औरत को पती की मृत्यु या तलाक़ हो जाने पर इद्दत में क्यों रहना पड़ता है?

जवाब:- सबसे पहले हम यह जानते हैं कि इद्दत क्या है और कब लागू होती है?

 

पति की मृत्यु / तलाक़ पर इद्दत का मतलब उस अवधि / मुद्दत / समय से है जिसमे औरत को दूसरी शादी करने से पहले अपने घर में कुछ समय गुज़ारना होता है। उसके बाद ही वह दूसरी शादी कर सकती है। आधुनिक सोच के अनुसार ये बात समझ में नहीं आती है कि सिर्फ़ औरत को ही इद्दत में क्यों रहना होता है? लेकिन जब हम सामाजिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखते हैं तो पता चलता है कि ईद्दत का समय कितना महत्वपूर्ण है और औरत के लिए यह हर तरह से फायदेमंद एवं ज़रुरी है।

 

❇️ *पवित्र क़ुरआन के अनुसार*

 

“ऐ नबी! जब तुम लोग स्त्रियों को तलाक़ दो तो उन्हें तलाक़ उनकी इद्दत के हिसाब से दो और इद्दत की गणना करो और अल्लाह का डर रखो, जो तुम्हारा रब है। उन्हें उनके घरों से न निकालो और न वे स्वयं निकलें, सिवाय इसके कि वे कोई स्पष्ट अशोभनीय कर्म कर बैठें। ये अल्लाह की नियत की हुई सीमाएँ हैं और जो अल्लाह की सीमाओं का उल्लंघन करे तो उसने स्वयं अपने आप पर ज़ुल्म किया। तुम नहीं जानते, कदाचित इस (तलाक़) के पश्चात अल्लाह कोई सूरत पैदा कर दे”

(क़ुरआन सूरह 65:01)

 

➡️ औरत को इद्दत दो कारणों से गुज़ारनी होती है।

 

1) पति की मृत्यु के कारण:-

और तुममें से जो लोग बीवियाँ छोड़ के मर जाएँ तो ये औरतें चार महीने दस रोज़ अपने को रोके (और दूसरा निकाह न करें) फिर जब (इद्दत की मुद्दत) पूरी कर ले तो शरीयत के मुताबिक़ जो कुछ अपने हक़ में करें इस बारे में तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं है और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उस से ख़बरदार है।

(क़ुरआन सूरह 2:234 )

 

2) तलाक़ या खुलअ (औरत ख़ुद तलाक़ ले) के कारण:-

तलाक़ / खुलअ पर 3 हैज / महावारी / Monthly cycles तक ईद्दत होगी।

“और जिन औरतों को तलाक़ दी गयी है वह अपने आपको तलाक़ के बाद तीन हैज़ के ख़त्म हो जाने तक निकाह सानी से रोके और….”

(क़ुरआन सूरह 02: 228)

 

पति की मृत्यु / तलाक़ पर अगर औरत गर्भवती है तो बच्चे के पैदा होने के समय तक अधिकतम 9 महीने।

 

▪ और तुम्हारी स्त्रियों में से जो हैज से निराश हो चुकी हों, यदि तुम्हें संदेह हो तो उनकी इद्दत तीन मास है और इसी प्रकार उनकी भी जो अभी हैज से नहीं हुई और जो हामेला (गर्भवती) हो उनकी इद्दत बच्चे के पैदा होने तक है। जो कोई अल्लाह का डर रखेगा उसके मामले में वह आसानी पैदा कर देगा।”

(क़ुरआन सूरह 65:04)

 

▪️ *शादी हुई लेकिन शारीरिक संबंध नहीं बने और इससे पहले ही तलाक / खुलअ या पति की मृत्यु हो गई तो कोई इद्दत नहीं।

(क़ुरआन सूरह 33:49)

 

✔️ इद्दत के सामाजिक और वैज्ञानिक कारण

 

1) औरत अगर गर्भ से हो तो उसके गर्भ का पता चल जाये। ताकि बच्चे के पिता पर गर्भावस्था और उससे सम्बन्धित सभी खर्च, ज़िम्मेदारी आदि लागू हो। अगर इद्दत ना हो तो ऐसा हो सकता है कि तलाक के कुछ माह बाद गर्भ उजागर हो और फिर उसकी जिम्मेदारी लेने वाला कोई ना हो ।

 

2) पहले शौहर से बच्चा हो तो बच्चे की वंशावली की पहचान हो। साथ ही होनेवाले बच्चे को अपने पिता की सम्पत्ति में से हिस्सा मिले फिर चाहे उसकी माँ से तलाक ही क्यों ना हो गया हो।

 

3) औरतो में भावनात्मक पहलू अधिक प्रबल होते है, तलाक़ या पति की मृत्यु के बाद उसकी मानसिक अवस्था को दुरुस्त होना ज़रूरी है। ताकि वह अपने नए परिवार में एडजस्ट (Adjust) हो सके।

 

4) अगर 3-मंथली साइकल नहीं गुज़ारती है और इसके पूर्व ही अगर शादी कर दूसरे मर्द से सम्बन्ध बनते हैं तो यौन रोग (Sexually transmitted disease) हो सकते है।

 

5) इद्दत का समय गुज़रने के बाद औरत के गर्भाशय और यौनांगों में पूर्व के पति के शुक्राणु, DNA के कोई अंश नहीं रहते जिससे होने वाले बच्चे का वंशावली (Lineage) स्पष्ट होता है और साथ ही औरत और मर्द दोनों ऐड्स और ऐसी अन्य दूसरी बीमारी से पूर्ण रूप से सुरक्षित हो जाते हैं।

 

इस तरह इस्लाम इस दुनिया के इंसानो का पथप्रदर्शन / रहबरी तब से कर रहा है, जब आधुनिक विज्ञान का वजूद ही नहीं था और आज साइन्सी दृष्टिकोण विकसित हो जाने के बाद उसके कई फायदे और सार्थकताएँ उजागर हो रही है। जो की इस्लाम के सच्चे और उसके ईश्वरीय धर्म होनी की बड़ी दलील है।

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