सवाल:- पैगंबर ए इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्ल्लाहु अलयही वसल्लम ने कई शादियां क्यों कीं?
इस्लाम से नफ़रत रखने वालों की तरफ से हर ज़माने में तरह तरह से इस्लाम और इस्लाम की तालीमात पर किसी ना किसी तरह ऐतराज़ किए जाते रहे हैं, और यह कोई हैरत की बात नहीं, बल्कि ये तो इस्लाम के ज़िंदा मज़हब होने की पहचान है, उन्हीं ऐतराज़ और सवालों में एक यह सवाल है जो उन की तरफ से अक्सर होता रहा है, जिस की आढ़ में हुज़ूर (सल्ल्लाहु अलयही वसल्लम) की पाकीज़ा शख्सियत पर बेहूदा और घिनावने इल्ज़ाम लगा कर लोगों के दिलों में इस्लाम और नबी के बारे में नफरत डालने और भोले और सादा मुसलमानों को अपने नबी के बारे में शक और वहम में डालने की कोशिश की जाती है, हालांकि इस ऐतराज़ की हैसियत उस राख के ढेर से ज़्यादा कुछ नहीं जिसे मामूली सा हवा का झोंका उड़ा कर किनारे लगा देता है, इसी लिए मुसलमानों की तरफ से हमेशा इस का जवाब दिया जाता रहा है।
तो आएं आज फ़िर हम आप के सामने इस का जवाब पेश करते हैं, आगे बढ़ने से पहले यहां दो प्वॉइंट अच्छी तरह समझ लेना चाहिए!
- (1) नबी ए पाक (सल्ल्लाहु अलयही वसल्लम) के पहले निकाह के अलावा सारे निकाह बुढ़ापे के ज़माने यानी 50 साल की उम्र के बाद हुए हैं, तमाम इतिहासकार इस पर मुत्तफिक हैं कि नबी का 25 बरस तक किसी ओरत से विवाहित संबंध नहीं रहा, हालांकि उम्र का यही वो दौर है, जिस में इंसान पर जवानी का भूत सवार हो कर उसे पागल बना देता है, खास तौर पर 25 बरस तक का ज़माना तो बहुत नाज़ुक होता है, अगर कंट्रोल ना हो तो इंसान इस जवानी के जुनून में हर तरह का बुरा से बुरा काम कर गुज़र सकता है, लेकिन इतिहास गवाह है कि नबी (सल्ल्लाहु अलयही वसल्लम) ने ये ज़माना जिस शुद्धता और पाकदामनी के साथ गुज़ारा है, उस की मिसाल पेश नहीं की जा सकती, ख़ुद नबी के दुश्मन, मक्का के मुशरिकों ने उस वक़्त आप की दुश्मनी और आप की बातों से लोगों को दूर रखने के लिए उन पर क्या क्या आरोप और इल्ज़ाम नहीं लगाए, आप को जादूगर कहा, कभी शायर कहा, कभी नजुमी कहा, और इसी तरह के इल्ज़ाम लगाए, लेकिन इतिहास की किसी किताब में नहीं मिले गा कि किसी ने आप की जवानी पर कोई सवाल उठाया हो, आप की पाकीज़गी की इस से बड़ी दलील शायद और कुछ नहीं हो सकती, क्यूं कि ये वो लोग थे जो मोका मिलने पर आप की जान लेने में भी नहीं झिझकते!!
- (2) हज़रत आयशा (रज़ियल्लाहु अन्हा ) के अलावा नबी ए पाक की सारी बीवियां विधवा व बेवा थीं, जब कि ये एक सच है कि हवस परस्त और एश पसंद लोग विधवा और बड़ी उम्र की औरतों के बजाए नई नवेली कुंवारी लड़कियों को पसंद करते हैं, चाहे ख़ुद कितने ही बूढ़े क्यूं ना हों!
