*फिलिस्तीन (अरब-मुस्लिम) और इज़राइल (यहूदियों) के विवाद का मुख्य कारण क्या है.?
बात 1492 की है, जब स्पेन से यहूदियों को मार कर भगाया जा रहा था तब *तुर्क साम्राज्य, सल्तनत ऐ उस्मानिया (Ottoman Empire) के सुल्तान बायज़ीद ने स्पेन के तट पर अपने जहाज़ खड़े कर दिए और लाखों यहूदियों को अरब से तुर्की तक फैली अपनी सल्तनत में पनाह दी।
दूसरी बार फिर जब 1943 में जर्मनी में हिटलर के होलोकॉस्ट (नरसंहार) से निष्कासित किए गए लाखों यहूदी शरणार्थियों से ठसाठस भरे हुए जहाज़ समुद्र को चीरते हुए इटली, फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका में पनाह मांगने पहुचे लेकिन हर जगह से नाउम्मीद होने पर एक बार फिर जहाजों पर बैनर लगा कर फिलिस्तीन से गुहार की।
“जर्मन ने हमारे घर, परिवार को तबाह कर दिया है आप हमारी उम्मीदों को मत कुचलना” और 1400 सालों से बसे फिलिस्तीनियों ने अपनी ज़मीन पर यहूदियों को जगह दी।
जिस बारे में ख़ुद यहूदी प्राइम मिनिस्टर डेविड बेन-गुरियन (David Ben-Gurion) ने अपनी किताब में लिखा है की 70ई. से 1917 तक जो Diaspora (यहूदियों की प्रताड़ना / बिखराव ) का समय था, जिसमें ईसाईयों की गुलामी / प्रताड़ना से मुस्लिमो ने हमे बचाया और स्पेन की मुस्लिम हुक़ूमत हमारे लिए स्वर्ण काल (Golden Period) था।
इन सब के बावजूद आज इज़राइली लोग फिलिस्तीनियों की जान के दुश्मन बने हैं और उनके ग़लत चित्रण में कोई कमी नहीं छोड़ रहे।
फिलिस्तीन (अरब-मुस्लिम) और इजराइल (यहूदियों) के विवाद का मुख्य कारण क्या है?
इसका मुख्य कारण है फिलिस्तीनियों को बेघर कर उनकी ज़मीन पर क़ब्ज़ा करना। जो कि उन्होंने लगभग कर भी लिया है। 1948 के पहले आज का इज़राइल कोई देश ही नहीं था उक्त भूमि सिर्फ़ फिलिस्तीन थी जिस पर यहूदियों को बसाया गया जिन्होंने लगातार विस्तार और दमन कर आज पूरे फिलिस्तीन पर कब्ज़ा कर लिया है और अब थोड़े ही हिस्से में मूल निवासी फिलिस्तीनी बचे हुए हैं जिन्हें भी निष्कासित करने की कोशिश हर वक़्त इज़राइल करता रहता है।
यह तथ्य इतना स्पष्ट तथ्य है कि इस बारे में हर कोई जानता है कि इज़राइल कब बना।
अब इस बारे में थोड़ा और विस्तार से जानते हैं।
प्रथम विश्व युद्ध (1st World war) के बाद जब वैश्विक हुक़ूमत बदलने लगी तब यहूदियों को अहसास हो गया था, की अब ख़ुद का देश होना ज़रूरी है। द्वितीय विश्व युद्ध (Second world war) से पहले जब यूरोप और दूसरी जगह से जब यहूदियों को भगाया जाने लगा तब से वह अपने लिए ज़मीन की तलाश में थे जो की फिलिस्तीन में जाकर पूरी हुई। लेकिन फिलिस्तीन में 1400 सालों से रह रहे अरब मुस्लिमो को वहाँ से हटाए बिना यह सम्भव नहीं था। 1948, 1956, 1967, 1980, 1994, 2006, 2008, 2014 और अब 2021 में लगातार फिलिस्तीनियों को उनकी जगह से खदेड़ कर यहूदियों की बस्ती बसाई जा रही है। 1941 में 20% पर फिलिस्तीनी ज़मीन पर यहूदी थे जो आज 95% ज़मीन पर कब्जा कर चुके है और वहाँ के मज़लूमो ने जब कभी इसके खिलाफ संघर्ष किया तो मुस्लिम विरोधियों ने उन्हें ही आतंकी घोषित कर दिया गया।
