Category: इतिहास से जुड़ी ग़लतफ़हमियों के जवाब

  • हज सब्सिडी का खेल

    हज सब्सिडी का खेल

    जवाब:- महामारी के इस कठिन समय में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं के अभाव में लोग परेशान हो रहे हैं जब लोगों ने सोशल मीडिया पर यह आवाज़ उठाना शुरू की तो उनका यह आक्रोश ट्रेंड में आ गया। कई बुद्धिजीवियों ने यह भी कटाक्ष किए की लोगों ने “धर्म के नाम पर वोट दिये थे अस्पतालों के नहीं ” अब अगर अस्पताल में बेड नहीं मिल रहे है तो इसमें सरकार कि क्या गलती अगर जनता ने सरकार से विकास के मुद्दे पर वोट दिया होता तो आज अस्पताल, बेड और ऑक्सीजन होते।

    जब सोशल मीडिया (Social media) पर यह ट्रेंड तेज़ी से वायरल होने लगा और जनता सवाल करने लगी तो लोगों का ध्यान हर बार असल मुद्दों से भटका कर मुसलमानों पर लाने वालों ने मामला बिगड़ता देख तुरंत जनता को भ्रमित करने के लिये इस तरह के मैसेज वायरल करना चालू किये ~”अस्पताल बनवाने कि ज़िम्मेदारी सिर्फ मोदी जी को मिली है…बाकी को हज हाउस, मदरसे, मस्जिद, कब्रिस्तान बनाने का ठेका मिला था। आज़ादी के बाद से खरबों रूपये कि हज सब्सिडी मुसलमानों को दे दी गई है।”~

    असल में वे अच्छी तरह जानते हैं कि आज बहुसंख्यक समाज के दिमाग में उन्होंने यह बात बैठा दी है कि उनके होने वाले हर नुकसान के पीछे मुस्लिम शब्द है और इसी का सहारा लेकर इस बार भी वे अपना काम बना लेंगे।

    इसलिए कोरोना कि इस आपदा के समय हज सब्सिडी की बात को बिना किसी आधार के ही उछाल दिया गया । 

    खैर, इनका तो यह काम है और इसमे इनका फ़ायदा जुड़ा है लेकिन ग़लती तो उन भोले-भाले लोगों की है जिनको कोई भी बड़े आराम से मूर्ख बना देता है और जो लोग इस तरह की बातों से चला दिये जाते हैं उनकी बुद्धि पर हँसी कम बल्कि दया ज़्यादा आती है।

    वैसे तो हज सब्सिडी को इस मामले में जोड़ना ही बड़ा तर्कहीन (Illogical) औऱ मूर्खता पूर्ण है। फिर भी अगर हम इस बहाने ही सही हज सब्सिडी की बात करें तो हर समझदार और जागरूक भारतीय नागरिक को ये पता है कि हज के नाम पर सब्सिडी हाजियों को नहीं बल्कि एयर इंडिया (Air India) को दी जाती थी और जब तक सब्सिडी दी गई तब तक ही एयर इंडिया (Air India) चली। सब्सिडी के बंद होते से ही एयर इंडिया (Air India) भी बन्द हो गई

     

    अब इस खेल को समझने के लिए इतिहास और कुछ आंकड़ों को समझना होगा।

    जाने-माने उद्योगपति जेआरडी टाटा ने भारत की आज़ादी से पहले ही 1932 में टाटा एयरलाइंस की स्थापना की थी। आज़ादी के बाद यानी 1947 में टाटा एयरलाइंस की 49 फ़ीसदी भागीदारी सरकार ने ले ली थी। 1953 में इसका राष्ट्रीयकरण हो गया था.

    1954 तक हज यात्री मुंबई के शिपिंग कंपनी के जहाजों से हज करने के लिये जाते थे। लेकिन 1954 में हवाई मार्ग द्वारा हज यात्रा शुरू हुई। बावजूद इसके भारी संख्या में यात्री समुद्री मार्ग से ही जाते थे। 1973 में हज यात्रियों को लेकर जा रहे एक जहाज के हादसे के बाद 1973 में सरकार ने फैसला लिया कि हज यात्री अब सिर्फ हवाई यात्रा से ही हज करने जाएंगे। लेकिन हवाई यात्रा महंगी थी। एयर इंडिया (Air India) शिपिंग कंपनी से सस्ती यात्रा उपलब्ध कराने में असमर्थ थी। इसके लिए इंदिरा गांधी ने एयर इंडिया (Air India) को सब्सिडी देना शुरू किया। जो कि 2016 तक चली। जी हाँ सब्सिडी हज के नाम पर एयर इंडिया (Air India) को दी जाती थी।

    हज के नाम पर सब्सिडी का जो गौरख धंधा चल रहा था। जिसमे नेताओं और उनके चहेतों को फ्री यात्रा का मज़ा दिया जा रहा था और बदनाम मुस्लिमों को किया जा रहा था। उसकी सच्चाई मोहम्मद जाहिद साहब का 2016 का यह लेख आँखें खोलने के लिए काफी है।

     

    ⚫ कैलकुलेशन ऑफ़ सब्सिडी 2016 के अनुसार

    2016 के अनुसार मक्का शरीफ से इंडिया के लिये हाजियों का कोटा एक लाख छत्तीस हज़ार (1,36,000) का था।

    2015 में हमारी सरकार ने सालाना बजट में 691-करोड़ हज सब्सिडी के तौर पर मंज़ूर किये थे।

    691 करोड़ ÷ 1.36 लाख = 50.8 हज़ार

    यानी एक हाजी के लिए 50000 रुपये ।।

     

    ◀ अब ज़रा खर्च जोड़ लेते हैं ▶

    2015 में एक हाजी को हज के लिए सरकार को एक लाख अस्सी हज़ार (1,80,000) देने पड़े।

    जिसमे चौतीस हज़ार (34,000) लगभग 2100 रियाल मक्का पहुँचने के बाद खर्च के लिए वापस मिले।

     

    1.8 लाख – 34000 = 1.46 लाख

    यानी हमें (एक हाजी को) हमारी सरकार को एक लाख छियालीस हज़ार (1,46,000) रुपये अदा करने पड़ें हैं ।।

    दिल्ली मुम्बई लखनऊ से जेद्दाह रिटर्न टिकट 2 महीने पहले बुक करते हैं तो कुछ फ्लाइट का किराया 25000 रुपये से भी कम होगा। फिर भी 25000 रुपये मान लेते हैं । (IRCTC पर चेक कर लीजिये) खाना टैक्सी/बस का बंदोबस्त हाजियों को अलग से अपनी जेब से करना होता है।

    सरकार को अदा किये एक लाख छियालीस हज़ार रुपये (1,46,000) में से होने वाला खर्च

    फ्लाइट = 25,000

    मक्का में रहना (25 दिन) = 50,000

    मदीना में रहना (15 दिन) = 20,000

    अन्य खर्चे = 25,000

    कुल खर्च हुआ = 1,20,000

     

    😧 कन्फ्यूज़न 😧

    मतलब एक हाजी से लिये 1,46,000 रुपये और खर्च आया 1,20,000 रुपये मतलब एक हाजी अपनी जेब से सरकार को रूपये 26,000 अधिक देता है ।

     

    अब असल मुद्दा ये है कि जब हाजी सारा रुपया अपनी जेब से खर्च करता है और उसके ऊपर भी 26,000 रुपये और सरकार के पास चला जाता है। मतलब लगभग एक हाजी से रूपये 50 हज़ार सब्सिडी मिला कर सरकार के पास 76,000 हज़ार हो जाता है तो ये पैसा जाता कहाँ है..?

    26,000+50,000 =76000 (बचत)× 1,36,000 हाजी =10,33,60,00,000 (दस अरब तैंतीस करोड़ साठ लाख रुपया)

     

    ध्यान दीजिए कि सऊदी अरब सरकार एयर इंडिया को हज यात्रा के लिए एक तरफ के हवाई जहाज़ का ईंधन भी मुफ्त में देती है जिसे यह लोग खा जाते हैं। यह प्रति व्यक्ति खर्च का गणित है। यदि एक लाख छत्तीस हजार हज यात्रियों को हज कराने का टेंडर निकाला जाए तो इसमें 10 से 15 हजार रुपये की और बचत होगी। जो खर्च बताए गए हैं उनमें एक रूपये का भी अन्तर नहीं है क्योंकि उमरा करने पर लगभग यही खर्च आता है।

     

    इसी तरह हज हाउस, मस्जिद, मदरसे जो भी मुस्लिम धार्मिक स्थल होते है। वे सब मुस्लिम समाज के चंदे से बनते है।।

     

    यह तो थी हज सब्सिडी की बात जिस से मुसलमानों को तो नहीं बल्कि सरकार, सरकारी अफसरों और उनसे जुड़े लोगों को ही फायदा हो रहा था, ख़ैर वह भी 2018 में बंद भी हो गई , जबकि महामारी ने भारत में विकराल रूप दिखाया 2020 में और दूसरी लहर आई 2021 में लेकिन इसके बावजूद किसी मंदबुद्धि को महामारी नियंत्रण (Control) ना कर पाने और इलाज की व्यवस्थाओं की कमी का कारण किसी तरह की धार्मिक सब्सिडी दिख रही हो तो उसे एक बार हर धार्मिक आयोजन या धार्मिक यात्राओं पर सरकारी सहायता, यात्राओं पर ख़र्च जैसे मानसरोवर, वैष्णोदेवी, अमरनाथ आदि एवं मध्य प्रदेश और अन्य प्रान्तों में मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा योजनाओं पर मुफ्त में तीर्थ यात्रा के प्रावधानों आदि को भी एक बार देख लेना चाहिए जो पहले भी थी और अब भी जारी हैं।

  • मुसलमान और आरक्षण

    मुसलमान और आरक्षण

    जवाब:-  श्री सुधांशु जी ने बिल्कुल सही फ़रमाया देश में मुस्लिमों की स्थिति दिन-ब-दिन ही खराब होती चली गई और इसके पीछे राजनीतिक पार्टियाँ और वोट बैंक की राजनीति ही रही।

