटपर्व पेज 449

▪️ वैसे इस तरह कि प्रथा (मामा का अपनी सगी भांजी से विवाह) दक्षिण भारत में व्यापक ही नहीं बल्कि अधिकार समझी जाती है।

जैन धर्म में *श्वेतांबर परम्परा* के अनुसार महावीर जी की शादी यशोदा जी के साथ हुई थी। उनकी एक लड़की हुई जिसका नाम प्रियदर्शिनी रखा। जिसकी शादी राजकुमार जमाली के साथ हुई। राजकुमार जमाली उनकी बहन के पुत्र थे।

(चम्पतराय जैन-The Change of Heart page 97)

अतः करीबी रिश्तेदारों में विवाह करना हर प्रकार से उचित है।

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