सवाल-अगर क़ुरआन एक मुकम्मल किताब है, तो हदीस को मानने का मतलब क़ुरआन मुकम्मल किताब नहीं है, हदीस मानना मतलब अल्लाह नहीं है। (मआज़ अल्लाह)

क़ुरआन क्या है?

क़ुरआन अल्लाह का कलाम (ईश वाणी) है जो उसके आख़िरी पैगम्बर हज़रत मोहम्मद (स.अ.व.) पर नाज़िल (अवतरित) हुई। इसमे कुल 114 सुरः (पाठ) हैं, दूसरे धर्म ग्रँथों से अलग क़ुरआन की विशेषता यह है कि इसमें विशुद्ध अल्लाह का कलाम (ईश वाणी) है। इसके अलावा इसमें ना किसी और के वचन हैं ना किसी और की कोई शिक्षा है ना किसी और की कोई व्याख्या, ना ही कोई विरोधाभास और ना ही कोई मिलावट।

 

हदीस क्या है?

पैगम्बर ऐ इंसानियत हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम ने जो लोगों को क़ुरआन के बारे में सिखाया जैसे क़ुरआन में दिए आदेशों का किस तरह पालन करना है, विधि विधान और दूसरी शिक्षा दी वे अलग किताबों में संग्रहित है जिन्हें हदीस कहा जाता है।

 

जिसके बारे में अल्लाह ने क़ुरआन में फरमाया:-

अल्लाह ने ईमान वालों पर उपकार किया है कि स्वयं उन्हीं में से एक रसूल भेजा, जो उनके सामने (अल्लाह) की आयात पढ़ता है, उन्हें शुद्ध करता है तथा उन्हें पुस्तक (क़ुरआन) और हिक़मत  (तत्वदर्शिता) की शिक्षा देता है, यद्यपि “वे” इससे पहले खुले कुपथ में थे।              (क़ुरआन 3:164)

अल्लाह (ईश्वर) की हम पर महान कृपा हुई कि उसने ना केवल हमारे मार्गदर्शन के लिए क़ुरआन भेजा, पर साथ ही क़ुरआन की शिक्षा देने के लिए, उसमें दिए आदेशों का किस तरह अमल (व्यवहारिक पालन) हो उसके लिए ख़ुद हज़रत मुहम्मद (स.अ.व.) को आदर्श (रोल मॉडल) बना कर भेजा। ख़ुद आप मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम 22 वर्ष के लम्बे अंतराल तक लोगों के बीच रहकर क़ुरआन पर अमल करते रहे और लोगों को सिखाते रहे ।

 

जैसा कि क़ुरआन में फ़रमाया:-

तुम्हारे लिए अल्लाह के रसूल में उत्तम आदर्श है, उसके लिए, जो आशा रखता हो अल्लाह और अन्तिम दिन (प्रलय) की तथा याद करो अल्लाह को अत्यधिक।(क़ुरआन 33:21)

 

और हज़रत मुहम्मद (स.अ.व.) की इन्हीं शिक्षा के उल्लेख को हदीस कहा जाता है। जिसका पालन करने के लिये ख़ुद क़ुरआन आदेश देता है ।

तो क़ुरआन किस तरह मुकम्मल किताब है और क्या इन्सान की निजात के लिए अल्लाह ने सिर्फ हमे क़ुरआन दिया है?

 

क़ुरआन अपनी जगह मुकम्मल (सम्पूर्ण) है, एक मात्र है। जब कि दूसरे धर्म ग्रँथों की बात करें तो उनमें कई ग्रन्थ मिल जाएंगे। हिन्दू धर्म में श्रुति और स्मृति और उसमे भी कई पुस्तकें है जैसे 4 वेद, 18 पुराण, 108 उपनिषद और उसके बाद स्मृति है। बाइबल के तो कई अलग-अलग संस्करण (Versions) हैं, बौद्ध धर्म में त्रिपट्टिका हैं आदि।

 

अतः कई बार बुनियादी अक़ीदों (मूल सिद्धांत) में ही विरोधाभास हो जाता है या मूल सिद्धांत और अन्य बातों को समझने के लिए ही अलग-अलग स्त्रोतों पर निर्भर होना पड़ता है और उसमें भी अलग-अलग मत और उल्लेख होते है।

 

जब कि क़ुरआन में ऐसा नहीं है वह सिर्फ़ एक मात्र है, मुकम्मल है जिस का मूल सिद्धांत सम्पूर्ण है, मरणोपरांत जीवन, परलोक आदि और अंत सभी सिद्धान्त मुकम्मल रुप से स्पष्ट है इसमे कोई विरोधाभास नहीं है और इसके लिए आपको और किसी अन्य ग्रन्थ पर आश्रित होने की आवश्यकता नहीं।

 

जहाँ तक हदीस की बात है तो वह सिर्फ़ क़ुरआन को लागू करने की तरह है, जिसका क़ुरआन से कभी टकराव नहीं हो सकता ।

 

जैसे उदाहरण के तौर पर अल्लाह ने लोगों को क़ुरआन में नमाज़ पड़ने का हुक्म दिया। अब नमाज़ पढ़ना कैसे है उसके लिये ख़ुद हज़रत मुहम्मद (स.अ.व.) को लोगों के बीच भेजा, उन्होने ख़ुद नमाज़ पढ़ी लोगों को उसकी विधि सिखाई वह हदीसों में संग्रहित है। अतः क़ुरआन में आदेश है, तो हज़रत मुहम्मद (स.अ.व.) की सुन्नत (तरीक़े) से उस आदेश को कैसे पूरा करना है वह पता चलता है और उस तरीके (सुन्नत) का उल्लेख हदीस कहलाता है।

 

🍁 अंत में अति महत्वपूर्ण बात यह कि कुछ लोगों को इस्लाम के बुनियादी सिद्धांत ही पता नहीं होते और वे अपने अनुसार ही व्याख्या कर लेते हैं। जैसे यहाँ सवाल करने वाले को आभास है कि इस्लाम में मनुष्य की निजात के लिए अल्लाह ने सिर्फ़ क़ुरआन भेजा और सिर्फ़ वह ही पर्याप्त होना चाहिये। जबकि  उसे नहीं पता कि अल्लाह ने सिर्फ़ क़ुरआन ही नहीं भेजा बल्कि साथ ही रसूल (स.अ.व.) भी भेजे हैं और इस्लाम का बुनियादी अक़ीदा ही क़ुरआन और सुन्नत [ रसूल (स.अ.व.) की शिक्षा ] दोनों पर अमल है दोनों को मिला कर ही इंसान का दीन (धर्म / मज़हब) मुकम्मल होता है।

 

जैसा कि फ़रमाया क़ुरआन में –

“हे ईमान वालो! अल्लाह की आज्ञा का अनु पालन करो और रसूल की आज्ञा का अनु पालन करो।                       (क़ुरआन 4:59)

 

…जिस चीज का नबी तुम्हें आदेश दे उसको ले लो और जिस चीज से रोके उससे रुक जाओ।…                            (क़ुरआन 59:7)

 

अतः हदीस (आप की शिक्षाओं का उल्लेख) का पालन दरअसल क़ुरआन के आदेश का पालन करना ही है और दोनों मिलकर ही दीन मुकम्मल करते है।

 

इसलिए आपको चाहिए कि आप पहले इस्लाम की बुनियादी अक़ीदे का अध्ययन करे और इसके बगैर आप सिर्फ़ अपनी कल्पना के आधार पर कोई आक्षेप करते रहेंगे तो वह इतने ही निराधार साबित होंगे जितना की यह आक्षेप हुआ।

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