सवाल:-इस्लाम में अंग दान मना है। एम्स, सिविल अस्पताल (AIIMS, Civil hospital) में अंग दान करने वालों में मुस्लिम नहीं है जबकि लेने वालों में है। क्या यह सही है?
जवाब:- यह आई टी सेल (IT Cell) की फेक न्यूज (Fake News) फैक्ट्री से निकली कई झूठी पोस्टो में से 1 है। इसके साथ ही ये झूठा प्रचार (Fake Propaganda) भी किया जाता है कि मुस्लिमों को रक्त दान करना मना है। जबकि मुस्लिम युवाओं द्वारा रक्त दान की न्यूज हर अख़बार में आसानी से मिल जाती है साथ ही कई ख़बरे अंतर्धार्मिक अंग दान की भी मिल जाती हैं। पिछले दिनो ही हिन्दू-मुस्लिम दंपत्तियों द्वारा आपस में किडनी दान की ख़बर ख़ूब चर्चित रही थी।
दूसरी बात यह कि एम्स #AIIMS ने इस तरह का कोई भी आंकड़ा कभी जारी नहीं किया है और ना ही धार्मिक / जातीय आंकड़े जारी होंगे।
तीसरी बात यह कि देह दान / ऑर्गन दान करने और ना करने के पीछे धार्मिक / सामाजिक कारण नहीं होते है, बल्कि जागरूकता होती है।
जैसे-जैसे जागरूकता बड़ रही है वैसे-वैसे ही देह दान / ऑर्गन दान (Body / Organ donation) में वृद्धि हो रही है। आजकल देह दान सिर्फ़ बड़े शहरों में ही हो रहा है, क्योंकि वहाँ जागरूकता है। छोटे शहरों में देह दान / ऑर्गन दान नहीं हो रहे। (पढ़ने वाले अपने परिवार या आसपास में देख ले कि कितने अंग दान हुए हैं)
चौथी बात यह कि इस्लाम में अंग दान करने की मनाही नहीं है और विश्वभर में मुस्लिम विद्वान एवं प्रमुख संस्थानों ने इस पर विस्तार में फतवे दिए हैं और लोगों को इसके लिए प्रेरित भी किया जा रहा है। यदि अंग दान करने से किसी की जान बचती है या प्रमुख जीवन रक्षक फायदा होता है तो यह एक बहुत सवाब (पुण्य) का काम भी है।
जैसा क़ुरआन 05:32 में स्पष्ट कहा गया है “जिसने जीवित रखा एक प्राणी को, तो वास्तव में, उसने जीवित रखा सभी मनुष्यों को..”
यह अवश्य है कि शरीर अल्लाह की दी हुए नेअमत है अतः अंग दान करने की तो इजाज़त है लेकिन बेचने की नहीं।
पांचवा पॉइंट, सामान्य बुद्धि से सोचने का है की जितने भी मुस्लिम देश है, वहाँ भी रिसर्च के लिए मृत शरीर और अंग (Organ) की ज़रूरत तो होती ही होगी। तो क्या वहाँ मृत शरीर (Dead body) दूसरे देशों से आयत होती होगी..? सम्भव ही नहीं है। अतः स्पष्ट है की इसके लिए उस देश के जागरूक लोग ही अपना अंग दान करते हैं।
वैसे इस तरह की झूठे मैसेज भेजने का मकसद अंग दान (Organ Donation) के प्रति जागरूकता पैदा करना नहीं बल्कि मुस्लिमों के प्रति नफ़रत फैलाना होता है।
जैसा इसमें लिखा है की बुरा मुसलमान आतंकी बनता है और अच्छा उसका समर्थक। अब जबकि “आतंकी यानी मुस्लिम” इस झूठ की पोल पूरी तरह खुल चुकी है।
देश में ही कई मुस्लिम नौजवान जिन्हें आतंकी गतिविधियों के नाम पर पकड़ा था, उनमें से कई बाइज्ज़त बरी हो चुके है और कई होने वाले है। यही कहानी वैश्विक स्तर पर भी है। गौरतलब है की मुस्लिम युवकों पर थोक में आतंकी धारा लगा दी जाती है। जबकि बड़े-बड़े देश विरोधी और आतंकी घटनाओ को अंजाम देने वाले दूसरे धर्म के लोगों पर यह टैग कभी लगाया नहीं जाता।
▪️ उक्त पोस्ट में ये भी इलज़ाम है कि “क़ुरआन में देना लिखना भूल गए और लेना लिखा है” नऊजूबिल्लाह।
इस तरह की बकवास सिर्फ़ अज्ञानता का ही द्योतक है। क्योंकि क़ुरआन में 33 मर्तबा ज़कात का ज़िक्र है इसके अलावा फ़ितरा, सदका यानी अन्य तरह के दान के लिए तो दर्जनों बार आदेश है।
अभी कोरोना लॉकडाउन में ही पूरे देश ने देखा किस तरह महामारी के दौर में जहाँ सबको अपनी जान की फ़िक्र थी वहीं मुस्लिम युवाओं ने मज़दूरों, बेसहारा और ज़रूरत मन्दो की दिल खोल कर हर तरह से मदद की।
अतः ज्ञात हुआ की यह झूठा मैसेज सिर्फ़ मुस्लिमों की छवि को खराब कर लोगों को इस्लाम के ख़िलाफ भड़काने के लिए लिखा गया एक प्रचार (प्रोपेगेंडा) मात्र है।