सवाल:- जो बच्चा जिस घर पैदा होता है, वो उसी परिवार के धर्म को ही सच मान लेता है जैसे बाकी दूसरे धर्म को झूठ मानता है, अतः धर्म की सच्चाई इतनी ही है और यह सभी झूठ है।

जवाब:- इस तरह के सवाल करने वाले सराहना के पात्र होते हैं । क्योंकि यकीनन अधिकांश लोग अपने माता पिता के धर्म को ही सही मान कर जीवन गुज़ार देते हैं और कभी इस बारे में विचार ही नहीं करते ।

और बस जो बाप-दादाओं को करते पाया उसे ही सत्य मान लेते हैं जबकि वे (पूर्वज / बाप-दादा) भी तो हमारी तरह इंसान ही थे, उनसे भी ग़लती हो सकती है! हो सकता है उन्होंने भी कभी इस बारे में सोचा ही नहीं हो और वे भी बस जो पिछलों को करते पाया उसे ही बिना कुछ जाने करते रहे हों।

इसी बात का क़ुरआन में बार-बार ज़िक्र है :-👇

और जब उनसे कहा जाता है कि उस चीज़ की ओर आओ जो अल्लाह (ईश्वर) ने अवतरित की है और रसूल की ओर, तो वे कहते है, “हमारे लिए तो वही काफ़ी है, जिस पर हमने अपने बाप-दादा को पाया है।” क्या यद्यपि उनके बाप-दादा कुछ भी न जानते रहे हों और न सीधे मार्ग पर रहे हो?
(क़ुरआन 5: 104)

और भी कई जगह इस बात का ज़िक्र है। बहरहाल जो इस बात को समझे कि किसी धर्म में जन्म लेने का यह मतलब नहीं कि वही धर्म सही हो गया वह निश्चित ही सराहना का पात्र है।

अब जब वह इतना सोच पा रहा है तो उसे इसके आगे विचार करना चाहिए कि फिर वह कैसे पता करे की सत्य मार्ग क्या है या कुछ है भी या नहीं ?

जब हम इसमें  सबसे पहले यह विचार करते हैं कि क्या इस संसार को बनाने वाला कोई है भी या नहीं ? या यह दुनिया अपने आप बन गई ?

जब हम इस सवाल पर ग़ौर करते हैं तो इस बात को मानना पड़ता है कि ज़रूर इस कायनात (संसार) को बनाने और चलाने वाला कोई है।

इसकी छोटी-सी और बहूत परफेक्ट मिसाल यह है कि इंसान एक अन्वेषक (Innovator) तो है लेकिन सृजक (Creator) नहीं। आज तक इतिहास में चाहे इंसान ने जितनी तरक्क़ी कर ली हो । लेकिन आज तक वह ख़ुद से एक कण भी नहीं बना पाया है। इंसान ने जो कुछ भी बनाया या ईजाद किया वह तो पहले से ही मौजूद किसी ना किसी चीज़ का इस्तेमाल कर बनाया है।

जैसे आज भले इंसान ने राकेट बना लिया हो लेकिन उसके निर्माण में इस्तेमाल चीज़ों का वह जनक नहीं। फिर चाहे वह धातु हो, ईंधन हो या कुछ और आधारभूत तत्व (Basic element) उसने ख़ुद ने नहीं सृजन (Create) कर लिए बस उनका इस्तेमाल कर कुछ का कुछ किया है।

ऐसे ही राकेट का हवा में जाना या अपने लक्ष्य पर जाना। कायनात में कार्य कर रहे कानून (Laws) के इस्तेमाल से ही सम्भव होता है। यह बात साइंस का इल्म रखने वाले जानते हैं। कि इसके पीछे भौतिकी के नियम (Laws of physics), वायुगतिकी (Aerodynamics) और दूसरी अन्य लॉ काम करते हैं। जो कायनात में पहले से मौजूद हैं और काम कर रहे हैं।

अतः हमें मानना पड़ता है कि आज तक जब हम एक कण ख़ुद से ना बना सके तो यह पूरी सृष्टि बनाने वाला कोई तो है और इस्लाम हमें किसी और कि तरफ़ नहीं बल्कि उसी सृजक (Creator), सृष्टिकर्ता जिसने हम सब को बनाया की तरफ़ बुलाता है :-

अल्लाह हर चीज़ का स्रष्टा है और वही हर चीज़ का ज़िम्मा लेता है।
(क़ुरआन 39:62)

