सवाल:- पैगम्बर तो बहुत बाद में (भाषा आदि का विकास होने के बाद) आये इनसे पहले ही आदि मानव कई सालों से बिना किसी ईश्वर / अल्लाह को माने नग्न (बिना कपड़े पहने) रह रहा था। लिपि / भाषा के विकास के बाद चतुर मनुष्यो ने ईश्वर / पैगम्बर का आविष्कार किया । अतः ईश्वर / अल्लाह, ग्रँथ यह सब मनगढ़ंत हैं।
जवाब:- इस तरह के सवाल नास्तिक लोग करते हैं जो कि डार्विन (Darwin) के विकासवाद कि थ्योरी से प्रभावित होते हैं। इस थ्योरी के समर्थक मानते हैं कि मनुष्य पहले बंदर था और फिर धीरे-धीरे मनुष्य बना। जिसे डार्विन की थ्योरी (Darwin’s theory) कहा जाता हैं। कुछ लोग इसे स्थापित सत्य / हक़ीक़त मान लेते हैं। जबकि इतना भी ध्यान नहीं देते कि ये नाम से ही उजागर हो जाता हैं कि यह सिर्फ़ एक थ्योरी (Theory) यानी कि सिर्फ़ एक “मत” हैं जिसका खण्डन आज पूरी तरह से हो चुका हैं।
इस थ्योरी की शुरुआत से ही इस पर आपत्ति ली जाती रही, बल्कि ख़ुद डार्विन ने इस बारे में कहा था कि उनके पास अपने इस मत को साबित करने के लिए कोई सबूत (evidence) नहीं हैं।
अगर इस थ्योरी में कुछ सच्चाई होती यानी कि अगर हम बंदर से इंसान बने थे तो आज हज़ारों वर्ष में हमें इंसान से कुछ और बन जाना चाहिए था। हज़ारो सालों कि पुरातत्व की खुदाई में इंसानी कंकाल के बजाए कुछ और निकलना था। यह थ्योरी यह भी कहती हैं कि एक कोशीय जीव (इंसान) बाद में बहुकोशिकीय हो गया, जबकि अमीबा एक कोशीय जीव आज भी एक कोशीय ही हैं और बहुकोशिकीय हुआ ही नहीं। ऐसे और भी कई तथ्य हैं जो इसे पूर्ण रूप से ग़लत साबित कर देते हैं।
इसी तरह यह अनुमान भी ग़लत साबित हो जाता हैं कि आदि मानव पहले लाखों वर्षों तक भटकता रहा फिर उसमें संवाद, सोच, समझ और निर्णय लेने का विकास हुआ। क्योंकि यह गुण तो उसकी उत्पत्ति से ही उसमे निहित हैं।
हम जब इस बारे में क़ुरआन का अध्ययन करते हैं, तो हमें बहुत साफ़ और सही मार्गदर्शन प्राप्त होता हैं कि इंसान ख़ुद पैदा नहीं हुआ बल्कि इंसान को अल्लाह ने पैदा किया हैं और उसकी उत्पत्ति से ही उसे अल्लाह का मार्गदर्शन प्राप्त हैं।
आइये जानते हैं:-👇
अल्लाह त’आला ने क़ुरआन में फरमाया-
हे मनुष्यों! अपने उस पालनहार से डरो, जिसने तुम्हें एक जीव (आदम) से उत्पन्न किया तथा उससे उसके जोड़े को उत्पन्न किया और उन दोनों से बहुत से नर-नारी फैला दिये।…..
(क़ुरआन 4:1)
यानी कि इस संसार में मनुष्यों की शुरुआत आदम (अलैहिस्सलाम) और उनकी बीवी से हुई। हज़रत आदम (अलैहिस्सलाम) ही दुनिया में पहले मनुष्य थे और ईश्वर के भेजे पहले पैगम्बर / ईश दूत भी। ईश्वर ने हर वक़्त / काल में पैगम्बर भेजे और जिस भी काल में वे आए उस समय के अनुसार ही अल्लाह के बताए नियम (क्या हलाल हैं क्या हराम) से लोगों को अवगत कराया।
प्रथम संदेष्टा से लेकर आखिरी संदेष्टा तक सभी संदेष्टाओं का मुख्य संदेश एक ही रहा हैं वह है तौहीद यानी एकेश्वरवाद एवं ईश्वरीय आदेश का पालन करना। जबकि व्यवहारिक (Practical) आदेशों में समय के अनुसार बदलाव होते रहे। उदाहरण के तौर पर स्वाभाविक-सी बात हैं जब कपड़ों का आविष्कार नहीं हुआ था तब शरीर को कपड़ों से नहीं बल्कि जिस भी चीज़ से ढका जाता था उसी से ढका जाने का आदेश रहा होगा।
निश्चिंत ही इंसानी सभ्यता विकास करती रही उसकी बोली और संसाधनों में विकास होता रहा लेकिन उसमे हमेशा से ही संवाद करने, सोचने, समझने और निर्णय लेने का सामर्थ्य तो हमेशा से ही रहा हैं। इसी के ज़रिये पैगम्बर अल्लाह का संदेश लोगों को देते थे और उन्हें उसका पालन करने के लिए बुलाते थे। अल्लाह ने पैगम्बर / संदेष्टा हमेशा वक़्त के अनुसार ही भेजे जो उस समय की भाषा बोलते थे और आदेश भी समय और संसाधनो के अनुसार ही भेजे गए।
इस तरह के अद्यतन (updates) बदलाव आते रहे और 1400 वर्ष पूर्व मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम) के आ जाने पर अंतिम आदेश (Final update) क़ुरआन आ गया और अब क़यामत तक यही रहने वाला हैं।
अतः इस्लाम के अनुसार यह बात स्पष्ट हैं कि धरती पर मनुष्य के पहले ही दिन से लेकर आज तक इंसान को अल्लाह का स्पष्ट मार्गदर्शन प्राप्त हैं।
➡️ अब अगर हम यह कहें कि अगर ईश्वर के आदेश आते रहे पैगम्बर आते रहे तो फिर ऐसे साक्ष्य क्यों मिलते हैं जिसमें मनुष्य ने वे काम किये जो अल्लाह के आदेश नहीं थे या हराम थे? तो उसका सीधा जवाब यही हैं कि यह तो आज भी हो रहा हैं। ईश्वर का आदेश होने और पैगम्बरों के आने पर भी कई लोग उनका पालन नहीं करते और उनकी अवहेलना / पाप आदि करते हैं जो कि आज इस युग में भी हो रहा हैं।
यानी यह अनुमान कि पैगम्बर बाद में आए और उनसे पहले मनुष्य कुछ भी करते थे सही नहीं हैं। बल्कि पैगम्बरों का मनुष्य जाती की उत्पत्ति से ही मौजूद होना और उनका दिशा निर्देशन करना साबित होता हैं।