    यह बात भी सही है कि तथाकथित पार्टियों ने मुस्लिमों में, सुधांशु जी की पार्टी के प्रति असुरक्षा और डर का माहौल बना कर ध्रुवीकरण करने की कोशिश की। लेकिन अगर वे ऐसा करने में कामयाब हुईं हैं तो इसकी प्रमुख वज़ह आप ही की पार्टी बनी है। यदि आप उदार होते और धर्म की राजनीति के पैरोकार ना होते। यदि मुस्लिमों के खिलाफ निरंतर दुश्मनी वाले एजेंडे को ना चलाते, आपके नेता ज़हरीले भाषण ना देते, मुस्लिमों को बहुसंख्यकों के दुश्मनों जैसा चित्रण ना करते तो सम्भव ही नहीं था कि भारत में कोई आपके या किसी और पार्टी के खिलाफ अदावत या डर का माहौल बना कर मुस्लिमों की वोट बैंक की राजनीति करने में सफल होता।

    निश्चित ही हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि सारी ही पार्टियों ने मुस्लिम और इस्लाम को केंद्र बनाकर राजनीति की और यह इसलिये भी की विकास और असल मुद्दों की राजनीति मुश्किल होती है। जवाब देना पड़ता है। लेकिन धर्म की राजनीति बड़ी आसान होती है। काम करना नहीं होता और लोग आपस में ही उलझे रहते हैं अपनी बदहाली को अपनी क़िस्मत का, दूसरे वर्ग का दोष समझ कर ज़िंदगी गुज़ार देते हैं ना ही कोई सवाल करते हैं।

    और बड़े अफ़सोस की बात है कि अब तक जो धर्म की राजनीति मुस्लिमों को केन्द्र बना कर की गई अब वह ही बहुसंख्यकों को केन्द्र बना कर की जा रही है और इसमें पूरे देश का नुक़सान होता है लेकिन ज़्यादा उसका होता है जिसे केंद्र बनाया जाता है। मुस्लिमों का उदाहरण सबके सामने है। बहुसंख्यकों` का अब नुकसान कैसे हो रहा है वह अब महसूस किया जाने लगा है। कहने की ज़रूरत नहीं सारे देश मे लोग परेशान है काम, धन्धे ठप हैं, महामारी कंट्रोल नहीं हो पा रही फिर भी चुनावी रैलियां हो रही हैं और जनता है कि अपनी बर्बादी छोड़ धर्म-धर्म करने में लगी है। इसे ही धर्म की राजनीति (Communal politics) कहा जाता है।

    आश्चर्य की बात है कि यह जो हो रहा है यह है तो धर्म की राजनीति, लेकिन इसे नाम दिया जा रहा है सेक्युलर राजनीति का। समझने वाले ही समझ सकते हैं कि इसे अफ़साना (Narrative) बनाने की कला में अगला शब्द है “सेक्युलर” । सेक्युलर मतलब तो यह होता है कि राजनीति में धर्म का दखल ना हो जबकि इसके उलट पूरी राजनीति ही धर्म पर हो रही है और गालियाँ और दोष सेक्युलर शब्द को दिया जा रहा है।

    खैर आगे सुधांशु जी ने बहुत अहम बात कबूल की जिसे आगे से सभी को ध्यान रखना चाहिए। वह यह कि आज़ादी के बाद सिर्फ़ मुस्लिमों की रियासतें थी और वे बहुत धनवान थे।

     

    अब ये बताएँ की जब मुस्लिमों की इतनी रियासत और सम्पत्ति थी औऱ आज वे आर्थिक रूप से इतने कमज़ोर हो गए तो या तो:-

    • 1. उनकी सम्पत्तियों का गबन किया गया उन्हें लूटा गया।

    अगर ऐसा है तो निश्चित ही वे मज़लूम हुए और उनको व्यवस्थित (सिस्टमैटिक) ढंग से लूटने वाले पूर्ण दोषी।

     

    • 2. या फिर उन्होंने ख़ुद ने ही अपनी सम्पत्ति लुटा दी।

    और अगर ऐसा है तो इसका मतलब हुआ कि उनकी सम्पत्ति दूसरों के पास खिसक (Shift) गई। तरीक़ा कुछ भी रहा हो इसका मतलब यह हुआ कि देश की सम्पत्ति और दूसरों की सम्पत्ति बढ़ने में मुस्लिमों की ही सम्पत्ति ही ज़िम्मेदार रही। अतः यह झूठ फ़ैलाना बन्द कर देना चाहिए कि बहुसंख्यकों ने मुस्लिमों पर ख़र्च किया वगैरह क्योंकि इसका उलटा साबित होता है वह भी आज आपके ख़ुद के शब्दों में। साथ ही आईटी सेल (I.T. cell) के जरिये ब्रेन वाशिंग के उन मैसेजों को चलाना बन्द करना चाहिए जो सीधे (direct) या परोक्ष (indirectly) दिन भर यह झूठा बखान (narrative) लोगो के मन मे बैठाने की कोशिश करते हैं, वह भी जब आज भी ताज महल, लाल किले और ऐसी कई धरोहरों से देश को सालाना अरबों रुपए की कमाई होती है।

     

    खैर यह तो हुई इतिहास की बात, आप अगर वाकई में मुस्लिमों के हितैषी हैं तो आज की स्थिति में ही देश भर में जो मुस्लिमों की वक़्फ बोर्ड की ज़मीन है उसके ज़रिए आम मुस्लिमों को फायदा सुनिश्चित करें, देश भर में जो मुस्लिमों के शिक्षा (Education) का ढाँचा है जामिया इस्लामिया आदि उन्हें सुचारू करें। क्यों कुछ लोगों की मिली भगत से वहाँ सिर्फ़ तनख्वाह बट रही हैं लेकिन स्कूल बंद पड़े हैं। कई सारी प्रस्तावित रिपोर्टों को लागू करें जिनमें कारण बताया गया है कि क्यों मुस्लिम पिछड़ रहे हैं और उनके उत्थान के लिये क्या करना होगा।

     

    कुछ तो दोहरे मापदंड है जिन्हें आपको बदलना होंगे। आप बात करते हैं सिखों और दूसरी अल्पसंख्यक (माइनॉरिटी) की। आप ख़ुद देख लें उनकी राजनीति और प्रमुख पदों में कितनी उपस्थिति है? जबकि मुस्लिमों की बात करें तो यदि कोई गलती से भी मुस्लिम पार्टी खड़ी हो भी जाए तो आप उसे देश विरोधी पार्टी, कट्टर मुस्लिम नेता का तमगा लगा देते है। कोई पार्टी किसी मुस्लिम का नामांकन कर भी दे तो उसे मुसलिम प्रेमी पार्टी बताकर ध्रुवीकरण चालू कर देते हैं, लेकिन क्या अपने कभी ऐसा जैनियों के साथ किया ?

     

    यह तो न्याय नहीं है। अगर वाकई आप मुस्लिमों के प्रति ईमानदार है तो आपको उन्हें इस तरह के दोहरे मापदंड छोड़ हर जगह मौके और स्वीकार्यता देनी होगी।

    और भी कई बातें है जो आप मुस्लिम विरोध की राजनीति करने की बजाय कर सकते हैं यदि आप वाकई में सही राजनीति करना चाहते हो तो । क्योंकि इतिहास गवाह है कि जब भी कहीं धर्म नहीं बल्कि विकास मुद्दा बना और इस हेतु कोई भी मोर्चा आगे आया हो मुस्लिमों ने तथाकथित धार्मिक मुद्दों को छोड़ कर उनका ही साथ दिया है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि जहाँ कहीं चुनाव होता है आप पहले कमर कस कर उस प्रदेश में धार्मिक राजनीति की लहर बनाने में लग जाते हैं। कभी-कभी तो यह विचार आता है कि यदि इस देश में मुस्लिम ना होते तो फिर यहाँ चुनाव किस मुद्दे पर लड़े जाते? शायद चुनाव होते हीं नहीं, क्योंकि आजकल बताया यह जा रहा है सेक्युलर तो बुरा है। कुछ समय बाद बताया जाएगा कि तानाशाही या एक पार्टी (One party) शासन सही है।

  • मुस्लिमों में कोई साइंसदां (Scientist) नहीं?

    मुस्लिमों में कोई साइंसदां (Scientist) नहीं?

    जवाब:-  मज़हब-ए-इस्लाम में इतने ज़्यादा साइंसदान (Scientists) गुज़र चुके हैं कि उन सभी का बयान (उल्लेख करना) भी मुश्किल है। लेकिन कुछ “मासूम” लोग जिनको कुछ पता तो होता नहीं और वह व्हाट्सएप के हर फेक मैसेज को सही समझ बैठते हैं और वे पूछने लगते हैं कि मुस्लिमों में आज तक कोई साइंसदां (Scientist) क्यों नहीं हुआ? ज़ाहिर है इन मासूम लोगों को इतिहास का ज्ञान तो होता नहीं, पर यह ख़ुद के देश में हुए महान साइंसदां डॉ.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को ही भूल जाते हैं और ना ही इनको हालात-ए- हाज़रा (current affairs) का ही कुछ पता होता है कि इनको मालूम हो कि कोरोना महामारी की पहली और सबसे उपयोगी वैक्सीन फ़ाइज़र (Pfizer) जिसे बायोएनटेक और फ़ाइज़र कंपनी ने जारी किया है। इस उपयोगी वैक्सीन को ईजाद करने वाले बायोएनटेक (BioNTech) के संस्थापक ही मुस्लिम दंपत्ति डॉ. उगुर साहीन और डॉ. ओज़्लेम तुरेसी (Dr. Ugur sahin & Dr. Ozlem tureci) हैं।

    इसके अलावा, इलाहाबाद के वैज्ञानिक फ़राज़ ज़ैदी ने ‌अमेरिका में कोरोना का वैक्सीन तयार कीया था।👇https://www.amarujala.com/uttar-pradesh/allahabad/city-scientist-faraj-engaged-in-developing-corona-vaccine-in-america

    CIPLA कंपनी (जिसके मालिक एक मुस्लिम, YUSUF HAMIED है) भारत की पहली कंपनी थी जिसने COVID-19 से लड़ने के लिए दवाओं का निर्माण किया।👇https://www.nationalheraldindia.com/india/coronavirus-pandemic-cipla-can-be-indias-first-company-to-manufacture-drugs-to-fight-covid-19

    मुस्लिम के नेतृत्व वाली नोएडा लैब न्यूलाइफ ने रु500 में एंटीबॉडी आधारित कोविड -19 परीक्षण किट विकसित की। तत्काल परिणाम (10-15 मिनट) और किट की उत्पादन क्षमता 1 लाख प्रतिदिन है👇 https://youtu.be/xdAgaDEmujc

    खैर हम यहाँ सामान्य जानकारी के लिए कुछ महान मुस्लिम साइंसदान के बारे में बता रहे हैं।👇