वही अल्लाह तुम्हारा रब; उसके सिवा कोई पूज्य नहीं; हर चीज़ का स्रष्टा है; अतः तुम उसी की बन्दगी करो। वही हर चीज़ का ज़िम्मेदार है।
(क़ुरआन 6:102)

जैसा हमने देखा कि यह बिल्कुल स्पष्ट और सीधी-सी स्वाभाविक बात है कि इस संसार को बनाने वाले कि हम इबादत करें और सिर्फ़ उसी की और जो मार्ग जाता है वही सत्य मार्ग है।
लेकिन आज अगर विश्व भर में हमें यदि देखना हो कि कौन-सा धर्म है जो बिना किसी विरोधाभास (Contradiction) के सख्ती से (Strictly) उसी एक ईश्वर की इबादत करने और उसके आदेशों का पालन करने की बात करता है तो जवाब इस्लाम ही है।

वैसे सिर्फ़ ईश्वर का एक होना और उसी की इबादत करना न सिर्फ़ इंसान की बुद्धि में निहित है बल्कि हर प्रमुख धर्म ग्रन्थ में कहीं ना कहीं यह बात मौजूद भी है इसीलिए क़ुरआन में फ़रमान है :-

(हे नबी!) कहो कि हे अह्ले किताब! एक ऐसी बात की ओर आ जाओ, जो हमारे तथा तुम्हारे बीच समान रूप से मान्य है कि अल्लाह के सिवा किसी की इबादत (वंदना) न करें और किसी को उसका साझी न बनायें तथा हममें से कोई एक-दूसरे को अल्लाह के सिवा पालनहार न बनाये। फिर यदि वे विमुख हों, तो आप कह दें कि तुम साक्षी रहो कि हम (अल्लाह के) आज्ञाकारी हैं।
(क़ुरआन 3:64)

बड़े ही दुःख की बात है कि इतना खुला और स्वाभाविक सन्देश होने के बावजूद हमेशा ही लोगों ने सिर्फ़ अल्लाह की इबादत (एकेश्वरवाद) का निमंत्रण देने वालों को और इसे अपनाने वालों को हमेशा बुरा-भला ही कहा है और हर सम्भव तकलीफ़ दी है।

ऐसा ही वाकया क़ुरआन में सुरः यासीन में बयान हुआ है :-

जब ईश्वर ने एक कौम की तरफ़ पैग़म्बर (सन्देष्टा) भेजें जो उन्हें एक ईश्वर की तरफ़ बुला रहे थे, तो वे लोग उन्हें बुरा-भला कहने लगे और उन्हें संगसार (पत्थर मार कर हत्या) की धमकी देने लगे इसी दौरान एक बुद्धि से काम लेने वाला शख़्स दौड़ा आया-

और शहर के उस सिरे से एक शख़्स दौड़ता हुआ आया और कहने लगा कि ऐ मेरी क़ौम (इन) पैग़म्बरों का कहना मानो
(क़ुरआन 36:20)

ऐसे लोगों का (ज़रूर) कहना मानो जो तुमसे कुछ मज़दूरी नहीं माँगते और वह लोग हिदायत याफ्ता भी हैं।
(क़ुरआन 36:21)

तथा मुझे क्या हुआ है कि मैं उसकी इबादत (वंदना) न करूँ, जिसने मुझे पैदा किया है? और तुम सब उसी की ओर फेरे जाओगे।
(क़ुरआन 36:22)

मैं तो तुम्हारे परवरदिगार पर ईमान ला चुका हूँ मेरी बात सुनो और मानो; मगर उन लोगों ने उसे संगसार कर डाला।
(क़ुरआन 36:25-26)

बेशक ऐसे ही लोगों के लिए कामयाबी है। सोच विचार करने वाले एकेश्वरवाद की तरफ़ आएँ और क़ुरआन जो कि उस ईश्वर की तरफ़ से भेजी गई वाणी है उसका अध्ययन कर ख़ुद तय करें कि क्या ईश्वर का उनके लिए सन्देश क्या है? इसमें ईश्वर ने हर तरह से सत्य की खोज करने वालों के लिए निशानियाँ बयान कर दी हैं।

और यह तुम्हारे रब का रास्ता है, बिल्कुल सीधा। हमने निशानियाँ, ध्यान देनेवालों के लिए खोल-खोलकर बयान कर दी है।
(क़ुरआन 6:126)

 

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