मगर हम देखते हैं कि नबी ए पाक पहले तो 25 साल तक तन्हाई की ज़िंदगी बसर करते हैं और फिर जब शादी करते हैं तो ऐसी ओरत से जो उम्र में आप से पंद्रह साल ज़्यादा और एक नहीं, बल्कि दो शोहरों के निकाह (विवाह) में रह चुकी थीं और उन की उम्र और जवानी का अक्सर हिस्सा गुज़र चुका था, फिर अपनी अच्छी ताकत और सेहत के ज़माने यानी 25 से 50 साल तक का ज़माना उसी एक विधवा और उम्र दराज़ बीवी के साथ गुज़ार देते हैं।
- ये दो प्वाइंट यहां इतने महत्वपूर्ण हैं कि सिर्फ़ इन्हीं से नबी पर इल्ज़ाम लगाने वालों के इल्ज़ामात टूट कर बिखर जाते हैं और नबी ए पाक की शुद्धता और पाकदामनी खुल कर सामने आ जाती है।
अब हम आप की बीवियां के संक्षेप में हालात लिखते हैं, जिन से हमारा दावा पूरी तरह साबित हो कर, हर इंसाफ पसंद इंसान को ये मानने पर मजबूर कर देगा कि नबी ए पाक जिस दीन को ले कर इस दुनिया में तशरीफ लाए थे, उस के लिए ये शादियां कितनी जरूरी थीं!!
(1) हज़रत खदीजा (रज़ियल्लाहु अन्हा)
ये नबी की सब से पहली बीवी रहीं, शादी के वक़्त इन की उम्र 40 साल थी, ये पहले “अबू हाला” फिर “अतीक बिन आयिद” के निकाह में रहीं उन की वफात के बाद आप के निकाह में आयीं, नबी ने अपनी पूरी जवानी का ज़माना इन्हीं के साथ गुज़ारा, हज़रत इब्राहीम के इलावा आप की तमाम औलाद इन्हीं से हुई, 65 साल की उम्र में वफात पाई, इसी दौरान मुहम्मद (सल्ल्लाहु अलयही वसल्लम) को 40 साल की उम्र में नुबुव्वत मिली, इसी लिए शुरू में इस्लाम की तबलीग और नबी की मदद में आप की बड़ी कुर्बानियां रहीं।
(2) हज़रत सौदा (रज़ियल्लाहु अन्हा)
हज़रत खदीजा की वफात के बाद नुबुव्वत के दसवें साल आप के निकाह में आईं, उस वक़्त इन की उम्र 50 या 55 साल थी, इन के पहले शोहर इंतिक़ाल कर गए थे, जिस की वजह से बे यार व मदद गार तंगी की ज़िंदगी गुज़ार रहीं थीं, नबी ने इन की दीन व दुनिया की हिफाज़त व मदद के लिए इन से निकाह कर के इन की सारी परेशानियों को ख़तम किया।
(3) हज़रत आयशा (रज़ियल्लाहु अन्हा)
मदीना हिजरत से तीन साल पहले निकाह हुआ और नुबुव्वत के तेरहवें या चौदहवें और हिजरत के पहले साल में रुखसती हुई, 9 साल नबी ए पाक के निकाह में रहीं, सिर्फ़ यही एक बीवी हैं, जो बिन ब्याही और कुंवारी थीं, नबी के दुनिया से जाने के बाद 48 साल ज़िंदा रहीं, अहकाम, मसाइल और दीन की जानकारी में आप की सारी बीवियों से आगे थीं!
(4) हज़रत हफ्सा (रज़ियल्लाहु अन्हा)
हज़रत उमर की बेटी थीं, नुबुव्वत के पंद्रहवें और हिजरत के तीसरे साल निकाह में आईं, पहले शौहर का इंतकाल हो गया था, हज़रत उमर ने बाप होने के नाते पहले अबू बकर और उस्मान की निकाह का पैग़ाम दिया, लेकिन जब इन हज़रात ने कोई जवाब नहीं दिया तो नबी ए पाक ने निकाह फरमा कर हज़रत उमर को इज्ज़त बख़्शी, कुल आठ साल आप के निकाह में रहीं।
(5)हज़रत ज़ैनब बिंत ए खुज़यमा (रज़ियल्लाहु अन्हा)
नुबुव्वत के पंद्रहवें और हिजरत के तीसरे साल निकाह में आईं, उहद की जंग में इन के शौहर अब्दुल्लाह बिन जहश शहीद हो गए थे, इसलिए इन की तसल्ली और इज्ज़त अफजाई की खातिर निकाह किया, निकाह के दो तीन महीने बाद ही इंतकाल कर गईं!