    • 1. इब्ने सीना (Avicenna):-

    इब्ने सीना का पूरा नाम अली अल हुसैन बिन अब्दुल्लाह बिन अल-हसन बिन अली बिन सीना है। इन्हें आधुनिक दवाई (Modern Medicine) का पिता / जनक कहा जाता है। मेडिकल और बॉयोलॉजी का शायद ही कोई छात्र रहा होगा जो इब्ने सीना (Avicenna) के बारे में नहीं जानता हो। इन्होंने 450 किताबें लिखी जिन में से कइयों को आज भी पढ़ाया जाता है। इनकी लिखी क़िताब The Canon of medicine (अल कानून फित-तिब्ब) 18 वी शताब्दी तक पूरे यूरोप में मेडिकल साइंस की मानक पुस्तक के रूप में स्थापित रही।

    1980 में इनकी हजारवीं वर्षगांठ के समारोह पर सोवियत यूनियन (रूस) में इनकी याद में स्टाम्प भी जारी किए थे और स्मारक स्थापित किया था।

    इन्हीं के नाम से यूनेस्को (UNESCO) द्वारा इब्ने सीना पुरस्कार (The Avicenna Prize) का आयोजन होता है और यह साइंस की फ़ील्ड में उच्च कार्य करने वालों को दिया जाता है जो हर 2 वर्ष में होता है।

    मेडिसीन ही नहीं बल्कि इब्ने सीना ने इसके अलावा एस्ट्रोनॉमी, अल्केमी, जियोग्राफी, जियोलॉजी, लॉजिक, साइकोलॉजी, फ़िज़िक्स और मैथेमेटिक्स में भी महत्वपूर्ण शोध किये जिन्हें आज भी पढ़ा जाता है।

    • 2. इब्न ज़करिया अल राज़ी:-

    वेस्टर्न वर्ल्ड में राज़ी’स (Razes) के नाम से जाने वाले इस महान फिजिशियन ने ही सबसे पहले 10 वी शताब्दी में सर्जरी में श्वसन द्वारा एनेस्थेसिया का प्रयोग किया था। यह नेत्र विज्ञान के प्रथम अन्वेषक (Pioneer in Ophthalmology) भी माने जाते हैं और बच्चों की दवा करने की विद्या (Pediatrics) के विषय में विश्व की पहली किताब भी इन्होंने ही लिखी थी ।

    • 3. मूसा अल ख़्वारज़मी:-

    इस मशहूर और महान गणितज्ञ द्वारा बीज गणित (Algebra), reduction and balancing equation भी इन्हीं की देन है जिस का प्रयोग कई गणना में होता है रसायन शास्त्र के कई सिद्धांत इसी से समझे जाते हैं। अलजेब्रा ने ही आगे जाकर बाइट (Byte) की नींव रखी जिस पर आज के कम्प्यूटर और कैलकुलेटर काम करते हैं।
     

    •  4. अल तूसी:-

    इनका पूरा नाम अल अल्लामा अबू जाफर मुहम्मद बिन मुहम्मद बिन हसन अल तूसी है। ये सातवीं सदी हिजरी के शुरू में यानी 13 सदी ईस्वी को तूस में पैदा हुए। इन्होंने त्रिकोणमिति को खगोलशास्त्र से अलग किया। इन्होंने इस प्रचलित सिद्धांत का विरोध किया कि पृथ्वी स्थिर है और कहा कि पृथ्वी घूमती है। ग्रहों की चाल, आकाश गंगा, खगोल विज्ञान के लिए इन्होंने आधुनिक तालिकायें बनाई।

    • 5. जाबिर बिन हियान:-

    मुस्लिम रसायन शास्त्री इन्हें पश्चिमी देश में गेबर के नाम से जाना जाता है। इन्हें रसायन विज्ञान का संस्थापक माना जाता है। जाबिर बिन हियान पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पदार्थ को तीन भागों वनस्पति, पशु और खनिज में विभाजित किया। रासायनिक यौगिकों जैसे कार्बोनेट, आर्गैनिक, सल्फाइड की खोज की।

    • 6. अल जज़री:-

    अल जजरी अपने समय के महान वैज्ञानिक थे। इस महान वैज्ञानिक ने अपने समय में इंजीनियरिंग के क्षेत्र में इंक्रलाब बरपा कर दिया था। इनका सबसे बड़ा कारनामा ऑटो मोबाइल इंजन की गति का मूल स्पष्ट करना था और आज उन्हीं के सिद्धांत पर रेल के इंजन और अन्य मोबाइल का आविष्कार संभव हो सका।

    • 7. इब्न अल हैशम:-

    इब्न अल हैशम का पूरा नाम अबू अली अल हसन बिन अल हैशम है। ये इराक के ऐतिहासिक शहर बसरा में 965 ई में पैदा हुए। इन्हें भौतिक विज्ञान, गणित, इंजीनियरिंग और खगोल विज्ञान में महारत हासिल थी।

    इब्न अल हैशम ने प्रकाश के प्रतिबिम्ब और लचक की प्रकिया और किरण के निरीक्षण से कहा कि ज़मीन की अंतरिक्ष की ऊंचाई एक सौ किलोमीटर है। इब्न अल हैशम ने ही यूनानी दृष्टि सिद्धांत को अस्वीकार करके दुनिया को आधुनिक दृष्टि दृष्टिकोण से परिचित कराया।

    दरअसल ऊपर के हर साइंसदां की इतनी ख़िदमात (सेवाएं/खोज/शोध) हैं की इनमें से हर एक के बारे में किताबें लिखी जा सकती हैं। लेख में सभी शामिल करना सम्भव ही नहीं है और ऐसे ही एक नहीं हज़ारों मुस्लिम साइंसदान गुज़र चुके हैं उन में से कुछ के नाम और दिए जा रहे हैं। जिन्हें रुचि हो वे हर एक का नाम गूगल पर सर्च कर ख़ुद उनके बारे में जानकारी हासिल कर ले।

    LIST OF KNOWN MUSLIM SCIENTISTS

    ❇️ ASTRONOMERS AND ASTROLOGERS
    ▪️Sind ibn Ali (-864)
    ▪️Ali Qushji (1403-1474)
    ▪️Ahmad Khani (1650-1707)
    ▪️Ibrahim al-Fazari (-777)
    ▪️Muhammad al-Fazari (-796 or 806)
    ▪️Al-Khwarizmi, Mathematician (780-850 CE)
    ▪️Abu Ma’shar al-Balkhi (Albumasar) (787-886 CE)
    ▪️Al-Farghani (800/805-870)
    ▪️Banū Mūsā(Ben Mousa) (9th century)
    ▪️Dīnawarī (815-896)
    ▪️ Al-Majriti (d. 1008 or 1007 CE)
    ▪️Al-Battani (858-929 CE) (Albatenius)
    ▪️Al-Farabi (872-950 CE) (Abunaser)
    ▪️Abd Al-Rahman Al Sufi (903-986)
    ▪️Abu Sa’id Gorgani (9th century)
    ▪️Kushyar ibn Labban (971-1029)
    ▪️Abū Ja’far al-Khāzin (900-971)
    ▪️Al-Mahani (8th century)
    ▪️Al-Marwazi (9th century)
    ▪️Al-Nayrizi (865-922)
    ▪️ Al-Saghani (-990)
    ▪️ Al-Farghani (9th century)
    ▪️Abu Nasr Mansur (970-1036)
    ▪️Abū Sahl al-Qūhī (10th century) (Kuhi)
    ▪️Abu-Mahmud al-Khujandi (940-1000)
    ▪️Abū al-Wafā’ al-Būzjānī (940-998)
    ▪️Ibn Yunus (950-1009)
    ▪️Ibn al-Haytham (965-1040) (Alhacen)
    ▪️Bīrūnī (973-1048)
    ▪️Avicenna (980-1037) (Ibn Sīnā)
    ▪️Abū Ishāq Ibrāhīm al-Zarqālī(1029-1087) (Arzachel)
    ▪️Omar Khayyám (1048-1131)
    ▪️Al-Khazini (fl. 1115-1130)
    ▪️Ibn Bajjah (1095-1138) (Avempace)
    ▪️Ibn Tufail (1105-1185) (Abubacer)
    ▪️Nur Ed-Din Al Betrugi (-1204) (Alpetragius)
    ▪️Averroes (1126-1198)
    ▪️Al-Jazari (1136-1206)
    ▪️Sharaf al-Dīn al-Tūsī (1135-1213)
    ▪️Anvari (1126-1189)
    ▪️Mo’ayyeduddin Urdi (-1266)
    ▪️Nasir al-Din Tusi (1201-1274)
    ▪️Qutb al-Din al-Shirazi (1236-1311)
    ▪️Shams al-Dīn al-Samarqandī (1250-1310)
    ▪️Ibn al-Shatir (1304-1375)
    ▪️Shams al-Dīn Abū Abd Allāh al-Khalīlī (1320-80)
    ▪️Jamshīd al-Kāshī (1380-1429)
    ▪️Ulugh Beg (1394-1449)
    ▪️Taqi al-Din Muhammad ibn Ma’ruf (1526-1585)
    ▪️Ahmad Nahavandi (8th and 9th centuries)
    ▪️Haly Abenragel (10th and 11th century)
    ▪️Abolfadl Harawi (10th century)
    ▪️Mu’ayyad al-Din al-‘Urdi (1200-1266

    ❇️ BIOLOGISTS, NEUROSCIENTISTS, AND PSYCHOLOGISTS
    ▪️Aziz Sancar, Turkish biochemist, the first Muslim biologist awarded the Nobel Prize ▪️Ahmad-Reza Dehpour (1948- ),
    ▪️Iranian pharmacologist
    ▪️Ibn Sirin (654-728), author of work on dreams and dream interpretation[1] ▪️Al-Kindi (Alkindus), pioneer of psychotherapy and music therapy
    ▪️Ali ibn Sahl Rabban al-Tabari, pioneer of psychiatry, clinical psychiatry and clinical psychology
    ▪️Ahmed ibn Sahl al-Balkhi, pioneer of mental health, medical psychology, cognitive psychology, cognitive therapy, psychophysiology and psychosomatic medicine
    ▪️Al-Farabi (Alpharabius), pioneer of social psychology and consciousness studies
    ▪️Abu al-Qasim al-Zahrawi (Abulcasis), pioneer of neurosurgery
    ▪️Ibn al-Haytham (Alhazen), founder of experimental psychology, psychophysics, phenomenology and visual perception
    ▪️Al-Biruni, pioneer of reaction time
    ▪️Avicenna (Ibn Sīnā), pioneer of neuropsychiatry thought experiment, self-awareness and self-consciousness
    ▪️Ibn Zuhr (Avenzoar), pioneer of neurology and neuropharmacology.
    ▪️Syed Ziaur Rahman, pioneer of Environment…

  • ईश्वर / अल्लाह या इस जहान को चलाने वाला कोई भी नहीं?

