"फिलिस्तीन" मुसलमान, ईसाई और यहूदियों के लिए महत्वपूर्ण क्यों?
पिछली post में हमने फिलिस्तीन के बारे में 1906 से जाना इस Post में हम ई.पू. 6000 से ईतिहास पर बात करेंगे। लेकिन उससे पहले कुछ जगह और शब्दों के बारे में जान लेते है।
- ️ बैतूल मुक़द्दस जिसे येरुशलम/Jerusalem कहते है।
- ️ हरम शरीफ, मस्ज़िद ऐ अक़सा, हैकल ऐ सुलेमानी, Solomon temple, Temple Mount, first temple
- ️ कुब्बत-अल-सख़रा जिसे Dome of the Rock कहते है इस पर 200kg सोना लगा है जिसे 685 – 691ई में अब्दुल मलिक बिन मरवान ने बनवाया था। जो की मस्ज़िद अल अक़सा के दालान/कारीडोर में है।
फिलिस्तीन तिनो धर्मो के लिए महत्वपूर्ण क्यों है..?
फिलिस्तीन एक बोहत ही प्राचीन जगह है जिसे पैगम्बरों (Prophet) की धरती भी कहते है क्योंकि कई पैग़म्बरों ने वहाँ जन्म लिया ।
यहूदियों (jews) के लिए –
यहूदी मानते हैं कि यह धरती का केंद्र है और इस स्थान पर दुनियां की नींव रखी गई थी और यहीं पर Prophet अब्राहम ने अपने बेटे इस्माईल की बलि/क़ुरबानी देने की तैयारी की थी ,35 ऐकड का क्षेत्र जिसमें मस्ज़िद ऐ अक़सा है के पास ऐक दिवार के अवशेष है जिसे यहुदी Wailing Wall कहते है और उसे हैकल ऐ सुलेमानी, माबद, यानि 1st Temple के अवशेष मानते हैं।
ईसाईयों (Christians) के लिए :-
इसाई मानते हैं कि ये वह स्थान है जहां कलवारी की पहाड़ी पर यूशु को सूली पर चढ़ाया गया था । सूली के बाद जिस पत्थर पर उनको लिटाया गया वो पत्थर आज भी बैतूल मुक़द्दस/येरुशलम में है। चूँकि यह घटना ईसाई धर्म की नींव है इसीलिए उनके लिए यह स्थान महत्वपूर्ण है ।
मुसलमानो के लिए :-
मुसलमानों के लिए यह स्थान उपरोक्त कुछ कारणों के आलावा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि फिलिस्तीन में बैतूल मुक़द्दस, मस्ज़िद ऐ अक़सा इस्लाम में तीसरी सबसे पवित्र जगह है (पहली मक्का, दूसरी मदिना) यह मुसलमानों का पहला क़िबला भी है और मुसलमानों की मान्यता है कि पैगंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब मैराज पर गए तो आपने सबसे पहले मक्का से यहां तक की यात्रा की और कुब्बत-अल-सख़रा यानि Dome of the Rock भी है।
मुस्लिम यहुदी में सम्बन्ध –
पैगंबर ईब्राहिम (Prophet अब्राहम) अलैहिस्सलाम के पोते का नाम हजरत याकूब (Prophet Jacob) था, जिनको इस्राइल (इजराइल) भी कहते है। जिनके नाम पर आज का यहूदी राष्ट्र इजराइल है। हजरत याकूब के एक पुत्र का नाम यहूदा(जुडा) था यहूदा के नाम पर ही इनके वंशज यहूदी कहलाए जिन्हें Jews भी कहते है। जो की मिस्र से थे जिन्हें पैग़म्बर मूसा (Prophet Moses) अलैहिस्सलाम ने फिलिस्तीन (Palestine) में बसाया था।
♦️ इसी अब्राहम/इब्राहिम धर्म में पैग़म्बर ईब्राहिम के दो बेटे थे 1 Prophet हज़रत इस्हाक़ (इस्राइल) इनसे जो नस्ल चली वह यहूदी कहलाए पैग़म्बर के नाम के कारण इनको इसराइल/इज़्राइल भी कहा जाता है। इसलिए यहूदीयों को इसराइली भी कहते हैं। हजरत इब्राहिम के दूसरे बेटे Prophet हज़रत इस्माईल थे जिनकी नस्ल से पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद सलल्लाहो अलैहिवसल्लम आये जो की अरबी थे। यहूदियों मैं कई हजारो पैगंबर आ चुके थे और उनकी किताबों में लिखा था की आखिरी पैगंबर भी जल्द ही तशरीफ लाने वाले हैं। उन्हें यकीन था कि वह पैगंबर यहूदियों में से ही होंगे। लेकिन उनकी उम्मीद के खिलाफ वह पैगंबर हजरत इस्माइल अलेही सलाम की नस्ल से हो गए। इसलिए यहूदियों ने घमंड किया और उनको नबी मानने से इनकार कर दिया।
