सवाल:- बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए इस्लाम धर्म की शिक्षा क्या है?

जवाब:- हमारे सृष्टिकर्ता परमेश्वर ने इस्लाम के माध्यम से मनुष्य की हर मार्ग में अगुवाई की है। इस्लाम धर्म हर बुजुर्ग, जवान, स्त्री, पुरुष सबके साथ लेकिन विशेष रूप से बच्चों के साथ अच्छा व्यवहार करने का संदेश देता है। बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते है इसलिए उनके बचपन में ही उन्हें किस प्रकार सही दिशा में ढालना है इसके प्रति इस्लाम धर्म की शिक्षाऐं अति उत्तम है।

 

👉 निर्धनता के कारण बच्चों को ना मारा जाए। 

अरब देश में कई बार ऐसा होता था कि लोग बच्चों का लालन पोषण करने में अक्षम होते तो उन्हें जान से मार देते थे। ऐसे में क़ुरआन के माध्यम से ईश्वर ने लोगों को सख़्त चेतावनी दी,

“और निर्धनता के भय से अपनी सन्तान की हत्या ना करो, हम उन्हें भी रोज़ी देंगे और तुम्हें भी। वास्तव में बच्चों की हत्या बहुत ही बड़ा अपराध है।”

(क़ुरआन 17:31)

 

👉 लिंग के आधार पर बच्चों में भेदभाव ना किया जाए। 

इस्लाम धर्म इस बात का भी ध्यान रखता है कि बच्चों के साथ लिंग के कारण भेदभाव ना किया जाए। नबी का संदेश है कि “जो मुसलमान व्यक्ति लड़कों को लड़कियों पर श्रेष्ठ ना समझे और स्त्रियों का अनादर ना करे, ऐसे व्यक्ति को ईश्वर स्वर्ग प्रदान करेगा।”

[पैगम्बर मुहम्मद (स.अ.व.)]

 

👉 लड़का, लड़की दोनों के लिए शिक्षा प्राप्त करना अनिवार्य।

इस्लाम धर्म में बच्चों को शिक्षित करने के लिए बड़ा ज़ोर दिया है। क़ुरआन की पहली आयत ‘इक़रा’ अर्थात ‘पढ़ो’ है, इसका अर्थ यह हुआ कि इस्लाम में शिक्षा की बड़ी अहमियत है और “इस्लाम का पहला पैगाम शिक्षा है।”

(क़ुरआन 96:1-5)

 

नबी का कथन है कि “शिक्षा प्राप्त करना हर पुरूष और स्त्री पर अनिवार्य है।”

(इब्ने माजा, हदीस 224)

 

👉 पैग़म्बर मुहम्मद (स.अ.व.) का बच्चों के प्रति सद व्यवहार।

मुहम्मद (स.अ.व.) की ये खूबी तो थी ही कि वह अमीर ग़रीब, गोरे काले, ऊँचे नीचे, शिक्षित अशिक्षित, का भेद किये बिना हमेशा दूसरों से अच्छी भावना के साथ मिलते थे। मिलने वाले की इज़्ज़त करते, अपने साथियों और दुश्मनों का भी सम्मान करते थे। मुहम्मद (स.अ.व.) की ये भी विशेषता थी कि अपने पराये का भेद किये बिना सभी बच्चों से प्रेम करते थे।

 

👉 बच्चों को देखकर स्वयं सलाम करना। 

हज़रत अनस रजि. कहते हैं, आप सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम बच्चों के पास से गुज़रते तो ख़ुद उन्हें सलाम करते ताकि वह भी अपने से छोटे और बड़ों का अभिवादन करना सीखें।

(सहीह बुख़ारी , किताबुल इस्तेज़ान, अध्याय तसलीम, सहीह मुस्लिम किताबुस्लाम, मुसनद अहमद 12362)

 

👉 नमाज़ की हालत में

मुहम्मद (स.अ.व.) ने एक बार अपनी नवासी उमामा बिन्ते अल आस रजि. को कंधों पर उठा लिया और नमाज़ पढ़ने लग गए, जब रुकूअ करते तो उसको नीचे रखते और जब रुकूअ से सर उठाते तो फिर दोबारा उठा लेते। इसके साथ ही उन्हें ईश्वर की भक्ति करने के लिए भी प्रेरित करते ताकि वह नास्तिक नहीं आस्तिक बनें।

(बुखारी, किताबुल बर्र व सलात, अध्याय रहमतुल बलद)

 

👉 बच्चों के साथ मनोरंजन।

बच्चों के साथ पैगम्बर मुहम्मद (स.अ.व.) विशेष रूप से प्रेम करते, दया भावना रखते। उनके लिए बरकत की दुआ करते, उन्हें गोद में बिठा लेते और कभी-कभी बच्चा पेशाब भी कर देता, लेकिन आपके चेहरे पर नाराज़गी ना आती, कभी आप सवारी पर होते तो बच्चों को देखकर रुक जाते और उन्हें सवारी पर पीछे बिठा लेते। बच्चों को खेलते देखकर खुश होते और बच्चों के कहने पर ख़ुद भी उनके साथ खेलते। कोई भी बच्चा मिलता प्रेम से उसके सिर और गालों पर हाथ फेरते।

(सही मुस्लिम, किताबुल फ़ज़ाइल)

 

👉 मौसम का पहला फल बच्चों को खिलाते। 

हज़रत अबू हुरैरा रजि. बयान करते हैं, “जब मौसम का नया फल आता तो मुहम्मद (स.अ.व.) की सेवा में पेश किया जाता, तो आप इस प्रकार अल्लाह से प्रार्थना करते: ‘ऐ अल्लाह हमारे मदीना, हमारे फलों और मुद व साअ में आशीष प्रदान कर और फिर वह फल जो छोटा बच्चा क़रीब होता, उसको दे देते।”

(सहीह मुस्लिम, किताबुल हज, अध्याय फ़ज़्ल मदीना, दुआ नबी सल्ल०, सुनन इब्ने माजा)

 

👉 युद्ध में भी किसी बच्चे को ना मारने का नियम। 

पैगम्बर मुहम्मद (स.अ.व.) दुश्मनों के बच्चों के साथ भी नेक व्यवहार करते। यहाँ तक कि दुश्मनों के बच्चे भी पैग़म्बर की नेक दिली के कारण आपके पास आया करते थे।

जब भी युद्ध होता तो आप विशेष रूप से आज्ञा देते कि ‘सावधान! किसी बच्चे को मत मारना, वे निर्दोष है।’

एक युद्ध में कुछ बच्चे मारे गए, आपको सूचना मिली तो आपको बड़ा दुख हुआ। एक सहाबी ने कहा- ‘ऐ अल्लाह के रसूल वह तो अत्याचारियों के बच्चे थे, इस पर नबी ने कहा, “सावधान किसी बच्चे को ना मारना, हर बच्चा ईश्वर के मार्ग की प्रकृति पर पैदा होता है।”

(सिलसिला सहीहा लिलअलबानी, हदीस 402)

 

ये कुछ उदाहरण है जिससे पता चलता है कि इस्लाम ने बच्चों के साथ अच्छे व्यवहार के लिए बेहतर शिक्षाऐं दी है।

अतः हम सबको चाहिए कि उपर्युक्त शिक्षाओं के अनुसार बच्चों के साथ व्यवहार करें।

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