    ईश्वर / अल्लाह या इस जहान को चलाने वाला कोई भी नहीं?

    जवाब:-  इस तरह के सवाल नास्तिक लोग करते हैं जो कि डार्विन (Darwin) के विकासवाद कि थ्योरी से प्रभावित होते हैं। इस थ्योरी के समर्थक मानते हैं कि मनुष्य पहले बंदर था और फिर धीरे-धीरे मनुष्य बना। जिसे डार्विन की थ्योरी (Darwin’s theory) कहा जाता हैं। कुछ लोग इसे स्थापित सत्य / हक़ीक़त मान लेते हैं। जबकि इतना भी ध्यान नहीं देते कि ये नाम से ही उजागर हो जाता हैं कि यह सिर्फ़ एक थ्योरी (Theory) यानी कि सिर्फ़ एक “मत” हैं जिसका खण्डन आज पूरी तरह से हो चुका हैं।

    इस थ्योरी की शुरुआत से ही इस पर आपत्ति ली जाती रही, बल्कि ख़ुद डार्विन ने इस बारे में कहा था कि उनके पास अपने इस मत को साबित करने के लिए कोई सबूत (evidence) नहीं हैं।

    अगर इस थ्योरी में कुछ सच्चाई होती यानी कि अगर हम बंदर से इंसान बने थे तो आज हज़ारों वर्ष में हमें इंसान से कुछ और बन जाना चाहिए था। हज़ारो सालों कि पुरातत्व की खुदाई में इंसानी कंकाल के बजाए कुछ और निकलना था। यह थ्योरी यह भी कहती हैं कि एक कोशीय जीव (इंसान) बाद में बहुकोशिकीय हो गया, जबकि अमीबा एक कोशीय जीव आज भी एक कोशीय ही हैं और बहुकोशिकीय हुआ ही नहीं। ऐसे और भी कई तथ्य हैं जो इसे पूर्ण रूप से ग़लत साबित कर देते हैं।

    इसी तरह यह अनुमान भी ग़लत साबित हो जाता हैं कि आदि मानव पहले लाखों वर्षों तक भटकता रहा फिर उसमें संवाद, सोच, समझ और निर्णय लेने का विकास हुआ। क्योंकि यह गुण तो उसकी उत्पत्ति से ही उसमे निहित हैं।

    हम जब इस बारे में क़ुरआन का अध्ययन करते हैं, तो हमें बहुत साफ़ और सही मार्गदर्शन प्राप्त होता हैं कि इंसान ख़ुद पैदा नहीं हुआ बल्कि इंसान को अल्लाह ने पैदा किया हैं और उसकी उत्पत्ति से ही उसे अल्लाह का मार्गदर्शन प्राप्त हैं।

    आइये जानते हैं:-👇

    अल्लाह त’आला ने क़ुरआन में फरमाया-
    हे मनुष्यों! अपने उस पालनहार से डरो, जिसने तुम्हें एक जीव (आदम) से उत्पन्न किया तथा उससे उसके जोड़े को उत्पन्न किया और उन दोनों से बहुत से नर-नारी फैला दिये।…..
    (क़ुरआन 4:1)

    यानी कि इस संसार में मनुष्यों की शुरुआत आदम (अलैहिस्सलाम) और उनकी बीवी से हुई। हज़रत आदम (अलैहिस्सलाम) ही दुनिया में पहले मनुष्य थे और ईश्वर के भेजे पहले पैगम्बर / ईश दूत भी। ईश्वर ने हर वक़्त / काल में पैगम्बर भेजे और जिस भी काल में वे आए उस समय के अनुसार ही अल्लाह के बताए नियम (क्या हलाल हैं क्या हराम) से लोगों को अवगत कराया।

    प्रथम संदेष्टा से लेकर आखिरी संदेष्टा तक सभी संदेष्टाओं का मुख्य संदेश एक ही रहा हैं वह है तौहीद यानी एकेश्वरवाद एवं ईश्वरीय आदेश का पालन करना। जबकि व्यवहारिक (Practical) आदेशों में समय के अनुसार बदलाव होते रहे। उदाहरण के तौर पर स्वाभाविक-सी बात हैं जब कपड़ों का आविष्कार नहीं हुआ था तब शरीर को कपड़ों से नहीं बल्कि जिस भी चीज़ से ढका जाता था उसी से ढका जाने का आदेश रहा होगा।

    निश्चिंत ही इंसानी सभ्यता विकास करती रही उसकी बोली और संसाधनों में विकास होता रहा लेकिन उसमे हमेशा से ही संवाद करने, सोचने, समझने और निर्णय लेने का सामर्थ्य तो हमेशा से ही रहा हैं। इसी के ज़रिये पैगम्बर अल्लाह का संदेश लोगों को देते थे और उन्हें उसका पालन करने के लिए बुलाते थे। अल्लाह ने पैगम्बर / संदेष्टा हमेशा वक़्त के अनुसार ही भेजे जो उस समय की भाषा बोलते थे और आदेश भी समय और संसाधनो के अनुसार ही भेजे गए।

    इस तरह के अद्यतन (updates) बदलाव आते रहे और 1400 वर्ष पूर्व मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम) के आ जाने पर अंतिम आदेश (Final update) क़ुरआन आ गया और अब क़यामत तक यही रहने वाला हैं।

    अतः इस्लाम के अनुसार यह बात स्पष्ट हैं कि धरती पर मनुष्य के पहले ही दिन से लेकर आज तक इंसान को अल्लाह का स्पष्ट मार्गदर्शन प्राप्त हैं।

    ➡️ अब अगर हम यह कहें कि अगर ईश्वर के आदेश आते रहे पैगम्बर आते रहे तो फिर ऐसे साक्ष्य क्यों मिलते हैं जिसमें मनुष्य ने वे काम किये जो अल्लाह के आदेश नहीं थे या हराम थे? तो उसका सीधा जवाब यही हैं कि यह तो आज भी हो रहा हैं। ईश्वर का आदेश होने और पैगम्बरों के आने पर भी कई लोग उनका पालन नहीं करते और उनकी अवहेलना / पाप आदि करते हैं जो कि आज इस युग में भी हो रहा हैं।

    यानी यह अनुमान कि पैगम्बर बाद में आए और उनसे पहले मनुष्य कुछ भी करते थे सही नहीं हैं। बल्कि पैगम्बरों का मनुष्य जाती की उत्पत्ति से ही मौजूद होना और उनका दिशा निर्देशन करना साबित होता हैं।

  • नफ़रत फैलाने वाली एक और पोस्ट का जवाब दें?

    नफ़रत फैलाने वाली एक और पोस्ट का जवाब दें?

    जवाब:-  इस पोस्ट में लगाए गए सभी आरोपों का पहले ही विस्तार में जवाब दिया जा चुका है। चूंकि झूठ की बुनियाद पर मुस्लिमों के प्रति नफ़रत फैलाने वालों के पास कुछ आधार होता नहीं है इसी वज़ह से वे बार-बार कुछ एक प्रोपेगंडे को ही घुमा फिराकर हर बार इस्तेमाल करते रहते हैं। फिर भी इस पोस्ट के जवाब के रूप में हम एक बार फिर काफ़ी संक्षिप्त में इनके जवाब दोहरा रहे हैं।

    • आरोप 1 ▶️  सन् 1940- हम इस मुल्क से प्यार करते हैं लेकिन इस मुल्क में रहने वाले लोगों से नफ़रत करते है इसलिए हमें एक अलग मुल्क चाहिए!!

    जवाब:-  सोचने वाली बात है कि इनकी कहानी हर बार 1940 से ही क्यों शुरू होती है? या उसके पीछे जाना हो तो सीधे मुगल काल पहुँच जाते हैं। बीच के 200 वर्षो की बात क्यों नहीं करते? खैर करेंगे भी कैसे, जिन देशद्रोही लोगों ने 200 वर्षों तक अंग्रेज़ों का एजेंट बनकर काम किया वे ही आज देशप्रेम का ज्ञान बाँट रहे हैं। ज़रा ध्यान से देखें तो ख़ुद ही जान लेंगे की अंग्रेज़ों के एजेंट अपने आकाओं से सीखी तोड़ो और राज करो (Divide & rule) पॉलिसी को ही आगे बढ़ा रहे हैं और उसी के सहारे जी रहे हैं।

    1940 तो बहुत बाद में आया इतिहास का अल्प ज्ञान रखने वाला भी जानता है कि मुस्लिम लीग द्वारा दो देश की बात उठाए जाने से बहुत पहले अट्ठारवीं सदी में ही हिन्दू कट्टरवादियों ने ही इस सिद्धांत की बुनियाद डाल दी थी और उनके निरन्तर दिए जा रहे उकसाऊ भाषण और फैलाई जा रही नफ़रत ने दोनों समाजों के बीच असुरक्षा, नफ़रत और डर का माहौल बना दिया था जो बाद में देश के विभाजन का कारण बना।

    विस्तार में जानने के लिए हमारा पिछला पोस्ट पढ़े।👇 https://islamconnect.in/2021/08/18/3950/

     

    • आरोप 2 ▶️ सन् 1950- हम इस मुल्क से प्यार करते हैं लेकिन यहाँ के संविधान से नहीं। हमें चार-चार शादियाँ और उन सभी को तलाक देने के अधिकार चाहिए!!