1906 में विश्व ज़ायोनी संगठन World Zionist Organization (WZO) ने अर्जेंटीना को *Zionist (यहूदी) मातृभूमि बनाने को लेकर चर्चा की। लेकिन 1917 में ब्रिटेन के विदेश सचिव लॉर्ड बेलफोर और यहूदी (Zionist) नेता लॉर्ड रोथ्सचाइल्ड के बीच एक पत्र व्यवहार हुआ जिसमे लॉर्ड बेलफोर ने ब्रिटेन की ओर से ये आश्वासन दिया की अर्जेंटीना के बजाए फिलिस्तीन को यहूदियों की मातृभूमि के रूप में बनाने के लिए वह पूरी कोशिश करेंगे।
प्रथम विश्व युद्ध के बाद उस्मानिया खिलाफत (Ottoman Empire) को ख़त्म करने के लिए ब्रिटेन और फ्रांस ने एक गुप्त समझौता किया जिसे *साइक्स-पिकोट समझौता (Sykes-Picot Agreement) भी कहते है। इसके अंतर्गत पूरे अरब जगत को दो “क्षेत्रों” में बाँट दिया गया जिसमे रूस की भी स्वीकृति थी। इसके अंतर्गत सीरिया और लेबनान फ्रांस के प्रभाव क्षेत्र मे और जॉर्डन, इराक और फिलिस्तीन ब्रिटेन के क्षेत्र में और फिलिस्तीन का कुछ क्षेत्र मित्र देशों की संयुक्त सरकार के क्षेत्र में आ गया। रूस को इस्तांबुल, तुर्की और अर्मेनिया का कुछ इलाक़ा मिल गया।
प्रथम विश्व युद्ध (1st World War) के बाद फिलिस्तीन, तुर्की (उस्मानिया खिलाफत) से ब्रिटिश हुक़ूमत में चला गया। 1922 में मित्र देशों का ब्रिटेन को समर्थन था। ब्रिटिश फिलिस्तीन में एक स्थानीय और स्वशासनीय सरकार का प्रबंध चाहते थे मगर यहूदी ऐसे किसी भी स्वशासनीय सरकार के प्रबंध से डरे हुए थे क्योंकि इसमे जनसंख्या के अनुपात से अरबों की बहुलता हो जाती। जैसा कि शुरू में बताया गया कि 1492 में उस्मानिया खिलाफत में जब यहूदियों को सहारा दिया था तब से कुछ यहुदी उस क्षेत्र में रह रहे थे। प्रथम विश्व युद्ध (1st world war) तक फिलिस्तीन में 6 लाख फिलिस्तीनी और 1 लाख यहूदी रहते थे।
1932 से 1943 तक लाखों यहूदी जर्मनी, पोलैंड और पूर्वी यूरोप से भागकर अपनी जान बचा कर फिलिस्तीन आने लगे। फिलिस्तीन में यहूदियों की बढ़ती आबादी से यहूदी (Zionist) ब्रिटेन पर दबाव बनाने लगे की उसको एक राष्ट्र घोषित करें। इधर फिलिस्तीनियों को चिंता होने लगी की यहूदियों की बढ़ती आबादी से उनको अपनी ज़मीन छोड़नी होगी। इस बढ़ते दबाव से ब्रिटेन अलग हो गया और उसमे इजराइल और फिलिस्तीन विवाद संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) को दे दिया।
संयुक्त राष्ट्र ने अरब और यहूदियों का फिलिस्तीन में टकराव देखते हुए फिलिस्तीन को दो हिस्सों अरब राज्य और यहूदी राज्य (इजराइल) में विभाजित कर दिया। संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) ने एक योजना बनाई जिसमे 45% जमीन 70% फिलिस्तीनियों को और 55% जमीन 30% यहूदियों को देने की बात करी। इस अन्याय पूर्ण प्लान का फिलिस्तीनियों ने विरोध किया जिससे *14 मई 1948 को इजराइल ने ख़ुद स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी और इजराइल को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया।