♦️ यहुदी, पैग़म्बर हज़रत ईसा यानि Jesus और पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद सलल्लाहो अलैहिवसल्लम को नही मानते है। जबकि इस्लाम के अनुसार अगर कोई पहले के किसी पैग़म्बर जैसे हज़रत मूसा (Prophet Moses, Suleman etc.) और हज़रत ईसा (Prophet Jesus/yeshu) etc. को नही माने तो वो मुस्लमान ही नही हो सकता।
फिलिस्तीन और मस्ज़िद ऐ अक़सा – ईतिहास के आयने में।
मस्जिद अल अक़सा जिसका निर्माण प्रथम मनुष्य हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने क़ाबा के 40 साल बाद किया था। जो तूफान ऐ नूह में ध्वस्त हो गई थी, जिसे पैग़म्बर हज़रत इब्राहिम ने अपने बेटे हज़रत इस्हाक़ के साथ पुनः निर्माण की। इसके आलावा सबसे पहले जिसने फिलिस्तीन में आवास किया वे कन्आनी हैं, जो 6 हज़ार वर्ष ईसा पूर्व में अरब महाद्वीप से फिलिस्तीन आए।
1200 ईपू हज़रत मूसा जिन्हें ईसाई/यहुदी Prophet Moses कहते है ने यहूदियों को मिस्र से लाकर फिलिस्तीन में बसाया।
♦️ 957 ईसा पूर्व इजरायल राज्य के शुरुआती वर्षों में, राजा सुलैमान जिन्हें इस्लाम में पैग़म्बर सुलैमान भी कहते है, इसी मस्ज़िद को फिर से बनवाया जिसे यहुदी 1st temple कहते है। जिसे 586 ईपू बेबीलोन के बादशाह ने यहूदियों की साजिशो से तंग आ कर फिलिस्तीन से निष्कासित कर दिया और 1st Temple भी गिरा दिया।
♦️ 70 साल तक ये नगर खण्डर के रूप में रहा और 515/559 ईसा पूर्व राजा साइरस ने पुनःनिर्माण करवाया लेकिन विरोध के कारण बिच में रुक गया जिसे पैग़म्बर ज़कर्या (Prophet Zechariah) के काल में दारा (Darius) ने निर्माण करवाया जिसे यहुदी second temple कहते है। )
♦️ हज़रत ईसा जिन्हें ईसाई Prophet Jesus कहते है, उनके crucifiction के बाद 70 ई में रोमन जो की ईसाई हो गए थे ने यहूदियो को फिर फिलिस्तीन से निष्कासित कर दिया ,दरअसल ईसाई जो को ईसा अलैही. को ईश्वर का बेटा मानते हैं उनके अनुसार यहूदि ईसा अले. की हत्या के दोषी हैं इसी वजह से ईसाइयों की इन से दुश्मनी हुई ।
♦️ ऊपर बताए कारण की वजह से ही सन् 70 ई से सन् 637 तक यहूदीयो को फिलिस्तीन आने पर भी पाबन्दी थी *सन् 637 मे जब फिलिस्तीन ईसाईयो से मुस्लिमो के हाथों में आया तब दूसरे खलीफा हज़रत उमर रज़ीअल्लाह अन्हु ने यहूदियों पर लगी इन पाबंदी को हटाया और उन्हें फिलिस्तीन में दाखिल होने और इबादत करने की अनुमति दी।
1100ई में ईसाईयो ने बैतूल मुक़द्दस/Jerusalem पर हमला कर कब्ज़ा कर लिया और जिसे 1187 में सुलतान सलाउद्दीन अय्यूबी रह० ने Jerusalem वापस ले लिया।
*ईस तरह सन् 70 से 1948 तक लगभग 1900 सालो तक फिलिस्तीन और बैतूल मुक़द्दस यानि येरुशलम पर यहूदियों का कोई क़ब्ज़ा नही था।*
आखिर में… यहूदियों का मोजुदा फिलिस्तीन को लेकर यह मानना है की ,अगर वो मस्ज़िद ऐ अक़सा को गिरा कर 3rd Temple को बना दे औऱ आसपास के इलाकों पर कब्ज़ा कर Greater Israel की स्थापना कर विश्वभर के यहूदियों को यहाँ लाकर बसा दें तो उनका मसीहा आ जायेगा जिसके सानिध्य में वे विश्व मे राज करेंगे। यही कारण है कि इज़राइल में यह कानून है कि दुनियाभर का कोई भी यहूदी जिसकी नस्ल यहूदियों से मिलती है वह इज़राइल जा कर बस सकता है और उसको वहाँ की राष्ट्रीयता दी जाएगी साथ ही इज़रायल विश्वभर में lost tribe को ढूंढेने और उन्हें इज़राइल लाने के प्रयास के लिए बाकायदा मिशन चलाता है ।