    जवाब:-  यहाँ मुस्लिम पर्सनल लॉ के प्रति ग़लतफ़हमी फैलाई जा रही है। देश में सिर्फ़ मुस्लिमों के लिए ही पर्सनल लॉ बोर्ड नहीं है। सिख हथियार रखते है, आदिवासी धनुष और शराब रखते है, जैन / नागा साधू बिना वस्त्र के रहते है। कुछ के यहाँ जीवित समाधि लेने की प्रथा है। ये सब अपने धर्म के पर्सनल लॉ (Personal law) के कारण ऐसा कर सकते है। जबकि दूसरे धर्म के लोगों के लिए इस पर सजा का प्रावधान है। इसी तरह शादी, जन्म-मृत्यु पर जो भी रीति रिवाज़ हैं वह संविधान द्वारा दिए गए पर्सनल लॉ के कारण ही है। लेकिन यह सब छुपा कर सिर्फ़ चयनात्मक दृष्टिकोण (Selective approach) के द्वारा मुस्लिमों का चित्रण कर अपना प्रोपेगेंडा करने के लिए किया जा रहा है।

    • आरोप 3 – ▶️ सन् 1980-हम इस मुल्क से प्यार करते हैं लेकिन कश्मीर सिर्फ़ हम मुसलमानों का है इसलिए हम सभी कश्मीरी पंडितों को घाटी से भगा रहे हैं और कश्मीर में केवल शरीयत का क़ानून चलेगा!!

    जवाब:-  कश्मीर का उल्लेख कर बार-बार मुस्लिमों पर झूठे आरोप लगाये जाते रहे हैं और इसका इस्तेमाल हमेशा लोगों को मुस्लिमों के प्रति भड़काने में किया जाता है। जबकि बलराज पूरी अपनी किताब में लिखते है कि कश्मीर से पंडितो के पलायन के ज़िम्मेदार तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन है, जिसे तत्कालीन भाजपा सरकार ने कश्मीर की सरकार को बर्खास्त कर सारी शक्ति दे दी थी। या यूँ कहें कि पंडितो को एक साज़िश के तहत राज्यपाल जगमोहन ने पलायन के लिए मजबूर करा तो भी ग़लत नहीं होगा। इस बात को समझने के लिए कि तत्कालीन सरकार ने राज्यपाल जगमोहन के द्वारा पंडितो को पलायन क्यों करवाया और पलायन के लिए कौनसी परिस्थितियाँ ज़िम्मेदार थी इसके लिए आप ख़ुद अध्ययन कर लें👇

    कश्मीरी पंडित पी एल डी परिमू “कश्मीर एंड शेर-ए-कश्मीर : अ रिवोल्यूशन डीरेल्ड”, page 244,
    लेंग्वेजेज़ ऑफ़ बिलॉन्गिंग : इस्लाम, रीजनल आइडेंटीटी, एंड मेकिंग ऑफ़ कश्मीर”, page 318,

    मृदु राय “हिन्दू रूलर्स एंड मुस्लिम सब्जेक्ट्स”,
    सुमित्रा बोस “कश्मीर : रूट्स ऑफ़ कनफ्लिक्ट, पाथ टू पीस” page 120,

    कश्मीर: द डाइंग ऑफ़ द लाईट, वजाहत हबीबुल्लाह कश्मीरी page – 79,
    सईद नकवी “बीइंग द अदर” के page – 173-193,

    सीमा क़ाज़ी “बिटवीन डेमोक्रेसी एंड नेशन”,
    बलराज पुरी, कश्मीर : इंसरजेंसी एंड आफ़्टर, page -68,

    शहनाज़ बशीर का उपन्यास “द हाफ़ मदर” किताबे पढ़नी होगी।

    वैसे इस सन्दर्भ में यह जानना बहुत ज़रूरी है कि कश्मीर का झूठा राग अलापने वाले क्यों कभी

    1964 कोलकाता दंगा
    1983 नेल्ली नरसंहार
    1969,1981,2002 गुजरात दंगे
    1987 हाशिमपुरा नरसंहार
    1989 भागलपुर दंगा
    1992 बॉम्बे (मुंबई) दंगे
    2012 असम नरसंहार
    2013 मुजफ्फर नगर हिंसा
    पर बात क्यों नहीं करते??

    जम्मू मुसलमानों के साथ भी यही जुल्म हुआ था मगर इतिहास के पन्नों से मिटा दिया गया।👇 https://www.hindustantimes.com/columns/we-cannot-be-selective-about-the-past-in-j-k/story-ELfaDpC6UoAfMbBNQTgIsO_amp.html?__twitter_impression=true&fbclid=IwAR2VHbAJL1Bh7cbPCqUyQN-5JsP-07ffPE7UOwbi3JlaVRYh8LLBk_5dNIQ

    इन सब के जिम्मेदार सिर्फ पाखंडी नेता है ना कि आम जनता!

    देश में सिर्फ़ मुस्लिमों को टारगेट करते हुए किये गए दंगे और नरसंहार की तादाद लाखों में है। कई जगहों से मुस्लिमों की पूरी की पूरी आबादी को निष्कासित कर दिया गया सिर्फ़ 1954 से 1982 के बीच ही ऐसे 6993 दंगो का आंकड़ा मौजूद है।

    लेकिन मुल्क से प्यार करने वाले, इन वारदातों को दुखद मानते हैं और बेवज़ह इनका उल्लेख कर लोगों को भड़काने का प्रयत्न नहीं करते।

    जब कि अंग्रेज़ों के एजेंटों का यह सर्वोप्रिय (Favorite) कार्य है और कश्मीर का झूठा उल्लेख कर हर समय देशवासियों को लड़ा कर तोड़ने का प्रयास करते रहते हैं।

    • आरोप 4 ▶️  सन् 1990- हम इस मुल्क से प्यार करते हैं पर इस मुल्क से भी ज़्यादा बाबर को प्यार करते हैं। हम ये जानना नहीं चाहते की राममंदिर क्यों तोड़ा गया लेकिन हमें अपनी बाबरी मस्जिद वापस चाहिए!!

    जवाब:-  सुप्रीम कोर्ट में सदियों से बोला जा रहा प्रोपेगेंडा झूठ साबित हुआ। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इस बात के कोई सबूत नहीं की मंदिर गिरा कर मस्जिद बनाई गई है। उसके बाद भी फ़ैसला राम मंदिर के पक्ष में आया। इतना संवेदनशील मामला होने पर भी देश भर के मुस्लिमों ने उसे आत्मसात किया और आज वहाँ मंदिर बन रहा है।

    इस बात पर मुस्लिमों की सराहना करने और सद्भावना बनाने की बजाय एजेंट लोग *तोड़ो और राज करो* को आगे बढ़ाते हुए नई लिस्ट निकाल कर अगली कई सदियों तक देश को (हिन्दू-मुस्लिमों) मामलों में उलझाए रखना चाहते हैं।

    • आरोप 5 ▶️ सन् 2002- हम इस मुल्क से प्यार करते हैं लेकिन हम कारसेवकों को ट्रेन में जिन्दा जलाएंगे और तुम हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते क्योंकि हमारे समर्थन में भ## मीडिया है!!

    जवाब:-  मीडिया आज किसके समर्थन में है इस बात को आज कौन नहीं जानता? यह तो ख़ुद चोर मचाए शोर वाली बात हो गई ।

    ठीक कश्मीर की तरह गोधरा काण्ड को हर दूसरे दिन याद दिलाने वाले गुजरात दंगों का कभी ज़िक्र नहीं करते। जबकि कई विश्लेषकों ने यह बार-बार कहा है कि ख़ुद गोधरा कांड, गुजरात में दंगे फैलाने के लिए सोची समझी साज़िश थी। जब आप पवित्र हृदय से इन दावों का अध्ययन करेंगे तो आपके क़दमो तले ज़मीन खिसक जायेगी, क्योंकि उसमें कुछ सवाल है, जिसका जवाब आज तक नहीं दिया जा सका।

    1) ट्रेन पर जब बाहर से पैट्रोल फेंका गया तो ट्रेन बाहर से क्यों नहीं जली..? जलती ट्रेन का जब वीडियो या फोटो देखते है, तो उससे पता चलता है कि आग अंदर से बाहर कि तरफ़ आ रही थी।

    2) यह बात सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज यू.सी. बनर्जी की संसदीय समिति ने भी मानी कि आग अंदर से लगाई गई थी।

    3) टाइम्स ऑफ इंडिया कि रिपोर्ट के अनुसार ज़मीन से खिड़की कि ऊंचाई 7-फिट थी। तब सम्भव ही नहीं है कि इस पैमाने पर आग लगे कि ट्रेन पूरी जल कर ख़ाक हो जाये।

    4) 19 साल बाद मुख्य आरोपी को पकड़ने का दावा किया गया है, जो कि एक मज़दूर है और सम्भव है, सबूतो के अभाव के नाम पर 10-15 साल बाद वह बाइज्ज़त बरी भी हो जाए जैसे पहले भी आतंकवाद के आरोप में बेगुनाहों को पकड़ा गया और बाद में रिहा कर दिया गया है।

    • आरोप 6 – ▶️ सन् 2010- हम इस मुल्क से प्यार करते हैं लेकिन हम गाजा पट्टी में इजराइल के हमलों का विरोध भारत में अमर जवान ज्योति को तोड़ कर करेंगे!!

    जवाब:-  पूर्ण झूठ ! 2010 में गाजा पट्टी के हमले के विरोध में ऐसी कोई घटना नहीं हुई। लेकिन फिर भी अगर किसी उपद्रवी के कुछ ग़लत करने से अगर पूरा समाज दोषी हो जाता है तो फिर सैकड़ो हिन्दू, पाकिस्तान के लिए जासूसी और देशद्रोह के आरोप में पकड़े गए हैं अतः ऐसे तो पूरे देश के बहुसंख्यक समाज को देशद्रोही घोषित हो जाना चाहिए।

    • आरोप 7 – ▶️ सन् 2013- हम इस मुल्क से प्यार करते हैं लेकिन हम वन्दे मातरम् नहीं गायेंगे भले ही ये हमारा राष्ट्रीय गीत क्यों ना हो!!

    जवाब:-  जिन लोगों को वन्दे मातरम् का अर्थ तक नहीं पता वे लोग इस बुनियाद पर देशप्रेम का सर्टिफिकेट बाँट रहे हैं। इनसे ज़रा पूछे कि क्यों ये मुस्लिमों से राष्ट्रगान की बात नहीं करते? क्यों ये भारत माता की जय या भारत ज़िंदाबाद कहने को नहीं कहते? इनकी सुई मुस्लिमों से सिर्फ़ वन्दे मातरम् कहलवाने पर ही क्यों टिकी रहती है? जिस दिन आप यह जान लेंगे आप ख़ुद इन एजेंटो के डिवाइड एंड रूल के षड्यंत्र से वाकिफ हो जाएंगे।

    😂खुद अंध भक्तों का यह हाल है, कि उन्हें वंदे मातरम नहीं आता।👇                                           https://m.facebook.com/groups/341050273049912?view=permalink&id=592510211237249

    • आरोप 8:- ▶️ सन् 2014- हम इस मुल्क से प्यार करते हैं लेकिन चूँकि हम भारत के कई राज्यों जैसे असम, बंगाल, केरला में बहुसंख्यक हो चुके हैं इसलिए यहाँ दुर्गा पूजा के पंडाल नहीं लगेंगे!!

