जैसा हमने पिछली पोस्ट में देखा कि इब्लीस (शैतान) ने घमण्ड किया और अल्लाह के हुक्म की ना फरमानी कर सज़ा का मुस्तहिक़ बना।
वह आदम के प्रति अपने घमण्ड और हसद में ऐसा अड़ा रहा कि अल्लाह तआला से अपनी ना फरमानी की माफ़ी माँगने की बजाय उसने क़यामत तक के लिए सज़ा से मौहलत माँगी ताकि बनी आदम को अल्लाह की ना फरमानी करवा कर सज़ा का भागीदार बनवा सके ।
जैसा कि बयान है क़ुरआन में :-
उसने (इब्लीस) कहा: मुझे उस दिन तक के लिए अवसर दे दो, जब लोग फिर जीवित किये जायेंगे।
(क़ुरआन 7:14)
इस पर अल्लाह तआला ने उसे क़यामत तक के किए मौहलत अता फ़रमाई।
जिस पर इब्लीस ने अपना प्रण और मंसूबा और उजागर किया जिसका जिक्र इन आयतों में है
मैं भी तेरी (अल्लाह की) सीधी राह पर इनकी (इंसानों की) घात में लगा रहूँगा।
फिर उनके पास उनके आगे और पीछे तथा दायें और बायें से आऊँगा, और तू उनमें से अधिकतर को (अपना) कृतज्ञ नहीं पायेगा।
(क़ुरआन 7:16-17)
अर्थात हर तरीके से इनको भटकाउंगा।
इस पर अल्लाह ने अगली आयात *(7:18)* में स्पष्ट कर दिया कि जो तेरी पैरवी करेगा और तेरी ही तरह ना फरमानी करेगा उन सब का बदला जहन्नुम होगा।
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