सवाल:- दिन में 5 बार ईमान वालों के द्वारा हज़रत मोहम्मद (स.अ.व.) के ईशदूत होने विषयक गवाही देने से किसका क्या लाभ होता है.. गवाही ना देने से किसको क्या हानि होती है।
जवाब:- यह सवाल की मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ईशदूत होने की गवाही देने से अल्लाह, मुहम्मद (स.अ.व.) और गवाह में से किसका लाभ होता है और किसकी हानि होती है?, इस बारे में सर्वप्रथम तो यह जान लें की अल्लाह तआला तो हर चीज़ से बेनियाज़ है। तमाम कायनात उसकी मोहताज है सभी अल्लाह (ईश्वर) पर निर्भर हैं जबकि अल्लाह तआला किसी पर निर्भर नहीं है। अतः गवाही देना, इबादत करना यहाँ तक की पूरी क़ायनात में कोई भी अपने कृत्यों द्वारा किसी भी तरह से ना तो अल्लाह को कोई लाभ पहुँचा सकता है ना ही कोई हानि।
अल्लाह तआला इरशाद फरमाते है:-” मेरे बंदों! तुम कभी मुझे नुकसान पहुँचाने की ताकत नहीं रखोगे कि मुझे नुकसान पहुँचा सको, ना कभी मुझे फायदा पहुँचाने के काबिल होगे के मुझे फायदा पहुँचा सको,
मेरे बंदों! अगर तुम्हारे पहले वाले और तुम्हारे बाद वाले (यानी अब तक जो जन्म ले चुके और जो जन्म लेने वाले हैं) और तुम्हारे इंसान व जिन्न सब मिलकर तुम में से एक निहायत ही मुत्तकी (फरमाबरदार, धर्मपरायण, नेक) इंसान के दिल के मुताबिक हो जाएं तो इससे मेरी बादशाहत में कोई इज़ाफ़ा नहीं हो सकता,
मेरे बंदों! अगर तुम्हारे पहले वाले और तुम्हारे बाद वाले और तुम्हारे इंसान व जिन्न सब मिलकर तुम में से एक फाजिर (दुष्ट, विधर्मी, बुरे काम करने वाले) इंसान के दिल के मुताबिक हो जाएं तो इससे मेरी बादशाहत में कोई कमी नहीं होगी
(हदीस सही मुस्लिम 6572)
*..अगर और (तुम्हारे साथ) जितने रुए ज़मीन पर हैं सब के सब (मिलकर भी ख़ुदा की) नाशुक्री करो तो ख़ुदा (को ज़रा भी परवाह नहीं क्योंकि वह तो बिल्कुल) बे नियाज़ है*
(क़ुरआन 14:8)
इसी तरह मोहम्मद (स.अ.व.) भी इस बात से बेनियाज़ हैं कि कोई उनके ईशदूत होने की गवाही दे। कोई इस बात की गवाही देकर या ना देकर, ना तो मुहम्मद (स.अ.व.) को किसी तरह लाभ पहुँचा सकता है ना ही हानि। वे तो हर हाल में ईशदूत हैं चाहे कोई गवाही दे या ना दे।
अपितु इस बात की गवाही देने, इबादत करने या भलाई का कोई और दूसरा काम इंसान स्वंय अपने फायदे के लिए ही करता है और इससे उसी का लाभ होता है।
यदि तुम भला करोगे, तो अपने लिए और यदि बुरा करोगे, तो अपने लिए।
(क़ुरआन 17:7)
❇️ लाभ किस तरह होता है? जब बन्दा मुहम्मद (स.अ.व.) की ईश्दूत होने की गवाही देता है तो उसे कई तरह से फायदा होता है। जिसमें प्रमुख यह है कि जब अज़ान में यह कहा जाता है तो सुनने वाले और बोलने वालों को इस कि याद दहानी होती है की मुहम्मद (स.अ.व.) ईश्दूत हैं, तो उनका सन्देश हम याद करें कि यह जीवन तो सिर्फ़ एक परीक्षा की जगह है यहाँ हमें ईश्वर के आदेशों का पालन करते रहना है ताकि हम मौत के बाद कि हमेशा रहने वाली ज़िंदगी में कामयाब हो सकें।
(देखें क़ुरआन 67:2)
अतः अगर हम सांसारिक (दुनियाँवी) मामलों में उलझ कर और कुछ फायदे के लिए कुछ ग़लत काम कर रहे हो तो उसे ईश्वर की याद कर तुरन्त छोड़ दें। या फिर दुनियाँ में ही उलझ कर यदि आख़िरत (परलोक) के जीवन से बेख़बर हो गए हैं और उस के बारे में कोई तैयारी ही नहीं कर रहे हों। तो हम इन कामो से कुछ रुक कर इबादत और ईश्वर को याद करें और अपने मरणोपरांत जीवन की तैयारी करें जिससे हमारा ही लाभ (फायदा) होगा।
➡️ अज़ान में काफिरों की मुहम्मद (स.अ.व.) के ईश्दूत होने की गवाही ना देने से किस की क्या हानि होती है?
इस बारे में हम सर्वप्रथम तो यह जाने की एक मंशा के तहत इस्लाम, मुस्लिमों औऱ काफ़िर (गैर मुस्लिम) में एक गैर ज़रूरी विरोध उत्पन्न करने की कोशिश की जाती है। जिस के द्वारा मुस्लिमों के हर कृत्य को ऐसा दिखाने का प्रयास किया जाता है कि यह सब गैर मुस्लिम को दुःख या तकलीफ देने के लिये कर रहे हों। जबकि जब आप क़ुरआन का अध्ययन करेंगे तो जानेंगे कि यह कितना ग़लत है। क्योंकि अल्लाह तो सभी का ईश्वर है, मुहम्मद (स.अ.व.) तो तमाम दुनियाँ वालों के लिए भेजे गए हैं। ऐसा नहीं है कि अल्लाह सिर्फ़ मुस्लिमों का ईश्वर है, गैर मुस्लिमों का नहीं है। बल्कि वो तो सभी का ईश्वर है उसका सन्देश सभी के लिए है और सभी की भलाई के लिए है।
अतः यह सोचना बिल्कुल निराधार है की अज़ान में ईश्दूत की गवाही देने से गैर मुस्लिमों के नुकसान की मंशा होती है या उनका इससे कोई नुकसान होता है। हाँ यह अवश्य है कि जो भी व्यक्ति अपने जीवन काल में मुहम्मद (स.अ.व.) के ईशदूत होने की गवाही नहीं देता अर्थात उन्हें ईश दूत ना मानकर अल्लाह के बताए आदेशों को झुठलाता है तो उसे फ़िर मरने के बाद इसका नुकसान होगा कि वह जीवन रूपी परीक्षा में सफल नहीं हो पायेगा और मरने के बाद के जीवन में अल्लाह (ईश्वर) का कृपापात्र नहीं बन सकेगा। यह इस्लाम का खुला पैगाम है जो सभी के लिए समान रूप से स्पष्ट है। फिर चाहे वह मुस्लिम हो या गैर मुस्लिम।
[साथ ही:- यह सवाल दरअसल अज़ान के बारे में है। इसका और इस ही तरह के दूसरे सवालों का कारण अज़ान के मुत्तालिक फैलाई जा रही ग़लतफ़हमियों भरी पोस्ट और कुप्रचार होता है। जिसके बारे में विस्तार में पहले जवाब दिया जा चुका है (देखें पोस्ट:- क्या सेक्युलर देश भारत में अज़ान दूसरे धर्मों की भावना आहत करती है?)]