    जवाब:-  पूर्ण झूठ एवं मनगढ़ंत।

    और इतना झूठ और प्रोपेगेंडा कर लेने के बाद अब एजेंटों का अगला क़दम होता है कि झूठ की बुनियाद पर भविष्य के बारे में डराना। आइए वह भी देख लेते हैं।

    • आरोप 9 ▶️ सन् 2030-हम इस मुल्क से प्यार करते हैं लेकिन चूँकि अब हम पूर्ण रूप से कश्मीर, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, असम केरल में बहुसंख्यक हो चुके हैं इसलिए हम अब इन राज्यों में शरीयत कानून चाहते है अगर वह हमें नहीं मिला तो वैसे ही कत्लेआम शुरू होंगे जैसे 1947 में शुरू हुए थे!!

    ▶️ सन् 2050 – हम इस मुल्क से प्यार करते हैं लेकिन अब हम इस मुल्क में 40% से भी ज़्यादा हो चुके हैं इसलिए इस मुल्क में मूर्ति पूजा बंद होनी चाहिए क्योंकि इससे हमारी भावनाएँ आहत होती है!!

    ▶️ सन् 2060 – और अब चूँकि मुसलमान इस मुल्क में 50% हो चुके हैं अब वह सत्य सामने आएगा जिससे हम हिन्दू इनकार करते रहते है।

    जवाब:-  झूठ की बुनियाद पर डराने का यह प्रयास एकदम हास्यास्पद है। आज़ादी के बाद से ही एजेंटों का सबसे पसंदीदा प्रोपेगेंडा यह डर बताना रहा है कि मुस्लिम इस देश में बहुसंख्यक हो जाएंगे साथ ही कमाल की बात यह है कि इसके लिए वे जो तारीख बताते हैं वे हर बार बढ़ जाती है। 1950 में इनके अनुसार 90 के दशक में मुस्लिम 50% होने वाले थे फिर 90 के दशक की तारीख बढ़ाकर इन्होने 2000 कर दी फिर यह बढ़ कर 2020 और फिर 2030 हुई अब 2050 नई तारीख आई है।

    जबकि यह प्रोपेगेंडा कई बार एक्सपोज़ हो चुका है कि यह दावे कितने झूठे और खोखले हैं और यह होना सम्भव नहीं उदाहरण के तौर पर एबीपी न्यूज़ की ख़बर की नीचे दिए गए लिंक देख लें।👇https://youtu.be/YfVBsbkAGco

    • आरोप 10 ▶️ हम इस मुल्क से कोई प्यार मोहब्बत नहीं करते हैं क्योंकि क़ुरआन में धर्म नाम की किसी भी चीज़ का वर्णन नहीं है मेरे क़ुरआन में केवल मेरे धर्म यानी इस्लाम की चिंता करने की बात कही गई है हम इस मुल्क से प्यार करते हैं।

    जवाब:-  हम इस मुल्क से प्यार करते हैं तभी तो दिन रात लोगों को भड़काउ मैसेज और नफ़रत फैलाकर इस मुल्क को तोड़ने में नहीं लगे रहते। साथ ही क़ुरआन में सिर्फ़ मुसलमानो की नहीं बल्कि तमाम इंसानों की बात कही गई है। ख़ुद पढ़ कर देख लें और ख़ुद को नहीं पढ़ना है तो कम से कम दूसरों को तो झूठा चित्रण कर पढ़ने से तो ना रोकें ।

    अंत:- ▶️ पढ़ने के बाद समझ में आये तो ठीक नहीं तो मेंटास की गोली खाओ आँख खोलने के लिए कश्मीर में 370 हटने के बाद देख लो जम्मू शांत, लद्दाख शांत, बस कश्मीर में जहाँ ये शांतिदूत है वहीं सारी दिक्कत है..

    जवाब:-  यह बात समझने के लिए कोई गोली खाने की ज़रूरत नहीं है कि क्यो दिल्ली, यूपी बॉर्डर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र में चल रहे किसान आंदोलन, ट्विटर पर रोजगार को लेकर चल रहे ट्रेंड, तेल कीमत, बढ़ती महँगाई आदि को लेकर देशभर में हो रहे आंदोलनों से हटा कर आपका ध्यान दूर कश्मीर की तरफ़ ही क्यों घुमाया जा रहा है? यह अब इतना स्पष्ट हो गया है कि हर एक जागरूक व्यक्ति यह समझ रहा है।

  • मुसलमानों ने देश के टुकड़े क्यों किये?

    मुसलमानों ने देश के टुकड़े क्यों किये?

    जवाब:- हमेशा से ही देश के विभाजन का आरोप मुस्लिमों पर लगाया जाता है जबकि आप इतिहास का अध्ययन करें तो आप इस तथ्य से अवगत होंगे की दो राष्ट्र की बुनियाद हिंदू राष्ट्रवादी सोच के लोगों ने रखी थी।

    यह बात बिल्कुल प्रमाणित है कि मुस्लिम लीग की दो देश की बात उठाए जाने से बहुत पहले अट्ठारवीं सदी में ही हिन्दू राष्ट्रवादियों ने इस सिद्धांत की बुनियाद डाल दी थी। जो कि उन्नीसवीं सदी के आते आते बहुत मुखर होती गई। उनके मशहूर और उभरते हुए नेताओं के ईसाईयों और खास तौर से मुसलमानों को लेकर दिए जा रहे ज़हरीले भाषण भी बढ़ते गए।

    भाई परमानंद, राजनारायण बसु (1826-1899), उनके साथी नवगोपाल मित्र, लाला लाजपत राय, डॉ. बी.एस. मुंजे, वी.डी. सावरकर, एम.एस. गोलवलकर आदि हिंदूवादी लोग लगातार एक हिन्दू राष्ट्र की कल्पना कर रहें थे। एक ऐसे हिन्दू राष्ट्र की कल्पना जिसमें ईसाई और मुस्लिम समुदाय के लोग हिंदुओं की दया पर पले।

    1899 में लाला लाजपतराय जी ने हिंदुस्तान रिव्यू नामक पत्रिका में एक आलेख लिखा और बताया कि हिंदू अपने-आप में एक राष्ट्र हैं। भाई परमानन्द ने तो अपनी आत्मकथा में अफगानिस्तान और सीमावर्ती इलाकों को मिलाकर अलग मुस्लिम राष्ट्र कि योजना तक प्रस्तावित कर दी थी।

    गोलवलकर ने तो जर्मनी के नाज़ियों और इटली के फासिस्टों द्वारा यहूदियों के सफ़ाये की तर्ज़ पर भारत के मुसलमानों और ईसाईयों को चेतावनी दी कि,

    “अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो वे राष्ट्र की तमाम संहिताओं और परम्पराओं से बंधे, राष्ट्र की दया पर टिकें, जिनको कोई विशेष सुरक्षा का अधिकार नहीं होगा, विशेष अधिकारों या अधिकारों की बात तो दूर रही। इन विदेशी तत्वों के सामने सिर्फ़ दो ही रास्ते हैं, या तो वो राष्ट्रीय नस्ल में मिल जाए और उसकी तहज़ीब को अपनाए या उसकी दया पर ज़िंदा रहें जब तक कि राष्ट्रीय नस्ल उन्हें इजाज़त दे और जब राष्ट्रीय नस्ल की मर्ज़ी हो तब वे देश को छोड़ दें।….

    विदेशी नस्लों को चाहिए कि वे हिन्दू तहज़ीब और ज़बान को अपना ले…

    हिन्दू राष्ट्र के अलावा दूसरा कोई विचार अपने दिमाग़ में न लायें और अपना अलग अस्तित्व भूलते हुए हिन्दू नस्ल में मिल जाये या देश में हिन्दू राष्ट्र के साथ दोयम दर्जे के आधार पर रहें, अपने लिए कुछ न मांगे, अपने लिए कोई खास अधिकार न मांगे यहाँ तक कि नागरिक अधिकारों की भी चाहत न रखें।”
    (एम.एस. गोलवलकर: वी ऑर अवर नेशनहुड डिफाइंड)

    हिन्दू महासभा के बालकृष्ण शिवराम मुंजे ने भी ऐसी ही घोषणा की थी।

    डॉ. बी. एस. मुंजे ने हिन्दू महासभा के फलने फूलने और उसके बाद आर.एस.एस. के बनने में मदद की थी। सन् 1923 में अवध हिन्दू महासभा के तीसरे सालाना जलसे में उन्होंने ऐलान किया-

    “जैसे इंग्लैंड अंग्रेज़ो का, फ्रांस फ्रांसीसी का और जर्मनी जर्मन नागरिकों का है, वैसे ही भारत हिंदुओं का है। अगर हिन्दू संगठित हो जाए, तो वो मुसलमानों को वश में कर सकते हैं।”
    (उध्दृत जे.एस. धनकी, ‘लाला लाजपत राय ऐंड इंडियन नेशनलिज़्म’)

    सावरकर ने हमेशा से ईसाई और मुस्लिम समुदाय को विदेशी मानते हुए सन् 1937 में अहमदाबाद में हिंदु महासभा के 19 वें सालाना जलसे में अपने भाषण में कहा-

    “आज यह कतई नहीं माना जा सकता कि हिंदुस्तान एकता में पिरोया हुआ राष्ट्र है, जबकि हिंदुस्तान में खास तौर से दो राष्ट्र है- हिन्दू और मुसलमान।”
    (समग्र सावरकर वांग्मय: हिन्दू राष्ट्र दर्शन, खंड 6)

    बाबा साहेब अंबेडकर इस तरह के भाषणों से होने वाले एक बड़े नुकसान के खतरे को समझ रहे थे, उन्होंने इस संदर्भ में परिस्थितियों को देखते हुए साफ़ लिख दिया था-

    “ऐसे में देश का टूटना अब ज़्यादा दूर की बात नहीं रह गया। सावरकर मुसलमान क़ौम को हिन्दू राष्ट्र के साथ बराबरी से रहने नहीं देंगे। वो देश में हिंदुओं का ही दबदबा चाहते है, और चाहते हैं कि मुसलमान उनके अधीन रहे। हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दुश्मनी का बीज बोने के बाद सावरकर अब क्या चाहेंगे कि हिन्दू मुस्लिम एक ही संविधान के तले एक अखंड देश में होकर जिएं, इसे समझना मुश्किल है।”
    (बी.आर.अंबेडकर: पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन)

    इसी तरह के भाषणों, बिगड़ते माहौल और क्रिया प्रक्रिया स्वरूप अंत में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान का प्रस्ताव सन् 1940 में पारित किया था, वो भी तब जब अक्सर नेताओं के भाषण से उन्हें लगा कि अब भारत में रहना आसान नहीँ होगा।

    दरअसल 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों को यह समझ आ गया था की देश पर राज जारी रखने के लिए यह युक्ति करना ज़रूरी है कि हिन्दू-मुस्लिम फिर कभी एक ना हो पाएं इसी के फलस्वरूप इस एजेंडे की शुरुआत हुई।

    आज जनता को समझना होगा कि आज जो लोग देश के बंटवारे का आरोप लगाते हैं उनका ख़ुद का बंटवारे में कितना बड़ा हाथ था? और आज भी जो नफ़रत फैलाने वाले लोग कर रहे हैं यह उसी एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं जो देश के लिये हितकारी नहीं है।

  • क्या इस्लाम सिर्फ एक दिनचर्या है ?

