सवाल:- एक पोस्ट में कहा जा रहा है कि हज के दौरान ऊँटनी से मैथुन किया जाता है, इस्लाम में पशु मैथुन गुनाह नहीं है। इसका जवाब दें?

जवाब:- एक पोस्ट “हज में ऊँटनी प्रेम कथा” के नाम पर हज के समय ऊँटनी के साथ सहवास का निराधार आरोप लगाया जा रहा है।

इस तरह की पोस्ट पर वैसे तो कुछ भी लिखने कि कोई ज़रूरत नहीं होती है। क्योंकि एक समझदार इंसान इसको पढ़ कर ख़ुद ही समझ लेगा कि ये झूठ है। जिसका हक़ीक़त से कोई वास्ता नहीं है।

इतना बुद्धिहीन फेक मैसेज होने के बावजूद गलतफहमी निवारण ग्रुप इसका जवाब उन लोगों के लिए लिख रहा है, जिनका दिमाग़ इस तरह कि कई नफरती फेक मैसेज के आधार पर इतना कुंद हो चूका है कि वे सच और झूठ में अंतर ही नहीं कर पाते है।

दूसरा मकसद इस जवाब का इस और ध्यान दिलाना है कि इस्लाम में पाकीज़गी, शील, शिष्टता एवं लज्जा के कितने उच्च पैमाने हैं। जिसमें किसी तरह की निर्लज्जता की कोई जगह नहीं है। इन उच्च आदर्शों को छुपाने के लिए इस्लाम से नफ़रत रखने वाले इस पर घिनौने मनगढ़ंत आक्षेप करते हैं ताकि लोगों का इस तरह ध्यान ना जाए और वे इस्लाम से आकर्षित होने की बजाए दूर रहें।

आइए संक्षिप्त में देखते हैं :-

इस्लाम में पवित्र समाज और चरित्र के निर्माण के लिए औरतों और मर्दो दोनों के लिये हिजाब का हुक्म है। यहाँ तक कि बदनज़री और अपनी आंखों तक कि हिफाज़त करने का आदेश दिया गया है ताकि किसी भी तरह की बेपर्दगी और बेहयाई के दर्शक तक ना बनें।

फ़रमाया क़ुरआन में –

आप ईमान वालों से कह दीजिए कि वह अपनी निगाहों को नीचा रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाजत करें। यह उनके लिए ज़्यादा पाक़ीज़ा बात है। बेशक अल्लाह तआला को पूरी ख़बर है उन कामों की जो वह करते हैं।
(सूरह नूर: 30)

और फ़रमाया

और तुम ज़िना (नाजायज सम्बन्ध, व्यभिचार) के करीब भी न जाओ। वह बेहयाई का काम और बुरा तरीक़ा है।
(सुरह बनी इसराईल: 32)

यानी की नाजायज़ सम्बन्द्ध बनाने तो बहुत दूर, ऐसे किसी भी कृत्य जो आपको इस ओर लेकर जाए उससे दूरी तक बनाने का हुक्म दिया गया है। (..करीब भी ना जाओ)

इस्लाम में यह बातें सिर्फ़ आदेशों तक ही सीमित नहीं रखी गई बल्कि इन को अमल में लाने के पूरे प्रावधान हैं। जैसे जहाँ पर्दे के हुक्म हैं वही इन आदेशों को ना मानने वालों और व्यभिचार करने वालों को सख्त सज़ा, जिसमें कोड़े लगाने से लेकर मृत्युदण्ड तक देने का भी प्रावधान है।
देखें (सुरः नूर आयत 2)

सामान्य बुद्धि की बात है कि जिस धर्म में औरत-आदमी के बीच ही अनैतिक सम्बन्धों की सख्त मनाही हो और उस पर सख्त सज़ा का प्रावधान हो वहाँ अप्राकृतिक यौन सम्बन्द्ध (समलैंगिकता, पशु सम्बंध, आदि अन्य किसी भी प्रकार के) कितना बड़ा अपराध होगा ? लेकिन फिर भी यह लोग अपना यह घटिया निराधार आरोप सिद्ध करने के लिए कुछ भी झूठे और मनगढ़ंत हवाले लिख देते हैं जिनकी सत्यता कुछ नहीं होती है।

जबकि यदि आप ख़ुद इस्लाम का अध्ययन करेंगे तो आप पाएंगे कि इस्लाम में हर तरह के अप्राकृतिक यौन सम्बन्ध के हराम (मना / वर्जित) होने के अनेक हवाले मौजूद है साथ ही यह और भी बड़ी श्रेणी का अपराध है। जैसे:-

*और लूत को भी हम ही ने फ़हमे सलीम और नबूवत अता की और हम ही ने उस बस्ती से जहाँ के लोग बदकारियाँ करते थे नजात दी इसमें शक नहीं कि वह लोग बड़े बदकार आदमी थे।*
(क़ुरआन 21 :74)

(कौम-ए-लूत के लोग अप्राकृतिक यौन सम्बन्ध बनाते थे और उन्होंने ही इसकी शुरुआत की इसलिए इस कृत्य को कौम-ए-लूत के कृत्य के नाम से जाना जाता है।)

इब्ने अब्बास से रिवायत है कि फ़रमाया सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम ने… लानत है उन लोगों पर जो जानवरों के साथ यौन सम्बन्ध बनाये, लानत है उन लोगों पर जो कौम-ए-लूत का कृत्य करें…
(सहीह अल जामी 5891)

और अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास से रिवायत हदीस सुन्न अबु दाऊद नम्बर 38 : 4447 में इस कृत्य (अप्राकृतिक यौन सम्बन्धों) की सज़ा को मृत्युदण्ड बताया गया है।

इस तरह हमने जाना कि एक घटिया कृत्य जो इस्लाम में पूर्ण रूप से वर्जित है उसे ही इस्लाम के अहम अरकान हज से जोड़ कर इस्लाम जैसे पाकीज़ा (पवित्र) धर्म की ग़लत छवि बनाने का कुप्रयास किया गया।
ताकि लोग सत्य से दूर रहे हैं और नफ़रत में ही जीते रहें।

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