(6) हज़रत उम्मे सलमा (रज़ियल्लाहु अन्हा)
नुबुव्वत के सोलहवें और हिजरत के चोथे साल ये भी विधवा होने की हालत में आप के निकाह में आईं, शौहर के निधन के बाद इन के चार बच्चे यतीम बिल्कुल बे सहारा थे, उन की कफालत और परवरिश के लिए नबी ने इन से निकाह किया और आप ने इन बच्चों को इतना प्यार दिया कि वो अपने बाप बिल्कुल भूल गए, नबी ए पाक के बाद सात साल ज़िंदा रहीं, इंतकाल के वक़्त 80 या 84 साल की उम्र थीं।
(7) हज़रत ज़ैनब बिंत ए जहश (रज़ियल्लाहु अन्हा)
आप की फूपी ज़ाद बहन थीं, आप के ग़ुलाम और मुंह बोले बेटे हज़रत ज़ैद के निकाह में थीं, उन की आपसी रंजिश की वजह तलाक़ की नोबत आ गई थी, जिस से उन की दिल शिकनी हुई, नबी ने खुदा के हुक्म से उन की तसल्ली और एक बुरी रस्म को तोड़ने के लिए निकाह किया, छह साल आप के निकाह में रहीं, ये निकाह नुबुव्वत के सत्रहवें और हिजरत के पांचवे साल में हुआ।
(8) हज़रत जुवेरिया (रज़ियल्लाहु अन्हा)
एक बड़े सरदार की बेटी थीं, इन का कबीला इस्लाम दुश्मनी, चोरी, डकेती में मशहूर था, जंग के दौरान दूसरे केदियों के साथ गिरिफ्तार हो कर आईं, आप ने उन की खुशी उन से निकाह किया, जिस के नतीजे में उन का कबीला भी मुसलमान हुआ, ये शादी नुबुव्वत के सत्रहवें या अठारवें और हिजरत के पांचवें या छटे साल में हुई।
(9) उम्मे हबीबा(रज़ियल्लाहु अन्हा)
अबू सूफियान बिन हरब (रज़ियल्लाहु अन्ह )की बेटी थीं, हब्शा हिजरत की, वहीं इन के पहले शौहर मुरतद हो कर इंतकाल कर गए, फिर नुबुव्वत के अठाहरवें और हिजरत के छटे साल हबशा के बादशाह नजाशी ने नबी के हुक्म पर इन का निकाह नबी से कर दिया, 74 साल की उम्र में वफात हुई!
(10)हज़रत सफिय्या (रज़ियल्लाहु अन्हा)
कबीला बनू नज़ीर के सरदार की बेटी थीं, पहले शौहर से तलाक़ हुई, दूसरे शौहर खेबर की जंग में मारे गए, जिस में ये गिरिफ्तार हो कर आईं, आप ने आजाद कर के अपने निकाह में ले लिया,ये वाकया नुबुव्वत के उन्नीसवें और हिजरत के सातवें साल में पेश आया, सवा तीन साल आप के निकाह में रहीं!