    क्या इस्लाम सिर्फ एक दिनचर्या है ?

    जवाब:-  इस तरह की पोस्ट लिखने के पीछे मकसद यह होता है कि किसी तरह लोगों को इस्लाम के बारे में जानने से रोका जाए और उनकी जिज्ञासाओं को समाप्त किया जाए। इसीलिए कुछ भी लिख कर ख़ुद ही व्याख्या कर दी जाती है कि यही इस्लाम है।

    और यह व्याख्याएँ इतनी मनगढ़ंत, दुर्बल और हास्यपद होती हैं कि ज़रा-सी बुद्धि लगाने पर इनकी पोल खुल जाती है।

    जैसे यहाँ इस पोस्ट में जो बातें लिखी हैं यदि उसी अनुसार सोचा जाए तो ठीक इसका उल्टा मानना पड़ता है कि भारत में जंगल हैं, लकड़ी ज़्यादा है इसलिए मानना पड़ेगा कि यहाँ मरने के बाद जलाया जाता है, फल सब्ज़ी ज़्यादा है इसलिए वह खाई जाती थी, मिट्टी है इसलिये लोग मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करते थे। पत्ते ज़्यादा है इसलिये पत्तल दोने में खाते थे आदि।

    अतः इस तर्क अनुसार तो भारत का हर धर्म, धर्म ही नहीं रहा बल्कि दिनचर्या हो गया।

    अतः यह पोस्ट पूर्ण काल्पनिक तो है ही साथ ही इसमें झूठ का भी भरपूर प्रयोग किया गया है जैसे कहा जा रहा है कि इस्लाम धर्म नहीं मज़हब है और मज़हब का अर्थ कहीं दिनचर्या बताया जा रहा है तो कहीं अपने कबीले को बढ़ाना।

    जबकि यह दोनों ही पूर्ण झूठ है, आज आप ख़ुद बड़ी आसानी से गूगल ट्रांसलेटर का प्रयोग कर पता कर लें कि मज़हब का अर्थ क्या होता है? वैसे तो क़ुरआन में इस्लाम के लिए शब्द “दीन” का प्रयोग किया गया है। लेकिन अगर शब्द मज़हब की बात करें तो इसका भी अर्थ अरबी में धर्म ही होता है। यदि आपको अरबी में हिन्दू धर्म या सिख धर्म कहना है तो आपको हिन्दू मज़हब या सिख मज़हब ही कहना होगा।

    वैसे दिन-ए-इस्लाम जीवन का एक पूरा तरीक़ा (Complete way of life) है जिसमें अनुयायियों का जीवन के हर एक पहलू के बारे में मार्गदर्शन कर दिया गया है। फिर चाहे वह धर्म पालन हो या दिनचर्या। ऐसे सिर्फ़ दिनचर्या की ही बात करें तो इसके बताए तरीको का लाभ आज जगजाहिर है। फिर चाहे वह खान-पान का तरीक़ा हो या ख़तना का। लेकिन इन्हीं में से कुछ एक को लेकर यह दिखाने का कुप्रयास किया गया कि बस यही इस्लाम है। जबकि इस्लाम की उस विशेष एवं पृथक पहलू को सभी से छुपाने का प्रयास किया गया जो उसे सभी धर्मों से अलग बनाता है। वह यह कि:-

    1. सिर्फ़ एक ईश्वर को पहचानना और उसी की इबादत करना-

    वही अल्लाह तुम्हारा पालनहार है, उसके अतिरिक्त कोई सच्चा पूज्य नहीं। वह प्रत्येक वस्तु का उत्पत्तिकार है। अतः उसकी इबादत (वंदना) करो तथा वही प्रत्येक चीज़ का अभिरक्षक है।
    (क़ुरआन 6:102)

    ख़ुदा ही वह ज़ाते पाक है कि उसके सिवा कोई माबूद नहीं (वह) ज़िन्दा है (और) सारे जहान का संभालने वाला है उसको न ऊँघ आती है न नींद जो कुछ आसमानो में है और जो कुछ ज़मीन में है (गरज़ सब कुछ) उसी का है कौन ऐसा है जो बग़ैर उसकी इजाज़त के उसके पास किसी की सिफ़ारिश करें जो कुछ उनके सामने मौजूद है (वह) और जो कुछ उनके पीछे (हो चुका) है (खुदा सबको) जानता है और लोग उसके इल्म में से किसी चीज़ पर भी अहाता नहीं कर सकते मगर वह जिसे जितना चाहे (सिखा दे) उसकी कुर्सी सब आसमानॊं और ज़मीनों को घेरे हुये है और उन दोनों (आसमान व ज़मीन) की निगेहदाश्त उस पर कुछ भी मुश्किल नहीं और वह आलीशान बुजुर्ग़ मरतबा है।*
    (क़ुरआन 2:255)

    2. और फिर उसी ईश्वर के आदेशों का पालन कर यह जीवन रुपी परीक्षा व्यतीत करना क्योंकि यह जीवन तो थोड़े समय के लिए है अंत में सभी को मरना है और अपने किये कर्मो का हिसाब देना है।

    कह दो, “मृत्यु जिससे तुम भागते हो, वह तो तुम्हें मिलकर रहेगी, फिर तुम उसकी ओर लौटाए जाओगे जो छिपे और खुले का जाननेवाला है और वह तुम्हें उससे अवगत करा देगा जो कुछ तुम करते रहे होगे।” 
    (क़ुरआन 62:8)

    उस दिन लोग तितर-बितर होकर आयेंगे, ताकि वे अपने कर्मों को देख लें।
    तो जिसने एक कण के बराबर भी पुण्य किया होगा, उसे देख लेगा।
    और जिसने एक कण के बराबर भी बुरा किया होगा, उसे देख लेगा।
    (क़ुरआन 99: 6-8)

    और अंत में, यह कहना भी बिल्कुल निराधार है कि अरब के लोग एक ईश्वर को इसलिए पूजते और मूर्तियाँ नहीं बनाते थे क्योंकि वहाँ मिट्टी नहीं थी। क्योंकि क़ुरआन नाज़िल होने से पहले अरब के लोग अल्लाह (ईश्वर) को तो मानते थे लेकिन उसके साथ-साथ उन्होंने कई मूर्तियाँ भी बना रखी थी और उनके बारे में मन से ही काल्पनिक किस्से कहानियाँ बना कर उन्हें भी पूजते थे और उन्हें किसी तरह ईश्वर के साथ शरीक (साझी) कर उन से मांगने लगते थे! जैसे किसी मूर्ति को ईश्वर की बेटी बना देते तो किसी और को और कुछ। जिस से मना करने के लिए क़ुरआन में कई जगह जिक्र है
    जैसे

    वास्तव में, ये कुछ केवल नाम हैं, जो तुमने तथा तुम्हारे पूर्वजों ने रख लिये हैं। नहीं उतारा है अल्लाह ने उनका कोई प्रमाण। वे केवल अनुमान (ईश्वर के पुत्र / पुत्री की कहानियाँ) पर चल रहे हैं तथा अपनी मनमानी पर। जबकि आ चुका है उनके पालनहार की ओर से मार्गदर्शन।
    (क़ुरआन 53:23)

    हे लोगों! एक उदाहरण दिया गया है, इसे ध्यान से सुनो, जिन्हें तुम अल्लाह के अतिरिक्त पुकारते हो, वे सब एक मक्खी भी नहीं पैदा कर सकते, यद्यपि सब इसके लिए मिल जायें और यदि उनसे मक्खी कुछ छीन ले, तो उससे वापस नहीं ला सकते। माँगने वाले निर्बल और जिनसे माँगा जाये, वे दोनों ही निर्बल हैं।
    (क़ुरआन 22:73)

    अतः मालूम हुआ कि इस्लाम सभी के लिए एक खुला पैगाम है जिसमें विस्तार में जानने के लिए बहुत कुछ है। जबकि इस सवालिया पोस्ट में मज़हब का झूठा अनुवाद कर और झूठी कुतार्किक व्याख्या कर कुछ का कुछ बताने का प्रयास किया गया।

     

  • मुसलमान असुरों के वंशज हैं ?

    मुसलमान असुरों के वंशज हैं ?

    जवाब:- सबसे पहले तो आप ज़रा ये बताये की यह सब बातें आपने अपने कौन से धर्म ग्रन्थ से ली हैं? कौन से वेद, पुराण, रामायण में यह लिखा है? ज़रा इसका संदर्भ (रेफरेंस) तो बताएँ?