जिसके कारण पहला अरब और इजराइल युद्ध हुआ। जिसमे लाखों फिलिस्तीनी बेघर हुए और इजराइल (Israel) ने फिलिस्तीन के 78% हिस्से कब्जा कर लिया। गाज़ा और ईस्ट येरूशलम जॉर्डन के कंट्रोल में गया और इजराइल ने 11 मई 1949 में संयुक्त राष्ट्र की मान्यता हासिल की। (इस युद्ध में अक्सर हम सुनते है, की एक अकेले इजराइल ने अरब लीग जिसमे 8 देश थे को हराया, जबकि सच्चाई ये है कि इजराइल को मित्र राष्ट्रों का पूरा समर्थन था क्योंकि इजराइल फिलिस्तीन में बसना शुरू ही हुए थे तथा इजराइल के समर्थन में 117500 और अरब के साथ मात्र 63 हज़ार फ़ौज थी)
1956 में दूसरा अरब इजराइल युद्ध हुआ और इजराइल ने पूर्वी येरुशलम पर भी अपना क़ब्ज़ा कर लिया और एक समझौता हुए जिसमे मस्जिद ऐ अक़्सा का क़ब्ज़ा जॉर्डन को दिया गया।
यहूदियों के धार्मिक कानून और इजराइल सरकार (Government) के अनुसार यहूदी, उस 35 एकड़ के क्षेत्र जिसमे मस्जिद ऐ अक़्सा और डोम ऑफ द रॉक (Dome of the rock) है के अंदर नहीं जा सकते है क्योंकि वह उनके लिए बहुत ही पवित्र है और वह उसमे पैर नहीं रख सकते है। जिस बारे में 1967 में इजराइल के डिफेंस मिनिस्टर मोशे दयान ने कहा था कि यही सही है की मस्जिद ऐ अक़्सा की देख रेख जॉर्डन ही करें। लेकिन समय के साथ अपने अक़ीदे को खुद तोड़ दिया और सन् 2000 में 1000 पुलिस के साथ उग्रवादी यहूदी (Zionist) ज़बरदस्ती उस क्षेत्र में घुसे है और दमन करने लगे। जिससे दोनों पक्षों के लोग घायल हुए और मारे गए।
1980 आते-आते जॉर्डन पीछे हटा और फिलिस्तीन लीडरशिप आगे आई और सत्ता हाथ में ली। लेकिन पूर्वी येरुशलम वापस नहीं मिला और वह यहूदियों के क़ब्ज़े में ही रहा 1994 तक मस्जिद ऐ अक़्सा के ग्रैंड मुफ्ती की नियुक्ति (Appointment) जॉर्डन करता था जो की फिलिस्तीनी होते थे। इस 35 एकड़ की जगह को अब तक जॉर्डन ही मरम्मत करता आ रहा है जिसमे तीनों धर्म (यहूदी / ईसाई / मुस्लिम) की निशान मौजूद है। इस पर अब तक 1 बिलियन डॉलर ख़र्च कर चूका है और इस क्षेत्र की सुरक्षा (Security) इजराइल के पास है जो फिलिस्तीनियों को अंदर आने में परेशानी पैदा करती है।
1980 में इजराइल ने एक कानून पास किया और येरुशलम को एक पूर्ण इजराइल स्टेट की टेरिटरी ख़ुद ही बना दिया। जो अंतरराष्ट्रीय कानून (International law) का उल्लंघन है जिसे कोई भी देश मान्यता नहीं देता है। 06 दिसंबर 2017 में ट्रम्प सरकार येरुशलम, जो की फिलिस्तीन की राजधानी थी को इसराइल की राजधानी की मान्यता दे देती है। जगजाहिर है कि इज़राइल और अमेरिका का हमेशा से गठजोड़ रहा है जिसकी प्रमुख वज़ह अमेरिका के अहम ओहदों पर यहूदियों के कब्ज़ा और इकोनॉमी पर पकड़ है।
इस पूरी लड़ाई का कारण ब्रिटेन, अमेरिका, फ़्राँस और रूस के समर्थन में इजराइल द्वारा फिलिस्तीन पर अवैध क़ब्ज़ा है जो की मस्ज़िद ऐ अक़्सा को गिरा कर पूरे फिलिस्तीन से मुस्लिमो को भगा कर ग्रेटर इज़राइल (Greater Israel) की स्थापना करना चाहते हैं जो कि यहूदियों के धर्म ग्रँथों से प्रेरित है, जिसका निर्माण करने से उनका मानना है कि उनका अंतिम मसीहा दुनिया में आगमन करेगा और वे उसके सान्निध्य में विश्व पर राज करेंगे। इस बारे में जानने के लिए यहूदी ग्रँथों *Greater Israel ,Third temple, New World Order, Freemason, Illuminati* ( ग्रेटर इज़राइल, थर्ड टेम्पल , न्यू वर्ल्ड आर्डर फ्रीमेसन, इल्लुमिनेटी) और रोथ्सचाइल्ड परिवार (Rothschild Family) के बारे में पढ़ना चाहिए ।