(11) हज़रत मयमूना (रज़ियल्लाहु अन्हा)
नुबुव्वत के उन्नीसवें और हिजरत के सातवें साल, नबी की वफात से तीन साल पहले निकाह में आईं, ये आखिरी बीवी थीं, इन के बाद आप ने किसी ओरत से निकाह नहीं किया,ये पहले अबू रहम के निकाह में थीं, आप के चालीस साल बाद 80 साल की उम्र में वफात पाई।
इस तफसील से कुछ प्वाइंट खुल कर सामने आते हैं:
- (1) हज़रत आयशा के अलावा आप की सारी बीवियां वो थीं जो पहले दूसरे शौहरों के साथ विवाहित रह चुकी थीं।
- (2)जिन औरतों से आप ने शादी की, उन में अक्सर उस उम्र को पहुंच चुकी थीं जिस उम्र में ओरतें शादी के लायक नहीं बचतीं।
- (3)आप की ये सारी शादियां मदीना पहुंचने के बाद हुईं जहां दुश्मनों के साथ जंगों को सिलसिला शुरू हो चुका था, जिस बिना पर आप को अक्सर घर से बाहर रहना होता था।
इन बातों के सामने रख कर कोई इंसाफ़ पसंद कैसे कह सकता है कि नबी ने ये शादियां इस लिए की क्यों कि आप को औरतों की बहुत चाहत थी? (नऊज़ू बिल्लाहि मिन ज़ालिक) सच ये है कि आप को औरतों की कोई ज़्यादा ख्वाहिश नहीं थी, जैसा कि ख़ुद आप ने फ़रमाया: ما لی فی النساء من حاجۃ. (मुझे औरतों की कोई ज़रूरत नहीं) लेकिन इस के बावजूद आप ने ये शादियां खुदा के हुक्म से की, जिन में दीन की कुछ हिकमतें और फायदे सामने थे।
वो क्या हिकमतें और फायदे थे जिन की वजह से आप ने ये शादियां की?
नीचे इन्हीं मस्लिहतों और हिकमतों में कुछ हम आप के सामने बयान करते हैं।
(1) दीन सिखाना:
यह सब से बुनियादी प्वाइंट है, नबी ए पाक (सल्ल्लाहु अलयही वसल्लम) को इस दुनिया में पूरी इंसानियत को ज़िंदगी गुजारने का सही रास्ता दिखाने और बुराई के रास्ते से बचाने के लिए भेजा गया, इसी मकसद के लिए आप पर कुरआन उतारा गया, ख़ुदा की तरफ से आप को ख़ूबसूरत तालीेमात दी गईं, अब इस तालीम में बहुत सारी वो बातें भी हैं, जिन का सम्बन्ध सिर्फ़ मर्दों से है, और कुछ वो हैं जो सिर्फ़ औरतों से रिलेटिव हैं, इस लिए ज़रूरत थी कि जिस तरह मर्दों की एक तादाद के साथ रह कर दीन और दीन की बातों को सीखें, ऐसे ही इस बात की भी सख़्त ज़रूरत थी कि औरतों की भी एक तादाद ऐसी हो, जो अंदर व बाहर आप के साथ रहे, ताकि उन के वास्ते से वो बातें भी दूसरी औरतों तक पहुंचाई जा सकें, जो एक ओरत शर्म की वजह से अजनबी मर्द से नहीं पूछ सकती।
फिर ये बात भी है कि नबी की पूरी ज़िंदगी लोगों के लिए नमूना है, जो आप ने ज़बान से कहा, जो आप ने कर के दिखाया, जो आप के सामने किया गया और आप ने उसे नहीं रोका, ये सारी चीज़ें दीन ए इस्लाम का हिस्सा है, इस के बग़ैर इस्लाम अधूरा है, अब ज़ाहिर है कि अगर अज़्वाज ए मुतहरात (नबी की बीवियां) ना होती, घरेलू ज़िंदगी गुज़ारने का सही तरीका केसे मालूम होता? यही तो वो औरतें हैं जो घरेलू ज़िंदगी में दीन व दुनिया दोनों के लिए गाइड का दर्जा रखती हैं, इसी लिए अल्लाह ने इन औरतों से खास तौर पर कुरआन में कहा था: و اذكرن ما يتلى عليكم في بيوتكن من آيات الله و الحكمة
(सूरह अहज़ाब: आयत:24)
ख़ुदा की उन आयतों को जो तुम्हारे घर में पढ़ी जाती हैं, और नबी के तरीके को खूब याद रखो।
(2)एक गलत रस्म का तोड़ना:
अरब के लोगों में जहां बहुत सी रस्में जहालत की वजह से पैदा हो गईं थीं, वहीं एक रस्म ये भी थी कि वो अपने मुंह बोले बेटे को असली बेटे के दर्जे में समझा जाता था, जैसे असली बेटा अपनी बीवी को तलाक दे तो उस ओरत से शादी नहीं की जा सकती थी, यही मामला मुंह बोले बेटे के साथ किया जाने लगा था, ओर इस्लाम जो हर गलत रस्म को मिटाने के लिए ही आया था, वो इस ना माकूल रस्म को केसे बाक़ी रख सकता था, इस लिए नबी ने अल्लाह के हुक्म पर हज़रत ज़ैद जो आप के ग़ुलाम और मुंह बोले बेटे थे, उन की तलाक शुदा बीवी हज़रत जैनब से शादी कर के इस रस्म को हमेशा के लिए ख़तम किया।
(3) सियासी फायदा
कुछ शादियां आप ने कबीलों को अपने करीब करने के लिए की ताकि आपस की दुश्मनियां कम हों, और लोग अमन व सलामती के साथ इस्लाम के साए में आ जाएं।
जैसे हज़रत सफिय्या के निकाह ही को देखें जो एक यहूदी कबिले से थीं, तो पता चलता है कि उस से पहले जितनी जंगें मक्का के लोगों से हुईं उन में कहीं ना कहीं यहूदियों का हाथ ज़रूर होता था, लेकिन इतिहास गवाह है कि इस निकाह के बाद यहुद नबी के खिलाफ किसी जंग में शामिल नहीं हुए।
इसी तरह हज़रत उम्मे हबीबा के निकाह का मामला है, कि उन के वालिद अबू सूफियान मुसलमानों के सख्त दुश्मन थे,यही बद्र, उहद और खंदक़ जैसी जगों में मुशरिकीन के लीडर रहे थे, लेकिन इतिहास बताता है कि इस शादी के बाद उन्होने मुसलमानों के ख़िलाफ़ कोई फोज तय्यार नहीं की बल्कि इस के कुछ वक़्त बाद ही ये भी इस्लाम के साए में आ गए, इस के इलावा उन का सारा खानदान बनु उमैया इस रिश्ते का ख्याल करने लगा और उन की दुश्मनी में कमी आ गई।
हज़रत जुवेरिया के निकाह मैं भी यही बात रही, वहां बड़ा फ़ायदा ये हुआ कि जब नबी के सहाबा को इस निकाह का पता चला तो वो ये सुन कर बहुत खुश हुए और आप की रिश्तेदारी का ख्याल करते हुए उन सारे लोगों को आज़ाद कर दिया जो हज़रत जुवेरिया के साथ गिरफतार हो कर आए थे, जिस के नतीजे में उन लोगों ने भी खुश हो कर इस्लाम को अपना लिया।
खुलासा ये कि इन शादियों से जिन खानदानों से आप के संबन्ध हुए, वो आगे चल कर इस्लाम और मुसलमानों की तरक्की का जरिया बने।
इस सारी तफसील को पढ़ कर हर इंसाफ पसंद और सही अकल और दिल रखने वाला इंसान इस से इंकार नहीं कर सकता कि नबी ए पाक (सल्ल्लाहु अलयही वसल्लम) ने शादी के बारे में जो तरीका आप ने अपनाया था, वो अपनी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए नहीं था, बल्कि उस से मुल्क, कोम, इस्लाम और पूरी इंसानियत का फ़ायदा जुड़ा हुआ था, जिसे नज़र अंदाज़ करना उस शख्सियत के लिए मुमकिन नहीं था, जो सारी इंसानियत के लिए रहमत बना कर भेजी गई थी।
(या रब्बि सल्लि वसल्लिम दाइमन अबदन अला हबीबिका खयरिल खलकि कुल्लिहिम)
ये लेख “मकालात ए हबीब” में से संक्षिप्त किया गया है।
नोट: नबी ए पाक की ज़िंदगी पर सेंकड़ों और हज़ारों किताबें मुस्लिमों और गेर मुस्लिमों की तरफ से लिखी जा चुकी हैं, इस लेख में दी हुई जानकारी आप किसी भी किताब से जांच सकते हैं।
नमूने के तौर पर कुछ किताबों के नाम लिख दिए जाते हैं:
(1)सीरतुन नबी, शिबली नोमानी
(2)सीरतुल मुस्तफा, इदरीस कांधलवी
(3) रहमतुल लिल आलमीन, सुलेमान मंसुरपुरी
(4) असह हस्सियर, अबुल बरकात दानापुरी
(5) Muhammad : His life Based on Earliest Sources, Martin lings