सवाल:- कहा जा रहा है कि इस्लाम में औरतों का उनके पति और पिता की मीरास (विरासत / सम्पत्ति) में हिस्से का अधिकार नहीं है?

जवाब:- “हिटलर का एक जुमला मशहूर है कि एक झूठ को इतनी बार बोलो कि लोग उसे ही सच समझने लगे यही हाल आज इस्लाम से नफ़रत करने वालों का है, उन्होंने इस्लाम के बारे में इतना झूठ फैलाया है कि आज लोग अपनी आँखों के सामने की हकीक़त को नहीं देख पाते और हर झूठ को सही समझ लेते हैं।”

इस्लाम ने औरतों को मीरास (जायदाद / सम्पत्ति) में हिस्से का हक़ आज नहीं बल्कि उस दौर में ही दिया जिस दौर में औरतों को मीरास (जायदाद / सम्पत्ति) में हिस्सा देना तो बहुत दूर की बात थी बल्कि उन्हें ख़ुद मीरास / सम्पत्ति समझ कर उन पर कब्ज़ा कर लिया जाता था।

जिसे सबसे पहले क़ुरआन में प्रतिबंधित किया गया-

ऐ ईमान वालों तुम्हारे लिए औरतों को ज़बरदस्ती मीरास में लेने का हक़ नहीं है।
(क़ुरआन 4:19)

इसके बाद इस्लाम ने औरतों के लिए मीरास का अधिकार ना सिर्फ़ पत्नी और बेटी के रिश्ते में तय किया बल्कि बहन, माँ और दूसरे रिश्तों के ज़रिये भी औरतों को मीरास का हिस्सेदार बनाया है। जिसका प्रावधान तो आज भी कई व्यवस्थाओं में नहीं है।

दरअसल इस्लाम मज़हब में इंसान के माँ के पेट में आने से लेकर मरने के बाद तक यानी जिंदगी के हर मोड़ पर स्पष्ट मार्गदर्शन किया है, ऐसे ही इस्लाम ने जहाँ पुरी ज़िन्दगी का तरीक़ा बताया है वहीं मौत के बाद के मसाइल का भी हल पेश किया है, इंसान की मौत के बाद एक महत्वपूर्ण सवाल उसके माल और जायदाद के बंटवारे का होता है, जिसका इस्लाम में मीरास (सम्पत्ति के हक़) के अंतर्गत पूर्ण रूप से विवरण है जैसे किस तरह बंटवारा होगा? अगर मरने वाले के ज़िम्मे किसी का कर्ज़ था तो उसकी अदायगी, वसीयत आदि। उस सम्पूर्ण विवरण में से हम इस सवाल के सम्बंध में सिर्फ़ औरतों से जुड़े अधिकार के बारे में देखते हैं।

जैसे ऊपर उल्लेख किया गया कि इस्लाम में औरतों का विभिन्न रूपों (पत्नी, बेटी, बहन, माँ आदि) में मीरास / विरासत में हिस्सा रखा गया है और सिर्फ़ हिस्सा रखने तक ही नहीं बल्कि यह हिस्सा देना लोगों पर अनिवार्य किया और जो लोग औरतों का हिस्सा हड़प जाते हैं, तो ऐसे लोगों के लिए अल्लाह ने क़यामत में सख्त अजाब से आगाह किया है।

▪️ मीरास में औरतों का हक़ क़ुरआन में:

माँ बाप और रिश्तेदारों के माल में चाहे थोड़ा हो या ज़्यादा मर्द और औरत दोनों का हिस्सा है।
(क़ुरआन 4:7)

मर्दों का हिस्सा दो औरतों के बराबर है।
(क़ुरआन 4:11)

▪️ इसके अलावा क़ुरआन ने शौहर के माल में बीवी का हक़ खुले लफ़्ज़ों / शब्दों में बताया है, अल्लाह त’आला का इरशाद है:

..जबकि (पत्नियों) के लिए उसका चौथाई है, जो (माल आदि) तुमने छोड़ा हो, यदि तुम्हारे कोई संतान न हों। फिर यदि तुम्हारे कोई संतान हों, तो उनके लिए उसका आठवाँ.. 
(क़ुरआन 4:12)

विरासत के अधिकार में पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाएँ हैं:-
जहाँ चार पुरुष >> “पिता, दादा, सह-भाई, पति” को हिस्सा दिया जाता है, तो वहीँ आठ महिलाएँ >> “पत्नी, बेटी, पोती, बहन, माँ-सह-बहन, पिता-सह-बहन, माँ, दादी या नानी को” हिस्सा दिया गया है।

विशेष ध्यान देने की बात यह है कि मीरास में मर्दो और औरतों दोनों का हिस्सा है। प्राप्त हिस्से में से मर्द पर सम्पूर्ण परिवार की आर्थिक ज़िम्मेदारी है, उसके बच्चे, बीवी, बहन, माँ आदि का ख़र्च उठाना उस पर अनिवार्य है औरत को प्राप्त हिस्से पर पूरा अधिकार प्राप्त है उसे किसी पर ख़र्च करने या किसी का व्यय उठाने की ज़िम्मेदारी नहीं है।

औरत का सम्पूर्ण आर्थिक दायित्व मर्दो के ज़िम्मे है। अगर शादी-शुदा हो तो पति पर, यदि पति मर जाये तो उसके बाद उस का दायित्व उसके बाप को बाप नहीं तो भाई, फिर चाचा अगर कोई भी नहीं है, तो फिर उस औरत का दायित्व मुस्लिम समाज पर है कि वह उसकी शादी करवाये या उसके लालन पालन का इंतज़ाम करें।

जबकि औरतों पर स्वयं या किसी और का दायित्व नहीं है, वह अपने हिस्से को जैसे चाहे ख़र्च करे। अतः पुरुषों का हिस्सा मीरास में अधिक रखा गया ताकि न्याय बना रहे।

और अंत में यदि कोई इन सब का पालन नहीं करता और औरतों को मीरास में से हिस्सा नहीं देता तो, इस्लामी हुकूमत होने पर उसे दुनियाँ में भी सज़ा का प्रावधान है और हुकूमत हस्तक्षेप करके औरत को उसका हक़ दिलाने के लिए बाध्य है। यदि इस्लामी हुकूमत नहीं है तब भी और हो तब भी दोनों सूरतों में आख़िरत के अज़ाब से तो आगाह किया ही गया है। –

जैसा कि हुज़ूर पाक सल्लल्लाहु अलैही व सल्लम ने फ़रमाया।

“जो शख्स अपने माल में से अल्लाह की तय कि हुई मीरास को खत्म करेगा अल्लाह जन्नत से उस की मीरास ख़तम कर देंगे”
(सुनन सईद बिन मन्सूर,हदीस नंबर 285)

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