इस वायरल पोस्ट का जवाब दें - 🟣 *इजराइल मे यहूदियों से लड़ रहे है* *यूरोप में ईसाइयों से लड़ रहे हैं* *म्यांमार ,श्री लंका में बोद्धो से लड़ रहे हैं* *भारत मे हिंदूओ से लड़ रहे हैं* *चीन में कम्युनिस्टो से लड रहे हैं* *इराक में यजीदियो से लड रहे हैं* *अफ्रीका में आदिवासियों से लड रहे हैं* *पाकिस्तान में अहमदियो से लड रहे हैं* *सीरिया ओर इराक में कोई नही मिला तो आपस मे लड़ रहे हैं* *आप स्वंय सोचिए क्या केवल यें ही सही है बाकी विश्व के सारे धर्म,रीलीजन, पंथ व लोग गलत है क्या??* 🔅 *आशा करते है कि आपको उत्तर मिल गया होगा।*
जवाब:– इसका उत्तर बिल्कुल इसी मैसेज में ही मिल जाएगा।
उनकी इस लिस्ट में कि मुस्लिम हर देश में लड़ रहे हैं वे भारत के बारे में कहते हैं कि भारत में हिंदुओं से लड़ रहे हैं?
कहाँ लड़ रहे हैं भाई? अब ज़रा बताएँ की यह बात किस बुनियाद पर कही गई? जिस तरह यह झूठ गढ़ लिया गया है वैसे ही पूरी दुनिया के बारे में गढ़ कर वह बात साबित करने की कोशिश की जा रही है जो वास्तव में है ही नहीं।
(यहाँ illusory correlation और confirmation bias techniques का इस्तेमाल किया जा रहा है जिसे *ब्रेन वाशिंग प्रक्रिया* को जानने वाले आसानी से समझ सकते हैं।)
भारत में ना मुसलमान-हिंदुओं से लड़ रहे हैं ना ही हिन्दू-मुसलमानो से लड़ रहे हैं। बल्कि दोनों एक दूसरे का साथ देकर महामारी से ज़रूर लड़ रहे हैं।
हाँ! लेकिन यह बात ज़रूर है कि कुछ लोग 24 घण्टे हिन्दू-मुस्लिमो को लड़ा कर धर्म की राजनीति पर रोटी सेक कर सत्ता में बने रहने का अथक प्रयास ज़रूर कर रहे हैं और यह लोग कौन हैं यह बताने की ज़रूरत नहीं।
अब आपको क्या लगता है? अल्पसंख्यको के धर्म को बुनियाद बना कर सत्ता हासिल करने का यह बड़ा ही आसान-सा जो गोल्डन फार्मूला है वह विदेशियों को नहीं पता होगा यह सिर्फ़ हमारे देश के नेताओ को पता है?
बिल्कुल नहीँ। बल्कि यह तो राजनीति की किताबों में लिखा है। अब चूंकि मुस्लिम सिर्फ़ एक देश के वासी तो हैं नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हर नस्ल के हैं औऱ दुनिया के हर देश में हैं। तो स्वभाविक-सी बात है कि कई देशों में प्रमुख अल्पसंख्यको का धर्म इस्लाम ही है। अब या तो इसे इस्लाम की विशेषता कहें या कुछ औऱ।
इसीलिए यह जो अल्पसंख्यको के धर्म की बुनियाद पर राजनीति की जाती है उसमें अक्सर मुस्लिम ही केन्द्र में होते हैं।
तभी तो बताएँ इजराइल में बहुमत ना मिलने पर और सरकार ना बना पाने पर 1 साल का एक्सटेंशन और जनता का भावनात्मक सपोर्ट नेतन्याहू को फिलिस्तीन पर हमला करने के सिवा और कैसे हासिल हो सकता था?
भला जिन देशों में औरतों के नग्न घूमने पर किसी को आपत्ति नहीं और इसे औरत की मर्ज़ी बताया जाता है उस देश में औरत की मर्ज़ी से चेहरा ढंकने पर हंगामा कर इसे रूढ़िवादिता बता कर राजनीति करने का मौका कैसे मिल पाता?
म्यानमार हो या श्री लंका हर जगह यही है कि अल्पसंख्यको को केंद्र बनाओ बहुसंख्यको को भड़काओ और राजनीति करो।
लेकिन इसके उलट अगर हम उन देशों की बात करें जहाँ मुस्लिम अधिक हैं और दूसरे धर्म के लोग वहाँ कम है तो आप यह पैटर्न कम ही देखेंगे। UAE, क़तर, ओमान, कुवैत, अरब, बहरीन में इस तरह की कोई बात नहीं देखी जाती वहाँ क्या दूसरे धर्मों के लोगों से बहुसंख्यक मुस्लिम लड़ रहे हैं?जबकि इन सभी देशों में मुस्लिम 70% से अधिक हैं?
यदि आप खाड़ी देशों के अलावा देखना चाहते हैं तो एशिया में आप मलेशिया, इंडोनेशिया, ब्रुनेई देख लें। वहाँ भी यही स्थिति है।
यह भी पर्याप्त नहीं तो फिर तुर्की, जॉर्डन, लेबनान, मोरक्को, मिस्र(इजिप्ट) देख लें। इनके अलावा भी देखना है तो अल्बानिया, सेनेगल, मालदीव, उत्तरी सायप्रस आदि और भी कई देश हैं जहाँ मुस्लिम बहुसंख्यक है और दूसरे धर्मों के लोग सदियों से सुरक्षित औऱ सम्पन्नता से रह रहे हैं और वहाँ इस तरह से कभी नहीं सुना जाता कि रोहिंग्या की तरह पूरी की पूरी किसी दूसरे धर्म की आबादी को निष्कासित कर दिया गया हो।
लेकिन इस तरह की राजनीति और बातें हम उन देशों में ज़रूर सुनते हैं जहाँ मुस्लिम अल्पसंख्यक हों उसके बाद भी इसका दोष भी उल्टा उन्हीं पर लगा दिया जाता है।
हालाँकि इसके दुष्परिणाम बाद में वह देश व ख़ुद भुगतते है जैसे आज इस मार्ग पर आगे चला म्यानमार बर्बाद हो कर भुगत रहा है और ख़ुद हमारा देश इस अल्पसंख्यको केंद्र बना कर की गई धर्म और नफ़रत की राजनीति में अंधा होकर इस महामारी में बहुत कुछ भुगत चुका है।
इसलिए समय है कि बेवजह के ब्रेन वाश करने वाले इन मैसेज को भेजने वाले और धर्म की राजनीति करने वाले ऐसे लोगों को अब ठीक से पहचान लिया जाए। क्योंकि जहाँ कहीं भी कोई लड़ रहा है उनके पीछे इन लोगों की मानसिकता और तंत्र ही काम कर रहा है जिस से देश और देशवासियों सभी का नुक़सान होता है।
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सीरिया में मुस्लिम आपस में लड़ रहे हैं? इस बारे में पहले जवाब दिया जा चुका है जिसे हमारी website पर इस लिंक के ज़रिए पढ़ा जा सकता है।
https://islamconnect.in/2021/05/27/3775/