    यहाँ कही बातों का कोई आधार ही नहीं है किसी हिन्दू धर्म ग्रन्थ में ऐसा कोई उल्लेख ही नहीं है।

    वैसे तो ना इस्लाम में कोई वंशवाद / नस्ल / जातिवाद है। ना ही मक्का मदीना में कोई शिवलिंग है। बल्कि दुनियाभर में हर नस्ल हर रंग के मुस्लिम हैं जिनके पूर्वज भी भिन्न हैं।

    लेकिन इस कहानी को फिर भी सच मानने वालों को बुद्धि का प्रयोग कर ख़ुद ही थोड़ा विचार करना चाहिए।

    ❗ यह इतना तर्कहीन और मूर्खतापूर्ण इसलिए भी है कि हिन्दू धर्म का अल्प ज्ञान रखने वाला भी यह बात जानता है कि श्री राम त्रेता युग में हुए थे और इस पोस्ट के अनुसार यह घटना त्रेता युग की हुई जबकि देवताओं, ऋषि मुनियों का असुरों से युद्ध तो कई युगों बाद तक चलता रहा।

    जैसे हिन्दू धर्म ग्रँथों के अनुसार ख़ुद श्री कृष्ण ने बकासुर, अघासुर, केशी असुर आदि से युद्ध किया और उनका नाश किया। सभी जानते हैं श्री कृष्ण द्वापर युग में हुए।

    अतः श्री राम और श्री कृष्ण में त्रेता युग और द्वापर युग के बीच हिन्दू मान्यताओ के अनुसार हज़ारों लाखों वर्षों का अंतर है। तो यदि इस बात में कुछ सच्चाई होती तो क्यों इन हज़ारों वर्षों तक असुरों से युद्ध करते रहने की बजाय किसी ने रेगिस्तान में जाकर शिव लिंग पर गंगा जल क्यों नहीं चढ़ा दिया जिससे कोई असुर बचता ही नहीं? इसका मतलब तो यह हुआ वे व्यर्थ ही लड़ते रहे? उन देवताओं यहाँ तक कि श्री कृष्ण को भी इस बात की जानकारी नहीं थी? जो बात इस व्हाट्सएप ज्ञाता को 21वी सदी में आकर मालूम हो गई?

    अतः ग्रथों की जांच नहीं कर सकते तो कम से कम अपनी बुद्धि और सामान्य ज्ञान का ही थोड़ा प्रयोग करें।

    वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इसी व्हाट्सएप फ़र्ज़ी ज्ञान को सही समझ कर बीजेपी के उत्तर प्रदेश के मंत्री रघुराज सिंह ने इसे अपने बुर्क़ा बेन की मांग में दिये भाषण में उल्लेख कर अपनी फजीहत करवा ली थी और चौतरफा हँसी के पात्र बन गए थे। विश्वभर की मीडिया के सामने फजीहत (BJP Minister’s Bizarre tale / बीजेपी के मंत्री ने सुनाई विचित्र कहानी) करा बैठे रघुराज जी की इस कहानी से मुसीबत में फंसता देख बीजेपी ने तुरन्त इस बयान से अपना पल्ला झाड़ा और उन्हें नोटिस थमाते हुए उक्त कहानी को उनकी निजी सोच बताया था।

    यानी झूठ की बुनियाद पर नफ़रत फैलाने वाले इतना गिर चुके हैं कि दूसरे धर्मो को तो छोड़िये अब वे ख़ुद के धर्म के बारे में ही झूठ गढ़ने लगे हैं और अपमानजनक कृत्य कर रहे हैं। अतः इस पर तो सबसे पहले ख़ुद समझ रखने वाले हिंदू भाइयों को चिंता कर इस पर संज्ञान लेकर इसे रोकना चाहिए।

  • क्या मुस्लिमो ने दलितों पर अत्याचार किया ?

    क्या मुस्लिमो ने दलितों पर अत्याचार किया ?

    जवाब:- भारत में दलितों पर सदियों तक किसने अत्याचार किया है इस बात को जानने के लिए किसी अनजान रिसर्च की ज़रूरत नहीं है यह यो इतना खुला तथ्य है कि हर कोई इस बारे में जानता है।

    लेकिन झूठा इतिहास लिखने की कोशिश करने वालों का अपना किया दुसरो के सिर मढ़ कर भीम भाइयो को मुस्लिमों के ख़िलाफ भड़काने की छटपटाहट का यहाँ साफ़ प्रदर्शन हो रहा है। यह बिलकुल निराधार इसलिये है क्योंकि

    1. अस्थायी (Temporary) मैरिज जैसी कोई व्यवस्था इस्लाम में नहीं है, मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम से पूर्व अरब में कई कुरीतियाँ / प्रथाएँ प्रचलित थीं जैसे शराब, जुआ, व्यभिचार आदि जिन्हें मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैही व सल्लम के आने के बाद हराम (वर्जित) क़रार दिया गया ऐसे ही एक प्रथा मुताह निकाह (अस्थायी मैरिज) थी जिसे भी वर्जित कर दिया गया।
    (सही बुखारी 6961)
    (सही मुस्लिम1407)

    2. यह बिल्कुल ही अतार्किक बात है कि कोई भी व्यापारी किसी दूर देश में जाए और वहाँ जाकर उस समाज की स्त्रियों का यौन शोषण करें और उस समाज के लोग उसे कुछ कहे ही नहीं और ऐसा निरन्तर होता रहे। परदेस में तो इंसान ख़ुद लाचार होता है। अतः इस तरह का इलज़ाम तो ख़ुद के पूर्वजों का अपमान ही होगा।

    3. इस बात के असंख्य साक्ष्य मौजूद है कि अत्याचार और पतन से परेशान कितने ही दलित अतीत में इस्लाम से प्रभावित होकर इस्लाम में प्रवेश करते रहे हैं अतः अगर इस तरह की कोई कुरीति होती तो क्या यह सम्भव था? बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने भी अपने अनुयायियों को इस्लाम धर्म स्वीकार करने की राय दी थी। “अम्बेडकर और मुस्लिम” लेखक आनन्द तेलतुंबड़े।

    और अंत में यह कह देना की यह मैसेज सब भीम भाइयों को जल्दी से पढ़वाओ, इस मैसेज की असल मंशा, झूठे तथ्य और मनगढ़ंत डर बताकर भीम भाईयों को इस्लाम के ख़िलाफ भड़काना पूर्ण रूप से स्पष्ट एवं उजागर कर देता है।

    👇दलितों पर सदियों से आज तक किसने अत्याचार किया है इसकी जानकारी यह रिपोर्ट में उपलब्ध है। 👇

     

     

     

  • कुरआन में जिहाद की आयतें।

    कुरआन में जिहाद की आयतें।

    जवाब:- इस सवाल के जवाब के लिए क़ुरआन जिन हालात में नाज़िल हुआ उसको जानने की ज़रूरत है। जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लममक्का में लोगों को अल्लाह की तरफ़ बुलाने लगे तो मक्का के सारे लोग आपके दुश्मन बन गए। जो कोई भी इस्लाम स्वीकार करता उसको तरह-तरह की तकलीफ दी जाती थी। उन पर इतने भयानक अत्याचार किए गए कि उसको सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

    🛑 हजरत अबू बकर रजि अल्लाहु अन्हु जब मुसलमान हुए तो आपको काफिरों ने मिलकर इतना मारा कि जब आपके घरवाले उठाकर ले गए तो यह समझ रहे थे कि अब वह शायद ज़िंदा नहीं बचेंगे।

    🛑 हजरत बिलाल जो कि गुलाम थे उन्होंने जब इस्लाम स्वीकार किया तो उनके आका उनको मक्का की गरम तपती हुई रेत पर डाल देता और सीने पर बड़ा भारी पत्थर रख देता और उन्हे कहता कि इस्लाम छोड़ दो। उनको कोड़े मारता और अंगारों पर लिटाता। कभी उनको मक्का के गुंडों के हवाले कर दिया जाता जो उनको मक्का की गलियों में घसीटते रहते। ‌

    🛑 एक बार हजरत अब्दुल्लाह बिन मसूद रजि अल्लाहु अन्हु को ज़ोर से क़ुरआन पढ़ने पर इतना मारा कि पूरे बदन में निशान पड़ गए।

    🛑 हजरत उस्मान रजि अल्लाहू अन्हु ने जब इस्लाम स्वीकार किया तो उनके चाचा ने उनको एक खंभे से बाँध दिया कि जब तक इस्लाम नहीं छोड़ोगे तुम्हें नहीं खोलेंगे।

    🛑 हजरत अम्मार बिन यासिर और उनकी माँ को जलते हुए अंगारों पर डाल दिया जाता, जिससे उनकी कमर की चर्बी पिघल जाती और वह लोग बेहोश हो जाते‌। हजरत अम्मार इस अत्याचार और ज़ुल्म से वफात पा गए। उनकी माँ की शर्मगाह में मक्का के काफ़िर अबू जहल ने बरछी मारी जिससे वह शहीद हो गई। हालांकि उस वक़्त वह काफ़ी बूढ़ी थी। उस ज़ालिम ने आपके बुढ़ापे पर भी तरस नहीं खाया।

    🛑 हजरत खब्बाब को दहकते हुए अंगारों पर पटक कर आपके सीने पर पैर रख दिया जाता ताकि हिल ना सके। खून और चर्बी के पिघलने से वह अंगारे बुझ जाते। इसी वज़ह से आप की पीठ पर सफेद दाग हो गए थे। ‌एक बार उनके सिर को इस्लाम छोड़ने के लिए दहकती सलाखों से दागा गया।

    🛑 अगर कोई आदमी मक्का में मुसलमान होता तो पूरा मक्का उसकी दुश्मनी पर उतर आता। अगर वह इज़्ज़तदार होता तो उसको गालियाँ देते। अगर वह व्यापारी होता तो उसके व्यापार को तबाह कर दिया जाता और अगर वह कमजोर होता तो उसको भयानक तकलीफें दी जाती, कोड़ों से मारा जाता, जलती हुई रेत पर लिटाया जाता।

    🛑 ख़ुद पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को तरह-तरह की जिस्मानी और मानसिक तकलीफें दी गई ताकि किसी तरह वह लोगों को अल्लाह की तरफ़ बुलाने और इस्लाम का पैगाम पहुंचाने से रुक जाएँ।
    यहाँ तक कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर जानलेवा हमले और क़त्ल की साज़िश हुई, आपको जज़्बाती तकलीफे देते हुए आपकी बेटियों के रिश्ते तोड़ दिए गए और तलाक करवा दिए गए।

    🛑 मक्का की एक घाटी में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का आपके पूरे ख़ानदान समेत बॉयकॉट कर दिया गया। 3 साल तक सभी लोगों ने बड़ी तंगी के साथ जिंदगी गुजारी। कई-कई रात लोग भूखे रहते, बच्चे भूख से तड़पते रहते लेकिन उन तक खाना नहीं पहुँचने दिया जाता था।

    यह तो कुछ नमूने हैं, वरना मुसलमानों पर मक्का में इससे भी खतरनाक अत्याचार 13 सालों तक लगातार किए गए। यह सारी बातें सीरत (जीवनी) पर लिखी गई अरबी उर्दू हिंदी और इंग्लिश की किताबों में मौजूद हैं।